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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थUP के बांदा में पीपल के पेड़ पर टंगी मटकियां कैसे कोविड से हुई मौतों की असल कहानी बता रही है

UP के बांदा में पीपल के पेड़ पर टंगी मटकियां कैसे कोविड से हुई मौतों की असल कहानी बता रही है

पिछले साल देश में पहली कोविड लहर बांदा के लिए इतनी घातक नहीं रही थी. स्थानीय लोगों ने बताया कि उस समय इतने मामले नहीं आए थे. मौतों का आंकड़ा भी कम था.

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बांदा/चित्रकूट: श्मशान घाट के नजदीक पीपल के पेड़ की शाखाओं पर लटकी मिट्टी की कुछ मटकियां बुंदेलखंड के सबसे ज्यादा पिछड़े जिलों में से एक बांदा के गांवों में कोविड महामारी की स्थिति दर्शाने का सबसे चर्चित साधन बन गई है, जहां मध्य अप्रैल से मौतों के आंकड़े में खासी वृद्धि देखी गई है.

गांव के बुजुर्गों के मुताबिक, मृतकों के रिश्तेदारों की तरफ से श्मशान के करीब पीपल के पेड़ पर मिट्टी की मटकी टांगना इन क्षेत्रों की एक पुरानी परंपरा है. दाह संस्कार के बाद मृतक की याद में परिजन मिट्टी का बर्तन लटकाते हैं. परिवार का एक व्यक्ति हर शाम पेड़ के पास जाता है और मटकी में कुछ पानी डालता है और उसके नीचे एक दीया जलाता है. यह क्रम 12 दिनों तक चलता है, फिर मृत व्यक्ति के लिए अंतिम अनुष्ठान किया जाता है.

बांदा के अतर्रा गांव में रहने वाले करीब 60 वर्षीय बुजुर्ग कालिका प्रसाद इस बाबत बताते हैं, ‘ऐसा माना जाता है कि 13वें दिन अंतिम अनुष्ठान पूरा होने तक पीपल के पेड़ की शाखा पर मिट्टी की मटकी लटकाने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. अंतिम अनुष्ठान होने के बाद मिट्टी के बर्तन को नीचे उतारकर तोड़ दिया जाता है.’

बांदा के जिन भी गांवों का दिप्रिंट ने इस हफ्ते दौरा किया, वहां के लोगों ने बताया कि हालांकि, पहले किसी भी दिन ऐसी एक या दो मटकी ही नज़र आती थीं, पिछले एक महीने में लगभग हर दूसरे दिन पेड़ों पर करीब एक दर्जन नई मटकियां नज़र आ जाती हैं.

अतर्रा गांव के निवासी मुन्ना तिवारी ने कहा, ‘मुझे याद नहीं है कि मैंने बांदा में ऐसा नजारा पहले कभी देखा हो…पिछले एक महीने में जितनी मौत यहां हुई हैं, उसका कोई हिसाब नहीं है.’

तिवारी, गांव के श्मशान घाट के पास स्थित श्री गौराबाबा मंदिर में मृतकों का अंतिम संस्कार कराते हैं. पहले जहां वह महीने में दो से तीन ऐसे अनुष्ठान करते थे, अब उन्हें हर दूसरे दिन ऐसे पांच अनुष्ठान के लिए बुलाया जाता है.

यद्यपि आधिकारिक आंकड़ों में कोविड-19 मामलों की संख्या 200 के अंदर है और इसके कारण होने वाली मौतें भी सिंगल डिजिट में हैं लेकिन गांवों में मरने वाले लोगों का वास्तविक आंकड़ा बहुत ज्यादा है.

भुजुआन पुरवा गांव के एक किसान जहीर अली ने कहा, ‘पिछले दस दिनों में हमारे गांव में तीन-चार मौतें हुई हैं. और मरने वालों में बुखार और सांस लेने में तकलीफ जैसे (कोविड के) लक्षण थे.’

पिछले साल देश में पहली कोविड लहर बांदा के लिए इतनी घातक नहीं रही थी. स्थानीय लोगों ने बताया कि उस समय इतने मामले नहीं आए थे. मौतों का आंकड़ा भी कम था.

Dr Mukesh Yadav, principal, Government Allopathic Medical College and Hospital, Banda | Moushumi Das Gupta | ThePrint
बांदा के सरकारी एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. मुकेश यादव | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

बांदा स्थित गवर्नमेंट एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के प्रिंसिपल डॉ. मुकेश यादव ने कहा कि दूसरी लहर के दौरान जिले में मृत्यु दर बहुत अधिक बढ़ गई है. मेडिकल कॉलेज से संबद्ध इस अस्पताल में 400 बेड हैं.

डॉ. यादव ने कहा, ‘पिछले साल, हमें पूरी पहली लहर के दौरान आठ से अधिक ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग नहीं करना पड़ा. मामले इतने गंभीर नहीं थे. इस बार तो ऑक्सीजन सिलेंडर मिलते ही खत्म हो जा रहे हैं. मांग बहुत ज्यादा है. मैं तो इसकी गिनती ही भूल गया कि हमने अब तक कितने सिलेंडर इस्तेमाल किए हैं.’

ग्रामीणों को खासकर इस बात से ज्यादा डर लग रहा है कि मरने वालों में बड़ी संख्या युवाओं की है, जो 30 साल और 50 साल के करीब हैं और मरीजों की स्थिति इतनी तेजी से बिगड़ रही है कि अक्सर किसी के बीमार पड़ने और उसकी मौत हो जाने के बीच सिर्फ कुछ ही दिनों का अंतर होता है.

हालांकि, टेस्ट के अभाव में मौतों का कारण कोविड ही होने की पुष्टि नहीं की जा सकती है. कई कोविड मरीज शुरू में निगेटिव भी आ रहे हैं और केवल सीटी स्कैन से ही वायरस की मौजूदगी की पुष्टि हो पा रही है.

इस बीच, टीकाकरण के बाद लंबे समय तक बुखार आने और भले ही इसका कोई परस्पर संबंध न हो लेकिन कुछ लोगों की टीके की एक खुराक लेने के बाद भी हुई मौत ने तमाम लोगों को कोविड टीकाकरण को लेकर मन में डर बैठा दिया है.

ग्रामीण यहां पर मामलों में अचानक वृद्धि के लिए जहां पीछे वैक्सीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं डॉक्टरों का कहना है कि क्षेत्र में कोविड मामले राज्य में पंचायत चुनावों के कारण बढ़े हैं और ग्रामीण मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाए रखने जैसे कोविड प्रोटोकॉल का भी पालन नहीं कर रहे हैं.

कुछ ग्रामीण अब यह जरूर कर रहे हैं कि वे कोविड के बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश में लगे हैं और बीमारी के खिलाफ इम्युनिटी बढ़ाने के लिए घरेलू नुस्खे सुझा रहे हैं.


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मौतों के मामले अचानक बढ़े

ग्रामीणों ने कहा कि अधिकांश मौतें उन लोगों की हुईं जो 30 और 50 साल की आयु वर्ग में थे, उनके बीमार होने और मौत होने के बीच पांच से सात दिनों का ही अंतर रहा. इससे ग्रामीणों के बीच दहशत और बढ़ गई है.

कई मामलों में लक्षण कोविड जैसे ही रहे थे— सर्दी होना और फिर बुखार और सांस लेने में तकलीफ और कुछ मामलों में तो दिल का दौरा पड़ा.

लेकिन गांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के डॉक्टरों ने दिप्रिंट को बताया कि टेस्ट के अभाव में इन्हें कोविड मौतों के तौर पर दर्ज नहीं किया गया है.

बहेरी गांव में सीएचसी के प्रभारी डॉ नीरज पटेल ने कहा, ‘पहले की तुलना में, पिछले एक महीने में गांवों में अधिक मौतें हुई हैं. लेकिन अब स्थितियां नियंत्रण में आ रही हैं.’

हालांकि, टेस्ट के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि मौतें कोविड की वजह से हुईं. लेकिन डॉ. पटेल भी इससे सहमति जताते हैं, ‘कई मामलों में हमें सुनने में आ रहा है कि लक्षण कोविड-19 से मिलते-जुलते थे.’

अतर्रा डिग्री कॉलेज स्थित लाइब्रेरी में काम करने वाले 46 वर्षीय राम नारायण सिंह 26 अप्रैल को उस समय निढाल होकर गिर पड़े जब उन्हें सीटी स्कैन मशीन में ले जाया जा रहा था और उनकी मौत हो गई. उन्हें पिछले पांच-छह दिनों से बुखार आ रहा था और जब उन्होंने सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की, तो परिजनों ने अस्पताल ले जाने का फैसला किया.

राम नारायण के छोटे भाई राजू ने कहा, ‘हमने उनका टेस्ट नहीं कराया क्योंकि उन्हें हल्का बुखार था. वह गांव के स्थानीय डॉक्टर की तरफ से दी गई कुछ दवाएं ले रहे थे. जब हालत बिगड़ी तो हमने जिला अस्पताल ले जाने का फैसला किया.’

राजू ने बताया, अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें सीटी स्कैन कराने के लिए कहा. भाई की मौत से बेहाल राजू ने बताया, ‘हम उन्हें सीटी स्कैन रूम में ले गए लेकिन जैसे ही उन्हें मशीन पर लिटाया जाने लगा, वो गिर गए. हम उन्हें बचा नहीं सके.’ साथ ही कहा कि उनके भाई एकदम फिट थे और उन्हें पहले कभी कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं रही थी.

Ram Narayan Singh’s cousin (in red shirt) holds his photo. Singh, died on 26 April after suffering from fever and shortness of breath | Moushumi Das Gupta | ThePrint
राजू सिंह के कज़िन (लाल शर्ट में), सिंह की 26 अप्रैल को बुखार को सांस की दिक्कतों के कारण मृत्यु हो गई थी | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

उन्होंने बताया कि परिवार अब भी सदमे की स्थिति में है.

कई अन्य गांवों में भी मौतों का ऐसा ही मंजर नज़र आया है.

जहां नारायण सिंह की मृत्यु हुई, वहां से कुछ ही दूर स्थित एक गांव में स्थानीय स्कूल में ड्राइवर का काम करने वाले 26 वर्षीय बृजेश गर्ग का परिवार रहता है. 48 घंटे के अंदर उनके परिवार में दो मौतें हुई हैं.

गर्ग ने बताया, ‘सबसे पहले मेरी 74 वर्षीय दादी का 27 अप्रैल की सुबह निधन हुआ. उन्हें 24 अप्रैल से तेज बुखार आ रहा था और सीने में जकड़न थी. हम उन्हें एक डॉक्टर के पास ले गए जिसने कुछ दवाएं लिखीं. लेकिन इससे उसे कोई राहत नहीं मिली.’

बृजेश के 55 वर्षीय पिता जगदीश प्रसाद गर्ग, जो किसान थे, भी 25 अप्रैल को बीमार पड़ गए थे और उन्हें तेज बुखार के साथ डायरिया हो गया.

27 अप्रैल की सुबह गर्ग और उनके दो भाई अपनी दादी को जिला अस्पताल ले जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन एंबुलेंस के आने से पहले ही उनकी मौत हो गई. दादी का अंतिम संस्कार करने के बाद वह घर लौटे ही थे कि देखा पिता की हालत बिगड़ गई है.

गर्ग ने बताया, ‘हमने उन्हें जिला अस्पताल पहुंचाया. लेकिन वह बच नहीं पाए. 48 घंटों के भीतर हमने अपनी दादी और पिता दोनों को खो दिया.’

बृजेश गर्ग और उसके भाई. इनके पिता और दादी दोनों की 48 घंटे के भीतर मृत्यु हो गई. दोनों को कोविड जैसे लक्षण थे. | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

बांदा के मर्दन नाका इलाके में पिछले एक पखवाड़े में छह मौतें हुई हैं, जहां पीड़ितों में बुखार और सांस लेने में तकलीफ जैसे समान लक्षण ही थे.

Mohammed Kasim's father (seated). The 70-year-old lost his 42-year-old son recently | Moushumi Das Gupta | ThePrint
मोहम्मद कासिम के पिता. 70 वर्षीय पिता ने हाल ही में अपने 42 साल के बेटे को खोया है | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

42 साल का मोहम्मद कासिम इन्हीं में से एक था. उसके 70 वर्षीय पिता ने बताया, ‘वह बिल्कुल ठीक-ठाक था. लेकिन 26 अप्रैल को उसे अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी. हम उसे एक निजी अस्पताल ले गए लेकिन उसे ज्यादा आराम नहीं मिला. हम उसे मध्य प्रदेश के दतिया स्थित एक अच्छे निजी अस्पताल ले जा रहे थे, जिसे हमारे एक रिश्तेदार ने सुझाया था. हमने बमुश्किल पांच किलोमीटर का सफर ही तय किया होगा कि कासिम का निधन हो गया.’

डॉक्टरों का कहना है कि कई मामलों में चिकित्सा सहायता प्राप्त करने में देरी मौतों का आंकड़ा बढ़ा रही है.

बांदा मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. मुकेश यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘सबसे पहली बात तो ग्रामीण खुद या अपने परिवार में किसी व्यक्ति में कोविड जैसे लक्षण दिखने पर जानबूझकर इसकी सूचना नहीं दे रहे हैं. इसके पीछे (बीमारी को लेकर) बदनामी जैसा भाव छिपा है. जब तक कोई मरीज हमारे पास आता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.’

डॉ. यादव ने कहा कि यह समस्या बढ़ने का एक और कारण यह भी है कि कई मामलों में कोविड की पुष्टि के लिए कराए जाने वाले आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीजन टेस्ट दोनों में ही रिपोर्ट निगेटिव आती है जबकि मरीज में पूरे लक्षण कोविड जैसे दिख रहे होते हैं. उन्होंने कहा, ‘हम 20-30 प्रतिशत मामलों में ऐसा देख रहे हैं. जब सीटी स्कैन करवाते हैं तभी यह पुष्टि होती है कि मरीज को वास्तव में कोविड है. इस सबमें बहुत समय बर्बाद होता है.’


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ग्रामीणों ने टीकाकरण को जिम्मेदार ठहराया

ज्यादातर मामलों में जिन लोगों की मौत हुई, वो टीके की पहली खुराक ले चुके थे. हालांकि, इन दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं हैं लेकिन मौतें बढ़ने को देखते हुए बांदा और उससे लगे चित्रकूट जिले के गांवों के लोगों ने टीकाकरण से दूरी जरूर बना ली है.

अप्रैल मध्य से बांदा और चित्रकूट के गांवों में दैनिक टीकाकरण के आंकड़ों में अचानक गिरावट दर्ज की गई है.

अतर्रा (शहरी) सीएचसी के प्रभारी डॉ. शिव सागर सिंह ने कहा, ‘पिछले एक पखवाड़े से हम 45 से अधिक आयु वर्ग के लोगों में औसतन 30 लोगों (प्रतिदिन) का टीकाकरण कर रहे हैं. अनौपचारिक तौर पर हमें प्रतिदिन लगभग 120 लोगों को टीका लगाने को कहा गया था. लेकिन लोगों में डर बैठ गया है कि टीके उनकी जान ले लेंगे.’

A funeral being performed at a village in Banda's Mahua Block, Monday | Moushumi Das Gupta | ThePrint
मोहम्मद कासिम के पिता. 70 वर्षीय पिता ने हाल ही में अपने 42 साल के बेटे को खोया है | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

जिले भर के स्वास्थ्य केंद्रों में हाल कुछ ऐसा ही है.

बहेरिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. पटेल ने कहा कि उनके केंद्र पर अब प्रतिदिन केवल 10 लोग टीकाकरण के लिए आ रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘लगभग एक महीने पहले हम हर दिन 80-90 लोगों को टीका लगाते थे.’

हर सुबह महुआ ब्लॉक, जहां कोल्ड चेन स्थित है, से एक वाहन आइसबॉक्स में वैक्सीन की खुराक लेकर बहेरिया सीएचसी तक आता है. डॉक्टर पटेल ने बताया, ‘इन दिनों हम हर शाम बक्से को कोल्ड स्टोरेज में लौटा रहे हैं. अन्यथा, टीके बर्बाद हो जाएंगे.’

चित्रकूट के जिला टीकाकर अधिकारी डॉ. मुकेश पहाड़ी ने कहा कि अप्रैल मध्य तक बड़ी संख्या में लोग टीकाकरण के लिए आ रहे थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है.

डॉ. पहाड़ी ने कहा, ‘हमने यह भी देखा है कि ज्यादातर मामलों में टीकाकरण के बाद बुखार अब सामान्य तीन-चार दिनों के बजाये कम से कम 15-20 दिन रहता है. हमने इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों को सूचित कर दिया है.’

उन्होंने कहा कि ज्यादा समय तक बुखार आने के कारण लोग टीका लगवाने से कतराने लगे हैं.

डॉ. पहाड़ी ने बताया, ‘जनवरी में हम हर दिन लगभग 100 से 120 लोगों का टीकाकरण कर रहे थे. लेकिन फिर यह संख्या तेजी से घट गई. अब, हम औसतन एक दिन में 30-40 लोगों को ही टीका लगा रहे हैं. हम आशा कार्यकर्ताओं को ग्रामीणों को टीके लगवाने के लिए राजी करने के लिए भेज रहे हैं लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं हो रहा.’


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प्रभावितों की मदद के लिए ग्रामीण आगे आए

इस बीच, जब गांवों में टेस्टिंग की कोई व्यवस्था नहीं हो पा रही है— डोर टू डोर स्क्रीनिंग की उत्तर प्रदेश सरकार की घोषणा के बावजूद स्वास्थ्यकर्मियों की कमी के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा— कुछ ग्रामीण अब बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने और सर्दी-खांसी दूर करने वाले काढ़ा जैसे घरेलू नुस्खे और शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने वाली बुनियादी दवाएं, विटामिन-सी और जिंक कैप्सूल आदि बांटने के लिए आगे आ रहे हैं.

अतर्रा में स्वैच्छिक संगठन विद्या धाम समिति चलाने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता राजा भैया | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

अतर्रा में स्वैच्छिक संगठन विद्या धाम समिति चलाने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता राजा भैया ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम लगभग 1,000 परिवारों को कोरोना रक्षक किट बांट रहे हैं, जो कोरोना से संक्रमित हैं या उसके जैसे लक्षणों से पीड़ित हैं. इस किट में काढ़ा के अलावा विटामिन सी, जिकं की गोलियां, एक थर्मामीटर, साबुन और सैनिटाइजर आदि चीजें होती हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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