बेंगलुरू: कर्नाटक के जीवंत मंदिर समारोहों में हमेशा जैसा व्यापार बिल्कुल भी नहीं चल रहा है. कोविड पाबंदियां हटा ली गईं हैं, लेकिन हिंदुत्व समूहों ने कुछ नए प्रतिबंध लगा दिए हैं कि कौन उनमें दुकानें और स्टॉल लगा सकता है और कौन नहीं लगा सकता.
मेंगलुरू से क़रीब 25 किलोमीटर दूर मुल्की के प्रसिद्ध बप्पनाडु श्री दुर्गापरमेश्वरी मंदिर के बाहर लगे एक पोस्टर पर लिखा है, ‘हिंदू जागरूक हो गए हैं.’
कन्नड़ भाषा में लिखे इस पोस्टर पर वहां चल हे मंदिर मेले के लिए कुछ नियम लिखे गए हैं. ‘हम ऐसे लोगों के साथ व्यवसाय नहीं करेंगे, जो इस ज़मीन के क़ानूनों और संविधान का सम्मान नहीं करते, जो उस मवेशी को काटते हैं जिसकी हम पूजा करते हैं.हम उन्हें यहां भी अपना व्यवसाय स्थापित करने नहीं देंगे.’ पोस्टर के अंत में लिखा है, ‘सभी हिंदू’.
विडंबना ये है कि ऐसा माना जाता है कि ‘बप्पानाडु’ नाम एक मुस्लिम बेरी व्यापारी के नाम पर है, जिसने इस हिंदू मंदिर का निर्माण किया था. मुल्की में मंदिर अधिकारियों ने इस तरह के पोस्टर हटाने की कोशिश की है, लेकिन माहौल में एक बदलाव साफ महसूस किया जा सकता है, ख़ासकर हिजाब विवाद के बाद, जो पिछले साल कर्नाटक की तटवर्त्ती पट्टी में शुरू हुआ था.
राज्यभर में अकेले इस साल, ऐसी कम से कम आधा दर्जन घटनाएं हुई हैं, जहां मुसलमानों के मंदिर मेलों में कारोबार करने पर ‘पाबंदी’ लगाई गई. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), हिंदू जागरणा वेदिके और बजरंग दल जैसे हिंदूवादी संगठन मंदिर अथॉरिटीज़, म्यूनिसिपल प्राधिकारियों और शहर परिषदों को मुसलमानों के दुकानें और स्टॉल लगाने पर पाबंदी लगाने के लिए, ज्ञापन देते रहे हैं और अगर मुसलमान स्टॉल्स लगा भी लेते हैं, तो हिंदूवादी समूह लोगों से ऐसे व्यवसायियों का बहिष्कार करने का आग्रह कर रहे हैं.
ये मुद्दा विवादास्पद बनता जा रहा है. इस बुधवार को विपक्षी दलों ने, मंदिर मेलों में मुसलमानों पर पाबंदी लगाने के बारे में, सांप्रदायिक रूप से भड़काने वाले बैनर्स और पोस्टर्स का मुद्दा कर्नाटक असेम्बली में उठाया. लेकिन बीजेपी नेताओं ने इस पर अपनी ओर से कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दी और प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा कि ‘क्रिया पर प्रतिक्रिया’ बिल्कुल भी आश्चर्यजनक नहीं थी- उनका इशारा हिजाब फैसले के बाद, एक मुस्लिम नेता की ओर से किए गए बंद के आह्वान की ओर था.
‘हम उनके व्यवसायों का बहिष्कार क्यों न करें?’
इसी महीने जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरक़रार रखा, तो बहुत से मुसलमानों ने इसका कड़ा विरोध किया और एक मुस्लिम धर्म गुरु ने राज्य भर में एक दिन के बंद का आह्वान कर दिया. यही कारण है कि कुछ हिंदू संगठनों ने, मंदिर मेलों में मुस्लिम दुकानों के ख़िलाफ ये रुख़ इख़्तियार किया है.
हिंदू जागरण वेदिके की मेंगलुरू इकाई के महासचिव प्रकाश कुक्केहल्ली ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर वो हिजाब के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश का विरोध कर सकते हैं और फैसले के विरोध में अपनी दुकानें बंद कर सकते हैं, तो हमें उनके द्वारा चलाए जा रहे व्यवसायों का बहिष्कार क्यों नहीं करना चाहिए?’
उनके अनुसार, हिंदू लोग बहुत वर्षों से मंदिर मेलों में मुसलमानों के व्यवसाय करने को लेकर ‘सहनशील’ बने हुए थे, लेकिन अब वो इसकी अनुमति नहीं देंगे.
कुक्केहल्ली ने कहा, ‘ये हमारा मंदिर समारोह है. हम हिंदुओं के बीच जागरूकता फैला रहे हैं कि केवल हिंदुओं को दुकानें लगाकर, हमारे बीच व्यवसाय करने की अनुमति होनी चाहिए.’
राज्य में ये एक अकेली ऐसी मिसाल नहीं है.
पिछले हफ्ते बजरंग दल कार्यकर्त्ताओं ने शिवमोगा में एक ठेकेदार को मजबूर किया कि उसने कोटे श्री मरिकम्बा देवी सन्निधि मंदिर मेले में, जिन मुसलमानों को दुकानें लगाने की अनुमति दी थी, वो टेंडर को वापस ले लें.
मंदिर एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएम मरियप्पा ने दिप्रिंट को बताया, ‘जिस व्यक्ति ने दुकाने लगाने के लिए पहली बार टेंडर जीता था, उसने अपनी बोली ये आरोप लगाते हुए वापस ले ली कि ग़ैर-हिंदुओं को दुकानें लगाने की अनुमति को लेकर, उसे कुछ लोगों ने धमकियां दीं थीं.’
टेंडर आख़िरकार नागराज नाम के एक व्यक्ति को दिया गया, जिसे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल का समर्थन प्राप्त था, और जिसने शनिवार रात मंदिर अधिकारियों के साथ एक बैठक के दौरान कहा कि मुसलमानों को दुकानें नहीं लगाने दी जाएंगी. इस मामले में न तो पुलिस में कोई शिकायत हुई, और न ही कोई कार्रवाई हुई.
उडुपी ज़िले के कोल्लूर में भी, हिंदू संगठनों के सदस्यों ने स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन देकर श्री मूकाम्बिकामंदिर मेले के दौरान, मुसलमानों के व्यवसाय करने पर पाबंदी लगाने की मांग की.
उडुपी ज़िले में ही पादुबिदरी के महालिंगेश्वर मंदिर और कॉप के श्री मारिगुड़ी मंदिर के मेलों में मुसलमानों को कथित रूप से दुकानें लगाने से रोका गया.
बजरंग दल के राष्ट्रीय सह-संयोजक सूर्यनारायण ने दिप्रिंट से कहा कि ऐसे क़दम राष्ट्र-विरोधियों को विफल करने के लिए उठाए जा रहे हैं.
सूर्यनारायण ने कहा, ‘हम राष्ट्र-विरोधियों का विरोध करते हैं, उन लोगों का जो कोर्ट के आदेशों और देश के क़ानूनों का विरोध करते हैं. हम हिंदुओं के बीच जागरूकता फैला रहे हैं, कि उनके साथ व्यवसायिक गतिविधियां न करें.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें ऐसे मुसलमानों से कोई समस्या नहीं है, जो यहां के क़ानूनों को मानते हैं. अगर वो कोर्ट के किसी आदेश के विरोध में अपने व्यवसाय बंद कर देते हैं, तो फिर वो राष्ट्र-विरोधी हैं. अगर हम उनके साथ व्यवसायिक गतिविधियों में शरीक होंगे, तो इसका मतलब है कि हम परोक्ष रूप से, उनकी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का समर्थन कर रहे हैं.’
यह भी पढ़ें : स्कूलों में भगवत गीता पढ़ाने को लेकर कर्नाटक कांग्रेस को फिर से मिला ‘हिंदुत्व बनाम हिंदुवाद’ का मुद्दा
कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं, असेम्बली में उठा मुद्दा
बुधावर दोपहर विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को कर्नाटक विधानसभा के भीतर उठाया.
कांग्रेस विधायक रिज़वान अरशद ने असेम्बली से कहा, ‘हमारा सांप्रदायिक सदभाव का इतिहास रहा है. किन्हीं कारणों से भी इस शांत समाज में व्यवधान डालने वाली, ऐसी किसी भी हरकत की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. अगर हम अपने समाज की इस समकालिक प्रकृति को नहीं बचाएंगे, तो इसका ख़ामियाज़ा हमारे बच्चों को भुगतना पड़ेगा. इसका असर सिर्फ एक समुदाय पर नहीं, बल्कि पूरे समाज पर पड़ता है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘चरमपंथी संगठनों द्वारा नफरत फैलाए जाने को रोकना होगा. इस तरह किसी एक वर्ग का बहिष्कार किया जाना अन्यायपूर्ण है’.
सदन में कांग्रेस के उप-नेता प्रतिपक्ष और दक्षिण कन्नड़ से एक मात्र विधायक यूटी ख़ादर ने उनका समर्थन किया.
ख़ादर ने कहा, ‘सार्वजनिक जगहों पर इस तरह के पोस्टर लगाकर शांति भंग की जा रही है. मैं मंदिर अथॉरिटीज़ की सराहना करता हूं, जो इन पोस्टरों को उतार रहे हैं, लेकिन पुलिस विभाग को कार्रवाई करनी चाहिए.’
इन चिंताओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए, कर्नाटक के क़ानून एवं संसदीय कार्य मंत्री जेसी मधुस्वामी ने ज़ोर देकर कहा कि, ‘छिटपुट घटनाओं’ को मानदंड बनाकर सरकार के प्रति राय क़ायम नहीं करनी चाहिए.
उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि जब तक ये प्रतिबंध मंदिर परिसरों से आगे विस्तारित नहीं होते, तब तक इसमें किसी कार्रवाई की ज़रूरत नहीं है. मधुस्वामी ने कहा, ‘हिंदू धर्मार्थ संगठन एवं धार्मिक विन्यास अधिनियम में कहा गया है, कि मंदिर संपत्ति पर ग़ैर-हिंदुओं को टेंडर नहीं दिए जाने चाहिएं. जो लोग मुसलमानों के दुकानें लगाने का विरोध कर रहे हैं, वो इसी नियम का हवाला दे रहे हैं. लेकिन अगर ऐसा बहिष्कार मंदिर परिसरों के बाहर किया जा रहा है, तब हम कार्रवाई करेंगे.’
मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने आगे कहा कि टेंडर हासिल करने वाले, अपने विवेक से निर्णय कर सकते हैं कि कौन दुकानें लगा सकता है.
बोम्मई ने सदन से कहा, ‘मंदिर अधिकारी समारोहों और मेलों के दौरान, मंदिर के पास की जगहों को ठेकेदारों को पट्टे पर देते हैं. जिसे भी टेंडर मिलता है उसे दुकानों और इकाइयों को आगे किराए पर उठाने के विवेकाधीन अधिकार मिलते हैं. हम इस मामले को देखेंगे कि कहीं कोई उल्लंघन तो नहीं हुआ है.’
लेकिन, बोम्मई कैबिनेट के एक और मंत्री बीसी नागेश ने अपनी ‘क्रिया-प्रतिक्रिया’ वाली वाकपटुता को ही दोहराया.
उन्होंने कहा, ‘किसी ने अपेक्षा नहीं की थी कि मुस्लिम समुदाय हिजाब विवाद में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ बंद का आह्वान करेगा. ये किस तरह की प्रतिक्रिया है? ज़ाहिर है कि ऐसे क़दमों की जवाबी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है.’
नागेश ने बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में विपक्ष पर भी उंगली उठाई. ‘अगर विपक्ष ने हाईकोर्ट आदेश के विरोध में, मुसलमानों के बंद के आह्वान की निंदा की होती, तो ऐसी प्रतिक्रिया देखने में नहीं आती.’
‘स्पष्ट तौर पर वैमनस्य को बढ़ाने का मामला, लेकिन कुछ नहीं किया जा सकता’
मुस्लिम संगठन अभी तक इस मामले पर मुखर नहीं रहे हैं और न ही कोई औपचारिक शिकायत दर्ज की गई है.
उडुपी में मस्जिदों, जमातों, और इस्लामी संगठनों के छाता संगठन उडुपी मुस्लिम ओक्कुटा के अध्यक्ष इब्राहिम साहेब कोटा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम इस घटनाक्रम से आहत हैं. ये उन छोटे कारोबारियों के साथ नाइंसाफी है, जो अपनी जीविका के लिए मेलों में दुकानें लगाने आते हैं.’
पुलिस का कहना है कि ऐसे किसी भी मामले में कोई औपचारिक शिकायकत नहीं मिली है, इसलिए वो कुछ ज़्यादा नहीं कर सकते.
दक्षिण कन्नड़ के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये साफतौर पर धर्मों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने का मामला बनता है, लेकिन ये केस मुज़रई विभाग (हिंदू धर्मार्थ संस्थान और बंदोबस्ती विभाग, जो राजस्व मंत्रालय के आधीन है और पूरे राज्य के पंजीकृत हिंदू मंदिरों में प्रशासन का इंचार्ज है) के अधिकार क्षेत्र में आता है. जबतक कोई केस या शिकायत नहीं है, तब तक कुछ ज़्यादा नहीं किया जा सकता’.
उन्होंने आगे कहा, ‘दुर्भाग्य की बात है कि सभी दलों और धर्मों के धनी और ताकतवर लोग आपस में दोस्त बने रहते हैं, साथ में व्यवसाय करते हैं और उससे मुनाफा कमाते हैं, जबकि आम नागरिक जो इम मेलों में अपनी जीविका कमाने आते हैं, और गुब्बारे, भोजन तथा छोटी मोटी चीज़ें बेंचते हैं, उनके खिलाफ भेदभाव किया जा रहा है’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : मुस्लिम धर्मगुरू ने किया HC के हिजाब आदेश के खिलाफ कर्नाटक बंद का आह्वान, दलित संगठन का मिला समर्थन