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Friday, 1 November, 2024
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कौन हैं गैर-यादव OBCs और क्यों UP के राजनीतिक दल उन्हें चुनाव से पहले लुभाने मे लगे हैं

भाजपा अब अपनी 'भव्य हिंदू पहचान (ग्रांड हिंदू आइडेंटिटी)' के माध्यम से इन अन्य सारी ओबीसी जातियों को एकजुट करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है.

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लखनऊ: 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले इस राज्य के तमाम राजनीतिक दल अब गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी आबादी इस राज्य में लगभग 35 प्रतिशत है.

इस मामले में सत्तारूढ़ भाजपा को थोड़ी बढ़त हासिल हैं क्योंकि उसके सहयोगियों में कुर्मी-बहुल दल ‘अपना दल’ शामिल है, जिसके साथ उसने 2014 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले पहली बार गठबंधन किया था. इसने 2017 में ओपी राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और 2019 में निषाद पार्टी के साथ गठजोड़ करके अत्यंत पिछड़ी जातियों (एम. बी. सी) के बीच अपनी पहुंच को और विस्तृत कर लिया था. हालांकि, सुभासपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा के साथ अपना नाता तोड़ लिया.

हालांकि पिछले हफ्ते, ओपी राजभर ने एक बार फिर यूपी भाजपा प्रमुख स्वतंत्र देव से मुलाकात की थी, लेकिन वह इस बात पर अड़े हुए हैं कि वह बीजेपी के साथ दोबारा अपने रिश्ते नहीं बनाएंगे.

सुभासपा राजभर वोट पर निर्भर है, जबकि निषाद पार्टी का मुख्य वोट बैंक निषाद जाति है. इस दोनों समुदायों को इस राज्य में मोस्ट बैक्वर्ड कॅस्ट्स (एमबीसी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

भाजपा अब अपनी ‘भव्य हिंदू पहचान (ग्रांड हिंदू आइडेंटिटी)’ के माध्यम से इन अन्य सारी ओबीसी जातियों को एकजुट करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है.

बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘ओबीसी समुदाय का एक बड़ा वर्ग अभी भी हमारे साथ बना हुआ है. हमने न केवल उन्हें नेतृत्व दिया है बल्कि टिकट बंटवारे से लेकर यूपी कैबिनेट में भी उन्हें अच्छा प्रतिनिधित्व दिया है.‘

उन्होंने यह भी कहा कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ओबीसी पृष्ठभूमि से आते हैं. हमारी पार्टी के प्रति ओबीसी समुदाय के एकजुटता के साथ खड़े होने के पीछे यह सबसे बड़ा कारक है.’

उनका कहना है, ‘यूपी में, हमारे एक डिप्टी सीएम मौर्य हैं, और हमे प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव जी कुर्मी समुदाय से हैं. ये दोनों ओबीसी पृष्ठभूमि से हीं आते हैं. हम बखूबी जानते हैं कि यादवों का एक बड़ा वर्ग सपा को वोट देगा, और इसी कारण से हम गैर-यादव ओबीसी पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.’

उन्होंने आगे यह भी कहा कि वे इन सब जातियों को एकजुट करने के लिए हिंदुत्व पर भरोसा करेंगे. उन्होंने बताया, ‘हमें अपने कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें इसके बारे में जागरूक बनाए रखना होगा.’

इस बीच, समाजवादी पार्टी ने भी 9 अगस्त से अपने ओबीसी सम्मेलनों की शुरुआत कर दी है.


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सपा के एक पदाधिकारी का कहना है, ‘ये सम्मेलन पहले मध्य यूपी और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में आयोजित किए जाने हैं, और इसके बाद हम पूर्वांचल की ओर बढ़ेंगे.‘

उनका कहना हैं, ‘हमारा ध्यान कुर्मी, मौर्य, सैनी, साहू, कश्यप और ऐसे अन्य ओबीसी जातियों पर भी लगा है. हम महान दल के साथ गठबंधन करने जा रहे हैं, जिसका नेतृत्व एक मौर्य जाति के नेता करते हैं. हमारे ओबीसी चेयरमैन कश्यप जाति से हैं. ओम प्रकाश राजभर भी हमारी पार्टी से गठबंधन करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इस तरह कई ओबीसी जातियां हमारे पक्ष में लामबंद हो रही हैं.’

सपा के एक दूसरे पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवारों को आने वाले चुनावों में अधिक टिकट भी मिलेंगे.

कांग्रेस पार्टी अपनी ओर से पहले ही कई ओबीसी सम्मेलन आयोजित करवा चुकी है.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘हमने अब तक चार ओबीसी सम्मेलन आयोजित किए हैं. इन सम्मेलनों में, हमने सैनी, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, पाल, धनगर, गड़रिया, कुम्हार, निषाद और मल्लाह समुदायों को शामिल किया है.’

वे कहते हैं, ‘हमारा ध्यान विशेष रूप से उन ओबीसी समुदायों पर केंद्रित है जो भाजपा का समर्थन नहीं करते हैं. हमारे प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू भी ओबीसी समुदाय से हैं और इसलिए हमें पूरी उम्मीद है कि इस बार ओबीसी समुदाय का एक बड़ा वर्ग हमें ही वोट देगा.’

हालांकि बसपा ऊपरी तौर पर ऐसा कोई कदम नहीं उठा रही है, फिर भी पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कुछ ही महीने पहले भीम राजभर को बसपा का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था.


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गैर यादव ओबीसी कौन हैं?

उत्तर प्रदेश में यादव सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली ओबीसी समुदाय है. वे समूची यूपी की आबादी का 9-10 फीसदी और ओबीसी समुदाय की कुल संख्या का 20 फीसदी हिस्सा हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर कविराज के अनुसार, कुर्मी, मौर्य, कश्यप, निषाद, राजभर, बिंद, साहू और प्रजापति जैसी अन्य जातियां गैर-यादव ओबीसी वर्ग का आधार बनाती हैं.

वे बताते हैं, ‘सरल शब्दों में कहें तो यादवों के अलावा अन्य सभी ओबीसी जातियां गैर-यादव ओबीसी हैं. वे उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का कम-से-कम 35 प्रतिशत हैं.’

‘2011 की जनगणना में जाति के हिसाब से संख्याएं जारी नहीं की गई थीं, और इसलिए हमारे पास ओबीसी समुदाय से संबंधित कोई सटीक आंकड़ा नहीं है. मंडल आयोग की रिपोर्ट की मानें तो ओबीसी भारत की आबादी का 52 फीसदी है. यूपी में ओबीसी समुदाय की आबादी 40 से 50 फीसदी के बीच है.’

प्रोफेसर कविराज ने यह भी कहा कि यादवों के बाद कुर्मियों को दूसरी सबसे प्रभावशाली ओबीसी जाति माना जाता है, जिसके बाद राजभर का नंबर आता हैं.

उन्होने कहा कि, ‘यूपी की आबादी में कुर्मियों का हिस्सा 7-8 प्रतिशत है. वे पूर्वी यूपी में, ख़ासकर प्रतापगढ़, प्रयागराज, सोनभद्र और मिर्जापुर में, एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.’

‘इसी तरह, बरेली और पीलीभीत जिलों में गंगवारों का प्रभाव है. मध्य और पूर्वी यूपी में वर्मा, एटा और पश्चिमी यूपी के मैनपुरी बेल्ट में लोधों का दबदबा है. निषादों और मल्लाहों की मुख्य रूप से प्रयागराज, वाराणसी और जौनपुर में मौजूदगी है.‘

विधानसभा चुनाव में ओबीसी वोटों का महत्व

यूपी स्थित राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ के गिरी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत डॉ. शिल्प शिखा सिंह के अनुसार, गैर-यादव ओबीसी की आगामी यूपी चुनावों में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है.

वे कहती हैं, ‘उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर बीजेपी को एकमुश्त वोट दिया था. लेकिन इस बार अगर उनमें बिखराव आया तो यह भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका साबित होगा.

सिंह ने कहा कि यादवों का एक बड़ा वर्ग सपा के साथ है, जबकि कुर्मी और मौर्य भाजपा का हीं समर्थन करेंगे.

वे बताती हैं, ‘राजभर, निषाद, कश्यप, लोध और शाक्य जैसी जातियां भी कई विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अति महत्वपूर्ण हैं. पूर्वी यूपी में, वे – खासकर राजभर और निषाद – कई सीटों पर चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं.’

वे यह भी बताती हैं कि, ‘ऐसा लगता है कि इन जातियों ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि वे किसे अपना वोट देंगी. मेरा अपना मानना है कि इस बार यह अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों के हिसाब से निर्भर करेगा. सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दल उन्हें लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. ऐसा लगता है कि गैर-यादव ओबीसी जातियां हीं ‘किंग मेकर’ होंगी.’

2019 के लोकसभा चुनावों के बाद प्रकाशित द हिंदू सीएसडीएस-लोकनीति पोस्ट-पोल सर्वे के अनुसार, कुर्मी, कोइरी और ऐसी अन्य ओबीसी जातियां बीजेपी के पीछे खड़ी हो गयीं थीं. इस सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि कुर्मी और कोइरी के पांच मे से चार (80 प्रतिशत) और ओबीसी समुदाय के निचले तबके की जातियों के तीन-चौथाई (75 प्रतिशत) मतदाताओं ने भाजपा को ही वोट किया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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