इंफाल: ओलंपियन मीराबाई चानू के माता-पिता को शनिवार देर रात तक अपनी बेटी को 2020 टोक्यो ओलंपिक में उसकी जीत पर बधाई देने तक का मौका नहीं मिल पाया. चानू ने भारोत्तोलन में रजत पदक हासिल किया है.
उनका घर शनिवार से ही शुभचिंतकों, परिजनों और मीडिया से खचाखच भरा हुआ है.
पूर्वी इंफाल जिले की तलहटी में बसे अपने छोटे से गांव नोंगपोक काकचिंग स्थित नवनिर्मित घर में बैठी चानू की मां सैखोम ओंगबी तॉम्बी लीमा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने उसे महीनों से नहीं देखा है. जब मुझे आज रात उनसे बात करने का मौका मिलेगा तो मैं बस उसे यह बताना चाहती हूं कि उसने हमें और हमारे देश को कितना गौरवान्वित किया है.’
टोक्यो से हजारों किलोमीटर दूर चानू का परिवार अपने घर पर दावत देकर उसकी जीत का जश्न मनाएगा. यहां चानू अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ रहती है.
26 वर्षीय चानू की तीन बहनें और दो भाई हैं.
चानू ने इस ओलंपिक सत्र में 49 किलोग्राम महिला भारोत्तोलन वर्ग में दूसरा स्थान हासिल कर भारत को पहला पदक दिलाया है. उन्होंने कुल 202 किलोग्राम वजन उठाया. यह भारोत्तोलन में भारत का पहला रजत ओलंपिक पदक भी है. वह 2000 में सिडनी ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली कर्णम मल्लेश्वरी के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाली दूसरी भारतीय भारोत्तोलक हैं.
लीमा ने कहा, ‘उसे जीत को लेकर कोई संदेह नहीं था. उसने कहा था कि वह सोने के साथ वापस आएगी लेकिन उसने चांदी हासिल करके भी हमें गौरवान्वित किया है.’
चानू ने एक बयान में इस उपलब्धि को ‘सपना सच होने’ जैसा बताया है.
उन्होंने लिखा, ‘यह वास्तव में मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा है. मैं इस पदक को अपने देश को समर्पित करना चाहती हूं और इस सफर में मेरे साथ रहने वाली सभी भारतीयों की अरबों दुआओं के लिए भी धन्यवाद देना चाहती हूं. मैं अपने परिवार खासकर अपनी मां को धन्यवाद देना चाहती हूं जिन्होंने इसके लिए बहुत सारे बलिदान दिए और मुझ पर भरोसा जताया.’
I am really happy on winning silver medal in #Tokyo2020 for my country ?? pic.twitter.com/gPtdhpA28z
— Saikhom Mirabai Chanu (@mirabai_chanu) July 24, 2021
‘हमें बहुत ज्यादा गर्व है’
टोक्यो में चानू को यह उपलब्धि 2016 के रियो ओलंपिक में असफल होने के बाद हासिल हुई है. इस बार वह स्नैच में 87 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 115 किलोग्राम उठाने में सफल रही, जिससे यह कुल 202 किलोग्राम हो गया.
सोना चीन की होउ झिहुई ने जीता, जिन्होंने कुल 210 किलोग्राम भार उठाया, जबकि इंडोनेशिया की आइशा विंडी कैंटिका ने कुल 194 किलोग्राम भार उठाकर कांस्य पदक जीता.
चानू के पिता ने कहा, ‘सभी की उम्मीदें उसके (चानू) कंधों पर टिकी थीं. हालांकि, वह सोना नहीं जीत सकी जो वह चाहती थी, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.’
चानू के घर का एक कमरा उनके जीते सभी पुरस्कारों और पदकों से भरा पड़ा है, उनमें 2018 में ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रमंडल खेलों में जीता गया स्वर्ण पदक भी शामिल है.
मेइती ने आगे कहा, ‘मणिपुर की इतनी छोटी-सी जगह से निकलकर उसने हमारे राज्य और देश का प्रतिनिधित्व किया है. हमें उस पर बहुत ज्यादा गर्व है. चाहे कुछ भी हो, मैं हमेशा उसके साथ हूं और उसे प्रोत्साहित करूंगा.’
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‘खेल में अपनी जगह बनाने के लिए उसने कड़ी मेहनत की’
चानू एक ऐसे परिवार से आती हैं, जिसकी खेलों में कोई पृष्ठभूमि नहीं रही है. उनके पिता लोक निर्माण विभाग में कांट्रैक्ट पर काम करने वाले एक सरकारी कर्मचारी थे, जबकि उनकी मां सड़कों पर समोसे बेचती थीं.
चार बहनों और दो भाइयों के बीच केवल चानू ने ही खेलों को पेशेवर के तौर पर अपनाया है.
चानू के भाई बिनोद कुमार मेइती ने कहा, ‘जब हम बड़े हो रहे थे, तब उसे हमेशा खेलों में और इसी क्षेत्र में आगे बढ़ाने में रुचि थी. शुरू में उसे समझ नहीं आया कि वह कौन-सा खेल खेलना चाहती है, और अंततः भारोत्तोलन में आ गई.’
उसकी मां ने बताया, चानू तीरंदाजी करना चाहती थी लेकिन अंततः ऐसा नहीं कर सकी क्योंकि इस खेल के लिए उसकी पर्याप्त लंबाई नहीं थी.
उसकी मां ने कहा, ‘बचपन में भी वह खेल और पढ़ाई दोनों के लिए काफी प्रतिबद्ध थी. उसने मुझे कक्षा छह या सात में बताया कि वह खुमान लम्पक स्टेडियम में खेलना चाहती है और उस समय मुझे यह भी नहीं पता था कि यह क्या है और यह कहां है. उसने खेलों में अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है.’
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