भारत में कोविड-19 के ओमीक्रॉन वैरिएंट का संक्रमण, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान तमाम विधेयक पारित होना और पंजाब में लिंचिंग की घटनाएं इस सप्ताह उर्दू प्रेस की सुर्खियों में छाई रहीं.
दिप्रिंट आपके लिए लाया है इस सप्ताह का राउंड-अप कि किसने पहले पन्ने पर क्या छापा और प्रमुख समाचार पत्रों ने अपने संपादकीय में क्या रुख अपनाया.
ओमीक्रोन वैरिएंट
20 दिसंबर को रोजनामा ने पहले पन्ने पर खबर छापी कि उत्तर प्रदेश सहित 12 राज्यों ने ओमीक्रोन वैरिएंट से जुड़े केस सामने आने की सूचना दी है. दो दिन बाद 22 दिसंबर को खबर आई कि बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार जिला स्तर पर निगरानी और टेस्टिंग बढ़ा रही है.
सियासत ने 23 दिसंबर को पहले पन्ने पर आईआईटी-कानपुर के शोध पर एक रिपोर्ट छापी कि देश में ओमीक्रोन के मामले फरवरी में चरम पर होंगे.
रोजनामा ने 22 दिसंबर को अपने संपादकीय में लिखा कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों की रैलियां और जुलूस ‘सुपर स्प्रेडर’ इवेंट साबित हो सकते हैं और कोविड के खिलाफ जारी जंग के लिए खतरा बन सकते हैं. साथ ही ऐसी रैलियों पर पाबंदी की जरूरत भी बताई. संपादकीय में आगे कहा गया है कि सरकार को टीकाकरण की गति बढ़ाने और बूस्टर डोज देने पर फैसला करना चाहिए और बच्चों का टीकाकरण भी जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए.
संसद का शीत सत्र
21 दिसंबर को इंकलाब, रोजनामा और सियासत ने अपने पहले पन्ने पर लोकसभा में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित होने संबंधी रिपोर्ट प्रकाशित की.
22 दिसंबर को इंकलाब और सियासत ने लोकसभा में बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक 2021 पेश किए जाने की खबर को अपने पहले पन्ने की सुर्खियों में शामिल किया. इंकलाब ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि विपक्ष और मुस्लिम नेताओं के विरोध के बावजूद विधेयक पेश किया गया.
इंकलाब और रोजनामा दोनों ने तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन को शीतकालीन सत्र से निलंबित किए जाने की खबर को भी अपने पहले पन्ने पर रखा.
23 दिसंबर को ‘शीतकालीन सत्र की कामयाबी’ शीर्षक से प्रकाशित अपने संपादकीय में रोजनामा ने लिखा कि सरकार ने इस संसद सत्र के दौरान कई विधेयक बिना किसी बहस या चर्चा के ही पारित कर दिए हैं. इसने आगे लिखा कि सरकार ने लोगों की राय लेने के बजाये अपनी इच्छा उन पर थोप दी है. साथ ही कहा कि नौ विधेयक पास करके सरकार भले ही शीतकालीन सत्र को सफल बता रही हो लेकिन सच्चाई यह है कि विपक्षी दलों को दरकिनार कर कानून बनाए गए हैं, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
सियासत ने 23 दिसंबर को अपने संपादकीय में कहा कि संसद एक ऐसी जगह है जहां देश की महत्वपूर्ण नीतियां बनती हैं. लेकिन इसके बावजूद हंगामा हो रहा है और सत्र टल रहे हैं, जो दुखद है. इसमें यह भी कहा गया है कि सरकार और विपक्ष दोनों के लिए इस पर ध्यान देने और चर्चा करने की जरूरत है कि सदन का समय बर्बाद करने के लिए कौन जिम्मेदार है.
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इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में वेद और भगवद गीता
इंकलाब ने 20 दिसंबर को अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के पांच कॉलेजों में उर्दू विषय को खत्म कर दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक इन पांचों कॉलेजों में एक समय उर्दू पढ़ाई जाती थी लेकिन उर्दू शिक्षकों की सेवानिवृत्ति के बाद स्थायी रिक्तियां खत्म कर दी गईं और छात्रों का प्रवेश भी रोक दिया गया.
अगले दिन इंकलाब ने पहले पेज पर छापी गई एक रिपोर्ट में बताया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने प्रिंसिपल और उर्दू विभाग के प्रमुखों से जवाब मांगा है और इस मामले की पड़ताल के लिए एक जांच समिति भी गठित कर दी है.
23 दिसंबर को इंकलाब के पहले पन्ने पर संसद की स्थायी समिति की तरफ से सरकार को स्कूलों में इतिहास के पाठ्यक्रम में वेदों और भगवद् गीता को शामिल करने का सुझाव देने संबंधी रिपोर्ट छपी. रिपोर्ट में कहा गया कि समिति स्कूली पाठ्यक्रम को भगवा रंग देने और मुसलमानों की मजहबी किताबों को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रही है.
पंजाब लिंचिंग
अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में कथित बेअदबी के प्रयास और कपूरथला के एक गुरुद्वारे में निशान साहिब को हटाने की कथित कोशिश के बाद पंजाब में लिंचिंग की घटनाओं से जुड़ी खबरें 20 दिसंबर को इंकलाब, रोजनामा और सियासत में पहले पन्ने की सुर्खियों में रहीं.
उसी दिन सियासत ने अपने संपादकीय में लिखा कि पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी माहौल गर्मा रहा है. ऐसी स्थिति में धार्मिक भावनाएं भड़काने का प्रयास किया जा सकता है. संपादकीय में आगे कहा गया है कि सरकार को यह पता लगाना चाहिए कि कहीं ऐसी घटनाओं के पीछे कोई साजिश तो नहीं है और अपराधियों को बेनकाब कर दंडित किया जाना चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.
इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक
इंकलाब, सियासत और रोजनामा ने इस्लामाबाद, पाकिस्तान में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन की 17वीं विशेष बैठक पर 20 दिसंबर को अपने पहले पन्नों पर रिपोर्ट छापीं. इनमें इस बैठक के दौरान विभिन्न देशों की तरफ से इस्लामोफोबिया को खत्म करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों का जिक्र किया गया है.
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