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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशकाला चावल—एक ‘वर्जित’ अनाज जिसने यूपी के चंदौली को UNDP की तारीफ और अच्छा-खास लाभ दिलाया

काला चावल—एक ‘वर्जित’ अनाज जिसने यूपी के चंदौली को UNDP की तारीफ और अच्छा-खास लाभ दिलाया

चंदौली ‘स्वास्थ्यवर्धक’ काले चावल का उत्पादन करता है. इसकी मांग काफी ज्यादा है और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को निर्यात किया जा रहा है.

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नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश का चंदौली जिला नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से आकांक्षी जिला कार्यक्रम शुरू किए जाने के बाद भारत में सबसे ज्यादा उन्नति करने वाले चार जिलों में से एक है.

चंदौली को प्रगति की राह पर आगे बढ़ाने में जिले में काले चावल के उत्पादन के प्रयोग की अहम भूमिका रही है.

चंदौली ने 2018 से ‘स्वास्थ्यवर्धक’ काले चावल का उत्पादन शुरू किया था. यह कमोडिटी अब ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को निर्यात की जा रही है, साथ ही अन्य देशों में निर्यात के विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं.

वैश्विक बाजारों में काले चावल पर उच्च मांग और किसानों को अच्छा लाभ देने के कारण इस प्रोजेक्ट को एक बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है.

यह कदम सरकार की पहल पर उठाया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से पड़ोसी जिले मिर्जापुर के उत्पाद की ‘विंध्य ब्लैक राइस’ के तौर पर ब्रांडिंग और मार्केटिंग किए जाने के बाद चंदौली के आसपास के क्षेत्रों, जिन्हें ‘पूर्वी यूपी का धान का कटोरा’ कहा जाता है, में काले चावल की खेती को बढ़ावा मिला है.

इसके अलावा, योगी सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे ‘एक जिला-एक उत्पाद’ और ‘निर्यात नीति 2020-25’ के तहत इसकी खेती को बढ़ावा दिया गया. इन योजनाओं का उद्देश्य किसानों की आय दोगुनी करना और कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने का है.

सिमडेगा (झारखंड), सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) और राजगढ़ (मध्य प्रदेश) अन्य जिले हैं आकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत सबसे अधिक प्रगति की है.

आइये जानते हैं कि काला चावल क्या होता है और बाजार में इसकी स्थिति क्या है.


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काले चावल के फायदे

माना जाता कि काले चावल का मूल प्राचीन चीन से जुड़ा है, जहां इसे ‘वर्जित चावल’ कहा जाता है और माना जाता है कि ये सिर्फ शाही उपभोग के लिए ही होता है.

हालांकि, भारत में काला चावल या चक-हाओ (स्वादिष्ट चावल) सदियों से मणिपुर के मूल व्यंजनों में इस्तेमाल होता रहा है. कुछ साल पूर्व तक फसल की खपत ज्यादातर स्थानीय स्तर पर ही होती थी और इसका बहुत कम निर्यात किया जाता था.

लेकिन बेहतर कमाई होने और कई स्वास्थ्य संबंधी लाभों के कारण बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग ने देशभर के किसानों को काले चावल की खेती की ओर आकृष्ट किया है.

काले चावल में कथित तौर पर ‘एंथोसायनिन/ नामक एक यौगिक होता है, जिसकी वजह से इसका रंग काला होता है और यही इसे एंटी-इफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट और कैंसर रोधी गुण प्रदान करता है. इसमें महत्वपूर्ण कैरोटिनॉयड भी होते हैं जिन्हें आंखों की सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है.

इसके अलावा यह प्राकृतिक तौर पर ग्लूटेन-फ्री और प्रोटीन, आयरन, विटामिन ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, नेचुरल फाइबर आदि से भरपूर है, इसलिए वजन घटाने में मददगार होता है. इसे एक नेचुरल डिटॉक्सिफायर माना जाता है और इसका सेवन एथेरोस्क्लेरोसिस, मधुमेह, अल्जाइमर, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों को भी दूर रखता है.

बाजार की स्थिति

सुपरफूड टैग और कई स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए काले चावल ने दुनियाभर में सेहत के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं के बीच सफेद और यहां तक कि ब्राउन राइस की मांग घटा दी है, खासकर अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में.

इसके अलावा, काला चावल पारंपरिक चावल की खेती के मुकाबले किसानों का रिटर्न भी अच्छा खासा बढ़ा देता है. काले चावल के धान की कीमत लगभग 80-85 रुपये प्रति किलोग्राम है, जो ए ग्रेड के धान के 19.6 रुपये प्रति किलोग्राम के एमएसपी से चार गुना ज्यादा है.

इसके अलावा, प्रसंस्कृत काले चावल की कीमत 160 रुपये है, जिसे आगे 200 से 500 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर बेचा जाता है. यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक और श्रम प्रधान होने जैसी जटिलताओं के बावजूद काले चावल की खेती को काफी आकर्षक बनाता है.

क्या कहते हैं किसान

काले चावल का उत्पादन और निर्यात करने वाले चंदौली के एक किसान अजय सिंह कहते हैं, ‘सामान्य चावल के मुकाबले काले चावल के उत्पादन में अत्यधिक लाभ होने को देखते हुए इसकी खेती करने वाले किसानों की संख्या 2018 में 15-20 से बढ़कर अब 750 से 800 के बीच पहुंच गई है. हमने 2017 में मणिपुर से बीज लाकर उसकी रोपाई की थी, इसके बाद हमने इसे बढ़ाया और अगले साल से इसका उत्पादन कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि रकबा भी 2018 में 1,500 हेक्टेयर की तुलना में बढ़कर अब 6,500 हेक्टेयर हो गया है. ‘यह आगे और भी ज्यादा बढ़ जाएगा क्योंकि पड़ोसी जिलों के किसानों ने भी हमसे बीज लिया है.’

उन्होंने कहा, ‘काले चावल उगाने में कुछ कठिनाइयां भी हैं क्योंकि ये पूरी तरह से ऑर्गेनिक है जिसके लिए बहुत अधिक श्रम की जरूरत पड़ती है. यहां तक कि कुछ किसानों को शुरू में नुकसान का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने आदतन रासायनिक सामग्री इस्तेमाल कर ली. हालांकि, अब इसकी खेती पर मिलने वाला रिटर्न असाधारण है क्योंकि काले चावल की उत्पादकता 25 क्विंटल/हेक्टेयर होती है. यह करीब पांच फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है.

सिंह ने कहा कि इस साल किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) ने काले चावल का 850 टन धान 83 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा, जिसका चावल 200 रुपये किलो के दाम पर बिका.

हालांकि, अच्छे रिटर्न के बावजूद चंदौली के किसानों को काले चावल की मार्केटिंग में समस्याएं आ रही हैं क्योंकि इसके लिए इस क्षेत्र को जीआई (जियोग्राफिकल इंटीकेशन) टैग नहीं मिला है. काले चावल के लिए जीआई टैग पिछले साल मणिपुर को दिया गया था.

चंदौली के अकौनी निवासी किसान सतीश कुमार, जो काले चावल की खेती करने वाले कुछ शुरुआती लोगों में शामिल रहे हैं, ने कहा, ‘इसकी खेती करना कोई चुनौती नहीं है. लेकिन सामान्य चावल के तौर पर इसकी मार्केटिंग और मिलिंग कराना आसान नहीं है. गाजीपुर में हमारे क्षेत्र में केवल एक मिल है जिसमें जापानी राइस पॉलिशर है, जो इस चावल की महत्वपूर्ण ऊपरी काली परत बरकरार रखता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मणिपुर में जीआई टैग के कारण एफपीओ के बावजूद हमारे लिए अपने काले चावल की मार्केटिंग मुश्किल है. अब, हम भी अपने मूल ‘अदम चीनी’ चावल का जीआई पंजीकरण करा रहे हैं.’

सिंह ने कहा, ‘बिक्री न होने संबंधी मुद्दों के कारण 2020 की फसल वाला काले चावल का धान अभी भी किसानों के पास पड़ा है, जो कि 8,000 से 10,000 क्विंटल के करीब है.

काले चावल की खेती अब चंदौली के विभिन्न पड़ोसी जिलों, जैसे सोनभद्र और मिर्जापुर, के नारायणपुर, जमालपुर, राजगढ़, पहाड़ी, लालगंज और हलिया जैसे ब्लॉकों में की जाती है.

(इस खबर को अंंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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