तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करे? अयोध्या में लोग कभी अपनी हताशा से उबरने के लिए तो कभी यों भी यह भजन गुनगुनाया करते हैं. उनका विश्वास है कि सच्चे मन से इसे गुनगुनाकर गम्भीर से गम्भीर अवसाद से निजात पाई जा सकती है. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में इस धर्मनगरी में भारतीय जनता पार्टी इतनी दुश्वारियों में फंसी हुई है कि वह इस भजन से भी अपनी उदासी दूर नहीं कर पा रही-भले ही पिछली शताब्दी के आखिरी दशक से ही राम जी प्रायः उसे बिना कुछ किये-धरे चुनाव-सागर पार करा देते रहे हैं.
पार्टी की उदासी का सबसे बड़ा कारण है अयोध्या विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के भरपूर प्रचार के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इसे छोड़कर गोरखपुर चले जाना, जिसे लेकर यह भी कहते हैं कि वे अपनी मर्जी से नहीं गये, क्या करते, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें इसकी इजाजत ही नहीं दी. लेकिन अपनी मर्जी से गये हों या प्रधानमंत्री की, अयोध्या में भाजपा उसकी जाई पस्ती से अभी भी उबर नहीं पाई है. तिस पर समाजवादी पार्टी उस पर यह आरोप भी चस्पां किये दे रही है कि उसके हाईकमान ने योगी को उनकी पसन्द की विधानसभा सीट तक नहीं दी और चुनाव नतीजों से पहले ही घर वापस भेज दिया.
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला
पिछले कई दशकों से भाजपा अयोध्या में जिस रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को सिर पर लिये फिरा करती थी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही वह खत्म हो गया है और बाबरी मस्जिद की जगह भव्य राममन्दिर के निर्माण का जो श्रेय उसका बेड़ा पार लगा सकता था, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर लगे भूमि की खरीद में घपले-घोटालों के आरोपों ने उसकी चमक बेहद फीकी कर दी है. रही-सही कसर प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी यह कहकर निकाल दे रही है कि मन्दिर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से बन रहा है और भाजपा उसकी गति जानबूझकर धीमी रखे है, जो सपा को सत्ता में लाकर ही तेज की जा सकती है.
गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने वाले भव्य दीपोत्सव और स्वर्ग उतारने वाली पर्यटन व विकास योजनाओं का जादू भी नहीं ही चल पा रहा. क्योंकि अयोध्या विकास प्राधिकरण ने अयोध्या को ‘ग्लोबल सिटी’ बनाने के लिए जो महायोजना बनाई है, उसके तहत उसकी सड़कों को चैड़ी-चकली करने के लिए अनेक दुकानों व प्रतिष्ठानों पर बुलडोजर चलना प्रस्तावित है. इस कारण रोजी-रोटी गंवाने के कगार पर जा पहुंचे व्यवसायी, जो भाजपा का परम्परागत वोट बैंक रहे हैं, उससे बहुत नाराज हैं.
प्रसंगवश, योगी गोरखपुर चले गये तो चर्चा थी कि उनके स्थान पर उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा अयोध्या से चुनाव मैदान में उतरेंगे. उससे पहले यह भी कहा जा रहा था कि चूंकि भाजपा के जिले के पांचों विधायक ‘आउटसाइडर’ या कि ‘आयातित’ हैं यानी 2017 में उसकी लहर देखकर दूसरी पार्टियों से उसमें आये, बिना संघर्ष चुनाव जीतकर मूंछें फुलाये बैठे हैं और जनता से उनका रिश्ता अच्छा नहीं है, इसलिए वह उनमें कम से कम तीन का टिकट काट देगी. इन तीन विधायकों में अयोध्या सीट के विधायक वेद गुप्ता और मिल्कीपुर के विधायक बाबा गोरखनाथ भी शामिल थे. लेकिन कैबिनेट मंत्री स्वामीप्रसाद मौर्य के बगावत कर सपा में चले जाने के बाद की परिस्थितियों में भाजपा ने उनके टिकट काटने का इरादा बदल दिया.
अयोध्या सीट पर उसने वेद गुप्ता को ही फिर आगे किया तो इसे नाराज व्यापारियों को साधने की कोशिश के तौर पर भी देखा गया. लेकिन वेद को भी जगह-जगह व्यापारियों के अप्रिय सवालों के जवाब देने पड़ रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा यह कि पिछले पांच सालों में वे उनके संघर्षों से मुंह क्यों मोड़े रहे? ऐसे में व्यापारियों की मान-मनौवल के लिए उन्हें सुशील जायसवाल नामक ऐसे व्यापारी नेता की शरण लेनी पड़ रही है, जो अयोध्या विकास प्राधिकरण की उक्त महायोजना के खिलाफ व्यापारियों की ओर से संघर्षरत रहे हैं. इस बार सुशील खुद भी भाजपा का टिकट मांग रहे थे, जबकि पिछले चुनाव में भाजपा से अलग होकर लड़ने पर उन्हें केवल 1635 वोट मिले थे.
बहरहाल, उनकी शरण इसलिए भी भाजपा की मजबूरी बन गई है क्योंकि उसका हिन्दुत्व का कार्ड चल नहीं रहा और सारा दारोमदार जातीय समीकरणों पर आ गया है, जबकि पिछले कई चुनावों से हिन्दुत्व के नाम पर उसे वोट देते चले आ रहे ब्राह्मण खुलकर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी पूर्वमंत्री तेजनारायण पांडे ‘पवन’ के पक्ष में आ गये हैं. सपाई कहते हैं कि ब्राह्मणों की इसी नाराजगी से डरकर भाजपा ने योगी को अयोध्या से उतारने का फैसला बदल डाला और उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी मुकाबले में उतरकर ब्राह्मणों को मनाने का हौसला नहीं दिखा पाये. अब वेद गुप्ता ऐंटीइनकम्बैंसी के साथ बेरोजगारों की नाराजगी भी कुछ कम नहीं झेल रहे हैं.
लेकिन उनके पास आश्वस्ति के भी कम से कम दो कारण हैं. पहला: 2012 को छोड़कर अयोध्या विधानसभा सीट 1991 के बाद से अब तक भाजपा का अपराजेय गढ़ रही है. दूसरा: पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने इन्हीं तेज नारायण पांडे को 56,574 के मुकाबले 1,07,014 वोटों से करारी शिकस्त दी थी. यह फासला इतना बड़ा है, जिसे तेज नारायण पांडे किसी भी हाल में पाट नहीं पायेंगे.
लेकिन जानकार कहते हैं कि तब से अब तक सरयू में बहुत पानी बह चुका है. पिछले चुनाव में सपा की अखिलेश सरकार के प्रति भारी ऐटीइन्कम्बैंसी थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हिन्दुत्व व नायकत्व ने भाजपा के पक्ष में लहर पैदा कर दी थी. इस कारण जिले की न सिर्फ अयोध्या बल्कि गोसाईंगंज, बीकापुर, मिल्कीपुर और रुदौली सीटें भी उसकी झोली में आ गिरी थीं. उसका यह क्लीनस्वीप अभूतपूर्व था. हालांकि इससे पहले 1991 के विधानसभा चुनाव में भी उसने अविभाजित फैजाबाद जिले की, जो अब अयोध्या है, पांच विधानसभा सीटें जीती थीं लेकिन वे विधानसभा सीटें हार गई थी, जो अब अम्बेडकरनगर जिले में हैं.
इस नजरिये से देखें तो इस बार अयोध्या में भाजपा को खोना ही खोना है क्योंकि विपक्षी सपा के पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं और पाने के लिए उसने एड़़ी चोटी एक कर रखी है. एक रुदौली को छोड़ दें तो चुनाव मैदान में कांगे्रस व बसपा की महज प्रतीकात्मक उपस्थिति है और यह बात भी सपा के पक्ष में जा रही है.
गोसाईंगंज में दो बाहुबलियों की लड़ाई
जिले की गोसाईगंज विधानसभा सीट की बात करें तो 2012 के चुनाव से पहले उसका अस्तित्व नहीं था और वह 2012 से ही दो बाहुबलियों की भिड़ंत का मैदान बनी रही है. इस भिड़ंत में 2012 में सपा के बाहुबली प्रत्याशी अभय सिंह ने अपनी जिला पंचायत सदस्य पत्नी द्वारा किये गये अपने ‘उत्पीड़न’ के इमोशनल प्रचार से इतनी जनसहानुभूति अर्जित कर ली कि जेल में बन्द रहकर भी भाजपाई बाहुबली इन्द्रप्रताप तिवारी उर्फ खब्बू को हरा दिया था.
2017 में खब्बू ने उनसे अपनी उक्त हार का बदला तो चुका लिया लेकिन फर्जी मार्कशीट के इस्तेमाल के एक बहुचर्चित मामले में सजा के बाद जेल काट रहे हैं और उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई है. इस कारण भाजपा ने इस चुनाव में उनकी पत्नी आरती तिवारी को टिकट दिया है.
जिले की यह एकमात्र ऐसी विधानसभा सीट है जहां इन दोनों बाहुबलियों के साम, दाम, दंड व भेद के अलावा उनकी जातियों का मुद्दा ही चलता है. इसी तरह मिल्कीपुर सीट को छोड़ दें, जो अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है और जहां सपा के एकमात्र वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद भाजपा के बाबा गोरखनाथ से भिड़े हुए हैं, तो बीकापुर व रुदौली में भी जातीय व धार्मिक समीकरणों के आधार पर ही चुनाव लड़े जा रहे हैं.
इनमें सबसे दिलचस्प मुकाबला रुदौली में है, जहां समाजवादी पार्टी के अपने वक्त के वरिष्ठतम नेताओं में शामिल रहे दिवंगत मित्रसेन यादव के बेटे आनन्द सेन यादव और पुराने शिष्य रामचन्द्र यादव में सीधी भिड़ंत है. आनंदसेन सपा के प्रत्याशी हैं तो रामचन्द्र भाजपा के. रामचन्द्र गत दो चुनावों से इस सीट से जीतते आ रहे हैं, जबकि सपा के अब्बास अली जैदी उर्फ रुशदी मिया उनके परम्परागत प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. सपा ने रुशदी मिया को इस बार टिकट नहीं दिया तो वे बसपा के प्रत्याशी बन गये हैं और मूुकाबले को तिकोना करने के फेर में हैं.
(कृष्ण प्रताप सिंह फैज़ाबाद स्थित जनमोर्चा अखबार के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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