नई दिल्ली: एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन- जिसे भारत में कोविशील्ड कहा जाता है- लगने के बाद किसी में खून के थक्के बने हैं कि नहीं, इसका पता 5 से 20 दिन के अंदर लग जाता है और व्यापक रूप से उपलब्ध एलिसा टेस्ट से पता लगाया जा सकता है कि क्या किसी व्यक्ति को खून के ऐसे जानलेवा थक्कों से खतरा है. ये बात नई स्टडी में पता चली है.
जर्मनी के ग्रेफ्सवॉल्ड यूनिवर्सिटी अस्पताल और फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर वैक्सीन्स एंड बायोमेडिसिन्स की एक टीम ने, विएना मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं के साथ मिलकर ऐसे लोगों में खून के अंदर असामान्य थक्के बनने के दुर्लभ मामलों की जांच की, जिन्हें एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन दी गई थी.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित उनकी स्टडी में शोधकर्ताओं ने जर्मनी तथा ऑस्ट्रिया में 11 मरीज़ों की जांच की, जिनके अंदर टीके लगने के बाद ब्लड क्लॉट्स बन गए थे.
इन मरीज़ों में मस्तिष्क, नसों, फेफड़ों तथा पेट में ब्लड क्लॉट्स बन गए थे. उनमें से छह की मौत हो गई.
इसके साथ ही 28 अन्य लोगों ने खून के नमूने दिए, जिनकी टीम ने ये देखने के लिए जांच की कि कहीं उनमें वैक्सीन की वजह से ब्लड क्लॉट्स तो नहीं बने थे.
शोधकर्ताओं को पता चला कि टीका लगे हुए लोगों में वैसे ही ब्लड क्लॉट्स होते हैं, जिन्हें हेपरिन प्रेरित थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहा जाता है.
हेपरिन इंजेक्शन से दी जाने वाली, खून को पतला करने की दवा होती है, जिसे ब्लड क्लॉट्स के इलाज और रोकथाम के लिए इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन इस दवा से प्लेटेलेट्स का स्तर कम हो सकता है, जिससे मरीज़ के दवा बंद करने के कई हफ्ते बाद, नसों में ब्लड क्लॉट्स बन सकते हैं. इसे हेपरिन प्रेरित थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहा जाता है.
टीम को पता चला कि स्टडी में हिस्सा ले रहे किसी भी मरीज़ को हेपरिन नहीं दी जा रही थी, जिससे टीकाकरण के बाद असामान्य ब्लड क्लॉट्स को समझा जा सकता हो.
रिसर्चर्स का कहना है कि खून के अंदर, वैक्सीन तथा प्लेटेलेट्स के मेल या पीएफ4 कहे जाने वाले प्रोटीन की ब्लड क्लॉट्स के बनने में भूमिका हो सकती है, हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि इसके लिए और स्टडी किए जाने की ज़रूरत है.
स्टडी में कहा गया है कि वैक्सीन का फ्री डीएनए, जो आनुवांशिक पदार्थ के अंश होते हैं, ऐसी प्रतिक्रिया को चालू कर सकता है, जिससे ब्लड क्लॉट्स बनने शुरू होते हैं. पिछली स्टडीज़ ने दिखाया है कि फ्री डीएनए या आरएनए पीएफ4- हेपरिन कॉम्प्लेक्स बनने के प्रेरक हो सकते हैं, जो हेपरिन प्रेरित थ्रोम्बोसाइटोपेनिया में एक अहम भूमिका निभाता है.
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‘ELISA जांच से क्लॉट का पता लगाएं’
रिसर्चर्स की सिफारिश है कि एलिसा टेस्ट (एक प्रकार का एंटीबॉडी टेस्ट) के ज़रिए पीएफ4- हेपरिन के खिलाफ एंटीबॉडीज़ का पता लगाया जा सकता है और टीकाकरण के पश्चात, संभावित ब्लड क्लॉट्स के लिए मरीज़ों की जांच की जा सकती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि किसी व्यक्ति में एलिसा रिज़ल्ट बहुत पॉज़िटिव आता है लेकिन उसे हाल ही में हेपरिन नहीं दी गई है, तो ये एक बहुत असामान्य बात होगी.
ये निष्कर्ष भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कोविन वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, देश भर में वैक्सीन के 19 करोड़ से अधिक डोज़ (जिनमें पहली और दूसरी दोनों खुराकें शामिल हैं) दिए जा चुके हैं.
हालांकि ऐसे मामले दुर्लभ हैं लेकिन डॉक्टरों को मरीज़ों के अंदर ऐसे ब्लड क्लॉट्स के लक्षणों के प्रति सजग रहने की ज़रूरत है, ताकि तेज़ी के साथ दखल देकर मरीज़ों का इलाज कर सकें, इससे पहले कि उनकी हालत घातक हो जाए.
शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी में लिखा कि आज तक ये प्रतिक्रिया केवल एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के साथ ही देखने में आई है.
हालांकि ऐसी कई खबरें आईं हैं जिनमें, जॉनसन एंड जॉनसन एडी26.सीओवी2.एस वैक्सीन लेने के बाद मरीज़ों में ब्लड क्लॉट्स पैदा हुए हैं लेकिन मंगलवार को एनईजेएम में प्रकाशित, दक्षिणी अफ्रीका के 2,88,368 स्वास्थ्य सेवा कर्मियों पर की गई एक स्टडी में पता चला कि ब्लड क्लॉट्स की इन घटनाओं का संबंध वैक्सीन से नहीं था.
2,88,368 स्वास्थ्य सेवा कर्मियों में केवल 2 प्रतिशत में विपरीत असर का अनुभव किया गया. पचास स्वास्थ्य सेवा कर्मियों में ऐसे विपरीत प्रभाव देखे गए, जो गंभीरता या विशेष रूचि के पैमाने पर पूरा उतरते थे. वो सभी पांच स्वास्थ्य सेवा कर्मी, जिनमें टीका लगने के बाद खून के थक्के बने थे, पहले से ही कुछ ऐसी बीमारियों से ग्रसित थे, जिनके कारण उन्हें ब्लड क्लॉट्स का खतरा था.
शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि ये ब्लड क्लॉट्स जे&जे वैक्सीन की वजह से नहीं हुए थे.
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