दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चयनित कार्टून पहले अन्य प्रकाशनों में प्रकाशित किए जा चुके हैं. जैसे- प्रिंट मीडिया, ऑनलाइन या फिर सोशल मीडिया पर.
आज के चित्रित कार्टून में, मंजुल महाकाव्य महाभारत से द्रौपदी के चीर-हरण के कुख्यात अध्याय का जिक्र करते हैं, और बताते हैं कि मॉडर्न टाइम में, जो लोग एक महिला की गरिमा छीनना चाहते हों, वे बस आराम से ऑनलाइन जा सकते हैं, जैसा कि हाल ही में ‘बुली बई‘ एप के मामले में हुआ है, जहां पर 100 से ज्यादा प्रभावशाली मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें ‘नीलामी’ के लिए एक ऐप पर अपलोड की गईं.
संदीप अध्वर्यु भारतीय जनता के संवेदनहीन रवैये और राजनीतिक संदेश को दर्शाते हैं, जो कोविड के खतरे की गंभीरता को कमकर आंकते रहते हैं.
साजिथ कुमार बेरोजगारी दर में उछाल को लेकर मोदी सरकार पर मेघालय के राज्यपाल सत्य पाल मलिक के हालिया बयान के जरिए तंज कसते हैं कि पीएम ‘अहंकारी’ थे और कथित तौर पर सैकड़ों किसानों की मौत के बारे में कहा, ‘क्या वे मेरे लिए मर गए?’
इंडियन एक्सप्रेस में ईपी उन्नी ने गृहमंत्री अमित शाह को एनजीओ पर सूक्ष्म तौर से नज़र डालने को चित्रित करते हैं, उनमें से कुछ का एफसीआरए लाइसेंसों को नवीकृत न करने के सरकार के फैसले का जिक्र करते हुए दिखाते हैं, तब जब स्वास्थ्य क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने, कर्मियों और उपकरणों की जरूरत है.
कीर्तिश भट्ट अरुणाचल प्रदेश के गांवों का नाम बदलने के कुछ दिनों बाद कथित तौर पर चीन द्वारा गालवान में अपना झंडा फहराने की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं, और टीवी न्यूज पर तंज कसते हैं. वह एंकर को यह कहते हुए दिखाते हैं उसके पास ‘काफी कुछ था’ और ‘इसे और तवज्जो नहीं दे सकता’, लेकिन फिर जोड़ते हैं कि उसका गुस्सा इस बात तक सीमित है कि घड़ी की सूई जल्दी से प्राइमटाइम में क्यों नहीं बदल रही है, ताकि वह इस पर बहस कर सके.
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