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Wednesday, 20 November, 2024
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RWAs रेजिडेंट्स को पालतू जानवर रखने से नहीं रोक सकतीं, ये ग़ैरक़ानूनी है: केरल हाईकोर्ट

कोर्ट ने राज्य पशु कल्याण बोर्ड और क़ानून प्रवर्त्तन एजेंसियों को ये सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि फैसले के उल्लंघन से जुड़ी शिकायतों को तुरंत देखा जाए.

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नई दिल्ली: केरल हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि रेजिडेंट एसोसिएशंस के वो उपनियम जो निवासियों को पालतू जानवर रखने से रोकते हैं और पेट मालिकों को अपार्टमेंट बिल्डिंगों में एलिवेटर्स समेत कॉमन सुविधाओं से वंचित करते हैं, ‘अवैध, असंवैधानिक और अप्रवर्तनीय हैं’.

दरअसल, अदालत एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी जिसे जुलाई में तिरुवनंतपुरम स्थित एनजीओ ‘पीपल फॉर एनिमल्स’ ने दायर की थी जिसकी नुमाइंदगी उसकी सचिव कार्तिका अनायरा कर रही थीं. उन्होंने आरोप लगाया था कि जहां वो रहती हैं उस रेजिडेंट एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने एसोसिएशन के उपनियमों का हवाला देते हुए अपार्टमेंट मालिकों से कहा था कि वो अपने पेट्स को परिसर से हटा लें.

पेट्स रखने के नागरिकों के अधिकार पर ज़ोर देते हुए न्यायमूर्तियों एके जयशंकरन नांबियार और गोपीनाथ पी की बेंच ने कहा, ‘हमारा तटवर्ती राज्य जो अपने तट पर आने वालों के सामने ख़ुद को ‘भगवान का देश’ घोषित करता है उसे अपने पशु निवासियों को उनके जायज़ विशेषाधिकारों से वंचित करते हुए नहीं देखा जा सकता’.

कोर्ट ने साफ किया कि ‘जानवरों की आज़ादी और पेट मालिकों के मान्यता प्राप्त अधिकार’ सापेक्ष या बिना शर्त के नहीं हैं. उसने ज़ोर देकर कहा कि रेजिडेंट एसोसिएशंस कुछ उचित शर्तें तय कर सकती हैं जिनका अपार्टमेंट्स मालिकों और निवासियों को पेट्स रखते समय पालन करना होगा.

कोर्ट ने फैसला किया कि, ‘इस याचिका को अनुमति देने के लिए हम घोषित करते हैं कि किसी उपनियम या समझौते की कोई धाराएं अगर किसी व्यक्ति को उसके क़ब्ज़े की रिहाइश में अपनी पसंद के पेट को रखने से पूरी तरह रोकती हों तो उन्हें क़ानून की नज़र में अवैध और अप्रवर्तनीय माना जाना चाहिए’.

कोर्ट ने आगे कहा कि ‘निवासी मालिक एसोसिएशंस और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस ऐसे नोटिस बोर्ड्स या साइन पोस्ट लगाने से परहेज़ करेंगी जो उनके परिसर में पेट्स के रखने या घुसने पर पाबंदी लगाते हों’.

बेंच ने राज्य सरकार को ये भी निर्देश दिया कि वो तत्काल क़दम उठाए और राज्य पशु कल्याण बोर्ड समेत क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को ये सुनिश्चित करने का निर्देश दें कि कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के खिलाफ दायर की गई नागरिकों की शिकायतों को तुरंत देखा जाए.

एनजीओ की याचिका के जवाब में केरल सरकार ने कोर्ट में एक बयान दाख़िल किया था जिसमें कहा गया था कि सरकार उपनियमों की ऐसी शर्तों को न्यायोचित नहीं मानती. उसने कहा था कि इससे अपार्टमेंट्स में रहने वालों के अपनी पसंद के पेट रखने के मौलिक अधिकारों का हनन होता है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है.

भारत में पशु अधिकारों से जुड़े निर्णयों का ‘पतित प्रक्षेप पथ’

कोर्ट ने अपने फैसले की शुरुआत में ‘भारत में पशु अधिकारों के प्रक्षेप पथ’ पर नज़र डाली और कहा ये ‘दुखद रूप से पतित’ रहा है.

कोर्ट ने कहा, ‘बीते सालों में हम दुनिया के एक पर्यावरण-केंद्रित नज़रिए से जिसमें इंसानों की तरह जानवरों को भी जीवित प्राणियों की तरह देखा जाता है जिनमें एक जीवन शक्ति होती है इसलिए वो नैतिक रूप से योग्य होते हैं, आगे बढ़कर अब एक ऐसी नरकेंद्रित दुनिया में आ गए हैं जिसमें केवल इंसानों को नैतिक रूप से योग्य और विशेषाधिकार प्राप्त माना जाता है जो नेचर की उदारता का मज़ा उठा सकते हैं.’

कोर्ट ने फिर एक रिसर्च पेपर का हवाला दिया और कहा कि किस तरह जैन, बौद्ध, हिंदू, और इस्लाम धर्म जानवरों के साथ आदर से पेश आने की बात करते हैं.

कोर्ट ने आगे बढ़कर जल्लीकट्टू केस में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम,1960 में सभी जानवरों के लिए पांच मौलिक स्वतंत्रताओं को माना है: भूख, प्यास और कुपोषण से आज़ादी; डर और पीड़ा से आज़ादी; शारीरिक और गर्मी संबंधी असुविधा से आज़ादी; तकलीफ, घाव और बीमारी से आज़ादी; और सामान्य व्यवहार जाहिर करने की आज़ादी.

ये देखते हुए कि 1960 के क़ानून में इन आज़ादियों के लिए अपवाद दिए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि ‘जानवरों के लिए मान्य पांच आज़ादियों का सम्मान करने के नागरिकों के कर्तव्य का दायरा पर्याप्त रूप से इतना व्यापक है कि उन्हें दूसरे व्यक्ति के अपनी पसंद का जानवर रखने के अधिकार में दख़ल देने से रोक देता है’.

कोर्ट ने आगे केरल हाईकोर्ट की बेंच के एक दूसरे फैसले का हवाला देते हुए उजागर किया कि ‘पेट्स पालने के नागरिकों के अधिकार की जड़ें, हमारे संविधान की धारा 21 के अंतर्गत निजता के उनके मौलिक अधिकार तक जाती हैं’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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