नई दिल्ली: नए हथियार खरीदने के अलावा सेना खामोशी के साथ चीन और पाकिस्तान दोनों के खिलाफ ‘स्थान परिवर्तन’ की क्षमताओं में भारी बदलाव लाने के लिए ताज़ा तरीन असॉल्ट ब्रिजिंग सिस्टम पर काम कर रही है. ये ब्रिजिंग सिस्टम देश में ही बनाए जा रहे हैं.
सेना की कोर ऑफ इंजीनियर्स, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और निजी कंपनी लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) एक साझा प्रयास में इस कार्य की अगुवाई कर रहे हैं.
शुक्रवार को सेना में पहले 12 शॉर्ट स्पैन ब्रिजिंग सिस्टम्स शामिल किए गए, जिन्हें कॉम्बैट इंजीनियर्स पाकिस्तान के साथ लगी पश्चिमी सीमाओं पर स्थापित करेंगे. डीआरडीओ चीफ डॉ जी सुरेश रेड्डी के अनुसार, अगस्त तक एलएंडटी ऐसे 30 और पुल सेना को सौंप देगी.
ऐसे कुल 110 सिस्टम्स के लिए 492 करोड़ रुपए के समझौते पर पिछले साल हस्ताक्षर किए गए थे और इनकी डिलीवरी 2023 तक पूरी होनी है.
इस सिस्टम में 9.5 मीटर तक के फासले पाटने के लिए एक अकेला स्पैन (दोनों ओर से सपोर्ट किया हुआ स्लैब) इस्तेमाल किया जाएगा, जो चार मीटर चौड़ा होता है और जल निकायों तथा नहरों आदि पर एक पूरी सड़क का काम करता है ताकि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई में टैंक, बख़्तरबंद वाहन और सैनिक उन्हें आसानी से पार कर पाएं.
दिल्ली कैंटोनमेंट में ब्रिजिंग सिस्टम को शामिल किए जाने के आयोजन में बोलते हुए सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कहा, ‘इनके शामिल होने से भारतीय सेना की क्षमताएं बढ़ेंगी. हमारे पास 5 मीटर और 15 मीटर के स्पैन ब्रिज थे लेकिन 10 मीटर के पुल की हमेशा ज़रूरत पड़ती थी. ये उस अंतराल को भरेगा और पश्चिमी मोर्चे पर मिकेनाइज़्ड फॉरमेशन की क्षमताओं और उसकी संचालन की गति को बढ़ाएगा’.
ये ब्रिजिंग सिस्टम्स उस सर्वत्र ब्रिजिंग सिस्टम के साथ भी मेल खाते हैं, जो 75 मीटर लंबा होता है और जहां आखिरी स्पैन को 9.5 मीटर से कम के गैप को कवर करना होता है.
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पुलों के ज़रिए अर्जुन टैंक नहरों और जल निकायों को पार कर सकते हैं
70 टन तक वजन सहने में सक्षम 10 मीटर के शॉर्ट स्पैन ब्रिजिंग सिस्टम्स उन मौजूदा 50 असॉल्ट ब्रिज की जगह ले रहे हैं, जो चेक रिपब्लिक से आयात किए गए थे और सिर्फ 50 टन वजन झेल सकते थे.
इसके नतीजे में नए सिस्टम्स का मतलब है कि 68 टन का अर्जुन मुख्य युद्धक टैंक भी आसानी के साथ पुल को पार करते हुए सीमा के उस पार कार्रवाई कर सकता है.
सूत्रों के अनुसार, कोविड महामारी और उससे जुड़े लॉकडाउन के बावजूद कंपनी ने समझौते की समय सीमा से पहले ही इन्हें सेना को सौंप दिया है.
उन्होंने ये भी कहा कि 10 मीटर के शॉर्ट स्पैन ब्रिजिंग सिस्टम को चार कर्मियों और एक ड्राइवर की टीम महज 10 मिनट के अंदर स्थापित कर सकती है. ये मौजूदा ब्रिजिंग सिस्टम्स के भी अनुरूप है जिससे सभी तरह के जल निकायों को पार करने का लचीलापन भी बढ़ जाता है.
इन्हें शामिल किए जाने के साथ ही सेना के पास अब 5 मीटर, 10 मीटर और 15 मीटर के गैप्स के लिए शॉर्ट स्पैन ब्रिजिंग सिस्टम्स उपलब्ध हो गए हैं. 5 और और 15 मीटर के ब्रिजिंग सिस्टम्स 2017 में सेना में शामिल किए गए थे और दोनों एलएंडटी द्वारा ही बनाए गए थे.
सूत्रों ने बताया कि एलएंडटी ने नए सिस्टम्स को कंपोज़िट्स के साथ तैयार किया है जिससे वो वजन में पहले से बहुत हल्के हो गए हैं.
एक सूत्र ने कहा, ‘एलएंडटी ने एक ऐसा ब्रिजिंग सिस्टम भी तैयार किया है जो कंपोज़िट्स से बना है जो वजन में हल्का लेकिन उतना ही मजबूत है. इससे उन्हें तेज़ी से तैनात करने में सहायता मिलती है’.
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पहाड़ों के लिए नए पैदल पुल
सेना के इंजीनियर-इन-चीफ ले. जनरल हरपाल सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘सेना ब्रिजिंग क्षमताओं को बढ़ाने पर फोकस करती आ रही है. हमारा जोर धातु विज्ञान पर रहा है ताकि सिस्टम हल्का और संचालित करने में आसान बन सके’.
इन असॉल्ट ब्रिजिंग सिस्टम्स के अलावा, सेना पहाड़ी इलाकों के लिए नए और हल्के पैदल पुलों के निर्माण पर भी काम कर रही है.
सिंह ने कहा कि पहाड़ी इलाकों के लिए नई तरह के इन पैदल पुलों के ट्रायल्स पूरे कर लिए गए हैं और उन्हें हासिल करने की प्रक्रिया जल्द ही पूरी कर ली जाएगी.
इन पैदल पुलों को भी डीआरडीओ ने तैयार किया है और ये उन भारी पुलों की जगह लेंगे जिनका इस्तेमाल सेना फिलहाल पहाड़ी क्षेत्रों में करती है ताकि पैदल सैनिक गैप्स को पार कर सकें.
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