पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि गठबंधन सहयोगी पीडीपी और बीजेपी अलग-अलग रास्तों की तरफ जा रहे हैं और महबूबा मुफ़्ती का कार्यालय में ही बने रहना इस संकटग्रस्त राज्य की मदद नहीं करेगा।
श्रीनगर: नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने परेशानियों से घिरे इस राज्य में शांति सुनिश्चित करने के लिए पीडीपी-बीजेपी सरकार के इरादे पर सवाल उठाया है, भले ही बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने रमज़ान के पवित्र महीने के लिए युद्धविराम की घोषणा कर दी हो।
उमर अब्दुल्ला ने ये आलोचना तब की, जब राज्य में रमज़ान के मौके पर युद्धविराम और शांति के लिए जोर देने की राजनीतिक दलों की मांग से सहमत होने के केंद्र सरकार के आश्चर्यजनक निर्णय के कुछ दिन बाद, प्रधानमंत्री ने शनिवार को कार्यक्रमों की श्रृंखला के लिए इस हिमालयी राज्य का दौरा किया।
अब्दुल्ला ने दिप्रिंट को एक इंटरव्यू में बताया कि “सच्चाई यह है कि महबूबा मुफ़्ती के सिर्फ कार्यालय में बने रहने से इस स्थिति में कोई सहायता नहीं मिलने वाली। कार्यालय में एक साथ रहने के अलावा पीडीपी और बीजेपी अपने आप को अलग-अलग दिशाओं में खींच रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि उन्होंने फैसला कर लिया है कि जम्मू चाहे कितना ही तनावपूर्ण हो रहा हो, कश्मीर चाहे कितना भी हिंसक क्यों न हो रहा हो, वे स्थितियों का फायदा उठाएंगे और आनंद लेंगे। यह एक बहुत ही आरामदायक भागीदारी बन गयी है।”
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री ने युद्धविराम के फैसले का समर्थन किया।
अब्दुल्ला ने बुधवार को ट्वीट किया था कि “सभी राजनीतिक दलों की मांग पर (बीजेपी को छोड़कर, जिसने इसका विरोध किया था) केंद्र ने एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की है। अब यदि आतंकवादी इसी तरह की सज्जनतापूर्ण प्रतिक्रिया नहीं देते हैं तो वे जनता के सच्चे दुश्मनों के रूप में उजागर होंगे।”
गर्मियों की शुरुआत से पहले ही घाटी एक खूनी 2018 को देख चुकी है। जैसा कि उमर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी अपनी निराशा व्यक्त की और कहा कि उन्होंने राज्य में हिंसा पर बात करने में कोई पहल नहीं दिखाई है।
अब्दुल्ला ने कहा कि “प्रधानमंत्री का इरादा चाहे जो भी हो, उनके कार्यों के माध्यम से ये ज्यादा जोर से झलकना चाहिए था। यह देखते हुए कि बीजेपी का देश पर बहुत अधिक नियंत्रण है, मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री को साहसी फैसले लेने से डरने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि “पाकिस्तान से निपटने में हमने जिस तरह का साहस उनमें देखा, जम्मू-कश्मीर की समस्याओं से निपटने में कष्टदायी रूप से उस साहस का अभाव रहा है। यह एक ऐसे प्रधान मंत्री हैं जिन्होंने शपथ ग्रहण के लिए नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था। लेकिन हमने जम्मू-कश्मीर के संबंध में इस तरह की लीक से अलग राय वाली सोच को नहीं देखा है। इस चीजों ने मुझे व्यक्तिगत रूप से निराश किया है।”
सोशल मीडिया पर सक्रिय अब्दुल्ला पत्थरबाजों के खिलाफ बोलते रहे हैं।
अब्दुल्ला ने पूछा कि “मैं पत्थरबाजी को बदलाव लाने के एक माध्यम के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता। यदि पत्थरबाजी को विरोध के एक साधन के रूप में देखा जाता है तो यह निश्चित रूप से विरोध प्रदर्शन का एक गैर-विनाशकारी रूप नहीं है। आप एक पर्यटक को अस्पताल पहुंचा देते हैं और दूसरा मर जाता है, फिर एक पत्थरबाज किस प्रकार से अलग है?”
एक तरफ जहाँ उन्होंने अलगाववादियों पर चुनिन्दा हंगामे और निर्दोष लोगों के खिलाफ हिंसा की निंदा नहीं करने का आरोप लगाया वहीं दूसरी तरफ यह भी कहने में देरी नहीं की कि यदि एक वार्तालाप प्रक्रिया शुरू होती है तो हुर्रियत उसमें आवश्यक हिस्सेदार है। उन्होंने कहा कि “अभी जो हो रहा है, हुर्रियत इसके नियंत्रण में चाहे हो या न हो लेकिन वे प्रभावी रूप से यहाँ एक समर्थन समूह और एक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे वार्तालाप के समय सामने रखना जरूरी होगा।”
इस पर पूछे जाने पर कि सहायक प्रोफेसर मोहम्मद रफ़ी भट्ट जैसे नए और नियोजित युवा आतंकवादी समूहों में क्यों शामिल हो रहे थे, पूर्व मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि वह घाटी में इस नए नज़रिये को लेकर हैरान थे।
अब्दुल्ला ने कहा, “मुझे नहीं पता कि क्या है जो इन युवाओं को संचालित कर रहा है। पहले हमें ये बताया गया कि ये युवा यहाँ के इस सामान्य वातावरण से प्रेरित हुए थे कि यहाँ कोई नौकरियां और सुरक्षा नहीं है। लेकिन इस युवा प्रोफेसर के पास अन्य युवाओं की जिंदगियों को सही रुख देने का मौका था।”
उन्होंने कहा, “इसके पास नौकरी की सुरक्षा थी। उसे अच्छा पैसा मिलता था। लेकिन फिर भी वह जो कुछ हो रहा था उससे इतना भ्रमित था। हम बात कर रहे हैं उस युवा व्यक्ति की जिसने शुक्रवार को काम पूरा किया, सप्ताहांत में आतंकवादी बना और सोमवार को उसकी मौत हो गयी। हूबहू यही उसकी समय रेखा है
Read in English: BJP & PDP have become cosy partners in J&K to enjoy spoils of office, says Omar Abdullah