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Friday, 22 November, 2024
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मनोवैज्ञानिक युद्ध और जान न लेने की नीति : रूस यूक्रेन के शहरों पर कब्जा क्यों नहीं कर रहा

सेना के पूर्व अधिकारियों और रक्षा संस्थानों से जुड़े लोगों का कहना है कि रूस रिहायशी इलाकों में आक्रमण करने से बच रहा है और मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर यूक्रेन में रूस समर्थित सरकार स्थापित करना चाहता है.

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नई दिल्ली: रूस की सेना हमले के तीसरे दिन भी यूक्रेन के मुख्य शहरों को निशाना बनाने से बचती दिख रही है. यह तब है, जब रूस ने यूक्रेन के खिलाफ रॉकेट, क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ पूरी ताकत से हमला किया है.

यह सच है कि FIBUA (फाइटिंग इन बिल्ड अप एरिया) और MOAT (मिलिट्री ऑपरेशन इन अर्बन टेरिटरीन) के दौरान आने वाली चुनौतियों को समझते हुए रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव जैसे शहरों पर कब्जा करने से बचेगी. लेकिन, भारत के रक्षा संस्थान से जुड़े लोग और सेना के शीर्ष पदों पर रह चुके अधिकारियों को लगता है कि रूस मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ रहा है.

FIBUA और MOAT सैन्य कार्रवाई से जुड़ा शब्द है. इस शब्द का इस्तेमाल तब होता, जब कोई सैन्य बल दुश्मन देशों के रिहायशी इलाकों (बिल्ड अप एरिया) में लड़ता है जहां पर उसे सेना, सिविलियन और नागरिक सेना (सेना की तरह लड़ने वाले अन्य पेशे के लोग) से संघर्ष करना पड़ सकता है. यह क्षेत्र शहरी या ग्रामीण हो सकता है.

दिल्ली के मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (एमपी-आईडीएसए) से जुड़े सेवानिवृत्त कर्नल विवेक चड्ढा ने दिप्रिंट को बताया, ‘यूक्रेन में कार्रवाई करने की वजह से रूस को कूटनीतिक आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में अगर युद्ध की वजह नागरिक हताहत होते हैं, तो इससे रूस की मुश्किलें बढ़ सकती है. इसलिए, वे सैन्य अड्डों को निशाना बना रहे हैं. FIBUA से सिविलियन के साथ ही उनकी अपनी सेना को भी भारी नुकसान पहुंच सकता है.’

उन्होंने कहा कि रूस कीव जैसे मुख्य शहरों पर कब्जा करने से बच रहा है, क्योंकि उनका मुख्य लक्ष्य सत्ता परिवर्तन करना है, वह ऐसी नई सरकार लाना चाहते हैं जो रूस की सुरक्षा नीतियों का समर्थन करती हो. वे कब्जा नहीं चाहते.

उन्होंने कहा कि रूस वही चाल चल रहा है जो 1971 के युद्ध में भारत ने चली थी. तब ढाका को पूरी तरह से घेर लिया गया था. इसकी वजह से पाकिस्तान के पूर्वी पाकिस्तान के जनरल इन चार्ज एएके नियाजी मानसिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर हार मान गए थे.

उन्होंने कहा, ‘आपको यह समझना होगा कि जो भी पक्ष रिहायसी इलाकों (बिल्ड अप एरिया) में आक्रमण करता है उसे ज्यादा नुकसान होता है और यह खौफनाक हो जाता है. ऐसे में रूस की नीति अपनी ताकत दिखाने की है और उसका इरादा यूक्रेन के नेताओं को मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से हराने की है.’

उन्होंने कहा कि FIBUA क्षेत्र में नागरिक या नागरिक सेना हल्के मशीन गन से भी आक्रमण करने वाली सेना को रोक पाने में सक्षम होती है.

खबरों के मुताबिक यूक्रेन प्रशासन रूस की सेना से लड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों को हथियार और गोला-बारूद धड़ल्ले से मुहैया करवा रहा है.


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सत्ता परिवर्तन के लिए दबाव

सैन्य अभियानों के पूर्व महानिदेशक और पैराट्रूपर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) विनोद भाटिया ने कहा कि रूस जानबूझकर बिल्ड-अप एरिया में नहीं जा रहा है, क्योंकि वहां पर लड़ाई का मतलब भारी जान-माल का नुकसान है, जबकि वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है.

उन्होंने कहा कि सैन्य नजरिए से देखें तो आज रूस के आक्रमण का यह तीसरा दिन है, लेकिन मरने वालों की संख्या बेहद कम है, जिसका मतलब है कि जानबूझकर सैन्य अड्डों को ही निशाना बनाया जा रहा है. साथ ही, आक्रमणकारी सेना और यूक्रेन की सेना के बीच कोई बड़ी लड़ाई नहीं हुई है.

उन्होंने कहा कि इस कार्रवाई के बाद यूक्रेन पर रूस का दबदबा होगा और पश्चिमी ताकतें नई सरकार और रूस प्रशासन के खिलाफ, नागरिक सेना को बढ़ावा देंगी.

भारतीय सेना के पूर्व उप प्रमुख और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के पूर्व सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सुब्रत साहा ने कहा कि रूस की नीति सत्ता परिवर्तन के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की है न कि उस पर पूरा कब्जा करने की है, जिससे बड़ी संख्या में लोग हताहत होंगे.

उन्होंने कहा कि रूस की सेना या तो गाड़ियों पर है या मशीनों के साथ है और उनके लिए उन्हें छोड़कर और पैदल लड़ाई लड़ना बिल्कुल नया होगा. ऐसे में तब, जब यह इलाका दुश्मन सेना के लिए जानी-पहचाना है.

उन्होंने कहा कि रूस सैन्य कार्रवाई में नागरिकों को हताहत करने से बचना चाहेगा. वह जल्दी में नहीं है और अपनी कार्रवाई पर दुनिया की प्रतिक्रिया का आकलन कर रहा है.

लेफ्टिनेंट जनरल साहा ने कहा, ‘फिलहाल, रूस की कार्रवाई की प्रतिक्रिया में प्रतिबंध लगाए गए हैं और ये सभी प्रतिबंध एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. इससे रूस पर असर पड़ेगा लेकिन मास्को को भी पता है कि जो ये प्रतिबंध लगा रहे हैं उन पर भी असर पड़ेगा. रूस FIBUA या MOAT कार्रवाई नहीं करना चाहेगा, इससे जानें जाएंगी, इसके बाद के दृश्य भयानक होंगे और उसे वैश्विक आलोचना का सामना करना पड़ेगा.’

भारत की रक्षा और सुरक्षा संस्थानों से जुड़े सूत्रों को भी लगता है कि रूस की सेना, यूक्रेन के शहरों में नहीं घुस रही है, क्योंकि वे यूक्रेन पर कब्जा करने के बजाय यूक्रेन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर रूस समर्थित सरकार स्थापित करना चाहते हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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