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Friday, 22 November, 2024
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CM बघेल के पिता नंद कुमार, एक धर्मांतरित बौद्ध हैं जिन्होंने रावण दहन खत्म करने की वकालत की थी

अपने करीबी लोगों द्वारा एक प्रगतिशील किसान माने जाने वाले, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों के लिए वकालत करना 86 वर्षीय नंद कुमार बघेल के जीवन का एक तरीका रहा है.

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देहरादून: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंद कुमार बघेल की हाल ही में ब्राह्मणों के खिलाफ टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ्तारी कई वर्षों से उनके विवादों में बने रहने की श्रृंखला में एक नई कड़ी है.

86 वर्षीय नंद कुमार को उत्तर प्रदेश के आगरा से मंगलवार को गिरफ्तार किया गया है. उन्हें ब्राह्मणों को विदेशी कहने और उनका बहिष्कार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तारी के बाद नंद कुमार बघेल को रायपुर की अदालत में पेश किया गया और 21 सितंबर तक 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. उनके वकील के मुताबिक नंद कुमार ने जमानत के लिए भी आवेदन नहीं किया.

नंद कुमार बघेल द्वारा 30 अगस्त को लखनऊ में दिए गए वक्तव्य से ब्राह्मण समाज के लोगों में नाराजगी और राज्य के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन करने के बाद 4 सितंबर की रात को राजधानी रायपुर के डीडी नगर थाने में उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई. मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री को भी अगले दिन सफाई देनी पड़ी थी.
भूपेश बघेल ने कहा था कि कानून अपना काम करेगा.

रविवार को बघेल ने कहा, ‘ऐसा कहा जा रहा है कि नंद कुमार बघेल पर इसलिए कार्यवाई नही होगी क्योंकि के मुख्यमंत्री के पिता है. मेरी सरकार में कानून से ऊपर कोई नहीं है, भले ही वह मुख्यमंत्री के 86 वर्षीय पिता हों. मुख्यमंत्री के रूप में, मेरे पास सद्भाव बनाए रखने की जिम्मेदारी है. यदि उन्होंने किसी समुदाय के खिलाफ टिप्पणी की है, तो मुझे खेद है. पुलिस द्वारा विधि सम्मत कानूनी कार्रवाई की जाएगी.’

बता दें कि नंद कुमार बघेल के लिए यह कोई नई बात नहीं है, सीएम को पूर्व में भी नंद कुमार बघेल के बयानों पर सफाई देनी पड़ी है और बघेल परिवार के करीबी लोगों के अनुसार आपसी वैचारिक मतभेद के चलते ही पिता पुत्र के मनमुटाव निरंतर बना रहता है. बघेल परिवार को जानने वालों ने दिप्रिंट को  बताया कि पिता और पुत्र 20 साल से अधिक समय से एक साथ नहीं रह रहे हैं और इन वर्षों में उन्होंने कभी सार्वजनिक मंच साझा नहीं किया.


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प्रगतिशील किसान, जाति विरोधी योद्धा

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के कुरुद-डी गांव के मूल निवासी नंद कुमार हिंदू समुदाय में हमेशा से जातिवाद के खिलाफ मुखर रहे हैं. अपने करीबी लोगों द्वारा एक प्रगतिशील किसान माने जाने वाले, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों के लिए वकालत करना 86 वर्षीय के लिए जीवन का एक तरीका रहा है.

जाती प्रथा और हिंदुत्व के खिलाफ बोलना उनका स्वाभिक गुण रहा है लेकिन सुर्खियों में सबसे पहले 2001 में आए जब उन्होंने ‘ब्राह्मण कुमार रावन को मत मारो’ नामक पुस्तक लिखी थी. पुस्तक में दशहरा में रावण का पुतला दहन को समाप्त करने का आह्वान किया था जिसके बाद उनके खिलाफ जनाक्रोश बढ़ा. इस पुस्तक के सार्वजनिक विरोध के चलते अजीत जोगी के नेतृत्व वाली तत्कालीन राज्य सरकार को इसे प्रतिबंधित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. नंद कुमार ने की पुस्तक वाल्मीकि रामायण, पेरियार की सच्ची रामायण, रामचरित मानस और मनु स्मृति के मिश्रण का एक नया स्वरूप है. बघेल ने प्रतिबंध के खिलाफ छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में अपील भी की लेकिन 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने 2017 में उनकी याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने पुस्तक हिन्दू धर्म की मान्यताओं के विपरीत है और समाज पर नकारात्मक असर डालने वाली सामग्री करार दिया था.

1970 के दशक में बौद्ध धर्म अपनाने के बाद बघेल का जाति-विरोधी रुख और भी कट्टर हो गया बघेल परिवार के करीबी और स्थानीय पत्रकार लखन वर्मा के अनुसार, ‘हम कह सकते हैं कि जातिवाद और हिंदुत्व के खिलाफ उनके बयान बौद्ध धर्म अपनाने के बाद और अधिक कठोर हो गए.’ वर्मा ने कहा, ‘उन्होंने बहुत सारी धार्मिक किताबें पढ़ीं और उनके सामाजिक-धार्मिक विचारों को पिछले 20 वर्षों में ही प्रमुखता मिली.’ गौरतलब है कि नंद कुमार ने कभी भी राजनीति में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया, केवल 1980 के दशक में एक बार स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में दुर्ग लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था.

पिता और पुत्र के बीच दरार

बघेल परिवार के जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री समय-समय पर अपने पिता को अवांछित और भड़काऊ बयान न देने के लिए मनाने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन उनके प्रयास का कोई फायदा नहीं हुआ. कुरुद-डी के एक ग्रामीण का जो मुख्यमंत्री के परिवार को अच्छी तरह से जानता है ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुख्यमंत्री ने अपने पिता से कई बार बात करने की कोशिश की और उन्हें कई मौकों पर राजी किया लेकिन नंद कुमार बघेल ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया. नंद कुमार बघेल ने भूपेश से साफ कहा कि वह वही कहते हैं जिसे वह सच मानते हैं. यह दोनों के बीच मतभेद का मूल कारण है.’  नतीजतन, बघेल को अक्सर अपने पिता के बयानों पर एक कद्दावर नेता होने के नाते अपना रुख स्पष्ट करना पड़ा है.

नंद कुमार ने 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेतृत्व को पत्र लिखा था, और उनसे पार्टी के करीब 85 प्रतिशत टिकट एससी-एसटी-ओबीसी उम्मीदवारों को देने के लिए कहा था, न कि ब्राह्मणों, ठाकुरों और बनियों को. नंद कुमार बघेल ने कांग्रेस नेतृत्व को कहा था कि चुनाव जीतने के लिए पार्टी को ऐसा करना पड़ेगा. भूपेश बघेल उस समय पीसीसी अध्यक्ष थे और उन्हें यह स्पष्ट करते हुए एक बयान जारी करना पड़ा कि उनके पिता पार्टी के प्राथमिक सदस्य नहीं थे और इसलिए, केंद्रीय नेतृत्व को उनका पत्र लिखना अर्थहीन था.

पिता-पुत्र की जोड़ी के बीच की दरार उनकी व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं तक भी फैली हुई थी. वर्मा ने उल्लेख किया कि 2019 में, जब नंद कुमार बघेल की पत्नी का निधन हो गया, तो वह बौद्ध धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे, लेकिन सीएम ने आपत्ति जताई और उनकी मां का अंतिम संस्कार हिंदू मान्यताओं के अनुसार ही कराया. हालांकि, दोनों के बीच बहुत स्पष्ट विवादों के बावजूद, नंद कुमार अपने फेसबुक प्रोफाइल में खुद को भूपेश बघेल का ‘गर्वित पिता’ कहते हैं.


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