क्षमता और ऊर्जा के साथ स्पष्ट जनादेश को परिभाषित करने और लोगों का चयन करने में निपुणता है। अगर मोदी इस फार्मूले को इस्तेमाल करते रहे तो मोदी सरकार का रिकॉर्ड अधिक बेहतर हो जाएगा।
यदि नरेंद्र मोदी सरकार में सबसे प्रभावी मंत्रियों को एक पुरस्कार दिया जाना हो, तो “नीति” या विशुद्ध रूप से “प्रशासनिक” मंत्रालयों की बजाय, शायद इसके हकदार “शासनात्मक सत्ता” की माँग करने वाले सड़क परिवहन और राजमार्ग प्रभारी नितिन गडकरी है। वह ऊर्जा और विचारों के एक बड़े स्त्रोत रहे है, और उसे वास्तविकता में परिवर्तित किया है। पिछले चार वर्षों में, रुकी हुई परियोजनाओं और पीपीपी (सार्वजनिक-निजी साझेदारी) अनुबंधों पर विवादों के कारण विरासत में मिले परिदृश्य के बाद, राजमार्ग निर्माण की गति को लगभग असरदार बनाना कोई बडी उपलब्धि नहीं है।
हर दिन 27 किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण किया जाना, जैसा कि उन्होंने 2017-18 में इसे पूरा करने को कहा है, यह बात ठीक उसी तरह हुई, जैसे कि दिल्ली-जयपुर राजमार्ग 10 दिन में बन जाए या इतने ही समय में बैंगलुरु-चेन्नई और कोलकाता-जमशेदपुर जैसे अन्य समकक्ष राजमार्ग बनकर तैयार हो जाए। बेशक, गडकरी एक प्रवृत्ति से ग्रसित हैं जिसे उन्होंने अपने कुछ सहयोगी मंत्रियों के साथ साझा किया है, उन्होनें अपने पहले कार्य करने वालों की कमियाँ निकालते हुए अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया है,लेकिन यह इस बात से छुपाई नहीं जा सकती है कि वह कितना कार्य करने में कामयाब रहे हैं।
कुछ अन्य “कार्यकारी” मंत्री भी बहुत सक्रिय रहे जैसे सुरेश प्रभु, जब वह रेल मंत्रालय के प्रभारी थे और पियुष गोयल जब वह बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का पदभार संभाल रहे थे। श्री प्रभु ने रेलवे पोर्टफोलियो में एक नई ऊर्जा के साथ काम किया और बड़े बजट के प्रावधान की मदद से एक प्रभावशाली श्रेणी में बदलाव शुरू किया। लेकिन रेल परियोजनाएं जैसे हाई-स्पीड फ्रेट कॉरिडोर और अधिक शक्तिशाली इंजनों को शामिल करना आदि को बढ़ावा देने की जरूरत है इसलिए उनके द्वारा किए गए कार्य अभी तक जनता के सामने नहीं पहुंचे हैं। मिस्टर गोयल, ऊर्जा और कोयला (वह अभी भी कोयला मंत्री हैं) मंत्री थे और उन्होंने कई दिलचस्प योजनाओं जमींन पर उतारने के बारे में सोचा, जैसे राज्यों में तर्कसंगत बिजली दरों को ठीक करने की योजना और कम पूंजी लागत और डिस्कॉम्स को कर्जे से मुक्त करना आदि योजनाएं के समाधान के साथ आए। दुर्भाग्यवश इस योजना को केवल आंशिक सफलता ही मिली। जैसा कि कोयले की खदानों की नीलामी के मामले में, परियोजनाएं धीमी गति से चल रही हैं और इसलिए वह वादा किए गए राजस्व को नहीं दे पाए। बिजली की खपत को बचाने के उद्देश्य से चालू की गई अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम और एलईडी बल्बों जैसी दोनो योजनाओं को पेश करनेके लिए उन्हें अधिक सफलता मिली।
दुर्भाग्य से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए, उनके पास इस तरह की तिकड़ी जैसे पर्याप्त कार्य करने वाले उन्मुख मंत्री नहीं थे। बिना समर्थन के और संभवतः चुनाव से, उन्होंने मामलों को आगे बढ़ाने के लिए अधिकारियों पर भरोसा किया। यही नीति स्वच्छ भारत कार्यक्रम के साथ लागू की गयी, जिसे एक प्रतिबद्ध सिविल सेवक द्वारा संचालित किया गया,लेकिन इसको कुछ अन्य लोगों के साथ नहीं लागू किया जा सकता क्योंकि सरकार के कई क्षेत्रों को प्रभावी राजनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता होती है।उदाहरण के लिए, नागरिक उड्डयन मंत्री (जिनका हाल ही में मंत्रालय बदला गया है) को तीन साल पहले एयर इंडिया का निजीकरण कर देना चाहिए थाऔर हवाई अड्डे की क्षमता मौजूदा यातायात के संदर्भ में चोक पोइंट पर पहुंचने के पहले बढ़ा देना चाइये था।
इसी तरह, गंगा सफाई कार्यक्रम को शुरुआत से ही उचित नेतृत्व की आवश्यकता थी अगर कोई वास्तविक प्रगति करनी थी जबकि कौशल विकास कार्यक्रम भी निराशा की ओर है,यद्दपि संचार मंत्री ने इसकी अध्यक्षता करते हुए इसका खंडन किया है। रक्षा मंत्रालय, एक जटिल प्रभार जो विभिन्न तरीकों से सुधार के लिए योग्य होता है,कुछ समय के लिए अंशकालिक पर्यवेक्षक और अब तक पूर्णकालिक अधिभोगियो के लिए केवल छोटा मोटा रोजगार है।पारिणाम स्वरुप ज्यादातर पुरानी समस्याएं बनी है।
स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि जैसे मुख्य क्षेत्रों में चार वर्षों में बहुत सकारात्मक बदलाव देखने को मिल पाना मुश्किल है और प्रभारी मंत्रियों का आसानी से नाम सामने लाना भी काफी मुश्किल है- हालांकि स्मृति ईरानी ने शिक्षा और अन्य जगहों को सुव्यवस्थित कर सुर्खियाँ बटोरने में सफल रही हैं।हाल ही में नियुक्त व्यक्तियों में,अलफोंस कन्नथानम स्वयं की बेहतर छवि बनाने के लिए बहुत ही कठिन परिश्रम कर रहे हैं जबकि हरदीप पुरी, शहरी विकास में ऊर्जावान, दिल्ली पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित करने की धारणा प्रकट कर रहे हैं।
वह सब जो इसे स्पष्ट करता है कि प्रमुख मंत्रालयों के लिए शुरूआती स्पष्ट शासनादेश में योग्यता क्यों है योग्यता और ऊर्जा वाले लोगों को नियुक्त करने के बाद, उन्हें नौकरी करने के लिए छोड़ दिया गया है।मोदी सरकार का इस स्तर पर रिकॉर्ड बेहतर हो सकता था यदि इसकी शुरुआत ही इस फार्मूले के अन्तर्गत की गई होती।
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