वित्त वर्ष 2021-22 की अप्रैल-जून की तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 20.1 फीसदी की वृद्धि हुई. यह बड़ी वृद्धि ‘बेस इफेक्ट’ (दो आंकड़ों की तुलना के लिए आधार के चयन) के कारण हुई, क्योंकि अर्थव्यवस्था में पिछले साल की इस अवधि में 24.4 फीसदी की सिकुड़न आई थी.
यह वृद्धि कंस्ट्रक्सन सेक्टर में 68.3 फीसदी की, और मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में 49.6 फीसदी की वृद्धि के कारण हुई.
पहली तिमाही में सेक्टरवार जीडीपी वृद्धि
पहली तिमाही में जीडीपी के आंकड़े अपेक्षा के मुताबिक ही रहे. स्थिर कीमतों के अनुसार जीडीपी 32.38 लाख करोड़ रुपये के बराबर थी, जो पिछले साल की इसी अवधि में जो जीडीपी थी उससे ज्यादा है. लेकिन यह 2019-20 की पहली तिमाही में जो जीडीपी थी उससे कम ही है.
खासकर कंस्ट्रक्सन सेक्टर में यह मजबूत वृद्धि अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है. यह सेक्टर रोजगार के अवसर बढ़ाएगा और क्रेडिट की अवरुद्ध मांग को भी बढ़ाने में मदद करेगा. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि खास तौर से औपचारिक क्षेत्र की मजबूती के कारण है और यह कॉर्पोरेट सेक्टर के आउटपुट और मुनाफे में प्रदर्शित हो रहा है.
कृषि मजबूत खंभा बना हुआ है. जीडीपी में इसके योगदान पर नज़र रखने की जरूरत है, क्योंकि मॉनसून अनिश्चित बना हुआ है और इसका असर बुवाई तथा फसलों पर पड़ता है.
वित्त सेक्टर में 3.7 फीसदी की मामूली वृद्धि हुई, जबकि पिछले साल इसी अवधि में इसमें 5 फीसदी की सिकुड़न आई थी. इसका अर्थ है कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि की चाल अभी भी सुस्त है. अब जबकि निजी निवेश में तेजी आने लगी है, इस आंकड़े में सुधार दिखना चाहिए.
वृद्धि के ऊंचे आंकड़े ‘बेस इफेक्ट’ के कमजोर पड़ने के बाद कम हो सकते हैं. निजी निवेश के लिए अनुकूल हालात बनाने के वास्ते मोदी सरकार को सुधारों का एजेंडा आगे बढ़ाना चाहिए.
राजस्व उगाही और वित्तीय घाटा
कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान नरम लॉकडाउन के चलते केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति बेहतर रही. पहली लहर के विपरीत इस बार राजस्व में भारी गिरावट नहीं देखी गई. राजस्व की बेहतर उगाही के चलते चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीने में वित्तीय घाटा पूरे वर्ष के लक्ष्य के 21.3 प्रतिशत के बराबर आया. पिछले वित्त वर्ष के पहले चार महीने में यह घाटा पूरे साल के लक्ष्य से बाहर चला गया था. जीएसटी की ऊंची उगाही के कारण अप्रैल-जुलाई के दौरान वित्तीय घाटा नौ साल में सबसे कम आया.
खर्चों में कटौती करने के अलावा राजस्व में वृद्धि यही दर्शाती है कि आर्थिक गतिविधियां फिर शुरू हुई हैं. इस अवधि में वित्तीय स्थिति में सुधार बताता है कि सरकार 6.8 प्रतिशत के वित्तीय घाटे के अपने लक्ष्य को पूरा करेगी या उससे भी बेहतर करेगी. यह सरकार को आशंकित तीसरी लहर में ज्यादा खर्चे की जरूरत को पूरा करने में मदद कर सकता है. अब जबकि वित्तीय स्थिति बेहतर हुई है और वृद्धि में गति लौटी है, मोदी सरकार को संरचनात्मक सुधार जारी रखने चाहिए ताकि निवेश का माहौल सुधरे और वृद्धि की टिकाऊ रफ्तार हासिल हो.
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निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए जरूरी है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में सार्वजनिक निवेश किया जाए और बेहतर रेगुलेटर जैसी व्यवस्था का दीर्घकालिक निर्माण किया जाए और लालफ़ीताशाही को खत्म किया जाए. इसके बावजूद भरोसा बढ़ाने के लिए कानूनी संशोधन करने जरूरी हैं. रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स को खत्म करना ऐसा ही एक सुधार था. इसके बाद व्यापार एवं निवेश संधियां विदेशी निवेश लाने में मददगार हो सकती हैं.
मोदी सरकार ने वित्तीय कानूनों को अपराध कानून के दायरे से बाहर लाने का प्रस्ताव किया है. अब तक उसने सज़ा घटाकर और कई अपराधों, जिन्हें प्रक्रिया पालन में चूक या तकनीकी चूक कहा जा सकता है, के लिए कैद की सजा खत्म करके कंपनी एक्ट की कई धाराओं को इस दायरे से बाहर किया है. पहले के आश्वासन के मुताबिक, सरकार को आयकर अधिनियम और मनी लॉन्डरिंग रोकथाम एक्ट को भी अपराध के दायरे बाहर लाने की पहल करनी चाहिए ताकि निवेश का माहौल सुधरे.
मोदी सरकार ने अपनी रणनीतिक विनिवेश नीति के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण का भी महत्वाकांक्षी एजेंडा तय किया है. सकता है. कई अवसरों पर उसने संकेत किया है कि देश को निजी क्षेत्र पर भरोसा करना चाहिए और उस पर शक नहीं करना चाहिए.
महामारी ने विनिवेश के एजेंडा को आगे बढ़ाने का अवसर जुटाया है. सरकार को अतिरिक्त खर्चों और जनकल्याण के कार्यक्रमों पर खर्च के लिए अतिरिक्त संसाधन की जरूरत पड़ेगी.
चालू वित्त वर्ष में विनिवेश का लक्ष्य 1.75 लाख करोड़ रु. रखा गया है, जो मुख्यतः जीवन बीमा निगम के आइपीओ, और भारत पेट्रोलियम के निजीकरण से हासिल होगा. सरकार इस वित्त वर्ष में दो सरकारी बैंकों और एक सामान्य बीमा कंपनी का भी निजीकरण करने की योजना बना रही है. सरकारी बैंकों के निजीकरण से पहले सरकार को बैंक राष्ट्रीयकरण एक्ट में जरूरी संशोधन करना होगा.
इसके अलावा, सरकार ने 6 लाख करोड़ मूल्य की राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) की घोषणा भी की है. इसका लक्ष्य बंदरगाहों, हवाईअड्डों, हाइवे जैसे मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर परिसंपत्तियों को निजी हाथों को पट्टे पर देना है. कार्यरत इन्फ्रास्ट्रक्चर परिसंपत्तियों के मौद्रीकरण से नए इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में मदद मिलेगी. इसमें असली चीज होगी क्रियान्वयन. एनएमपी को पारदर्शी और निजी खिलाड़ियों के लिए लाभकारी होना जरूरी है. पीपीपी को कारगर बनाने के लिए केलकर कमिटी ने जो सिफ़ारिशें की हैं उन पर ध्यान देना उपयोगी हो सकता है.
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