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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशकोरोना के कारण स्कूल बंद हुए तो अवैध शराब डिलिवर कर टाइम पास के साथ कमाई कर रहे बिहार के किशोर

कोरोना के कारण स्कूल बंद हुए तो अवैध शराब डिलिवर कर टाइम पास के साथ कमाई कर रहे बिहार के किशोर

अप्रैल 2016 से प्रतिबंध के बावजूद बिहार में शराब का व्यापार फल-फूल रहा है. शराब खरीदना एक दंडनीय अपराध है, फिर भी कानून ने व्यापार में थोड़ी बाधा के रूप में काम किया है.

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वैशाली/मुजफ्फरपुर/समस्तीपुर: ऐसे राज्यों में जहां शराबबंदी है वहां उन किशोरों के पास क्या करने का विकल्प हो सकता है जिनके या तो स्कूल बंद हैं या जो बेरोजगार है. इस सवाल का जवाब बिहार के कुछ इलाकों में देखने को मिल रहा है जिसके तहत किशोर एक डिलिवरी का काम करते हैं और लोगों के दरवाजों तक शराब पहुंचाने पर 100 रुपये कमाते हैं. यह एक डिलिवरी की कमाई है.

अप्रैल 2016 से प्रतिबंधित होने के बावजूद राज्य में शराब का धंधा बखूबी फल-फूल रहा है. राज्य में शराब खरीदना एक दंडनीय अपराध है, मगर खबरें बताती हैं कि यह कानून इस व्यापार को राह में कोई खास बाधा नहीं है. दिप्रिंट ने बिहार के मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जिलों के साथ-साथ हाजीपुर (वैशाली) में भी कई लोगों से बात की जिनका कहना है कि पिछले दो साल – जब से कोविड महामारी शुरू हुई है – के दरम्यान इन क्षेत्रों में, और साथ-साथ पूरे बिहार में भी, निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों के किशोर लड़कों द्वारा शराब पहुंचाने का चलन बढ़ गया है.

इस मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर, मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस- एसएसपी) जयंत कांत ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन गतिविधियों में कुछ किशोरों सहित कुछ अन्य व्यक्ति भी शामिल हैं. पुलिस अब इस सारे कारोबार पर अपना शिकंजा कस रही है.’

समस्तीपुर के पुलिस अधीक्षक (सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस) हृदय कांत ने कहा कि उनके पास ऐसा कोई ठोस डेटा नहीं है जिसके आधार पर वह इस मुद्दे पर टिप्पणी कर सकें. उन्होंने कहा, ‘लेकिन अगर ऐसे कार्यों में स्कूली लड़कों की संलिप्तता होती है, तो हमने शिक्षकों और समुदाय के अन्य सदस्यों से बता रखा है कि वे इस पर नज़र रखें और हमें सूचित करें.’

वैशाली के एसएसपी, मनीष (जिन्हें केवल उनके पहले नाम से जाना जाता है) ने बताया कि सभी आयुवर्ग के व्यक्ति इन अवैध गतिविधियों में शामिल हैं, लेकिन उन्होंने शराब के अवैध तौर पर हो रहे वितरण में शामिल होने वाले स्कूल छोड़ने वाले छात्रों पर विशेष रूप से टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

हालांकि, बिहार सरकार के पास कोविड महामारी के दौरान स्कूल की पढाई छोड़ने वालों की संख्या के बारे में कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, मगर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के 2019-20 के आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार में उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6-8) पर स्कूल छोड़ने की दर भारत में सबसे अधिक है.

इन्हीं आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार में 8.9 फीसदी छात्रों ने इस स्तर पर स्कूल बीच में हीं छोड़ दिया. कक्षा 9 से 10 के स्तर पर, राज्य के 21.4 प्रतिशत छात्रों ने अपना स्कूल छोड़ दिया.

इस मामले पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने बिहार के शिक्षा मंत्री विजय चौधरी से फोन और मैसेज के जरिए संपर्क करने किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी.

कुछ जल्दी पैसे की तलाश में रहते हैं, कई अन्य के साथ समस्याएं होती है

स्थानीय निवासियों के अनुसार शराबबंदी लगी होने के बावजूद बिहार में बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों और गांवों तक तीन से चार गुना कीमत पर शराब व्यापक रूप से उपलब्ध है. इसलिए, अगर शराब की किसी एक बोतल की कीमत 400 रुपये है, तो इसे अवैध रूप से 1,200 रुपये में बेचा जाता है और इसे हासिल करने में शामिल सभी लोगों को एक निश्चित कटौती मिलती है. इसकी डिलीवरी करने वाले शख्स को भी प्रति डिलीवरी 100 रुपये मिलते हैं.

हाजीपुर के एक व्यवसायी ने कहा कि सभी डिलीवरी बॉय स्कूली छात्र ही होते हैं.

ऋषि राज नाम के इस व्यवसायी ने कहा, ‘अगर आप को शराब चाहिए, तो मैं आपको एक नंबर दूंगा. उस पर कॉल करें, और अगले 20 मिनट में आपको आपकी जगह पर ही इसकी डिलीवरी मिल जाएगी. एक जवान लड़का आकर आपको (शराब) दे देगा… ये सब स्कूली लड़के हैं, जो स्कूल बंद होने के कारण घर पर बैठे हैं.’

दिप्रिंट ने तीन ऐसे ही स्कूल छोड़ने वालों का पता लगाने में कामयाबी हासिल की, जिनमें से एक तो वर्तमान में भी शराब की डिलीवरी करने वाले शख्स के रूप में काम कर रहा है और एक अन्य पहले इस धंधे में शामिल था. उनमें से दो पुलिस द्वारा पकड़े जाने के डर से अपना नाम नहीं बताना चाहते थे.

वर्तमान में शराब की डिलीवरी करने वाला 16 वर्षीय लड़का, जिसने साल 2020 में कक्षा 8 में पढ़ते हुए स्कूल छोड़ दिया था, मुजफ्फरपुर जिले के फरीदपुर का निवासी है. उसने दिप्रिंट को बताया कि उसने यह काम उसके दोस्तों द्वारा यह बताये जाने के बाद शुरू किया कि इससे पैसा कमाना आसान है और पुलिस उन्हें कभी नहीं पकड़ पाएगी.

कभी-कभी वह डिलीवरी वाली जगह तक पहुंचने के लिए अपनी साइकिल से जाता है और अगर जगह पास में है, तो पैदल ही चला जाता है.

उसने कहा, ‘मेरे तीन भाई हैं और वे सभी मुझसे छोटे हैं. मेरे पिता एक ऑटो चलाते हैं. मुझे पता है कि मेरे पिता मुझे भविष्य में अच्छी शिक्षा नहीं दे पाएंगे, इसलिए मुझे पढ़ाई करने में कोई फायदा नहीं दिखता. मैं जो करता हूं उसी से पर्याप्त पैसा कमा लेता हूं.’

हाजीपुर का रहने वाला दूसरा लड़का करीब दो महीने पहले तक शराब पहुंचाता था, लेकिन उसने यह काम छोड़ दिया है.

अपनी बाइक पर बैठे हुए तथा लाल स्वेटर और बेज (बिस्कुटी) रंग की पतलून पहने हुए 17 वर्षीय वह लड़का अपने अतीत के बारे में बात करते हुए एकदम शांत लग रहा था. उसने कहा कि वह मीडिया से इसलिए बात कर रहा है क्योंकि वह चाहता है कि अन्य लड़के भी यह काम छोड़ दें.

उसने दिप्रिंट को बताया, ‘अवैध व्यापार में उतरना गहरे कुएं में में जाने जैसा है. एक बार जब आप अवैध शराब पहुंचाना शुरू कर देते हैं, तो लोग आपसे कुछ और करने की उम्मीद करेंगे… जैसे कि छिनैती, डकैती और अन्य बड़े अपराध. इससे पहले कि मैं इस सब में शामिल हो जाता, मैंने इसे छोड़ दिया.’

उसने कहा कि अवैध धंधे में घुसने के पीछे का उसका मकसद सिर्फ अपने दोस्तों के साथ खर्च करने के लिए जल्दी से कुछ पैसा बनाना था, न कि उसने किन्हीं वित्तीय समस्याओं के कारण ऐसा किया. उसके पिता की हाजीपुर में एक किराने की दुकान (प्रोविजन स्टोर) है और उसका परिवार आर्थिक रूप से ठीक-ठाक अवस्था में है.

इस नौजवान ने जो कुछ भी कहा उसकी पहले की मिसालें भी है. लोगों द्वारा अवैध शराब के धंधे के माध्यम से संगठित अपराध जगत में कदम रखे जाने के बारे में इतिहास में कई उदाहरण हैं, जो और ज्यादा कमाई के लालच में ऐसा करते हैं.

उदाहरण के लिए, 1950 के दशक में महाराष्ट्र द्वारा राज्य में साल 1949 से 1963 तक शराब के निर्माण, खरीद, परिवहन और खपत पर प्रतिबंध लगाने के बाद, छुटभैये अपराधियों को संगठित अपराध में शामिल होते देखा गया. उस समय कई युवाओं ने शराब के अवैध धंधे को अपनाया और माना जाता है कि इसी ने मुंबई के कुख्यात ‘अंडरवर्ल्ड’ को जन्म दिया.

इस अवैध व्यापार से हुआ लाभ जुआ, बंदूक के रैकेट और आतंकवाद के लिए धन की आपूर्ति करता था. सबसे बड़ा बूटलेगिंग ऑपरेशन (अवैध शराब का कारोबार) वरदराजन मुदलियार – मुंबई के पहले अंडरवर्ल्ड डॉन में से एक – द्वारा चलाया जाता था.

अमेरिकी गैंगस्टर अल कैपोन सबसे खूंखार शराब के धंधेबाजों में से एक हुआ करता था. उसने शिकागो में लागू शराबबंदी वाले युग के दौरान ‘शिकागो आउटफिट’ के सह-संस्थापक और बॉस के रूप में अपनी कुख्याति प्राप्त की. शिकागो में स्थित एक अन्य अमेरिकी गैंगस्टर डीन ओ’बैनियन भी एक बूटलेगर ही हुआ करता था. वह हिंसा, चोरी और जबरन वसूली जैसे अन्य अपराधों में भी शामिल था.


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अपनी पढाई बीच में हीं क्यों छोड़ देते हैं छात्र?

पटना के पूर्व प्रखंड विकास अधिकारी अमित कुमार, जो अब पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं, लेकिन जिन्होंने अतीत में सरकारी स्कूलों के साथ भी काम किया हुआ हैं, ने कहा, ‘बिहार के सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर नामांकन का स्तर अच्छा है क्योंकि माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे मध्याह्न भोजन खाएं और इसके साथ मुफ्त स्कुल की पोशाक और अन्य लाभ प्राप्त करें.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनके माता-पिता चाहते हैं कि वे घरेलू आमदनी में मदद करना शुरू करें, इसलिए उच्च प्राथमिक स्तर पर छात्रों के स्कूल छोड़ने की दर बहुत अधिक है.’

वे आगे बताते हैं, ‘महामारी के दौरान, ज्यादातर स्कूल बंद रहे हैं, इसलिए मध्याह्न भोजन और मुफ्त पोशाक भी नहीं मिली. ऐसे में जो लोग अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे थे, उन्होंने भी ऐसा करना बंद कर दिया है. ड्रॉपआउट (स्कुल छोड़ना) सभी स्तरों पर देखा गया है.’

मुजफ्फरपुर के मुस्तफागंज गांव के एक संस्थान में कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षक ज्वाला कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे कई छात्रों ने पिछले दो वर्षों में स्कूल की पढाई को बीच में हीं छोड़ दिया है क्योंकि कोविड के कारण स्कूल बंद हो गए हैं. वे अब कोचिंग की कक्षाओं में भी नहीं आते हैं. वे डिलीवरी बॉय के रूप में काम करते हैं जो प्रति डिलीवरी 100 रुपये (या उससे भी कम) पर शराब पहुंचाते हैं.

ज्वाला कुमार कहते हैं, ‘वे इस धंधे में रोजाना 500 से 1,000 रुपये तक कमा लेते हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें अब और पढाई करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे इसी तरह से पर्याप्त पैसा कमा ले रहे हैं.‘

समस्तीपुर के एक अन्य शिक्षक राजेश कुमार ने भी बताया कि उनके दो छात्रों ने भी अवैध तरीकों से पैसा कमाने के लिए कोचिंग क्लास और स्कूल की पढाई को छोड़ दिया है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जब ये छोटे-छोटे लड़के बिहार में बेरोजगारी के स्तर को देखते हैं और इस तथ्य से अवगत होते हैं कि राज्य में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री वाले लोग भी प्रति माह 3,000 रुपये से कम की आमदनी कर पा रहे हैं, तो उन्हें लगता है कि उन्हें आगे पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे तो सिर्फ शराब पहुंचा कर इससे अधिक अभी ही कमा लेते हैं.‘

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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