नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में दाखिल दस्तावेज़ों के अनुसार मणिपुर पुलिस ने अभी तक उन पांच में से चार मामलों में जांच पूरी करके आरोप पत्र दायर नहीं किए हैं, जिनके आधार पर राजनीतिक कार्यकर्ता लीचोम्बम एरेंड्रो के खिलाफ कड़ा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया था.
शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के बाद सोमवार को राजनीतिक कार्यकर्ता लीचोम्बम एरेंड्रो को रिहा करने के बाद मणिपुर सरकार ने उनके खिलाफ लगाया गया एनएसए आदेश वापस ले लिया.
एरेंड्रो को 13 मई को एक फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था, जिसमें कहा गया था ‘गाय के गोबर या गौमूत्र से कोविड का इलाज नहीं होगा’. ये उनके खिलाफ पांचवां और सबसे हालिया केस था, जिसके बाद उन पर एनएसए लगा दिया गया था.
लेकिन अन्य चार मामलों में- पहला 2018 में दर्ज हुआ, दूसरा 2019 में हुआ, तीसरा 2020 में और चौथा इस साल फरवरी में हुआ- अभी भी जांच चल रही है, इसलिए अब तक चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकी है. ये खुलासा एरेंड्रो के पिता की ओर से दायर याचिका के साथ संलग्न दस्तावेज़ों से हुआ है.
याचिका में गुज़ारिश की गई थी कि एनएसए डिटेंशन आदेश को निरस्त किया जाए और एरेंड्रो को कथित रूप से ‘अवैध हिरासत’ में रखने के एवज़ में मुआवज़ा दिया जाए.
दस्तावेज़ों से ये भी पता चला कि एनएसए के अंतर्गत डिटेंशन आदेश का ऑपरेटिव भाग, जिसे इंफाल के ज़िला मजिस्ट्रेट ने जारी किया था, एक खारिज हो चुके पुलिस रिमांड आवेदन की हू-ब-हू नकल था, जिसे पांचवें केस में एरेंड्रो की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए इंफाल की एक निचली अदालत में दायर किया गया था.
निचली अदालत ने 17 मई को एरेंड्रो को न्यायिक हिरासत में भेजने की पुलिस याचिका को खारिज कर दिया था और उनकी रिहाई का आदेश दे दिया था. लेकिन चार अन्य मामलों में जमानत पर होने के बावजूद एरेंड्रो को जेल में ही रहना पड़ा क्योंकि 17 मई को ही उनके खिलाफ एनएसए आदेश जारी कर दिया गया था.
कार्यकर्ता को आखिरकार सोमवार को रिहा किया गया.
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सुप्रीम कोर्ट को कैसे ये मामला ‘बहुत गंभीर’ लगा
उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने विचार व्यक्त किया कि एरेंड्रो की निरंतर हिरासत उनके जीने और निजी आज़ादी के अधिकार का उल्लंघन होगी और राज्य को उन्हें रिहा करने के लिए शाम 5 बजे तक का समय दिया.
मणिपुर सरकार ने उसी शाम एरेंड्रो पर लगाया गया एनएसए आदेश वापस ले लिया.
अगले दिन आदेश वापस लिए जाने के बारे में कोर्ट को सूचित करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच से विनती की कि ‘मामले को खत्म कर दिया जाए’. उन्हें कहा कि राज्य ने एरेंड्रो की रिहाई का विरोध नहीं किया था और अदालत के आदेश का तुरंत पालन किया था.
लेकिन बेंच ने एरेंड्रो के इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया कि उनकी मुआवज़ा याचिका के मामले में राज्य को नोटिस जारी किया जाए. उनके वकील शादान फरासत ने उन ‘उथले आधारों’ की ओर इशारा किया, जिनपर डिटेंशन आदेश जारी किया गया था.
बेंच को भी लगा कि ‘मामला गंभीर’ है जिसकी आगे सुनवाई की ज़रूरत है क्योंकि ‘मई से किसी की आज़ादी का हनन हुआ है’. कोर्ट ने राज्य को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो दिन का समय दिया.
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राज्य की सुरक्षा से कोई संबंध नहीं
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून केंद्र या राज्य को अधिकार देता है कि अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा महसूस होता है, तो रोकथाम उपायों के तौर पर उसे हिरासत में लिया जा सकता है. सरकार ऐसे व्यक्ति को सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने या समुदाय के लिए आवश्यक आपूर्तियों तथा सेवाओं को बनाए रखने के लिए भी हिरासत में ले सकती है.
हिरासत की अधिकतम अवधि 12 महीने है लेकिन अगर सरकार को कुछ ताज़ा सबूत मिल जाएं तो इस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में एरेंड्रो के पिता ने दावा किया कि उसकी हिरासत के आक्षेपित आधार बिल्कुल भी प्रासंगिक नहीं हैं क्योंकि कथित गतिविधियों की नेचर ऐसी थी कि उनका ‘राज्य की सुरक्षा’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ से कोई नाता नहीं था.
इसके अलावा याचिका में कहा गया कि हिरासत में लेने वाले अधिकारी ने आदेश जारी करने के पीछे कोई स्वतंत्र या अतिरिक्त तर्क नहीं दिया बल्कि हिरासत को न्यायोचित ठहराने के लिए सिर्फ पुलिस के रिमांड आवेदन से एक पैरा नकल कर दिया.
दिप्रिंट से बात करने वाले कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि एनएसए तभी लगाया जा सकता है, जब किसी व्यक्ति ने ऐसी कई हरकतें अंजाम दी हों, जिनका ‘सार्वजनिक कानून-व्यवस्था’ पर सीधा असर पड़ता हो.
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कार्यकर्ता के खिलाफ मामले
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पोस्ट-ग्रेजुएट करने वाले एरेंड्रो पर पहला केस 2018 में कथित रूप से एक वीडियो अपलोड करने के आरोप में दायर किया गया था, जिसमें ‘कुछ बिहारी युवक मणिपुरियों’ को धमका रहे थे’.
दूसरा केस 27 सितंबर 2019 को दायर किया गया, जब एरेंड्रो एक वीडियो में सरकार का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री, मणिपुर के मुख्यमंत्री और मणिपुर यूनिवर्सिटी के कुछ अधिकारियों के पोस्टरों पर अंडे फेंकते दिख रहे थे.
एक और फेसबुक पोस्ट ने उनके लिए मुसीबत खड़ी कर दी, जब पुलिस ने 20 जुलाई 2020 को उनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप लगा दिए. इस ‘अपमानजनक पोस्ट’ में एरेंड्रो ने एक फोटोग्राफ के नीचे ‘गुलाम’ लिख दिया था, जिसमें राज्य सभा सांसद और उत्तरा सांगलेन के नाम के राजा सनाजाओबा लेशेम्बा को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से हाथ मिलाते देखा गया था.
ये एफआईआर उत्तरा सांगलेन के महासचिव की पुलिस में की गई शिकायत के बाद दर्ज की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि एरेंड्रो की पोस्ट का मकसद, नफरत फैलाना और सांसद के खिलाफ दंगे भड़काना था.
चौथे मामले में, एरेंड्रो पर कथित रूप से शिकायतकर्ता की संपत्ति हड़पने का मुकदमा दर्ज किया गया था. एफआईआर के अनुसार, एरेंड्रो को इंफाल में कौशल विकास के लिए एक ट्रेनिंग सेंटर खोलने के लिए अनुदान मिला था. लेकिन महामारी की वजह से उन्होंने सेंटर को बंद कर दिया और साथ ही उस उपकरण को लौटाने से मना कर दिया, जो उन्होंने शिकायतकर्त्ता द्वारा उपलब्ध कराई गई अनुदान राशि से ख़रीदा था. शिकायतकर्ता एक स्वैच्छिक संस्था थी जो कौशल विकास के क्षेत्र में काम कर रही थी.
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