नई दिल्ली: व्यापक रूप से अपेक्षा की जा रही थी कि असेंबली चुनावों के बाद सरकारी खुदरा तेल कंपनियां, पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतें बढ़ानी शुरू कर देंगी जिससे उपभोक्ताओं के लिए ईंधन की लागत बढ़ जाएगी. इस बोझ को कम करने के लिए केंद्र सरकार को पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क को घटाना पड़ता जो अभी भी बहुत अधिक है- यह पेट्रोल पर 27.90 रुपए प्रति लीटर और डीज़ल पर 21.80 रुपए प्रति लीटर है.
लेकिन, तेल विपणन कंपनियों ने भले ही इस तर्क के साथ पेट्रोल और डीज़ल के दाम चार महीने से स्थिर रखे हुए हों कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण क्रूड के वैश्विक दाम अस्थिर बने हुए हैं लेकिन वित्त मंत्रालय सूत्रों का संकेत है कि सरकार के उत्पाद शुल्क में कटौती करने की संभावना नहीं है. चूंकि, वो अपेक्षा कर रही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध ख़त्म होने के बाद क्रूड के वैश्विक दा, क़रीब 80-85 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर हो जाएंगे.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘अपनी राजकोषीय गणना के लिए हम 12 महीने के लिए कच्चे तेल का एक औसत भाव मानकर चलते हैं. इसलिए फिलहाल उत्पाद शुल्क में कटौती का सवाल ही नहीं उठता’.
अधिकारी ने आगे कहा कि चूंकि कच्चे तेल की क़ीमतें नीचे आ रही हैं इसलिए उत्पाद शुल्क में कटौती की अपेक्षा करना जल्दबाज़ी होगा.
ब्रेंट क्रूड के दाम, जिस वेरिएंट का भारत आयात करता है- रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध विराम की उम्मीदों और चीन में ताज़ा लॉकडाउंस के बीच- मंगलवार को दो हफ्ते से अधिक के सबसे निचले स्तर- 98 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए.
तेल निर्माण कंपनियों- इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम ने 4 नवंबर 2021 के बाद से पेट्रोल और डीज़ल के दामों में बदलाव नहीं किया है. जिसके साथ ही सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क, क्रमश: 5 रुपए और 10 रुपए प्रति लीटर घटा दिया था. इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप बहुत सी राज्य सरकारों ने भी पेट्रोल और डीज़ल पर वैल्यू-एडेड टैक्स (वैट) कम कर दिया जिससे उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत मिल गई.
उस कटौती के बाद भी दोनों ईंधनों पर उत्पाद शुल्क की दर अभी भी बहुत ऊंची है.
दिल्ली में पेट्रोल 95.41 रुपए और डीज़ल 86.67 रुपए प्रति लीटर बिकता है जबकि मुंबई में पेट्रोल की क़ीमत 109.98 रुपए और डीज़ल की 94.14 रुपए प्रति लीटर है. दोनों ईंधनों के दाम देश भर में अलग अलग होते हैं और ये राज्य के शुल्क पर निर्भर करते हैं.
मंगलवार को वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संसद को बताया कि सरकार बदलते भू-राजनीतिक घटनाक्रम के साथ उत्पाद की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमतों, विनिमय दरों, टैक्स ढांचे और अंतर्देशीय भाड़े पर क़रीबी नज़र बनाए हुए हैं और आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए जब ज़रूरत पड़ेगी तो कैलिब्रेटेड हस्तक्षेप करेगी.
रूसी तेल के आयात पर फैसला दो सप्ताह में
तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सोमवार को राज्यसभा को बताया था कि सरकार रूस की ओर से रिआयती तेल की पेशकश पर ग़ौर कर रही है.
लेकिन, सरकारी अधिकारियों ने कहा कि रूसी तेल के आयात पर कोई भी निर्णय लेने में क़रीब दो सप्ताह लग सकते हैं. चूंकि, प्रस्ताव का अध्ययन किया जा रहा है.
एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उस विषय पर कुछ समय लगेगा. हम प्रस्ताव का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं, और ऐसा फैसला लेते हुए, हमें दूसरे देशों के साथ अपने रिश्तों पर भी ग़ौर करना होगा. इसलिए, सभी संबंधित हितधारकों से परामर्श करने के बाद ही ऐसा कोई निर्णय लिया जा सकेगा’.
भारत तेल की अपनी लगभग 80 प्रतिशत ज़रूरत आयात से पूरी करता है. ख़ासकर, सऊदी अरब से और आमतौर से 2-3 प्रतिशत ही रूस से ख़रीदता है. लेकिन, तेल की वैश्विक क़ीमतों में हालिया उछाल के चलते, वो रूसी तेल की पेशकश पर विचार कर रहा है. चूंकि, उससे देश को अपने बढ़ते आयात बिल को घटाने में मदद मिलेगी.
व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी जेन साकी ने मंगलवार को एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत के रिआयती कच्चे तेल की रूसी पेशकश को स्वीकार करने से अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं होगा लेकिन उन्होंने आगे कहा, ‘जब इतिहास की किताबें लिखी जाएंगी तो ग़ौर से सोचिए कि आप कहा खड़े होना चाहते हैं’.
ख़बरों के अनुसार, संकेत हैं कि भारत तक कच्चा तेल सप्लाई करने में रूस डिस्काउंट के रूप में शिपिंग और इंश्योरेंस का ख़र्च उठा सकता है.
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