ग्लासगो समझौता मिला-जुला है. इसका लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करना है लेकिन जलवायु फाइनेंस को लेकर वह निराश करता है. जो कि यह अमीर, ऐतिहासिक उत्सर्जकों के पाखंड को दिखाता है जो कोयले और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी के ‘फेज डाउन’ को लेकर भारत को खलनायक बनाता है. आखिर में, कोई प्रगति न होने से बेहतर है कुछ प्रगति.