नई दिल्ली: ऐसे समय में जब कोविड की दूसरी लहर में राज्य का इनफ्रास्ट्रक्चर बिखरता दिख रहा था और अस्पतालों में बिस्तर और चिकित्सा देखभाल पाना मुहाल हो रहा था, तो सहायता और सांत्वना एक असंभावित स्रोत से सामने आईं- रेज़िडेंट वेल्फेयर एसोसिएशंस (आरडब्ल्यूएज़).
इन एसोसिएशनों के निवासी एक साथ आए और अपनी सोसाइटियों में पड़ोसियों की सहायता के लिए पैसा और संसाधन जुटाए. अगर कुछ मामलों में भोजन भेजने या खाने का प्रबंध करने की समस्या थी, तो कहीं और अस्पताल में बिस्तर जुटाना या ऑक्सीजन सप्लाई का बंदोबस्त करना एक चुनौती थी. कुछ इलाकों में तो आरडब्ल्यूएज़ ने कोविड मरीज़ों के लिए आइसोलेशन सेंटर्स तक स्थापित कर लिए जो ऑक्सीजन सुविधा से लैस थे.
ऐसे कामों से आरडब्ल्यूएज़ ने दिखा दिया कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनकर कोविड के ताज़ा हमले से बचा जा सकता है. हालांकि राजधानी शहर में अब रोज़ाना मामलों की संख्या गिरकर करीब 6,500 पर आ गई है और सकारात्मकता दर भी घटकर 10.4 रह गई है लेकिन अपने पीक समय पर दिल्ली में रोज़ाना औसतन 24,000 मामले दर्ज हो रहे थे. सबसे अधिक 28,395 मामले 20 अप्रैल को थी, सबसे ऊंची सकारात्मकता दर (36%) 22 अप्रैल को थी.
उस समय सोशल मीडिया पोस्ट्स और बातचीत, सहायता की अपीलों से भरी हुई थीं और खुद से मदद की पहल करने वाले लोग, ज़रूरतमंद मरीज़ों को दवाएं, ऑक्सीजन उपकरण और अस्पतालों में बिस्तर दिलाने की जद्दोजहद कर रहे थे.
गाज़ियाबाद फेडरेशन ऑफ अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन के संस्थापक आलोक कुमार ने कहा कि सरकार से सहायता के अभाव में सोसाइटियों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया. इसलिए ज़रूरतमंद निवासियों की सहायत के लिए आरडब्ल्यूएज़ ने अपने रखरखाव के फंड्स का सहारा लिया.
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आरडब्ल्यूएज़ ने कैसे संगठित होकर सहायता की
कई सोसाइटियों का कहना था कि उन्हें लगा कि उनके स्थानीय प्रशासन ने उन्हें बिल्कुल ‘छोड़ दिया था’ और उन्हें खुद से अपने संसाधनों का भरसक इस्तेमाल करना पड़ा.
आलोक कुमार ने कहा, ‘गाज़ियाबाद डीएम (ज़िला मजिस्ट्रेट) हमारी कॉल्स नहीं उठा रहे थे. हमने ट्विटर पर एसओएस भेजा, जहां पर कुछ राजनेता हमसे जुड़े लेकिन उन्होंने भी कोई मदद नहीं की. कुछ सोसाइटियां ऐसी थीं, जहां 40 प्रतिशत से अधिक अपार्टमेंट्स में परिवार का कम से कम एक सदस्य संक्रमित था. वो टेस्ट नहीं करा पा रहे थे और टेस्ट होने के बाद दवाएं या अस्पताल में बिस्तर हासिल नहीं कर पा रहे थे. दवाएं खरीदने या ऑक्सीजन टैंक्स जुटाने के लिए लोग मारे-मारे फिर रहे थे’.
कुमार ने कहा कि ऐसी स्थिति में आवासीय सोसाइटियों ने खुद एक दूसरे की सहायता करने का बीड़ा उठाया. गाज़ियाबाद में सोसाइटी एसोसिएशंस ने- जैसे नीहो स्कॉटिश गार्डन्स, निराला ईडन पार्क, आम्रपाली विलेज, क्लाउड 9 और इंदिरापुरम में एटीएस ने अपने खुद के आइसोलेशन सेंटर्स स्थापित कर लिए, जहां निवासियों की तत्काल ज़रूरतों के लिए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स या सिलिंडर्स की सुविधा थी.
सोसाइटियों ने ऐसे निवासियों से भी संपर्क किया जो डॉक्टर थे, ताकि टेलीमेडिसिन के ज़रिए दूसरे निवासियों को सलाह दी जा सके. आरडब्ल्यूएज़ ने अपने दवा बैंक बना लिए, जहां कोविड से संबंधित दवाएं उपलब्ध थीं. डॉक्टरों की सलाह के साथ इन बैंकों में फैवपिराविर, डोलो और ज़िंकोविट जैसी दवाएं रखी गईं.
आरडब्ल्यूए अध्यक्ष दीपक कुमार के अनुसार, इंदिरापुरम की आम्रपाली विलेज सोसाइटी में हर तीसरा परिवार कोविड से प्रभावित था. आरडब्ल्यूए ने 21 अप्रैल को ज़िला प्रशासन को एक एसओएस भेजा था लेकिन उनके जवाब का अभी तक इंतज़ार है.
दीपक कुमार ने बताया, ‘एसओएस कॉल्स भेजने के बाद भी हमें कोई सहायता नहीं मिली. अप्रैल मध्य में कम से कम 14 लोगों की मौत हुई. हमने 1.5 लाख रुपए खर्च करके अलग-अलग साइज़ के नौ ऑक्सीजन सिलिंडर खरीद लिए. हमारे युवा वॉलंटियर्स की टीम को उन्हें भरवाने के लिए अलीगढ़ तक जाना पड़ा है’.
संक्रमण का प्रकोप कम करने के लिए आम्रपाली विलेज और महागुन मॉडर्ने ने अपना खुद का लॉकडाउन लागू कर दिया.
महागुन मॉडर्ने आरडब्लू की सचिव मृदुला भाटिया ने बताया, ‘हमने व्हाट्सएप ग्रुप पर वोट कराया और लोगों से लॉकडाउन पर वोट देने के लिए कहा. सरकार की घोषणा से पहले ही अधिकांश सदस्य खुद के लगाए लॉकडाउन के लिए सहमत हो गए. हमने सोसाइटी परिसर के अंदर गतिविधियों को सीमित कर दिया और बाहर के लोगों के सोसाइटी में आने पर रोक लगा दी. हमने इंतज़ाम किया कि आवश्यक वस्तुएं लोगों के दरवाज़े तक पहुंच जाएं’.
भाटिया ने आगे कहा कि मध्य अप्रैल में सोसाइटी में 300 से अधिक केस थे. ‘अब मई के पहले हफ्ते में वो केवल 186 हैं’.
चूंकि कोविड की इस लहर में पूरे-पूरे परिवार संक्रमित होते देखे गए, इसलिए व्यवहारिक और लॉजिस्टिक से जुड़ी ज़्यादा चुनौतियां सामने आईं, जैसे घरों का रखरखाव और हर किसी के लिए भोजन सुनिश्चित कराना. बहुत सी सोसाइटियों ने ऐसे परिवारों के लिए इंतज़ाम किए.
आम्रपाली विलेज में आरडब्ल्यूए ने भोजन तैयार करने के लिए दो रसोइयों का बंदोबस्त किया और बिना किसी अतिरिक्त चार्ज के उसे प्रभावित परिवारों को मुहैया कराया. ऐसे परिवारों के दरवाज़े पर लंगर पहुंचाने के लिए महागुन मॉडर्ने आरडब्ल्यूए ने एक नज़दीकी गुरद्वारे को अपने साथ जोड़ लिया. हैदराबाद में युनाइटेड फेडरेशन ऑफ रेज़िडेंट एसोसिएशन ने ऐसे परिवारों को किराने का सूखा सामान के लिए पैसा जमा किया, जहां कमाने वालों की जीविका खत्म हो गई थी.
इंदिरापुरम की अरिहंत हार्मोनी में रहने वाले अंशुल देवगन ने याद किया कि किस तरह आरडब्ल्यूए ने उनके 37 वर्षीय भाई की अस्पताल में भर्ती होने में सहायता की, जब उनकी ऑक्सीजन सैचुरेशन गिरकर 79-80 पर आ गई थी.
उन्होंने बताया, ‘उन्होंने मेरे घर के पास ही एक अस्पताल में बेड का बंदोबस्त किया और मेरे भाई को वहां ले जाकर इमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती कराने का इंतज़ाम किया…मैं तो सोच भी नहीं सकता कि अगर वो सहायता न करते, तो क्या हुआ होता’.
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आइसोलेशन केंद्र
गौतम बुद्ध नगर ज़िला मजिस्ट्रेट सुहास ललिनाकेरे यतिराज की सहायता से कुछ सोसाइटियां अपने सदस्यों के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर्स भरवाने में कामयाब हो गईं. ग्रेटर नोएडा वेस्ट में न्यू एरा फ्लैट ओनर्स वेल्फेयर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मनीष कुमार ने बताया, ‘पिछले तीन हफ्तों से हम अपने सदस्यों से ऑक्सीजन सिलिंडर्स जमा कर रहे हैं, जिन्हें हम हरिद्वार से भरवाते हैं, चूंकि उत्तर प्रदेश में निजी व्यक्तियों को ऑक्सीजन बेचने नहीं दा जा रही है. डीएम ने हमारी बहुत सहायता की है’.
ग्रेटर नोएडा वेस्ट में ही विक्ट्री 1 सेंट्रल के निवासी प्रशांत चौहान ने कहा, ‘सिलिंडर्स को भरवाना कोई आसान काम नहीं था. ज़रा सी खबर लगते ही हम भागते थे और 6-7 घंटे तक लंबी लाइनों में खड़े होते थे लेकिन फिर भी अकसर खाली हाथ लौट आते थे. ऑक्सीजन भरवाने के लिए हम ग्रेटर नोएडा से मानेसर तक गए हैं. आरडब्ल्यूए ने वास्तव में बहुत सहायता की है और उसने ज़िंदगियां बचाईं हैं…वही थे जो हमारे लिए खड़े हुए जब कोई दूसरा नहीं था’.
13 मई के बाद से यहां के निवासी अपने सिलिंडर्स गाज़ियाबाद में ही भरवा पा रहे हैं.
एक और उपयोगी पहल जो आरडब्ल्यूए ने की, वो थी मरीज़ों के लिए आइसोलेशन सेंटर्स स्थापित करना. मनीष कुमार के अनुसार, लगभग 15 सोसाइटियों ने अपने खुद के आइसोलेशन सेंटर्स स्थापित किए हैं, जबकि 50 सोसाइटियों ने ऑक्सीजन सिलिंडर्स के इंतज़ाम किए हैं.
महागुन मॉडर्ने में आरडब्ल्यूए ने पुणे से एक प्रेशर स्विंग एडजॉर्पशन ऑक्सीजन प्लांट भी खरीद लिया और सोसाइटी परिसर में स्थित एक प्ले स्कूल में एक आइसोलेशन सेंटर भी स्थापित कर रही है.
आरडब्ल्यूए सचिव भाटिया ने कहा कि ऑक्सीजन प्लांट के लिए उन्होंने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से स्वीकृति मांगी है, जो उन्हें अभी तक नहीं मिली है. लेकिन आरडब्ल्यूए का दावा है कि स्थानीय प्रशासन सहमत है और एल-1 सेंटर्स खोलने के लिए किसी इजाज़त की ज़रूरत नहीं होती. ये स्वास्थ्य केंद्रों की वो श्रेणी है, जहां गैर-गंभीर रोगियों की देखभाल होती है.
दिप्रिंट ने गौतम बुद्ध नगर डीएम यतिराज और गाज़ियाबाद डीएम अजय शंकर पाण्डे से संपर्क किया लेकिन इस खबर के छपने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिल पाया.
50 बिस्तरों की ये सुविधा 18 मई से चालू होनी है और ये आसपास की सभी सोसाइटियों के लिए खुली होगी. सेंटर को वित्त-पोषित करने के लिए आरडब्ल्यूए एक कोविड फंड शुरू करने जा रही है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमारे मेंटिनेंस फंड्स से कुछ दिन तक काम चल जाएगा. उसके अलावा हमने एक कोविड फंड शुरू किया है और निवासियों से दान देने के लिए कहा है. अगर उससे भी खर्च पूरा नहीं हुआ, तो हम प्रति बिस्तर के हिसाब से पैसा लेना शुरू कर देंगे. आइसोलेशन सुविधा पर हर महीने 7-8 लाख रुपए खर्च आने का अनुमान है.’
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टीकाकरण और टेस्टिंग अभियान
वैक्सीन भंडार कम पड़ने और टेस्टिंग लैब्स पर बोझ बढ़ने से अप्रैल और मई के हफ्तों में तकरीबन हर किसी को संघर्ष करना पड़ा. आरडब्ल्यूएज़ ने इस मामले में भी आगे बढ़कर अपने निवासियों की सहायता करने की कोशिश की.
ग्रेटर हैदराबाद की फेडरेशन ऑफ आरडब्ल्यूए, जिससे 380 से अधिक एसोसिएशंस संबद्ध हैं, के महासचिव बीटी श्रीनिवास ने कहा कि एसोसिएशन ने टेस्टिंग अभियान आयोजित करने में सहायता की है और टीका लगवाने में भी लोगों की मदद की है.
श्रीनिवासन ने कहा, ‘हमने सुनिश्चित किया कि लोगों को, खासकर वरिष्ठ नागरिकों को समय पर टीके लग जाएं. हमने कोविन पर स्लॉट्स बुक करने में उनकी मदद की. हमने अपने सिक्योरिटी गार्ड्स, घरेलू सहायकों और अन्य स्टाफ की भी वैक्सीन स्लॉट्स बुक करने में मदद की, जिनके पास स्मार्टफोन्स नहीं होते या जो उन्हें ठीक से चला नहीं पाते’.
बेंगलुरू में संपत रामानुजम ने, जो महादेवपुरा ऑल अपार्टमेंट्स एसोसिएशन का हिस्सा हैं, न सिर्फ अपने निवासियों बल्कि आसपास की झुग्गियों और गांवों में रह रहे लोगों के लिए भी टीकाकरण अभियान आयोजित किए.
इसके लिए उन्होंने कर्नाटक के मंत्री अरविंद लिंबावली से मदद मांगी, जो हर हफ्ते उन्हें 60 वैक्सीन डोज़ मुहैया करा रहे हैं और उन्होंने एक स्थानीय स्कूल में भी एक अभियान का आयोजन किया. रामानुजम ने कहा, ‘हम एक दिन में केवल 60 टोकंस दे सकते हैं. लेकिन अब इतने ज़्यादा लोग आकर वैक्सीन्स के लिए पूछ रहे हैं और हम उनकी बिल्कुल मदद नहीं कर पा रहे हैं’.
गाज़ियाबाद और नोएडा में अपार्टमेंट एसोसिएशंस निजी लैब्स के साथ मिलकर टेस्टिंग अभियान चला रही हैं. अलग-अलग निवासियों की परेशानी कम करने के अलावा, इन अभियानों से सोसाइटियों को ये अंदाज़ा भी हो रहा है कि उनके इलाके में कोविड कहां तक फैल गया है.
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