मुंबई : तीन महीने से कम समय में, 40-सदस्यीय गोवा विधान सभा के तक़रीबन पांचवें हिस्से के राजनीतिक गठजोड़ बदल गए हैं, जहां कम से कम पांच विधायक इस्तीफा देकर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए हैं, और दो ने विधायक की हैसियत छोड़े बिना, दूसरी पार्टियों को समर्थन का वचन दे दिया है.
जिन सात विधायकों ने अपनी राजनीतिक संबद्धताएं बदली हैं, उनमें तीन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुए हैं, दो ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में गए, एक आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हुआ, और एक निर्दलीय विधायक ने कांग्रेस को समर्थन दिया है.
इस्तीफा देकर दल बदलने का सबसे ताज़ा मामला निर्दलीय विधायक रोहन खाउंते का है, जो शुक्रवार को गोवा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत, और पूर्व महाराष्ट्र मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हुए.
गोवा विधान सभा चुनाव केवल दो महीने दूर हैं, और हालांकि चुनाव से पहले दल बदली हर जगह एक सामान्य बात होती हैं, लेकिन गोवा में वो लगभग एक स्थानीय परंपरा हैं, जहां अधिकांश विधायक अपने राजनीतिक करियर के दौरान, एक से अधिक पार्टी के सदस्य रहे हैं.
गोवा में असेम्बली चुनाव क्षेत्र छोटे होते हैं, जहां हर सीट पर क़रीब 25,000-30,000 मतदाता होते हैं, जिससे जनप्रिनिधियों को अपना निजी आधार बनाने में सहायता मिलती है. इसकी वजह से उन्हें विश्वास रहता है, कि वो फिर से चुन लिए जाएंगे, भले वो किसी पार्टी से खड़े हो जाएं.
गोवा MLAs जो BJP में गए हैं
पाला बदलने वाले विधायकों का चुनावी रिकॉर्ड देखते हुए, सत्तारूढ़ बीजेपी दलबदल की इस बारात की सबसे बड़ा लाभार्थी हो सकती है. जो तीन विधायक बीजेपी में शामिल हुए हैं- खाउंते, रवि नायक, और जयेश सालगांवकर- पहले दो अपने चुनाव क्षेत्रों में सिलसिलेवार चुनाव जीत चुके हैं.
खाउंते, जो पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर परिकर की मौत तक बीजेपी की सरकार में मंत्री थे, लगातार दो चुनावों में – 2012 और 2017 में पोरवोरिम सीट से, निर्दलीय के तौर पर बीजेपी को हरा चुके हैं. जुलाई 2019 में मंत्री पद से हटाए जाने के बाद, उन्होंने विपक्ष में बैठने का फैसला किया.
शुक्रवार को खाउंते का बीजेपी में स्वागत करते हुए, फड़णवीस ने कहा, ‘2007 में जब मैंने पहली बार गोवा चुनावों पर काम किया, तो मैं पोरवोरिम में ठहरा था और चुनाव क्षेत्र में काम कर रहा था.
2012 या 2017 में हम ये सीट नहीं जीत सके. फिर मुझे केंद्रीय नेतृत्व से फोन आया, कि हम रोहन खाउंते को बीजेपी में क्यों नहीं ले आते’.
खाउंते प्रमोद सावंत की बीजेपी सरकार के सबसे कटु आलोचक थे. लेकिन जब वो सावंत के साथ खड़े हुए, और औपचारिक रूप से बीजेपी में शामिल हुए, तब खाउंते ने अपने फैसले को युक्तिसंगत ठहराया और कहा, ‘राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों से जीवंत क़ानून बनते हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘बहुत से लोग पूछते हैं, आप उन लोगों के साथ क्यों आ रहे हैं, जिनके खिलाफ आप लड़ते थे? सवाल ग़लत नहीं है. लेकिन मैंने ये फैसला अपने ख़ास कार्यकर्त्ताओं से बात करने के बाद ही लिया है. बीजेपी नेता मेरे सहयोगी हैं. कभी सहयोग होता है, तो कभी अहम मुद्दों पर बहस भी होती है, लेकिन निजी निजी वैमनस्य कभी नहीं होता’.
नायक, जो एक पूर्व गोवा सीएम हैं, गोवा की राजनीति में लगभग पांच दशकों का एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, और इस महीने उनका कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आना, एक तरह से घर वापसी जैसा था.
वो पांच बार पोंडा सीट से चुनाव जीत चुके हैं (1984, 1999, 2002, 2007, और 2017), और एक बार 1989 में मारकेम सीट से जीते हैं.
नायक शुरू में 1991 तक महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के साथ थे, और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए. 2001 में, उन्होंने कांग्रेस विधायक दल में फूट डलवा दी, और बीजेपी सरकार बनवाने के लिए परिकर को समर्थन दे दिया, जिसमें नायक डिप्टी सीएम बन गए. 2002 विधान सभा चुनावों से पहले उन्होंने बीजेपी छोड़ दी, और कांग्रेस में वापस आ गए.
उनके बेटे रॉय नायक 2020 में बीजेपी में शामिल हो गए. दस साल पहले, 2010 में विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने, रॉय के एक ड्रग कार्टेल में शामिल होने का आरोप लगाते हुए, नायक की तीखी आलोचना की थी.
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से बताया, ‘हमने तो रवि नायक के इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने से बहुत पहले ही, उन्हें अपने विधायक के तौर पर गिनना बंद कर दिया था. उनके जाने से हमें नुक़सान नहीं होगा’.
पार्टी छोड़कर बीजेपी में जाने वाले तीसरे विधायक सालगांवकर, सालीगाव से विजय सरदेसाई की गोवा फॉर्वर्ड पार्टी (जीएफपी) के विधायक थे. इसी महीने उनके बीजेपी में दाख़िल होने से, उन स्थानीय पार्टी कार्यकर्त्ताओं में निराशा फैलने की आशंका है, जो उस सीट से टिकट की उम्मीद कर रहे थे.
बीजेपी पूर्व कांग्रेस सीएम प्रतापसिंह राणे को भी पार्टी में लाने की कोशिश कर रही है, जिनके बेटे विश्वजीत राणे सावंत की सरकार में एक मंत्री हैं. इसी महीने फड़णवीस ने सार्वजनिक रूप से इशारा किया, कि वरिष्ठ राणे जो गोवा असेम्बली में बचे तीन कांग्रेस विधायकों में से एक हैं, जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. लेकिन राणे ने इसका खंडन करते हुए, उनके संकेत को ‘कोरी कल्पना’ क़रार दिया.
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TMC का फायदा कांग्रेस को नुक़सान, और BJP को लाभ पहुंचा सकता है
इस्तीफा देकर दल बदलने वाले पहले विधायक, पूर्व कांग्रेस सीएम लुइज़िन्हो फलेरियो थे, जो सितंबर में टीएमसी में शामिल हो गए, और पार्टी ने नवंबर में उन्हें एक राज्यसभा सीट दे दी.
फलेरियो नवेलिम से सात बार के विधायक थे, और उनके दल बदलकर चर्चिल अलिमाओ के साथ टीएमसी में जाने से, बनर्जी की पार्टी को एक मज़बूत आधार मिलेगा, जिससे वो कैथलिक-बहुल्य सालसेट उप-ज़िले में सेंध लगा सकती है.
अलीमाओ जो एक अन्य पूर्व गोवा सीएम हैं, बेनॉलिम से सिटिंग विधायक हैं, जो नवेलिम से सटा हुआ है. वो इसी महीने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) छोड़कर, विधायकी से इस्तीफा दिए बिना ये कहते हुए टीएमसी में शामिल हो गए, कि उन्होंने (अकेले एनसीपी विधायक होने के नाते) अपनी पार्टी का टीएमसी में विलय कर लिया है. अलीमाओ ने चार बार बेनॉलिम का प्रतिनिधित्व किया है, और 2007 में एक बार नवेलिम का.
सालसेट ताल्लुक़ा पारंपरिक रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है, और अगर टीएमसी यहां सेंध लगा लेती है, तो कांग्रेस को कमज़ोर करके वो अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी को फायदा पहुंचा सकती है.
राजनीतिक विश्लेषक क्लियोफाटो कूटीन्हो ने दिप्रिंट से कहा, ‘बीजेपी यहां एक मज़बूत विरोधी लहर का सामना कर रही थी, लेकिन टीएमसी के आने से परिदृश्य बदल गया है. टीएमसी के आने से कांग्रेस के वोट में सेंध लग रही है, और आप का ग्राफ थोड़ा ऊपर जा रहा है. विपक्ष बटा हुआ है और ज़ाहिर है कि इसका फायदा सत्तारूढ़ पार्टी को पहुंच रहा है’.
फलेरियो और अलीमाओ के अलावा, सांगुएम के निर्दलीय विधायक प्रसाद गांवकर ने भी शुरू में टीएमसी के समर्थन का वादा किया था, लेकिन बाद में जीएफपी के साथ मिलकर, कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला कर लिया.
दलबदल के इस हंगामे में बीजेपी ने भी अपनी एक विधायक एलीना सलदान्हा को खो दिया, जो कोरटालिम सीट का प्रतिनिधित्व करती थीं. बृहस्पतिवार को सलदान्हा ये कहते हुए आप में शामिल हो गईं, कि ‘ऐसा लगता है कि बीजेपी अपने सभी सिद्धांतों को भूल गई है, और राज्य में अव्यवस्था फैली हुई है’.
परिकर सलदान्हा को चुनावी राजनीति में लेकर आए थे, जब उनके पति मतान्ही सलदान्हा की 2012 में कोरटालिम से असेम्बली चुनाव जीतने के कुछ ही हफ्तों के भीतर मौत हो गई. उन्होंने उप-चुनाव जीत लिया, और फिर 2017 में दोबारा चुनी गईं.
लेकिन, बीजेपी सूत्रों ने कहा कि पार्टी के वैसे भी एलीना सलदान्हा को उस सीट से उतारने की संभावना नहीं थी, चूंकि 2017 में उनकी जीत का अंतर केवल 518 वोटों का रहा था, और उनके पति की मौत के बाद उठी सहानुभूति की लहर कमज़ोर पड़ गई थी.
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