मुम्बई: 24 सितंबर 2018 को टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) वाइनगांगा 1 ने, जिसे मुम्बई के पहले अंडरग्राउंड मेट्रो कॉरिडोर के निर्माण में लगाया गया था, परियोजना की पहली सफलता दर्ज की.
259 दिनों तक ये टीबीएम बेसाल्ट, ब्रेशिया और टफ के चट्टानी स्तर को खोदते हुए आगे बढ़ती रही. औसतन हर रोज़ क़रीब 4.6 मीटर की खुदाई करते हुए, ये 1.26 किलोमीटर के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही थी, जिसके छोर पर छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का प्रस्तावित टर्मिनल 2 होगा.
तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस सुरंग बनाने (भेदन) को देखने के लिए मौक़े पर पहुंचे, जिसे मुम्बई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (एमएमआरसी) ने तक़रीबन 250 इंजीनियरों तथा तकनीकी और मशीनी कामगारों की मेहनत का फल बताया, जिन्होंने साथ मिलकर ख़ून पसीना बहाने का काम किया था’.
इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है चूंकि क़रीब एक दशक पहले तक, जब ये कॉरिडोर योजना के स्तर पर ही था, बहुत से अधिकारियों और एक्सपर्ट्स ने मुम्बई जैसे भीड़-भाड़ भरे और जटिल शहर में, अंडरग्राउंड कॉरिडोर बनाने की संभावना को लेकर चिंताएं जताईं थीं, जिसकी ज़मीन की परतें नर्म समुद्री मिट्टी और सख़्त बेसाल्ट चट्टानों से बनी थीं. उनका कहना था कि इस काम में बहुत अधिक धन और समय ख़र्च होगा.
टर्मिनल 2 की पहले बनाए जाने के क़रीब 3 साल बाद और 16 टनल बोरिंग मशीनों ने मुम्बई के नीचे पूरी तरह भूमिगत कोलाबा-बांद्रा-सीप्ज़ मेट्रो के लिए लगभग 53 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का काम पूरा कर लिया है.
कुल मिलाकर सुरंग बनाने का 97 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है और सिर्फ तीन और भेदन बाक़ी रह गए हैं, जिन्हें एमएमआरसी के अधिकारी इस साल के अंत तक पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन ये सफर चुनौतियों से भरा रहा है, जिसमें समुद्र तट के क़रीब जर्जर इमारतों, मौजूदा उपनगरीय रेल कॉरिडोर, एलिवोटेड मेट्रो कॉरिडोर और मुम्बई की कुख्यात मीठी नदी के नीचे से खुदाई करनी पड़ी है.
एमएमआरसी के निदेशक (परियोजना) एसके गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘जिन लोगों को मुम्बई में मेट्रो कॉरिडोर के लिए सुरंग बनाने की संभावना पर संदेह था वो ग़लत नहीं थे. मुम्बई निश्चित ही दूसरे शहरों से अलग है. ये एक संकरी चौड़ाई तक सीमित है, इसकी आबादी बहुत घनी है, ये बेहद भीड़ भरा और पुराना है, और इसकी एक अनोखी ख़ासियत ये है कि इसमें रीक्लेमेशन करके सात द्वीपों को जोड़ दिया गया है. भारत के किसी दूसरे शहर में हमारे सामने इतनी सारी समस्याओं का मिश्रण नहीं होता’.
उन्होंने आगे कहा, ‘समुद्र की मौजूदगी भी हमें प्रभावित करती है, क्योंकि दरारों और परतों से होकर पानी आ सकता था, और बोरिंग का काम समुद्र से बहुत दूर नहीं था’.
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शो-पीस अंडरग्राउंड मेट्रो
दिप्रिंट से बात करते हुए एमएमआरसी के गुप्ता ने याद किया कि श्रीधरन ने, जिन्हें दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट को प्रभावी ढंग से चलाने और देशभर में दूसरी लाइनों पर सलाह देने के लिए, ‘मेट्रो मैन’ के नाम से पुकारा जाता है, एक बार कहा था कि मुम्बई की कोलाबा-बांद्रा-सीप्ज़ लाइन, ‘भारत में अब तक का सबसे कठिन प्रोजेक्ट है’.
33.5 किलोमीटर लंबी कोलाबा-बांद्रा-सीप्ज़ लाइन, जिसे मेट्रो 3 भी कहा जाता है, सबसे प्रमुख मानी जाती है क्योंकि ये दक्षिण मुम्बई के छोर को शहर के उत्तरी हिस्से तक जाएगी, जिससे बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स जैसे बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट्स जुड़ जाएंगे. मेट्रो लाइन छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तक का संपर्क भी मुहैया कराएगी.
हालांकि 23,136 करोड़ रुपए की मूल परियोजना लागत को, अधिकारिक रूप से संशोधित नहीं किया गया है लेकिन सरकारी सूत्रों का कहना है कि ये पहले ही क़रीब 40 प्रतिशत बढ़कर लगभग 32,000 करोड़ रुपए पहुंच चुकी है.
परियोजना का भविष्य अभी अधर में लटका हुआ है, क्योंकि उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) लाइन के कार डिपो को, पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशीन इसके मूल स्थान गोरेगांव आरे मिल्क कॉलोनी से हटाने पर अड़ी हुई है.
मेट्रो परियोजना के लिए कार डिपो स्थल, दो अलग हो चुके सहयोगियों- एमवीए सरकार की अगुवा ठाकरे की शिवसेना, और विपक्षी बीजेपी के बीच, जो केंद्र में सत्ता में है- के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है.
ठाकरे की अगुवाई में राज्य सरकार ने कार डिपो को कंजुरमार्ग के एक प्लॉट पर भेजने का फैसला किया था, लेकिन बीजेपी की केंद्र सरकार ने उस ज़मीन के मालिकाना हक़ का दावा करते हुए, उस क़दम पर रोक लगा दी. मामला पिछले साल दिसंबर से बॉम्बे हाईकोर्ट में लंबित है, और कार डिपो को किसी और जगह ले जाने के लिए एमवीए सरकार ज़मीन के लिए दूसरे विकल्प तलाश रही है.
इस बीच, विशुद्ध इंजीनियरिंग के मामले में, बड़ी बड़ी चुनौतियों पर क़ाबू पाते हुए परियोजना अब उस मुक़ाम पर पहुंच गई है, जहां सात कॉन्ट्रेक्ट पैकेजेज़ में से छह में, सुरंग बनाने का काम 100 प्रतिशत पूरा हो चुका है. गुप्ता ने कहा कि जो हिस्सा बचा है वो महालक्षमी और मुम्बई सेंट्रल के बीच में है, वो भी साल के अंत तक पूरा हो जाने की उम्मीद है, बशर्ते कि कि कोविड-19 महामारी की वजह से देरी न हो जाए.
एमएमआरसी के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट से कहा, ‘कुल मिलाकर 79 प्रतिशत सिविल कार्य और 68 प्रतिशत स्टेशन कार्य पूरा किया जा चुका है. फिलहाल ट्रैक डालने का कार्य प्रगति पर है’.
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि कार डिपो की जगह पर उठ रहे सवाल से, परियोजना पर असर नहीं पड़ेगा.
अधिकारी ने कहा, ‘मेट्रो परियोजना अभी सिविल वर्क की स्टेज पर ही है. स्टेशंस, सिस्टम्स, टेस्टिंग और रोलिंग स्टॉक की कमीशनिंग का काम पूरा करने में अभी समय लगेगा और तब तक हम एक वैकल्पिक कार डिपो तैयार कर लेंगे. कार डिपो के मामले में हम जल्द ही एक अंतिम निर्णय ले लेंगे’.
पुरानी इमारतों, रेल लाइनों और जल निकायों के नीचे सुरंग खोदना
मुम्बई की पहली भूमिगत मेट्रो के लिए सुरंग खोदने का काम 2017 में शुरू हुआ, जब एमएमआरसी ने अपनी पहली टनल बोरिंग मशीन लॉन्च की. एक साथ सुरंगें खोदने के काम में 17 टीबीएम्स, क़रीब 100 श्रमिक और 15 इंजीनियर लगाए गए, जो हर मशीन पर दो शिफ्टों में काम करते थे.
गुप्ता ने कहा, ‘कुछ हिस्से बहुत ही कठिन थे. कभी जियॉलजी हमारे जी का जंजाल बन जाती थी, तो कभी ज़मीन के ऊपर बना संवेदनशील ढांचा’.
मसलन, उन्होंने आगे कहा कि दक्षिण मुम्बई के कालबादेवी, गीरगांव, ग्रांट रोड इलाकों में भूतत्व बहुत कठिन थे, और ऊपर ज़मीन पर बने ढांचे भी बहुत पुराने और अस्थिर थे.
वर्ली की जियॉलजी ऐसी थी कि टीबीएम्स लगातार चोक होती रहती थीं, और उन्हें बार बार साफ करना पड़ता था. वर्सोवा-अंधेरी-घाटकोपर कॉरिडोर पर चालू मेट्रो के नीचे, एमएमआरसी को ऐसी सीध रखनी पड़ी कि भूमिगत मेट्रो टनल मौजूदा मेट्रो लाइन की नींवों के बीच से निकल जाए.
मीठी नदी के नीचे सुरंग खोदना एक और चुनौती थी. गुप्ता ने कहा, ‘नदी के नीचे की जियॉलजी हमारे लिए बहुत अनुकूल नहीं थी. हमारे ऊपर पानी बह रहा था, इसलिए पानी के अंदर घुस आने का जोखिम बहुत बड़ा था. ऐसा हुआ नहीं लेकिन हमें ऐसी तमाम संभावनाओं को ध्यान में रखना था’.
जल निकायों के बिल्कुल नीचे की जियॉलजी में कीचड़ और बेसाल्ट चट्टानें थीं. वहां जल निकाय के नीचे सुरंग खोदने और पानी के प्रवेश को रोकने के लिए, एमएमआरसी ने एक विशेष ‘अर्थ प्रेशर बैलेंस’ टीबीएम गोदावरी से काम लिया.
गुप्ता ने कहा, ‘हमने गैस्केट का डिज़ाइन बदलवाया क्योंकि संभावना थी कि पानी हमारे काम को बाधित कर सकता था. हमने हर संभावना से निपटने के लिए इंतज़ाम किया हुआ था. हम मीठी नदी के नीचे अटकना सहन नहीं कर सकते थे’.
गैस्केट्स का इस्तेमाल जलरोधी सुरंग खोदने में, अलग-अलग पूर्व-निर्मित सेगमेंट्स बनाने के लिए किया जाता है.
सात स्टेशनों के लिए एमएमआरसी को सुरंग बनाने के नए ऑस्ट्रियन तरीक़े का सहारा लेना पड़ा, जो आमतौर से ऐसी जगहों पर उपयोगी रहता है, जहां टनल बोरिंग मशीन को उतारने या दूसरे छोर पर बाहर निकलने के लिए ज़्यादा जगह नहीं होती.
मुम्बई के नीचे सुरंग बनाने की चुनौती को कोविड-19 महामारी ने एक और आयाम दे दिया. गुप्ता ने कहा कि काम के सीमित जगहों पर या भूमिगत होने की वजह से, बहुत से मौक़ों पर सुरंग खोदने का काम रोकना पड़ा, क्योंकि यदि एक श्रमिक का टेस्ट भी पॉज़िटिव निकल आता, तो पूरी टीम को क्वारंटीन करना पड़ता.
इसी महीने, एमएमआरसी टीम ने प्रस्तावित महालक्षमी मेट्रो स्टेशन पर अपना 39वां भेदन किया.
गुप्ता ने कहा, ‘बस ऐसे तीन और भेदन के साथ ही, मुम्बई के नीचे सुरंग बनाने का हमारा काम 100 प्रतिशत पूरा हो जाएगा’.
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