गुवाहाटी: अपने बाक़ी बचे पांच विधायकों के राज्य में बीजेपी-समर्थित गठबंधन सरकार को समर्थन का ऐलान करने के बाद कांग्रेस उन्हें कारण-बताओ नोटिस जारी करने पर विचार कर रही है.
मेघालय प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) ने इस मामले पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) को एक रिपोर्ट भेजी है. एमपीसीसी अध्यक्ष विंसेंट पाला ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम (विधायकों को) कारण बताओ नोटिस जारी करने पर निर्णय कर रहे हैं’.
एमपीसीसी कथित रूप से ये सिफारिश भी करने जा रही है कि इन पांच विधायकों को निलंबित कर दिया जाए.
लेकिन, अहम बात ये है कि अभी तक इस विषय पर एआईसीसी की ओर से कोई बयान या प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
मंगलवार को, कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता अंपरीन लिंग्दोह, मोहेंद्रो रापसंग, मायरलबॉर्न सिएम, किम्फा मारबनियांग और पीटी सॉकमी ने, मुख्यमंत्री कोनराड संगमा को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि ‘राज्य के आम नागरिकों के हित में’ उन्होंने राज्य में मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस (एमडीए) की सरकार में शामिल होने का फैसला किया है.
एमपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष देबोरा मारक ने दावा किया कि पार्टी आश्चर्यचकित रह गई थी. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘पार्टी हमेशा रहेगी, विधायक आते जाते रहेंगे…हमें निश्चित रूप से झटका लगा है, लेकिन पार्टी नए नेता तैयार कर लेगी’.
अभी तक इस घटनाक्रम पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की ओर से कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है.
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पतन का घटनाक्रम
2018 के असेम्बली चुनावों के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने से लेकर, इसके विधायकों के सत्तारूढ़ एमडीए में शामिल होने तक, मेघालय में कांग्रेस पार्टी के पतन के पीछे कई कारण रहे हैं.
2018 के चुनावों के बाद कांग्रेस के पास कुल 60 में से 21 सीटें थीं. लेकिन, अंत में कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने, जिसे 20 सीटें मिलीं थीं, एक गठबंधन बना लिया जिसमें यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, बीजेपी, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और दो निर्दलीय शामिल थे.
एक विधायक के इस्तीफे और फिर पार्टी के कुछ विधायकों की मौत के बाद हुए उपचुनावों के नतीजे में कांग्रेस की संख्या अंत में घटकर 17 पर आ गई.
2019 में, सेलसेला सीट पर जिसे कांग्रेस के क्लीमेंट मारक ने जीता था, उनकी मौत के बाद हुए उपचुनावों में, एनपीपी की झोली में चली गई. 2021 उपचुनावों में पार्टी ने दो और सीटें- राजाबाला और मयरिंग्कनेंग- गंवा दीं.
बड़ा झटका पिछले नवंबर में लगा, जब कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक दल बदलकर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) में शामिल हो गए. उनकी अगुवाई दो बार के मुख्यमंत्री और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष मुकुल संगमा कर रहे थे.
‘फिर से एकजुट करने के प्रयास’
पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले दो महीनों में, मेघालय कांग्रेस के भीतर से एकजुट होने के प्रयास किए गए थे, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला.
सीएलपी नेता अंपरीन लिंग्दोह ने उस समय स्थानीय मीडिया को बताया था कि विधायक ‘राजनीति के उस मोड़’ पर पहुंच गए हैं, जहां उन्हें सुनिश्चित करना था कि वो ‘एक दूसरे को बचाते रहें’.
लिंग्दोह ने दिप्रिंट को बताया कि विधायकों ने एआईसीसी को, ‘एक के बाद एक पत्र’ लिखे थे, लेकिन उन्हें कोई जवाब हासिल नहीं हुआ था.
उन्होंने कहा था, ‘हम उस ओर (एआईटीसी) जा सकते थे, लेकिन हम दल-बदलू नहीं हैं. ये हम लोग ही हैं जिन्हें एआईसीसी का मार्गदर्शन करना चाहिए था. उन्हें बहुत पहले हम से बात करनी चाहिए थी, जब उन्हें उप-चुनावों में हार का सामना हुआ था…हमने जो किया है वो एक उपयोगी चीज़ है’.
दिप्रिंट से बात करते हुए पाला और एआईसीसी के मेघालय प्रभारी मनीष चतरथ दोनों ने कहा कि उन्हें विधायकों की ओर से ऐसे कोई पत्र प्राप्त नहीं हुए हैं.
लेकिन, चतरथ ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि विधायकों के बारे में पार्टी के क्या निर्णय लेने की संभावना है.
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पार्टी नेतृत्व के साथ परेशानियां
मेघालय में कांग्रेस की परिशानियों का काफी कुछ ताल्लुक़ प्रदेश के नेताओं और पार्टी नेतृत्व के बीच संचार को लेकर है.
उसके विधायक मार्टिन एम डैंगो, जिनके 2018 असेम्बली चुनावों के कुछ ही समय बाद दिए गए इस्तीफे से (वाद में वो एनपीपी में चले गए), पार्टी ने ‘सबसे बड़े दल’ का अपना दर्जा गंवा दिया था, उस समय कहा था कि उन्होंने ये फैसला इसलिए लिया कि सीएम कोनराड संगमा ने उनके असेम्बली चुनाव क्षेत्र रानीकोर को सिविल सब-डिवीज़न का दर्जा देने का वादा किया था.
उसके बाद पिछले साल, उप-चुनावों से पहले विंसेंट पाला के प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद, उनके और मुकुल संगमा के बीच मतभेद होने शुरू हो गए. संकट को टालने के लिए राहुल गांधी ने भी दोनों नेताओं से मुलाक़ात की थी.
उपचुनावों के बाद नवंबर 2021 तक आते आते, मुकुल संगमा ने ऐलान कर दिया कि वो और 11 अन्य विधायक, एआईटीसी में शामिल होने जा रहे हैं. दिप्रिंट के साथ पहले किए गए एक इंटरव्यू में, संगमा ने कहा था कि पार्टी के अंदर संघर्ष करने, और राज्य में चुनावी जंग जीतने का जज़्बा ख़त्म हो गया था.
उस समय उन्होंने कहा था, ‘हम वास्तव में तलाश कर रहे थे और अपनी भरसक कोशिश कर रहे थे, इस उम्मीद में कि शायद इस वयोवृद्ध पार्टी के भीतर ही कुछ हो जाए. लेकिन हमने देखा कि चीज़ों में कोई बदलाव नहीं होने जा रहा था’. उन्होंने आगे कहा था कि चर्चा की इस प्रक्रिया के दौरान ही उनकी मुलाक़ात प्रशांत किशोर से हुई थी, जिनकी राजनीतिक परामर्श कंपनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आ-पैक), उत्तर-पूर्व तथा दूसरे राज्यों में विस्तार करने में टीएमसी की मदद कर रही है.
इस बीच, लिंग्दोह ने भी पार्टी के अंदर के हालात पर रोष का इज़हार किया है. बुधवार को उन्होंने दिप्रिंट से कहा था, ‘उपचुनावों के बाद तीन समीक्षा बैठकें होनी चाहिएं थीं. क्या एआईसीसी ने उनका संज्ञान लिया? उन्होंने तभी नोटिस लिया जब तीन विधायकों ने, पार्टी की भलाई के लिए ये फैसला लिया. आपको (एआईसीसी) उस समय समीक्षा करनी चाहिए थी, जब आपको हार मिली थी’.
अन्य कारक
ऐसा लगता है कि विधायकों के फैसले के पीछे अन्य कारकों का भी योगदान रहा है.
लिंग्दोह ने कहा कि विधायकों का एमडीए में शामिल होने का फैसला, ‘सरकार के साथ चैनल’ सुनिश्चित करने के लिए लिया गया था.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा था, ‘हमारे दो विधायक सीमा के मुद्दे पर चर्चा के लिए बनी क्षेत्रीय कमेटी के सदस्य थे…सीएलपी नेता होने के नाते हम डायलॉग और बातचीत में शामिल होना चाहते थे’.
उन्होंने आगे कहा, ‘एक और मुद्दा जिसने हमें परेशान किया है, वो है कोविड की स्थिति और आजीविका का नुक़सान, इसलिए हम लगातार सरकार के संपर्क में रहकर जानना चाहते थे कि हो क्या रहा है’.
विधायकों के क़दम उठाने से पहले, काफी अटकलें थीं कि चुनावों से पहले, कांग्रेस और एनपीपी के बीच परदे के पीछे बातचीत चल रही है.
शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पेट्रीशिया मुखिम ने दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस विधायक अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित कर रहे थे.
उन्होंने आगे कहा, ‘असेम्बली चुनावों में एक साल रह गया है. अगर आप विपक्ष में हैं तो आपको विकास योजनाओं के लिए पैसा नहीं मिलता- वो पैसा सत्ताधारी पार्टी के चुनाव क्षेत्रों में चला जाता है’.
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