आज़ादी के सात दशकों में गांधी की डाक यात्रा कैसी रही. कहां-कहां गांधी को कैसे जोड़ा गया. 2015 में गांधी को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और स्वच्छ भारत अभियान से जोड़कर नये रूप में प्रस्तुत किया गया. गांधी के इस सफर में बा तो साथ थी हीं साथ में नेहरू, आज़ादी का आंदोलन, और उनके संदेश डाक टिकटों में प्रमुखता के साथ दिखे. गांधी पर निकाले गए टिकटों में एक तरफ चरखे ने सबसे ज़्यादा जगह पाई तो दूसरी ओर उनका पसंदीदा भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ और उनकी विभिन्न छवियों को भी स्थान मिला.
आज़ाद भारत में महात्मा गांधी पहले भारतीय थे जिन पर डाक-टिकट जारी हुआ. स्वतंत्रता की पहली वर्षगांठ पर गांधी पर डेढ़ आने, साढ़े तीन आने, बारह आने और दस रुपये के चार टिकट निकाले गये. इन पर हिंदी और उर्दू में ‘बापू’ लिखा था. दस रुपये वाला टिकट खासतौर से संग्रहकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र रहा है.
1969 में गांधी की जन्मशताब्दी के अवसर पर डाक विभाग ने उनपर चार टिकट जारी किये जिनमें से एक में ‘बा-बापू’ साथ में हैं.
हाल ही में भारतीय डाक ने गांधी की ओड़िशा की प्रथम यात्रा के सौ वर्ष पूरे होने पर 23 मार्च 2021 को टिकट जारी किया जिसमें सभा में बैठे गांधी और बा के सरल रूप का बहुत ही आकर्षक चित्रण हुआ है.
अभी तक 151 देश गांधी पर डाक-टिकट जारी कर चुके हैं.
भारतीय डाक विभाग ने इन सात दशकों में गांधी पर दस नियत टिकट निकाले हैं. इसके अलावा लगभग 85 स्मारक डाक-टिकटों पर गांधी और उनका सन्देश देखने को मिलता है. नियत टिकट आम उपयोग के लिए बड़ी संख्या में छापे जाते हैं जबकि स्मारक टिकट सीमित संख्या में विशेष अवसरों पर जारी किये जाते हैं.
1994 तक डाक-टिकटों में गांधी की बहुप्रचलित वृद्ध छवि ही मिलती है. युवा गांधी पहली बार 1995 में भारत-दक्षिण अफ्रीका सहयोग पर टिकट में दिखे. यह गांधी पर जारी हुई पहली मिनिएचर शीट (लघुचित्र पत्र) भी थी. इसके बाद 1998 में पुण्यतिथि की पचासवीं वर्षगांठ पर चार टिकट का सी-टेनेंट निकाला गया जिसमें एक पर गुजराती पगड़ी पहने युवा गांधी दिखाई दिये. सी-टेनेंट में दो या अधिक टिकटों पर एक चित्र प्रस्तुत किया जाता है. 2007 में दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह पर निकाले गये टिकट पर एक बार फिर युवा गांधी देखने को मिले.
1950 में गणतंत्र की स्थापना के उपलक्ष्य में जारी चार टिकटों में एक पर चरखा तथा दूसरे पर गांधी का प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ अंकित था. इसके बाद एक लम्बे समय तक टिकटों पर गांधी का सन्देश सत्याग्रह और चरखे तक सीमित रहा. लेकिन इस बीच में पोस्टकार्ड और अन्तर्देशीय पत्र पर छपे आदर्श वाक्यों एवं टिकटों के विरूपण के ज़रिये उनके विचार लोगों तक पहुंचते रहे.
पहली बार 1986 में भारतीय पुलिस की 125वीं जयंती के प्रथम दिवस आवरण पर गांधी की 21अगस्त 1947 की एक प्रार्थना सभा के अंश उद्धृत किये गये. इसमें पुलिस को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के अपने कर्तव्य निभाने की सलाह है. इसके बाद 1994 में खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाईब्रेरी के प्रथम दिवस आवरण पर भी उनकी चिठ्ठी के कुछ अंश उद्धृत हुए. किन्तु डाक-टिकट पर उनका सन्देश पहली बार 1994 में उनकी 125वीं जयंती पर दिखा.
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गांधी के साथ नेहरु का सफर
अस्सी के दशक तक गांधी की डाक यात्रा में कस्तूरबा के अलावा जवाहरलाल नेहरू ही दिखे. 1967 में भारत छोड़ो आन्दोलन और 1969 में गांधी की जन्मशताब्दी टिकटों की विवरणिका में गांधी के साथ नेहरू को जगह मिली. टिकटों पर भी कस्तूरबा के बाद सबसे पहले नेहरू ही गांधी के साथ आये. 1973 में स्वतंत्रता संग्राम की पच्चीसवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ‘गांधी और नेहरू’ पर डाक-टिकट जारी हुआ जिसकी विवरणिका में उन्हें गंगा-यमुना की उपमा दी गई. दस वर्ष बाद 1983 में एक बार फिर से नेहरू और गांधी साथ-साथ ‘भारत का स्वाधीनता संग्राम’ पर जारी टिकट में दिखे.
गांधी की डाक यात्रा में पहला बड़ा बदलाव जनता पार्टी की सरकार के समय आया. 1978 में चार्ली चैपलिन (16 अप्रैल) और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (10दिसम्बर) के प्रथम दिवस आवरण पर उन्हें गांधी के साथ दिखाया गया. इसके बाद 1985 में जयरामदास दौलतराम के प्रथम दिवस आवरण पर गांधी के साथ खड़े उनके सहयोगियों की तस्वीर है. इसके कुछ पंद्रह वर्ष बाद गांधी अन्य लोगों के प्रथम दिवस आवरण पर दिखना शुरू हुए. 1999 में डॉ के.ब. हेडगेवार के प्रथम दिवस आवरण पर उनके साथ गांधी की तस्वीर है. इस दौरान राष्ट्रीय बचत संगठन की स्वर्ण जयंती (1998), भारत का स्वतंत्रता संग्राम (1999), द हिंदुस्तान टाइम्स (1999), पश्चिमी रेलवे भवन (1999), और रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की प्लैटिनम जयंती (2010) के प्रथम दिवस आवरण पर भी गांधी दिखे.
गांधी की डाक यात्रा के इस काल खंड का सबसे यादगार टिकट भारतीय गणतंत्र के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में जारी किया गया. इस पर प्रसिद्द चित्रकार रंगा का बनाया गांधी का अद्भुत रेखाचित्र है जो उन्हें भारत के नक्शे की तरह प्रस्तुत करता है. यह पहला अवसर था जब गांधी पर जारी किये गये टिकट के प्रथम दिवस आवरण पर किसी और व्यक्तित्व को चित्रित किया गया. इस आवरण पर डॉ. भीमराव आम्बेडकर और उनके पार्श्व में संविधान की प्रस्तावना दिखाई गई है. साथ ही में यह एकमात्र डाक-टिकट है जिसपर गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कह कर संबोधित किया गया है.
इसके बाद 2001 में दो टिकट के सी-टेनेंट पर उन्हें सहस्त्राब्दी पुरुष की संज्ञा दी गई.
सन् 2000 में ही दूसरा बड़ा बदलाव आया जब गांधी नेहरू के अलावा किसी अन्य गांधीवादी नेता के टिकट पर दिखे. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जारी बिहार के दलित नेता जगलाल चौधरी के टिकट की पृष्ठभूमि में गांधी हैं. इसके बाद 2009 में रामचरण अग्रवाल और 2019 में आयुष चिकित्सक दिनशॉ मेहता के टिकट की पृष्ठभूमि में भी गांधी दिखते हैं.
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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और स्वच्छ भारत अभियान से शुरू हुआ नया दौर
2015 से गांधी की लम्बी डाक यात्रा में एक नया अध्याय जुड़ गया. इसमें बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और स्वच्छ भारत अभियान को गांधी से जोड़ा गया.
इसके पहले गांधी को 1979 में अन्तराष्ट्रीय बाल वर्ष पर बच्चे के साथ और 2008 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के 60 वर्ष पूरे होने पर अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग और मदर टेरेसा के साथ प्रस्तुत किया गया था.
लेकिन इस बार भारतीय डाक विभाग ने गांधी के चश्मे को स्वच्छ भारत के प्रतीक स्वरुप हर प्रथम दिवस आवरण का हिस्सा बना दिया. गौरतलब है कि गांधी से जुड़े लगभग आधे यानि कि 85 में से 41 टिकट इस दौरान जारी हुए.
हिंदी के प्रसार में गांधी की भूमिका को 2017 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा शताब्दी पर टिकट में रेखांकित किया गया. इसी प्रकार उनकी 150वीं जयंती पर 2018 में पहली बार जारी हुए वृत्ताकार डाक-टिकटों पर अहिंसा, स्वच्छता, अस्प्रश्यता, सेवा, शांति, क्षमा, सादगी और सत्य पर गांधी के सन्देश हिंदी में थे. इसके पूर्व टिकटों पर उनके सन्देश या तो अंग्रेजी में या फिर अंग्रेजी और हिंदी दोनों में प्रस्तुत किये गये थे. खास बात यह भी थी कि इसकी विवरणिका में गांधी का नाम नौ भारतीय भाषाओं में लिखा हुआ था.
150वीं जयंती के उपलक्ष्य में ही 2019 में पहली बार जारी हुए अष्टकोणीय डाक-टिकटों के ज़रिये गांधी के बचपन से महात्मा तक का सफ़र प्रस्तुत हुआ. इनमें उनके तीन बन्दरों के अलावा उनका बाल, किशोर और गांधी टोपी वाले रूप भी पहली बार डाक टिकटों पर देखने को मिले.
कस्तूरबा भी अपने युवा रूप में पहली बार 2015 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के सौ वर्ष पूरे होने पर जारी टिकट में नज़र आयी. इसके बाद 2017 में चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी पर और 2019 में अष्टकोणीय टिकट पर उनकी युवा तस्वीर दिखी. 2020 में एक बार फिर से गांधी के विशाल व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलुओं को प्रस्तुत किया गया. इनमें स्वास्थ्य और प्राकृतिक चिकित्सा, शिक्षा में प्रयोग – नई तालीम, पारिस्थितिकी और पर्यावरण की आवश्यकता तथा चरखे के माध्यम से आत्मनिर्भरता लाने का सन्देश परिलक्षित हुआ. लेकिन विविधताओं से भरी गांधी की इस डाक यात्रा में सांप्रदायिक सौहार्द पर उनका सन्देश जिस पर 1948 की विवरणिका में काफ़ी जोर था कहीं गुम हो गया.
(अंकिता पाण्डेय स्वतंत्र शोधकर्ता एवं अनुवादक तथा ‘आसक्ति से विरक्ति तक: ओड़िआ महाभारत की चुनिंदा कहानियां (वाणी प्रकाशन, आगामी) की लेखिका हैं. सभी टिकट अंकिता के टिकट कलेक्शन से लिए गए हैं. )
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