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Saturday, 16 November, 2024
होममत-विमतरजनीकांत अब नए परदे पर; तमिलनाडू की 234 सिटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी

रजनीकांत अब नए परदे पर; तमिलनाडू की 234 सिटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी

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अन्नादुरै, करुणानिधि, एमजीआर और जयललिता सरीखे दिग्गजों के इर्दगिर्द घूमती रही तमिल राजनीति में आए बड़े शून्य को भरने की कोशिश करेंगे सुपरस्टार रजनीकांत.

तमिल फिल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत ने आखिर सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है. उन्होंने कहा था कि वे 31 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएंगे. और उन्होंने अपना वादा पूरा कर दिया. उंहोंने अपनी राजनीतिक पार्टी की घोषणा की और ये भी एलान किया कि विधानसभा का अगला चुनाव लड़ेंगे.

“इथु कालथिन कट्टयम,” उन्होंने कहा कि यह वक्त का तकाजा है. और राजनीति में उतरने के बारे में लंबे समय तक अनिश्चय में पड़े रहने के लिए माफी जैसा मांगते हुए उन्होंने कहा, “अगर अब मैं यह फैसला नहीं करता तो मरने तक अपराधबोध से परेशान होता रहता”.

उन्होंने अपने फैसले की वजह भी बताई- सार्वजनिक जीवन में सच्चाई, ईमानदारी, और शुचिता; इसके साथ ही तमिल आत्मसम्मान. उन्होंने कहा, “पिछले कुछ महीनो में जो कुछ घटा है उससे तमिलों का सिर शर्म से झुक गया है…. राजनीति में सचमुच सड़न आ गई है और लोकतंत्र का अवमूल्यन हो गया है”.

इसके साथ ही, रजनीकांत तमिलनाडु की राजनीति में पैदा हुए बड़े शून्य को भरने की कोशिश करेंगे. द्रविड़ दलों के तहत तमिल राजनीति पिछली करीब आधी सदी से सी.एन. अन्नादुरै, एम. करुणानिधि, एम.जी. रामचंद्रन, या जे. जयललिता सरीखे दिग्गजों के इर्दगिर्द घूमती रही है. दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन ने अन्नाद्रमुक को जबरदस्त झटका पहुंचाया है और अब उनकी विरासत के लिए उसके अंदर घोर सत्ता संघर्ष छिड़ने के कगार पर है. दूसरी तरफ द्रमुक करुणानिधि के बिना अपने भविष्य की कल्पना करने में जुटी है. भारी अस्वस्थता के कारण करुणानिधि को संन्यास लेने पर मजबूर होना पड़ा है, हालांकि उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद अभी नहीं छोड़ा है. उनके सबसे छोटे पुत्र एम.के. स्टालिन को वर्षों के प्रशिक्षण के बाद कार्यकारी अध्यक्ष तो बना दिया गया है मगर एक सच्चे नेता और भावी मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी विश्वसनीयता स्थापित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं.

द्रमुक के मजबूत काडर को देखते हुए कोई भी उम्मीद लगा सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव का नतीजा मुख्यमंत्री पद पर स्टालिन की ताजपोशी ही हो सकती है मगर आर.के. नगर उपचुनाव में उनकी पार्टी के उम्मीदवार जिस तरह मुंह की खा गए, उसके कारण इस तरह के नतीजे पर संदेह किया जाने लगा है. उनके भाई और पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.के. अलागिरि पहले ही उनकी बलि लेने पर आमादा हैं.

इस तरह तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में रजनीकांत कुछ सावधानी से कदम रखते नजर आ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने कहा कि वे अपनी पार्टी की घोषणा विधानसभा चुनाव से पहले करेंगे और पार्टी सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

अगर अन्नाद्रमुक सरकार समय से पहले ही नहीं गिर गई, तो विधानसभा चुनाव 2021 में ही होने हैं. तब तक रजनीकांत को पार्टी संगठन तैयार करने के लिए काफी समय मिल जाएगा. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें मजबूत नेताओं को अपनी पार्टी के प्रति आकर्षित करने का भी समय मिल जाएगा. उनके फैन्स उनके ठोस काडर बन सकते हैं, जिसकी जरूरत हर पार्टी को होती है. लेकिन चहेतों की उपयुक्त पार्टी संगठन में तब्दील करने के लिए अनुभवी राजनेता के कौशल और चतुराई की जरूरत पड़ेगी.

हालांकि तमिलनाडु में सिनेमा और राजनीति में गहरा रिश्ता रहा है ल्¨किन ऐसा भी नहीं है कि सभी फिल्म स्टार राजनीति में आकर सफल हुए हों. करुणानिधि और एमजीआर राजनीति में लंबा समय बिताने के बाद ही अपना प्रभाव बना सके थे. जयललिता को एमजीआर ने राजनीति का पाठ पढ़ाया और आगे बढ़ाया. ये सभी राजनीति की पेंचिदगियों को समझते थे और इन्हें कम-से-कम अपने शुरुआती वर्षों में मजबूत राजनेताओं का समर्थन हासिल था. तमिलनाडु की सीमा के बाहर भी देखें, तो एन.टी. रामराव और उनकी तेलुगु देशम पार्टी की कामयाबी के पीछे उन असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं (उनके दामाद एन. चंद्रबाबू नायडु समेत) का कम योगदान नहीं है, जे उनके साथ आ जुड़े थे.

सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की जो घोषणा रजनीकांत ने की है, उसका यह अर्थ लगाया जा रहा है कि वे इन अटकलों को खारिज करना चाहते हैं कि उनका झुकाव भाजपा की तरफ रहेगा. उनकी इस घोषणा का मुख्य मकसद अपने उन चहेतो को आश्वस्त करना हो सकता है, जो भाजपा के साथ उनकी कथित नजदीकी को लेकर चिंतित थे. लेकिन “राजनीति में आध्यात्मिकता” की उनकी बातें कुछ लोगों को उलझन में डाल सकती हैं. 1996 में उनका यह बयान काफी चर्चित हुआ था कि “अगर जयललिता सत्ता में आईं तो भगवान भी तमिलनाडु की रक्षा नहीं कर पाएगा”. द्रमुक और तमिल मानिला कांग्रेस गठजोड़ ने जयललिता की अन्नाद्रमुक को हराने में उनके इस बयान का भरपूर इस्तेमाल किया था. उस समय रजनीकांत को दिवंगत पत्रकार तथा राजनीतिक रणनीतिकार चे रामस्वामी ने काफी उत्साहित किया था.

रजनीकांत ने रविवार को बयान दिया कि “अगर मैं सत्ता का भूखा होता” तो 1996 में ही राजनीति में उतर गया होता और सत्ता हासिल कर सकता था. इसके बाद उन्होंने सुपर हीरो वाले अंदाज में यह भी कहा, “आज 67 साल की उम्र में मैं जो कर रहा हूं वह 45 साल की उम्र में ही कर सकता था”.

वैसे, उन्होंने अपने चहेतों को दूसरे नेताओं या आज के प्रमुख मसले पर कोई बयान न देने की हिदायत देकर सावधानी बरती, “बयानबाजी करने के लिए कई लोग मौजूद हैं”. उनका इशारा अपने पुराने दोस्त, फिल्म अभिनेता कमल हासन की ओर था, जो कुछ सप्ताह पहले तक राज्य से जुड़े तमाम मसलों पर ट्वीट कर रहे थे र संकेत दे रहे थे कि वे राजनीति में उतर सकते हैं.

लेकिन तमिल पहचान और तमिलनाडु पर रजनीकांत जिस तरह बार-बार जोर दे रहे हैं, वह उन चंद छोटे दलो तथा संगठनो को बेअसर करने की कोशिश लगती है, जो रजनीकांत की कथित कन्नडिगा (हालांकि वे बंगलूरू में बसे मराठी मूल के व्यक्ति हैं) पृष्ठभूमि को उछाल रहे हैं. इससे पहले वे बयान दे चुके हैं कि वे “पच्छै तमिझम” यानी सच्चे तमिल हैं, क्योंकि तमिलनाडु में 40 से ज्यादा वर्षों से रह रहे हैं, जबकि बंगलूरू में इससे पहले केवल 20 वर्ष ही रहे.

यह मामला तब भी उठा था जब कावेरी जल के सवाल पर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच के झगड़े में तमिल फिल्म जगत ने राज्य की मांगों के समर्थन में अनशन किया था. रजनीकांत इसमें शरीक नहीं हुए थे बल्कि इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने उपवास किया था और दोनों राज्यों के बीच शांतिपूर्ण समझौते पर जोर दिया था.

अब जबकि कमल-रजनी जोड़ी राजनीति में कूद पड़ी है, लोगों को एमजीआर और शिवाजी गणेशन सरीखे दिग्गजों की याद आएगी, जो 1950 से लेेकर 1970 तक तीन दशकों तक तमिल फिल्म उद्योग पर छाये हुए थे. एमजीआर बहुत कुछ रजनीकांत की तरह काफी जतन से उभारी गई फिल्मी छवि वाले सितारे थे. शिवाजी एक मंजे हुए अभिनेता के रूप में लोगों के दिलों पर राज करते थे. दोनों ने राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं- एमजीआर द्रमुक में और शिवाजी कांग्रेस में. एमजीआर तो वास्तविक राजनीतिक भूमिका में बड़ी सहजता से उतर जाते थे, मगर शिवाजी ऐसा नहीं कर पाए. वे अपने को कांग्रेस के भीतर एक छोटे मगर महत्वपूर्ण धड़े के नेता के स्तर तक ही ला पाए थे. कांग्रेस के बाहर राजनीतिक जीवन बनाने की उनकी कोशिश नाकाम रही थी और थोड़े समय के लिए वी.पी.सिंह के जनता दल की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष की भूमिका निभाने के बाद वे खामोशी से राजनीति से विदा हो गए थे.

कल्याण अरुण राजनीतिक टीकाकार हैं और चेन्नै में पत्रकारिता पढ़ाते हैं. उनका ट्वीटर हैंडल है- @kalyanarun

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