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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतकोरोना टूलकिट तैयार है, गंगा, हिमालय, सोशल मीडिया बंद होने की अफवाह और भी बहुत कुछ है इसमें

कोरोना टूलकिट तैयार है, गंगा, हिमालय, सोशल मीडिया बंद होने की अफवाह और भी बहुत कुछ है इसमें

घरेलू सीवेज जिसमें मानव मल की मात्रा होती है, यह गंगा में पहले की तरह ही आ रहा है और यही वह तत्व है जो पानी को सर्वाधिक प्रदूषित करता है लेकिन पानी के रंग में कोई बदलाव नहीं आता.

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टूलकिट वह नहीं होता जिसका कागज देने दिल्ली पुलिस ट्विटर के ऑफिस गई थी. फरवरी में किसान आंदोलन की आतंकी दिशा रवि को गंभीरतम अपराध के लिए गिरफ्तार न किया जाता तो हम कभी ना जान पाते कि टूलकिट होता क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं.

वैसे लोकतांत्रिक सरकारें जब टूलकिट का इस्तेमाल करती हैं, तो उसका मतलब होता है- एक बड़े समूह का ध्यान दूसरी ओर करने के उद्देश्य से सुनियोजित सिलसिलेवार होने वाली घटनाएं.

कोरोना पर जीत के गगनभेदी नारों के बावजूद एक मेडिकिट तैयार नहीं हो पाई तो सरकार ने कोरोना टूलकिट तैयार कर दी. कोविड की दूसरी लहर मंद पड़ने लगी है, लूटे पिटे लोग थोड़ा संभलेंगे तो जवाब देही तय करनी होगी, सवाल पूछे जाएंगे, सही आंकड़े जारी करने का दवाब बढ़ेगा, ये सवाल उठें, उससे पहले ही कुछ ऐसा कर दीजिए जिसमें सकारात्मकता और विस्मयकारिता का एहसास हो. खूबसूरत तस्वीरें और उसे बयां करता माध्यम एक दुखी व्यक्ति से कहता है कि हंसो, खुश रहो क्योंकि इस स्क्रीन पर सारे लोग खुश हैं.

विस्मयकारी खबरें तेजी से जगह बनाती हैं और नोएडा के फ्लैट में कोरोना से मरे मां-बाप के संग दो दिन बंद रहे छोटे बच्चों की खबर को रिप्लेस कर देती हैं. विस्मयकारी खबरें हमें सबकुछ भूलाकर आगे सोचने पर मजबूर कर देती है – व्हाट्सएप बंद हो गया तो क्या होगा ?

फील गुड फैक्टर और गंगा

गंगा इस टूलकिट का सबसे बड़ा और अहम चैप्टर है. गंगा के शववाहिनी बनने की खबर सामने आते ही पिछले साल वाले फार्मूले को अपनाया गया और अपर स्ट्रीम की तस्वीरें वायरल होने लगी जिसमें बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के चलते गंगा का पानी स्वच्छ हो गया. फिर अगली तस्वीर में यूपी के सहारनपुर से हिमालय दिखाई देता है. याद रखिए अक्सर पहली तस्वीर सरकारी प्रशासनिक पदों पर बैठे व्यक्ति द्वारा जारी की जाती है फिर उसे वायरल किया जाता है. फील गुड का माहौल इन तस्वीरों को दूसरे एंगल से देखने का मौका ही नहीं देता.

गंगा की निर्मलता के दावे को यूं समझिए – यदि एक गिलास पानी में चार चम्मच चीनी घोल दिया जाए तो वह साफ नजर आएगा. लेकिन उसकी शुगर मात्रा अच्छी खासी बढ़ी होगी, वैसे ही यदि एक गिलास पानी में एक बूंद रूह अफजा डाल दिया जाए तो उसकी शुगर मात्रा में मामूली फर्क आएगा. लेकिन पानी का रंग बदल जाएगा. गंगा के साथ भी यही हो रहा है. गंगा में गिरने वाले औद्योगिक सीवेज में नब्बे फीसद तक गिरावट आई है इसका गंगा के प्रदूषण में योगदान कम है लेकिन यह नजर आता है यानी फैक्ट्रियों से निकलता काला पानी गंगा के पानी के रंग को बदल देता है. अब यह काला पानी नहीं आ पा रहा.

लेकिन घरेलू सीवेज जिसमें मानव मल की मात्रा होती है, यह गंगा में पहले की तरह ही आ रहा है और यही वह तत्व है जो पानी को सर्वाधिक प्रदूषित करता है लेकिन पानी के रंग में कोई बदलाव नहीं आता. सोशल मीडिया की तस्वीरें दिखाती है कि गंगा साफ हो गई और हम मान लेते हैं. गंगा की ऊपरी धारा का पानी कुछ जगहों पर आचमन लायक हो गया है तो उसका कारण चार धाम यात्रा का रूका होना है. पहाड़ पर इंडस्ट्री वैसे भी नाममात्र की है. गंगा पथ पर मौजूद आश्रम और धर्मशालाएं भी इस समय खाली पड़े हैं, जिससे सीवेज सीधा नदी में नहीं जा रहा. आम दिनों में यह सीजन धार्मिक यात्राओं का होता है और उत्तराखंड में इस दौरान घराती कम बाराती ज्यादा होते हैं.

इसी तरह सहारनपुर से हिमालय की तस्वीरे यूं दिखाई जा रही है मानों यह इतिहास में पहली बार हुआ है जब भी प्री मानसून बारिश होती है और मौसम इंद्रधनुषीय हो जाता है तब शिवालिक रेंज दूरबीन से नजर आने लगती है.

सरकारी टूलकिट तीन सिद्धांतों पर काम करता है – ‘झूठ बोलो, जल्दी- जल्दी बोलो और जोर – जोर से बोलो.’

और प्राणवायु ट्रेन से लाती महिला चालक दल

ऑक्सीजन की कमी से कितने लोग मरे इसके सही आंकड़े शायद ही कभी सामने आ पाएं लेकिन केंद्र के स्तर पर यह जरूर बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन ट्रेन चल रही है और कई राज्यों में लगातार ऑक्सीजन पहुंचा रही हैं. इन ट्रेनों को विशेषतौर पर महिला चालकों द्वारा चलाया जा रहा है और इनकी तस्वीरें चारों और फैलाई जा रही हैं. या आईटी सेल द्वारा फैलाई जा रही उस तस्वीर को याद कीजिए जिसमें कहा गया कि नेहरू विमान से सिगार मंगाते थे और मोदी ऑक्सीजन मंगाते हैं या फिर वर्तमान सरकार द्वारा बनाए गए एम्स अस्पतालों की लिस्ट. वे खुशकिस्मत लोग जिन्होंने इस महामारी में किसी अपने को नहीं खोया वे इन तस्वीरों को तेजी से आगे बढ़ाते है. यह जांचने की फुर्सत किसे है कि जिन एम्स की सूची दी जा रही है वे सिर्फ कागजों पर हैं.

वैसे टूलकिट का नया चैप्टर यह है कि वाराणसी में चार ड्रोन कैमरे गंगा की रखवाली करेंगे ताकि कोई उसमें कचरा और शव न बहाए. ड्रोन उन नालों के ऊपर से नहीं उड़ेंगे जो सीवेज लेकर गंगा में गिरते हैं. गंगा में शव देख प्रधानमंत्री जी दुखी हैं.

यह समझना भी जरूरी है कि भावुक होने और संवेदनशील होने में फर्क होता है. भावुकता प्राकृतिक होती है जो आंखों में आंसू ला देती है लेकिन संवेदनशीलता विकसित करनी होती, हमारी संवेदना बताती है कि हमारा संसार कितना बड़ा है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और पर्यावरणविद हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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