इंफाल: मणिपुर में अंतिम चरण के लिए वोट डाले जा रहे हैं. इस बीच, एक बार फिर, राज्य में छोटी पार्टियां उभर कर सामने आने लगी हैं.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 21 सीटें जीतकर कांग्रेस से पीछे रहने के बावजूद बीजेपी सत्ता हासिल करने में कामयाब रही थी. कांग्रेस 28 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी थी.
सरकार बनाने के लिए ज़रूरी आंकड़े पूरा करने के लिए बीजेपी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के साथ गठजोड़ बनाने में कामयाब रही थी. इसके साथ लोक जनशक्ति पार्टी का समर्थन भी बीजेपी को मिल गया था. राज्य की 60 विधानसभा सीटों में एनपीपी और एनपीआर को चार-चार सीटें और लोजपा को एक सीट मिली थी.
इस चुनाव में बीजेपी को मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी की ओर से चुनौती मिल रही है. दोनों पार्टी गठबंधन में रहते हुए एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं.
गौरतलब हो कि एनपीपी और बीजेपी मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, और मणिपुर में साथ मिलकर सरकार चला रही हैं. एनपीपी बीजेपी के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का भी सदस्य भी है.
एक सप्ताह पहले, पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने कहा था कि ज़रूरी संख्या पूरा नहीं होने पर कांग्रेस एनपीपी जैसी ‘समान विचारों वाली पार्टी’ के साथ गठबंधन के लिए तैयार है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के 38 उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं. जेडीयू को बीजेपी और कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं का फायदा मिला है.
बीजेपी इस बार अकेले चुनाव मैदान में है. चुनाव प्रचार में स्टार प्रचारक के तौर पर बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्रियों को उतारा गया है. साथ ही, राजनीतिक विश्लेषक, होर्डिंग और रिवाइव्ड स्कीम (पुरानी योजना को फिर से शुरू करने) बीजेपी के कैंपेन की खासियत है.
जानकारों का मानना है कि दल बदल और राज्य की जटिल राजनीतिक परिस्थिति की वजह से तमाम कोशिशों के बावजूद, पार्टी बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाएगी.
चुनाव नतीजे 10 मार्च को जारी होंगे..
छोटी पार्टियों का जन्म
जनवरी महीने में बीजेपी में टिकट बंटवारे को लेकर मचे घमासान का फायदा जेडीयू ने उठाया है. जेडीयू ने मणिपुर में पहली बार 38 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. जेडीयू के इस निर्णय की राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा रही. टिकट बंटवारे से असंतुष्ट नेताओं की वजह से बीजेपी को दलबदल का नुकसान उठाना पड़ा है.
जेडीयू के 38 उम्मीदवारों में बीजेपी से 10 और कांग्रेस से पांच दलबदलू नेता हैं. वांगखेई सीट के लिए टिकट के दावेदार और बीजेपी के पूर्व नेता थांगजाम अरुण कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने जेडीयू को चुना क्योंकि केंद्र में यह बीजेपी के साथ गठबंधन में है और एक छोटा राज्य होने की वजह से हमें संसाधनों की ज़रूरत है.’
जेडीयू के राज्य यूनिट के महासचिव डोरेंड्रो मैशाम को उम्मीद है कि उनकी पार्टी कम से कम 15 सीटों पर जीत दर्ज करेगी. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘जेडीयू किंगमेकर की भूमिका में होगी, अगर कांग्रेस और एनपीपी साथ भी मिल जाएं, तब भी वे हमारे बिना नहीं जीत सकते.’
एनपीपी ने इस चुनाव में 60 में से 38 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को खड़ा करके अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी है. साल 2019 में एनपीपी को चुनाव आयोग ने आठवीं राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया है. साल 1017 में हुए पिछले चुनाव में पार्टी ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे.
एनपीपी प्रमुख कोनराड संगमा ने दिप्रिंट को कहा था कि बीजेपी के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन ‘बहुत ही ज्यादा चुनौतीपूर्ण’ था.
इसके साथ ही, एनपीपी के विस्तार की दो और वजहें भी हैं. पहला, पार्टी नेताओं का यह मानना है की राज्य में उनकी पार्टी का प्रभाव बढ़ा है. दूसरी वजह बीजेपी में टिकट के बंटवारो को लेकर मचा घमासान है, जिसकी वजह से कई असंतुष्ट नेता एनपीपी के पाले में आ गए.
पिछले महीने दिप्रिंट से एनपीपी नेता जॉयकुमार सिंह ने कहा कि बीजेपी से एनपीपी ज्वाईंन करने वाले 60 से 70 फीसदी नेताओं के चुनाव जीतने की संभावना है. जॉयकुमार एन बिरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री थे.
कूकी समुदाय से जुड़े राजनीतिक पार्टियों का उदय भी इस चुनाव की एक खास बात है. इन पार्टियों में कूकी पीपुल्स अलाइंस (केपीए) और कूकी नेशनल असेंबली (केएनए) शामिल है. मतदान के पहले चरण में इन पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे.
गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर डीएल हाओकिप मानते है कि ऐसी पार्टियां एनपीपी और एनपीएफ जैसी स्थानीय और क्षेत्रीय पार्टियों से प्रेरित हैं.
डॉक्टर हाओकिप ने कहा, ‘केपीए का गठन और केएनए का फिर से अस्तित्व में आना यह दिखाता है कि किस तरह से क्षेत्रीय पार्टियां कुछ हद तक अपनी ताकत दिखा सकती हैं. मणिपुर के मामले में क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व फिर से बढ़ रहा है.’
बीजेपी का ‘प्रोजेक्ट मणिपुर’.
जून 2020 में अधिकारिमायुम शारदा देवी के राज्य का अध्यक्ष बनने के बाद से ही राज्य में बीजेपी का चुनाव अभियान शुरू हो गया था. राज्य कार्यकारिणी की मीटिंग के बाद उन्हें अध्यक्ष बनाया गया था.
शारदा देवी ने दिप्रिंट से कहा, ‘केंद्रीय टीम के साथ नियमित बात-विमर्श किया गया है जिसमें जेपी नड्डा, प्रभारी संबित पात्रा और बीएल संतोष शामिल हैं. नड्डा जी मणिपुर में अबतक पांच बार आ चुके हैं.’
एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड (एबीएम) ने पार्टी के लिए सर्वे किया है. एबीएम में 80 से 85 लोग काम करते हैं. एक पॉलिटिकल कंसल्टेंसी फर्म से जुड़े सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘जुलाई से सितंबर के बीच सभी विधानसभा में घर-घर जाने के साथ ही फोन पर यह जानने कि लिए सर्वे किया गया कि क्या लोग सरकार से खुश हैं.’
सीएम दा हैसी (सीएम को बताएं)’ के साथ ही, मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने लोगों से जुड़ने के लिए, ‘गो टू हिल्स’ और ‘गो टू विलेज’ जैसे कार्यक्रमों को फिर से शुरू किया है.
लोगों की शिकायतों को सीधे समाधान करने के लिए पिछले साल अक्टूबर में ‘सीएम दा हैसी’ कैंपेन शुरू किया गया था. नवंबर में बिरेन सिंह ने ‘गो टू हिल्स 2.0’ कार्यक्रम शुरू किया. इसका उद्देश्य सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को योजनाओं का लाभ उनके घर तक पहुंचाना था. इसके साथ ही, ‘गो टू विलेज 2.0 लागू किया गया’, इसमें अलग-अलग सरकारी विभागों का स्टॉल लगाकर कैंप के जरिए सरकारी सेवाओं को लोगों तक पहुंचाना था.
विकास के मुद्दों पर फोकस रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेताओं ने राज्य में रैलियां की हैं.
बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता म्महोनल्यूमो किकोन ने दिप्रिंट से कहा, ‘भारत सरकार ने विकास के मोर्चे पर मणिपुर के लिए बहुत कुछ किया है और सभी मंत्रालय मणिपुर के लिए किए गए कामों को हाइलाइट कर रहे हैं.’
इंफाल रिव्यू ऑफ आर्ट्स एंड पॉलिटिक्स के संपादक प्रदीप फंजौबाम ने कहा, ‘बीजेपी ने अखबार वगैरह में विज्ञापन पर जोर दे रही है, हर लैंप पोस्ट और नेताओं के पोस्टर के पास झंडा लगा है. यहां पर ऐसी संस्कृति पहले नहीं थी.’ उन्होंने कहा कि हो सकता है कि पार्टी की ‘विजिबलिटीटी’ सीट में न बदल पाए.
उन्होंने कहा, ‘कभी हमें लगता था कि बीजेपी के लिए यह (चुनाव) बहुत आसान होगा, क्योंकि पार्टी केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर सत्ता में है. लेकिन, टिकट के बंटवारे के बाद, बीजेपी का वोट बैंक बंट गया है, और समीकरण में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है.’