विजयवाड़ा: सोमवार (17 मई) रात के 8 बजे हैं और विजयवाड़ में ईएसआई सरकारी अस्पताल के सामने हिंदू श्मशान घर में अभी भी पांच शव जल रहे हैं.
आंध्र प्रदेश के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 17 मई को सुबह 9 बजे तक कृष्णा ज़िले के अंतर्गत आने वाले विजयवाड़ा में आठ कोविड मौतें हुईं थीं. लेकिन अकेले इस श्मशान घर में 22 मरीज़ों के शवों का अंतिम संस्कार किया गया.
आंकड़ों में ये अंतर और भी अधिक चौंकाने वाला है, चूंकि ये सूबे का राजनीतिक केंद्र है. विजयवाड़ा से सिर्फ 15 किलोमीटर दूर है ताड़ेपल्ली, जो कृष्णा नदी के किनारे गुंटूर ज़िले में स्थित है, और जहां मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी का आवास तथा केंद्रीय पार्टी कार्यालय है. शहर से 35 मिनट दूर राज्य सचिवालय है, जहां मुख्यमंत्री का ऑफिस है.
श्मशान सह-प्रभारी कार्तिक ने दिप्रिंट से कहा, ‘हिंदू परंपरा के अनुसार, सूरज ढलने के बाद शवों का दाह-संस्कार नहीं करना चाहिए, लेकिन हम क्या करें? आज (17 मई) को हमें 40 शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ा, जिनमें से 22 शव कोविड पॉज़िटिव थे. हो सकता है वो सब 16 मई को ही मरे हों’.
दिप्रिंट ने 17 मई का पूरा दिन, विजयवाड़ा के दो बड़े श्मशान घरों, और तीन मुस्लिम क़ब्रिस्तानों में बिताया, और कम से कम 36 शवों को, अंतिम संस्कार होते, या दफ्नाए जाते देखा…लेकिन इसके विपरीत सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, 16 मई को समाप्त होने वाले सप्ताह में, पूरे कृष्णा ज़िले में मौतों का आंकड़ा एक इकाई में था.
और अगर इस बात को ध्यान में रखा जाए, कि विजयवाड़ा में 55 श्मशान घर और क़ब्रिस्तान और हैं, तो आंकड़ों की विसंगति और अधिक हो जाएगी.
इस विसंगति के बारे में पूछे जाने पर, कृष्णा के ज़िला कलेक्टर ए मोहम्मद इम्तियाज़ ने दिप्रिंट से कहा, कि सरकारी अस्पतालों में केवल कोविड मरीज़ों के तौर पर पंजीकृत लोगों की मौतों को ही दर्ज किया जाता है. उन्होंने आगे कहा कि अगर निजी अस्पतालों में मरने से पहले मरीज़ की रिपोर्ट पॉज़िटिव आ जाए, तो ऐसी मौतों को भी, दैनिक बुलेटिन में शामिल किया जाता है.
कलेक्टर ने दिप्रिंट से कहा, ‘कभी कभी दो दिन के आंकड़े एक साथ कर दिए जाते हैं, क्योंकि संख्या देर से मिलती है’. उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ मिसालें ऐसी हैं, जिनमें मौत अगर 8 बजे के बाद होती है तो उसे अगले दिन के बुलेटिन में शामिल कर दिया जाता है. लेकिन आंकड़ों के बेमेल होने जैसी कोई बात नहीं है’.
आंध्र प्रदेश स्वास्थ्य आयुक्त काटामणेनी भास्कर ने दिप्रिंट से कहा, कि सामान्य मरीज़ों के शव भी कोविड शवों की तरह लपेटे जा रहे हैं और इसकी वजह से भी श्मशान घरों में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है.
उन्होंने कहा, ‘हमारी राज्य सरकार आंकड़ों को लेकर, हमेशा पारदर्शी रही है. हमें छिपाने की कोई ज़रूरत नहीं है. मौतों की संख्या पता लगने से ही, हम संक्रमण के स्तर को जान पाएंगे’.
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संख्याओं का जोड़ सही नहीं बैठता
लेकिन संख्याओं का जोड़ बिल्कुल सही नहीं बैठता.
मिसाल के तौर पर 17 और 18 मई को ही ले लीजिए.
राज्य के बुलेटिन में भी, जिसमें सुबह 9 बजे से अगले दिन सुबह 9 बजे तक के, 24 घंटों का आंकड़ा दिया जाता है, 17 मई को आठ मौतें बताई गईं थीं.
इसमें 16 तारीख़ की सुबह 9 बजे से, 17 मई की सुबह 9 बजे तक की मौतों की संख्या शामिल होगी.
18 मई के लिए, बुलेटिन में 10 कोविड मौतें बताई गईं. ये संख्या 17 मई की सुबह 9 बजे से, 18 तारीख़ की सुबह 9 बजे तक की होगा.
कुल मिलाकर, कृष्णा ज़िले में दो दिन में 18 कोविड-19 मौतें हुईं- जो सिर्फ एक श्मशान में, एक दिन में जलाए गए 22 शवों से कम थीं
हिंदू श्मशान घर से सिर्फ 8 किलोमीटर दूर है, शहर का सबसे बड़ा श्मशान गृह- स्वर्ग पुरी- जो बिजली और गैस चालित श्मशान गृह है, जिसे विजयवाड़ा नगर निगम चलाता है.
स्वर्गपुरी के स्टाफ ने दिप्रिंट को बताया, कि उन्होंने 17 मई को आठ कोविड-19 शवों का दाह-संस्कार किया, और 18 मई की दोपहर तक, आठ और शवों का किया.
स्वर्गपुरी श्मशान गृह के प्रभारी अधिकारी रामबाबू के अनुसार, 10 मई से 16 मई के बीच के सप्ताह में, हर रोज़ औसतन 22 कोविड शवों का अंतिम संस्कार किया गया.
उन्होंने ये भी कहा कि उनमें कम से कम 30 प्रतिशत, विजयवाड़ा शहर के निवासी थे, और बाक़ी कृष्णा और गुंटूर ज़िले के आसपास के गांवों से थे.
उन्होंने कहा कि गुंटूर-विजयवाड़ा पर बसे गांवों के मामले भी, विजयवाड़ा के श्मशान गृहों में लाए जाते हैं.
लेकिन राज्य बुलेटिन में, 17 मई से पहले तीन दिनों में, गुंटूर ज़िले में तीन से अधिक मौतें नहीं बताई गईं थीं.
रामबाबू के अनुसार, सबसे अधिक मौतें मई के पहले सप्ताह में हुईं थीं, जब स्वर्गपुरी श्मशान गृह में हर रोज़, औसतन लगभग 35 कोविड शवों का दाह-संस्कार हो रहा था.
लेकिन राज्य बुलेटिन में पूरे कृष्णा ज़िले के लिए, 10 मई से 16 मई के पूरे सप्ताह, और मई के पहले सप्ताह में, मौतों का आंकड़ा इकाई में ही दिखाया गया.
मसलन, स्टेट बुलेटिन में दिखाया गया, कि 5 मई को पूरे कृष्णा ज़िले में केवल चार मौतें दर्ज की गईं. जबकि 6 मई को विजयवाड़े के सिर्फ एक क़ब्रिस्तान जन्नतुल बक़ी में, 7 कोविड-19 शव दफ्नाए गए- दिप्रिंट के हाथ लगे क़ब्रिस्तान के रिकॉर्ड के मुताबिक़, ये सब वो लोग थे जिन की मौत पिछले दिन हुई थी.
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पूरे शहर में यही कहानी
पूर्व पार्षद मोहम्मद फतहुल्लाह, जो ख़िदमत ग्रुप नाम से एक स्वतंत्र सेवा संस्था भी चलाते हैं, ख़ासकर दूसरी लहर में शवों को दफ्न किए जाने में सक्रिय रूप से अपने समुदाय के लोगों की सहायता कर रहे हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि अकेले 17 अप्रैल को उन्होंने छह कोविड शवों को दफ्नाया था. 17 मई को सुबह 10.30 बजे, जब दिप्रिंट की उनसे जन्नतुल बक़ी मुस्लिम क़ब्रिस्तान में मुलाक़ात हुई, तो वो 30 मिनट के अंदर, तीन कोविड शवों को दफ्नाने में सहायता कर चुके थे.
फतहुल्लाह ख़ान ने कहा, ‘ज़रा सोचिए कि ज़िले में सिर्फ विजयवाड़ा शहर, और उसमें भी सिर्फ मुस्लिम समुदाय में, पिछले कुछ हफ्तों से औसतन 7 से 11 मौतें देखी जा रही हैं. अगर आप इसी समय के प्रदेश बुलेटिन्स देखें तो सरकार कहती है कि पूरे ज़िले में सिर्फ चार या ज़्यादा से ज़्यादा आठ मौतें हुईं थीं’.
‘अगर एक समुदाय में छह से 10 मौतें हो रही हैं, अगर शहर के दूसरे समुदायों को मिला लें, तो ये संख्या कितनी होगी, और अगर पूरे ज़िले को लें, तो ये कितनी होगी? मेरे अपने सूत्रों के मुताबिक़, सरकारी अस्पतालों में हर रोज़ औसतन 70 लोग मर रहे हैं’.
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‘लॉकडाउन के बाद मृत्यु दर में कमी’
श्मशान गृहों और कब्रिस्तानों के अधिकतर प्रमुखों के पास, कहने के लिए बस एक सकारात्मक चीज़ थी- कि पिछले एक सप्ताह में मृत्यु दर, उससे पहले के सप्ताह की अपेक्षा कम रही है.
उनका मानना है कि 5 मई को, राज्य सरकार के आंशिक लॉकडाउन घोषित करने के बाद से, मामलों और उसके परिणामस्वरूप मौतों को, क़ाबू करने में सहायता मिली है. आंध्र प्रदेश 31 मई तक आंशिक लॉकडाउन में है.
कृष्णा के ज़िला कलेक्टर ने दरअस्ल मुख्यमंत्री को एक आंतरिक नोट भेजा था, कि कैसे लॉकडाउन से ज़िले में सकारात्मकता दर को एक प्रतिशत नीचे लाने में सफलता मिली, जबकि विजयवाड़ा के शहरी समूह में मामलों में 26 प्रतिशत की तेज़ गिरावट देखी गई.
लेकिन स्वास्थ्य विभाग के एक सूत्र ने स्वीकार किया, कि मौतों की संख्या ज़्यादा थी.
सूत्र ने कहा, ‘अनाधिकारिक तौर पर, मौतों की संख्या आसानी से 50 प्रतिदिन हो सकती है; आसपास के गांवों के लोग भी, यहां आकर इलाज कराते हैं’. सूत्र ने आगे कहा, ‘सरकारी आंकड़ों में सिर्फ शहर के सरकारी अस्पतालों की संख्या होगी, और वो भी केवल उन लोगों की, जिनके पास आरटी-पीसीआर के पॉज़िटिव सर्टिफिकेट होंगे’.
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