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Friday, 22 November, 2024
होमडिफेंसबेफिक्र घूमना, नई सड़कें, गांवों में बिजली—सीजफायर ने कैसे LoC से लगे इलाकों में जिंदगी बदल दी

बेफिक्र घूमना, नई सड़कें, गांवों में बिजली—सीजफायर ने कैसे LoC से लगे इलाकों में जिंदगी बदल दी

एलओसी पर मौजूदा संघर्ष विराम इस साल 25 फरवरी को शुरू हुआ था और इससे सीमा के नजदीक रहने वाले ग्रामीणों और वहां तैनात सुरक्षा कर्मियों को काफी राहत मिली है.

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पुंछ/भीम्बर गली (जम्मू-कश्मीर): जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारत और पाकिस्तान के बीच इस साल 25 फरवरी से जारी संघर्ष विराम ने नागरिकों और सैनिकों दोनों के लिए जीवन आसान बना दिया है.

एलओसी पर रहने वाले नागरिकों के लिए बंदूकों के शांत होने का मतलब होता है वे भी देश के अन्य हिस्सों में रहने वालों की तरह एक सामान्य, आम जीवन जी सकते हैं—किसी बुलेट या मोर्टार की चपेट में आने की फ्रिक किए बिना नई बनी सड़कों पर आराम से टहलना, खुले आसमान के नीचे सोना आदि. बच्चे भी बिना किसी रुकावट के स्कूल जा सकते हैं.

सेना को, भारत और पाकिस्तान दोनों में, शांति की यह अवधि युद्धविराम का उल्लंघन होने से पहले स्टॉक करने, फिर संगठित होने और किलेबंदी करने का मौका दे रही है.

यह अधिकारियों के लिए भी उन क्षेत्रों में पैदल या वाहन से जाने का समय है जहां वे इसलिए नहीं जा पाते थे क्योंकि फायरिंग की चपेट में आ सकते थे.

यह शांति काल नागरिक प्रशासन को तेजी से सामुदायिक बंकर बनाने, घर-घर जाकर कोविड टीकाकरण अभियान चलाने और बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने का मौका भी दे रहा है.

हालांकि, संघर्ष विराम के बावजूद सैनिक चौबीसों घंटे सतर्क रहते हैं और गश्त, घुसपैठ विरोधी रणनीति, घात लगाकर होने वाले हमलों से निपटने की तैयारी आदि में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर के भीम्बर गली और पुंछ सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास अग्रिम मोर्चे पर बसे गांवों और सेना की चौकियों तक पहुंचे दिप्रिंट ने ताजा हालात का जायजा लेने के लिए ग्रामीणों और सैनिकों के साथ बातचीत की.


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ग्रामीणों को शांति जारी रहने की उम्मीद

एलओसी पर स्थित एक गांव के सरपंच मोहम्मद आरिफ खान ने दिप्रिंट को बताया, ‘शांति हमारे लिए एक वरदान है. कुछ महीने पहले, हम यहां खड़े होकर बात नहीं कर सकते थे.’

धाराती गांव में एक स्कूल के बगल में खड़े होकर बात कर रहे खान ने कहा कि पाकिस्तान अक्सर नागरिकों को निशाना बनाता है और मोर्टार से दागे गोले उसी क्षेत्र में आकर गिर चुके हैं जहां वह खड़ा था. उन्होंने कहा, ‘मैं बस यही उम्मीद करता हूं यह शांति बनी रहे. मैं उनका शुक्रगुजार हूं कि जिन्होंने भी ऐसा संभव बनाया.’

एलओसी से सटे कांगा गांव के रहने वाले यूनुस संघर्षविराम के दौरान नई सड़कें बनने पर आभार जताया, जिससे ग्रामीणों का जीवन आसान हो गया है.

उन्होंने कहा, ‘अगर बंदूकें शांत नहीं होतीं तो सड़क निर्माण नहीं हो सकता था. उन्होंने पहले एक जेसीबी (अर्थमूवर मशीन) को निशाना बनाया था, जिसकी वजह से एक युवा लड़के को अपना पैर गंवाना पड़ा था. शुक्र है कि सेना ने उसे एक कृत्रिम पैर मुहैया कराया है.’

अतीत में पाकिस्तान की तरफ से संघर्ष विराम उल्लंघन का खामियाजा भुगतने वाले गांवों में से एक के 11 वर्षीय लड़के साजिद ने कहा कि वह अब खुले में खेल सकता है और ‘बम’ गिरने शुरू होने की स्थिति में सुरक्षित जगह पर भागना नहीं पड़ता.

वहीं दूसरे गांव की एक लड़की, जो बड़ी होकर ‘अधिकारी’ बनना चाहती है, ने कहा कि स्कूल जाना एक बड़ी समस्या होता था क्योंकि पाकिस्तान स्कूलों को भी निशाना बनाता रहा है. उसने बताया, ‘हमारी कक्षा के ठीक बगल में एक बंकर है. जब भी पाकिस्तान की तरफ से गोलीबारी होती थी, हमें भागकर वहां पहुंचना पड़ता था.’

स्कूलों में कोविड-19 दिशा-निर्देशों के मद्देनजर सावधानियां बरतते हुए कक्षाओं का आयोजन किया जा रहा है.

कोसलियां गांव के निवासियों के लिए नो फायरिंग का मतलब होता है कि वो भी हर किसी की तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं.

शौर्य चक्र से सम्मानित और गांव के सरपंच मानद कैप्टन मोहम्मद सादिक (सेवानिवृत्त) ने कहा, ‘पहले, हमें लगातार डर सताता रहता था. किसी को नहीं पता होता था कि कब कोई गोला हमारे पास आकर गिरे या हमारे वाहनों को निशाना बना दे. अब हम भी आपकी ही तरह शांति से रह सकते हैं.’

उनके गांव के ज्यादातर लोग मजदूर हैं, और अक्सर सेना की तरफ से उन्हें कुली के रूप में नियुक्त किया जाता है.

जनवरी 2020 में पाकिस्तानी सेना एलओसी को पार करके भारतीय हिस्से आ गई थी और 10 कुलियों के एक समूह पर घात लगाकर हमला किया था, जो सेना की चौकी पर राशन पहुंचाने जा रहे थे.

उन्होंने बताया, ‘उन्होंने एक का सिर काट दिया और दूसरे को (पैर में) गोली मारकर सामान अपने साथ ले गए. बाद में लड़के का पैर काटना पड़ा था. संघर्ष विराम के साथ अब ऐसा लगने लगा है कि हमारे साथ कोई बर्बरता नहीं होगी.’

उन्होंने कहा कि ऐसे दिन होते थे जब पाकिस्तानी सेना ने सैकड़ों मोर्टार के गोले दागे, जिनमें से कई गांवों को निशाना बनाकर दागे जाते थे.

दातोत गांव के निवासियों के लिए संघर्ष विराम का मतलब है कि बिजली विभाग गांव में बिजली बहाल करने के लिए तार, ट्रांसफार्मर और अन्य जरूरी उपकरण ला सकता है.

एक अन्य गांव के सरपंच मोहम्मद गुलशन खान ने दातोत के बारे में कहा, ‘संघर्षविराम उल्लंघन के कारण आपूर्ति व्यवस्था क्षतिग्रस्त होने के कारण गांव में कई सालों से बिजली नहीं है. हालांकि, नए ट्रांसफॉर्मर या अन्य उपकरण इसलिए नहीं आ सके क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से वाहनों को निशाना बनाया जाएगा.’


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जवानों को भी मिली थोड़ी राहत

एलओसी पर तैनात जवानों के लिए संघर्ष विराम का मतलब है कि वे भी थोड़ी राहत की सांस ले सकते हैं. हालांकि, वह अपनी मुस्तैदी से पीछे नहीं हट सकते हैं और घुसपैठ विरोधी रणनीति और निगरानी व्यवस्था पहले की तरह ही है.

वहां तैनात एक सूत्र ने कहा, ‘हमारे लिए एकमात्र अंतर यह है कि कोई गोलीबारी नहीं होती. बाकी सब हम पहले की तरह ही करना जारी रखते हैं इसलिए हम निरंतर निगरानी जारी रखते हैं और अन्य कदमों के अलावा घुसपैठ रोधी रणनीति के तहत पूरी तरह तैयार रहते हैं.’

यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तानी सेना इस संघर्ष विराम अवधि का कैसे उपयोग कर रही है, सूत्र ने बताया कि उन्हें भारतीय सेना की कार्रवाई में क्षतिग्रस्त और ध्वस्त अपने बंकरों को मजबूत करते देखा गया है.

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत अपनी स्थिति मजबूत करने या स्टॉक बढ़ाने में नहीं जुटा है, अधिकारी ने कहा कि दोनों सेनाएं ऐसा कर रही हैं.

वही, भारतीय सैनिक अपने क्षेत्र के भीतर आने वाले इलाकों का दौरा कर रहे हैं, जो वे पहले स्नाइपर हमलों के कारण नहीं कर पाते थे. पाकिस्तानी भी ऐसा ही कर रहे हैं.

एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘अंतर केवल इतना है कि अब हम पहले की तुलना में कई पाकिस्तानी सैनिकों को वर्दी में देखते हैं, क्योंकि वे पहले आम नागरिकों जैसी पोशाक पहनकर घूमते थे.’

यह पूछे जाने पर कि संघर्ष विराम कब तक जारी रहने की उम्मीद है, एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘पिछली बार 2018 में जब भारत और पाकिस्तान ने संघर्षविराम का प्रयास किया था तो वह यह चार महीने तक चला था. हम अपनी ओर से सुनिश्चित कर रहे हैं कि संघर्ष विराम का उल्लंघन न हो. उल्लंघन पहले पाकिस्तान की तरफ से ही होगा.’

एलओसी पर छोटी-बड़ी सभी चौकियों को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि अंदर मौजूद सैनिकों को कम से कम नुकसान पहुंचे.

एलओसी पर सबसे बड़ा खतरा स्प्लिंटर्स और स्निपिंग से होता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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