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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमत‘हेट स्पीच’ को अलग अपराध की कटेगरी में रखने के लिए क्या कानून में संशोधन का वक्त आ गया है

‘हेट स्पीच’ को अलग अपराध की कटेगरी में रखने के लिए क्या कानून में संशोधन का वक्त आ गया है

ऐसी स्थिति में जरूरी है कि हेट स्पीच के मर्ज पर काबू पाने के लिए अलग से इसे अपराध घोषित किया जाए और इसके लिए यथाशीघ्र भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों में संशोधन किया जाए.

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हमारे देश में सांप्रदायिक कटुता और वैमनस्य पैदा करने वाले नफरती भाषणों की बाढ़ आ चुकी है. ऐसा लगता है कि समाज में उन्माद पैदा करने के लिए विभिन्न संप्रदायों के कतिपय स्वनामधन्य नेताओं में परस्पर होड़ लगी हुई. इस संबंध में हरिद्वार में धर्म संसद में साधु संतों के आपत्तिजनक भाषण, बरेली में इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल के प्रमुख मौलाना तौकीर रजा के भाषण और किसान आंदोलन के दौरान आपत्तिजनक भाषण के बीच ही… इसको ठोका, उसका ठोका और इसे भी ठोकेंगे? जैसे दावों का उल्लेख अनुचित नहीं होगा.

स्थिति यह हो गई कि बेहद आपत्तिजनक और अशोभनीय भाषण देने का मामला तूल पकड़ने पर संबंधित पक्ष की ओर से संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के इस्तेमाल की दुहाई दी जाने लगती है.

अक्सर यह देखा जा रहा है कि राज्यों में विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा के चुनाव नजदीक आने पर किसी समुदाय या संप्रदाय विशेष को निशाना बनाते समाज में वैमनस्य पैदा करने और दूसरों को उकसाने के प्रयास करने वाले भाषणों की बाढ़ आ जाती है.

यह सही है कि हेट स्पीच का मुद्दा बार बार विधायिका और जनता के बीच उठता रहा है. अलग अलग अवसरों पर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने भी इस पर विचार किया है और अपनी व्यवस्थाएं दी हैं.

इस संबंध में कोविड-19 महामारी के दौरान 2020 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों से ठीक पहले तबलीगी जमात की गतिविधियों को लेकर की गयी बयानबाजी और अब विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इसी तरह की घटनाएं इसका ज्वलंत उदाहरण हैं. नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय पंजी कानून के विरोध में धरना प्रदर्शन और तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन में दिए गए भाषणों को भी इससे अलग नहीं किया जा सकता है.

हरिद्वार में पिछले महीने आयोजित साधु-संतों की धर्म संसद में दिए गए भाषणों का विवाद अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था कि इस साल के प्रारंभ में मौलाना तौकीर रजा की तकरीर सुर्खियों में आ गयी हैं.

हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में नफरत पैदा करने वाले कथित भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई और इनकी विशेष जांच दल से निष्पक्ष जांच कराने के लिए पत्रकार कुर्बान अली और पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रसाद तथा धर्म संसद जैसे आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए जमीयत उलेमा ए हिंद ने अलग अलग याचिका दायर की हैं. कुर्बान अली की याचिका पर प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया है.

भारतीय दंड संहिता और जन प्रतिनिधित्व कानून में वैमनस्य और कटुता वाले नफरती भाषणों से संबंधित अपराध के लिए प्रावधान है लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि आरोपी ऐसे वक्तव्यों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का सहारा लेने का प्रयास करते हैं और कई बार वे इसमें सफल भी हो जाते हैं. इसी परिप्रेक्ष्य में सवाल उठता है कि आखिर ‘हेट स्पीच’ क्या है और इसे कैसे परिभाषित किया जाए.

उच्चतम न्यायालय ने 12 मार्च 2014 को Pravasi Bhalai Sangathan vs U.O.I. & Ors प्रकरण में कहा था कि ‘हेट स्पीच’ के मुद्दे पर विधि आयोग द्वारा गहराई से विचार की आवश्यकता है. न्यायालय ने विधि आयोग से अनुरोध किया था कि वह विचार करे कि क्या ‘हेट स्पीच’ को समुचित तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है और हेट स्पीच के नासूर पर अंकुश लगाने के लिए संसद और निर्वाचन आयोग को अपनी सिफारिशें दें.

शीर्ष अदालत के इस फैसले के आलोक में विधि आयोग ने इस सवाल पर विचार करके मार्च 2017 में अपनी विस्तृत रिपोर्ट केन्द्र सरकार को दी थी. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता में नये प्रावधान शामिल करने की सिफारिश की थी. आयोग ने अपनी 267वीं रिपोर्ट के साथ सरकार को ‘आपराधिक कानून संशोधन, विधेयक 2017 का मसौदा भी विचारार्थ दिया था. इसमे भारतीय दंड संहिता में धारा 153 सी (नफरत के लिए उकसाने पर प्रतिबंध) और धारा 505 (कतिपय मामलों में भय पैदा करना और हिंसा के लिए उकसाना) शामिल करने का सुझाव दिया गया था.

स्थिति यह है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले और विधि आयोग की विस्तृत रिपोर्ट और एक अन्य विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बावजूद हेट स्पीच को अलग से दंडनीय अपराध के रूप में रेखांकित करने का मामला अधर में लटका है. इस दौरान जाति, वर्ण, लिंग और धर्म आदि के आधार पर किसी न किसी समुदाय और संप्रदाय के प्रति जहरीले और नफरत भरे भाषण देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हेट स्पीच का मुद्दा उठाते हुए न्यायालय से कहा कि हम मुश्किल दौर में हैं जहां देश में सत्यमेव जयते के नारे की जगह शस्त्रमेव जयते ने ले ली है. इस याचिका में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ अभद्र और नफरत पैदा करने वाली भाषा के इस्तेमाल की घटना की विशेष जांच दल से जांच कराने का अनुरोध किया गया है.

इस बीच, जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर धर्म संसद जैसे कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया है. याचिका में उन लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का अनुरोध किया गया है जो कथित तौर पर मुस्लिमों के नरसंहार के धमकी देते हैं.

‘हेट स्पीच’ के सवाल पर विचार करते हुए विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया कि न्यायालय ने प्रवासी भलाई संगठन के प्रकरण में ‘ऐसे निषेध को प्रबंधकीय मानकों’ में सीमित करना मुश्किल होगा. आयोग की राय थी कि शायद एक निश्चित मानक प्रतिपादित करने से अभिव्यक्ति की आजादी कमतर होने की आशंका की वजह से न्यायपालिका ने भारत और अन्य स्थानों पर हेट स्पीच को परिभाषित करने से गुरेज किया है.

शीर्ष अदालत ने एक बार फिर 15 मई, 2014 को Jafar Imam Naqvi vs Election Commission Of India प्रकरण में उम्मीदवारों द्वारा नफरत और उन्माद पैदा करने वाले भाषण के मुद्दे पर विचार किया. शीर्ष अदालत ने हालांकि इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान दिये गए भाषण जनहित याचिका के दायरे में नहीं आते और न्यायालय ऐसे मामलों में कानून नहीं बना सकती जिसमें विधायी मंशा स्पष्ट है.

आयोग का मत था कि सार्वजनिक व्यवस्था, अपराध के लिए उकसाने और सुरक्षा जैसे आधारों पर संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत हेट स्पीच का सीमित किया जा सकता है.

आयोग ने इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के 26 मई 1950 को Brij Bhushan And Another vs The State Of Delhi मामले में सुनाए गए फैसले का जिक्र किया जिसमें उसने कहा था कि सार्वजनिक व्यवस्था सार्वजनिक सुरक्षा से संबद्ध है और इसे राज्य की सुरक्षा के समकक्ष माना जा सकता है. न्यायालय की इस व्याख्या की पुष्टि प्रथम संविधान संशोधन ने भी की जब सार्वजनिक व्यवस्था को अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत प्रतिबंध के आधार के रूप में शामिल किया गया था.

जहां तक हेट स्पीच की परिभाषा का सवाल है तो यह अभी भी बौद्धिक और अकादमिक बहस का विषय है. इस समय मुद्दा हेट स्पीच के अपराधीकरण और इसके बारे में मौजूदा कानूनी प्रावधान का है. चूंकि यह बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार में समाहित है, इसलिए इस अधिकार की आड़ में अनेक लोगों ने दुर्भावना पूर्ण लक्ष्य हासिल करने के लिए ‘हेट स्पीच’ का चालाकी से उपयोग किया है और भारतीय दंड संहिता में स्पष्ट प्रावधान के अभाव में अदालतें हेट स्पीच के आरोपों में मुकदमा चलाने में कामयाब नहीं हो रही हैं.

ऐसी स्थिति में जरूरी है कि हेट स्पीच के मर्ज पर काबू पाने के लिए अलग से इसे अपराध घोषित किया जाए और इसके लिए यथाशीघ्र भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों में संशोधन किया जाए. यही नहीं, जनता को भी संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी के अधिकार का जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल करने के लिए शिक्षित करने की आवश्यकता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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