वाराणसी: 28 वर्षीय कमलेश चौहान को अपनी मां की मौत के बारे में ज्यादा कुछ ठीक से याद नहीं है. जब उनकी मां की मृत्यु हुई उस समय वह सात या आठ वर्ष का ही रहे होंगे. हालांकि, इस साल की शुरुआत में दूसरी कोविड लहर के दौरान अपने पिता को खो देना उनके लिए भुला पाना आसान नहीं है.
गोरखपुर निवासी कमलेश को अच्छी तरह याद है कि कैसे पिता को कोविड होने के लक्षण नजर आने के बाद तमाम कोशिशों के बावजूद भी वह उनके लिए अस्पताल में एक बेड का इंतजाम नहीं कर पाये थे. अंततः उचित इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई और यही बात कमलेश को कचोटती रहती है.
इसके थोड़े ही समय बाद जब उनकी नजर कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) के एक विज्ञापन पर पड़ी, जिसमें ‘कोविड वॉरियर’ के लिए क्रैश कोर्स के लिए आवेदन मांगे गए थे, तो तुरंत नामांकन कराने का मन बना लिया. कृषि में बीएससी करने वाले कमलेश ने पिछले कुछ सालों में अलग-अलग तरह की नौकरियों में हाथ आजमाए हैं.
यह पाठ्यक्रम प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य उम्मीदवारों को रोजगार खोजने में मदद करने के लिए मोबाइल मरम्मत से लेकर खुदरा बिक्री तक के लिए कौशल का प्रशिक्षण मुहैया कराना है.
कोविड वारियर क्रैश कोर्स इसी साल शुरू किया गया है और इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और लॉजिस्टिक सपोर्ट दोनों ही के लिए संसाधन जुटाना है.
गोरखपुर में प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (पीएमकेके यानी पीएमकेवीवाई के लिए प्रशिक्षण केंद्र) के तौर पर काम कर रहे एक एनजीओ सुनैना समृद्धि फाउंडेशन में दिप्रिंट से हुई मुलाकात के दौरान कमलेश ने कहा, ‘महीनों बेरोजगार रहने के बाद मैंने सोचा कि यह मेरे लिए एक उपयुक्त कोर्स है, क्योंकि इससे मैं कोविड के समय नौकरी पाने और लोगों की सेवा करने में सक्षम हो जाऊंगा.’
केंद्र में उसके साथ करीब 20 अन्य उम्मीदवार भी इंतजार कर रहे थे जिसमें से अधिकांश की उम्र 20 से 30 साल के बीच है. इनमें से ज्यादातर निम्न आय वर्ग से आते हैं और कोविड लॉकडाउन के कारण और उसके बाद रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने में मुश्किलों से जूझते अपने परिवारों की मदद के लिए कुछ उपयुक्त रोजगार खोजने की कोशिश में जुटे हैं.
मंत्रालय की तरफ से जिस कोविड वॉरियर्स कोर्स पर खासा जोर दिया जा रहा है, उसमें 21 दिनों तक थिअरी पढ़ाई जाती है और इसके बाद करीब 90 दिनों की ऑन-जॉब ट्रेनिंग होती है.
गोरखपुर स्थित सुनैना समृद्धि फाउंडेशन को इस वर्ष कोर्स के लिए 100 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) की तरफ से मिला है, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना पर अमल सुनिश्चित करने के लिए एमएसडीई के तहत काम करता है.
प्रशिक्षण 24 जून को शुरू हुआ और 40 उम्मीदवारों ने थिअरी की पढ़ाई पूरी कर ली है, बाकी 60 अपनी थिअरी की कक्षाएं 10 सितंबर तक पूरी कर लेंगे. केंद्र प्रबंधक के मुताबिक, उन्हें इस वर्ष पीएमकेवीवाई के तहत किसी अन्य पाठ्यक्रम के लिए कोई लक्ष्य नहीं दिया गया है.
एमएसडीई ने दिप्रिंट को दिए एक बयान में कहा कि देशभर में पीएमकेवीवाई के तहत नामांकित 80 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवारों को प्रमाणपत्र मिल चुके हैं और यूपी में 2016 से नामांकित उम्मीदवारों में 78 प्रतिशत को प्रमाणपत्र दिए जा चुके हैं.
यूपी के तीन जिलों, चित्रकूट, प्रयागराज और गोरखपुर की यात्रा के दौरान दिप्रिंट को कुछ ऐसे लोगों के बारे में पता चला जिन्हें पीएमकेवीवाई के तहत विभिन्न कोर्स के लिए अपने प्रमाणपत्रों का इतंजार है. इनमें से कई उम्मीदवारों तो 2019 में ही अपना कोर्स पूरा कर चुके हैं. लेकिन उन्हें अभी तक न तो प्रमाणपत्र मिला है और न ही नौकरी. इन जिलों में कई प्रधानमंत्री कौशल केंद्र बंद भी किए जा चुके हैं, जिसके बारे में अफसरों का कहना है कि ऐसा उन्हें केंद्र की तरफ से लक्ष्य नहीं दिए जाने के कारण हुआ है.
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कौशल निर्माण
पीएमकेवीवाई को 2015 में स्किल इंडिया मिशन के तहत लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत को ग्लोबल स्किल कैपिटल बनाना और 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न तरह के कौशल में पारंगत बनाना है.
योजना के तहत तीन तरह के ट्रेनिंग कोर्स होते हैं—कोई नया कौशल हासिल करने वालों के लिए अल्पकालिक प्रशिक्षण, पूर्व में हासिल की गई शिक्षा को पीएमकेवीवाई के तहत मान्यता, जिसमें उम्मीदवारों को अपना मौजूदा कौशल अपग्रेड करने का मौका मिलता है औऱ स्पेशल प्रोजेक्ट. इसके लिए प्रशिक्षण केंद्रों को एक निश्चित अवधि में निर्धारित संख्या में उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य और उस पर खर्च किया जाने वाला पैसा केंद्र सरकार से मिलता है, उम्मीदवारों के लिए ये ट्रेनिंग कोर्स मुफ्त होते हैं.
यह योजना इस समय तीसरे चरण में है. यद्यपि पहले चरण में करीब 1,500 करोड़ रुपये की लागत से 24 लाख छात्रों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया था, 2016 में शुरू हुए दूसरे चरण में एक करोड़ युवाओं को लाभान्वित करने के उद्देश्य के साथ बजट आवंटन बढ़ाकर 12,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था.
पीएमकेवाई 2.0 यानी कार्यक्रम का दूसरा चरण, जिसे 2019-20 वित्तीय वर्ष में पूरा होना था, को कोविड महामारी के कारण 2020 कैलेंडर वर्ष के अंत तक बढ़ा दिया गया था.
चूंकि पिछले साल देशव्यापी कोविड लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों की आजीविका छिन गई थी और अप्रैल-मई में वे अपने गांवों की तरफ लौटने लगे थे, कौशल विकास मंत्रालय के तहत एनएसडीसी ने जून 2020 में गरीब कल्याण रोजगार अभियान शुरू कर दिया था. इसका उद्देश्य 2020 कैलेंडर वर्ष के दौरान 6,70,000 प्रवासी कामगारों को 125 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करना था. इस प्रोजेक्ट के लिए 50 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था.
एनएसडीसी ने प्रवासी मजदूरों को रोजगार के लिए सक्षम बनाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत अल्पकालिक प्रशिक्षण (जैसे मोबाइल ठीक करना और सिलाई मशीन चलाना आदि) देने की योजना तैयार की. इस योजना में बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों के 116 जिलों को शामिल किया गया था, जहां प्रवासियों की बड़ी संख्या के कारण सबसे ज्यादा दबाव था.
पीएमकेवीवाई 3.0 को इस वर्ष 15 जनवरी को लॉन्च किया गया था, जिसमें 948.9 करोड़ रुपये के केंद्रीय बजट का आवंटन किया गया है और 2021 और 2026 के बीच आठ लाख उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है. इसमें पहले चरण (2021-22) में देश के 622 जिलों में स्थित 707 प्रधानमंत्री कौशल केंद्रों को 88,913 लक्ष्य आवंटित किए गए हैं, अन्य 1,11,087 लक्ष्य निजी भागीदारों को दिए जाएंगे, जिनका चयन जिला कौशल समितियों (डीएससी) करेंगी.
इस चरण में अन्य विषयों के अलावा कोविड वॉरियर्स का क्रैश कोर्स प्रमुख आकर्षण है जिसमें होम केयर सपोर्ट, बेसिक केयर सपोर्ट, सैंपल कलेक्शन सपोर्ट और इमरजेंसी केयर सपोर्ट आदि की ट्रेनिंग दी जानी है.
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पिछला रिकॉर्ड
एमएसडीए की तरफ से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, 2015 में लॉन्च होने के बाद से 1.37 करोड़ से अधिक उम्मीदवारों ने पीएमकेवाईवी में नामांकन कराया है.
मंत्रालय ने दिप्रिंट को दिए एक बयान में कहा, ‘शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग में पूरी तरह प्रशिक्षित किए गए उम्मीदवारों में से 80 प्रतिशत से अधिक छात्रों (50 लाख) को 10 जुलाई 2021 तक प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रमाणपत्र दिया जा चुका है, जबकि अपना कौशल अपग्रेड करने वाले 81 से अधिक प्रतिशत (52 लाख) उम्मीदवारों का प्रमाणन पूरा हो चुका है.’
इसमें बताया गया है, ‘महामारी के मार्च 2020 से सितंबर 2020 के बीच समग्र कौशल प्रशिक्षण व्यवस्था पूरी तरह ठप रही थी, क्योंकि सरकार की तरफ से लागू लॉकडाउन के दिशा-निर्देशों के तहत प्रशिक्षण केंद्र बंद हो गए थे. बाकी उम्मीदवारों के मामले मूल्यांकन में नाकाम रहने, निजी /पारिवारिक कारणों से परीक्षा में शामिल नहीं हो पाने, कोविड या कुछ तकनीकी/ऑपरेशनल चुनौतियों के कारण मूल्यांकन नहीं हो पाने या फिर मूल्यांकन कार्यक्रम से पहले ही रोजगार मिल जाने आदि से जुड़े हैं.’
मंत्रालय ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में ‘पीएमकेके में नामांकित कुल 2.62 लाख लोगों में से केवल सात प्रतिशत का आकलन किया जाना बाकी है.’ पीएमकेवीवाई 2.0 और 3.0 के दौरान नामांकित लोगों में से 78 प्रतिशत का प्रमाणन हो चुका है.
हालांकि, मंत्रालय ने प्लेसमेंट पर कोई टिप्पणी नहीं की.
‘मैंने सोचा था कि प्रशिक्षण से नौकरी ढूंढ़ने में मदद मिलेगी’
वाराणसी निवासी 25 वर्षीय बी.कॉम स्नातक उत्कर्षा अग्रवाल ने 2019 के मध्य में पीएमकेवीवाई के तहत मोबाइल मरम्मत के कोर्स में दाखिला लिया. नवंबर तक उसने तीन महीने का कोर्स पूरा भी कर लिया था, लेकिन इस माह के शुरू में जब दिप्रिंट ने उससे मुलाकात की, तब भी उसे प्रशिक्षित होने का अपना प्रमाणपत्र मिलना बाकी था.
पीएमकेवीवाई के तहत प्रशिक्षित छात्रों को कोर्स पूरा करने के बाद मूल्यांकन प्रक्रिया से गुजरना होता है और इसके बाद ही एनएसडीसी की तरफ से उन्हें प्रशिक्षण पूरा करने और उसका नतीजा क्या रहा, इसका प्रमाणपत्र दिया जाता है.
उत्कर्षा ने कहा, ‘मैंने मूल्यांकन के नतीजों के बारे में तीन बार पूछताछ की है, लेकिन हर बार मुझे यह बताया जाता रहा है कि परिणाम लंबित है. मैंने तो सोचा था कि कोर्स पूरा करने के बाद मुझे नौकरी मिल जाएगी.’
उत्कर्षा अकेली ऐसी उम्मीदवार नहीं हैं, जो एक साल से अधिक समय से पाठ्यक्रम पूरा कर लेने के प्रमाणन का इंतजार कर रही है. वाराणसी स्थित केंद्र ओरियन एडुटेक—इस एनजीओ के देशभर में करीब 50 कौशल केंद्र हैं (उत्कर्षा ने इसके वाराणसी स्थित पीएमकेके में नामांकन कराया था)—की तरफ से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, वाराणसी केंद्र में 2018-19 में पीएमकेवीवाई के तहत पाठ्यक्रमों में 820 उम्मीदवारों ने नामांकन कराया था, जिनमें से 185 को अपने प्रमाणपत्रों का इंतजार है.
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केंद्र ने दिप्रिंट को बताया कि प्लेसमेंट के आंकड़े भी कम हैं. उदाहरण के तौर पर दिप्रिंट द्वारा एनजीओ से हासिल किए गए आंकड़े बताते हैं कि सिलाई मशीन ऑपरेटर कोर्स में नामांकित 150 उम्मीदवारों में से केवल 114 को प्रमाणपत्र दिया गया और केवल 66 को ही रोजगार मिल पाया है. इसी तरह रिटेल सेल्स एसोसिएट कोर्स में 140 लोगों ने दाखिला लिया, जिनमें से 120 को प्रमाणपत्र मिला और केवल 72 को नौकरी पर रखा जा सका. जनरल ड्यूटी असिस्टेंट कोर्स में 180 ने दाखिला लिया, जिसमें से 155 प्रमाणित हो पाए और 89 को रोजगार मिला.
2019-20 के लिए उनका डाटा भी कुछ इस तरह की तस्वीर सामने रखता है. उस वर्ष जनरल ड्यूटी असिस्टेंट कोर्स के लिए नामांकित 330 उम्मीदवारों में से 29 को नौकरियों पर रखा गया, मोबाइल ठीक करने वाले टेक्नीशियन के पाठ्यक्रम में नामांकित 180 उम्मीदवारों में से 17 को प्लेसमेंट मिला था, और रिटेल सेल्स एसोसिएट कोर्स में नामांकित 240 उम्मीदवारों में से 49 को ही रोजगार मिल पाया.
केंद्रों का कहना है कि पिछले साल कोविड के प्रकोप, जिसकी वजह से लॉकडाउन के दौरान महीनों कारोबार ठप पड़ा रहना मजबूरी बन गया था, ने प्रमाणन और प्लेसमेंट को भी प्रभावित किया है.
गोरखपुर स्थित सुनैना समृद्धि फाउंडेशन, जिसे इस वर्ष 100 लोगों को कोविड वॉरियर कोर्स में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य मिला है, की प्रबंधक ने बताया कि इस केंद्र को 2020-21 के दौरान कोई लक्ष्य नहीं मिला था. उन्होंने कहा, ‘2019-20 में हमें पांच जॉब प्रोफाइल में 300 उम्मीदवारों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य मिला था. मार्च 2020 में कोविड लॉकडाउन की घोषणा से पहले प्रशिक्षण और मूल्यांकन पूरा हो गया था, लेकिन सब कुछ बंद हो जाने के कारण प्लेसमेंट नहीं हो पाया. अब तक उस वर्ष नामांकित लोगों में से केवल 60 प्रतिशत को ही नौकरियों पर रखा गया है.’
चित्रकूट स्थित केंद्र आइसेक्ट ने भी दिप्रिंट को बताया कि उसे 2020-21 के लिए कोई लक्ष्य नहीं मिला है, जबकि कोविड के कारण बाधाओं और लॉकडाउन के कारण 2019-20 बैच के केवल 70 फीसदी उम्मीदवारों को ही नौकरी मिल पाई है. इस साल केंद्र को 120 उम्मीदवारों (कोविड वॉरियर क्रैश कोर्स के तहत आईटी और हेल्थकेयर नौकरियों के लिए) को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य मिला है, लेकिन पिछले सात महीनों में केवल 60 को ही प्रशिक्षित किया जा पाया है. यही नहीं इन 60 के लिए भी केंद्र को एनएसडीसी से मूल्यांकन नतीजों और प्रमाणपत्र का इंतजार है.
केंद्र के प्रबंधक ने कहा, ‘जो कोर्स तीन महीने में हो जाना चाहिए वह दूसरी कोविड लहर और उसके कारण लगे लॉकडाउन की वजह से खिंच गया है. जबकि 60 उम्मीदवार अभी भी प्रशिक्षण का प्रतीक्षा कर रहे हैं, जबकि बाकी 60 को प्रमाणपत्र का इंतजार है.’
यूपी के अन्य केंद्रों ने भी ऐसी ही निराशाजनक तस्वीर पेश की. नाम न छापने की शर्त पर कुछ केंद्रों के प्रबंधकों ने दिप्रिंट को बताया कि उद्योगों पर कोविड के प्रभाव के कारण पिछले वर्षों में नौकरी पाने में कामयाब रहे कई छात्रों ने महामारी के दौरान इन्हें गंवा भी दिया.
वाराणसी स्थित पीएमकेवीवाई के एमआईएस (प्रबंधन सूचना प्रणाली) के प्रभारी प्रबंधक अभिषेक सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि योजना के तीसरे चरण में पीएमकेके के केवल वहीं केंद्र काम कर रहे हें जिन्हें कोविड वॉरियर क्रैश कोर्स के लिए लक्ष्य दिए गए हैं, जबकि अन्य बंद हैं. गोरखपुर में एमआईएस के प्रबंधक के.पी. सिंह ने भी यही जानकारी दी.
दिप्रिंट ने गोरखपुर, चित्रकूट और वाराणसी की यात्रा के दौरान कई ऐसे प्रधानमंत्री कौशल केंद्र देखे भी जो बंद हो चुके हैं और इसमें से कुछ के अधिकारियों से फोन के जरिये संपर्क किए जाने पर यही जवाब मिला.
एमएसडीई के एक सूत्र ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि यूपी में कई पीएमकेके इस समय बंद पड़े हैं, दिप्रिंट को बताया कि ‘मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने जिला प्रशासन से कहा है कि बंद केंद्रों को नए लक्ष्य न दें क्योंकि कुछ नई चीजें तय की जा रही हैं. यही कारण है कि कौशल केंद्रों का एक बड़ा हिस्सा इस समय निष्क्रिय पड़ा है.’
इस बीच, उत्कर्षा अग्रवाल का नाम प्रधानमंत्री कौशल केंद्र की वेबसाइट के डैशबोर्ड पर देशभर में इस योजना के तहत नामांकन कराने वाले लाखों लोगों में से एक के तौर पर नजर आना बदस्तूर जारी है.
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