नई दिल्ली: यदि आयकर रिटर्न संबंधी डेटा के ट्रेंड के संकेतों को समझा जाए तो पता चलता है कि आर्थिक सुस्ती और उसके बाद आई महामारी ने 2019-20 में करदाताओं की व्यक्तिगत आय पर गहरी चोट की है.
आयकर विभाग की ई-फाइलिंग वेबसाइट में दर्ज किए गए 2020-21 के आंकड़ों के मुताबिक, 5 लाख रुपये सालाना से अधिक की आय वाली सभी श्रेणियों में टैक्स रिटर्न में गिरावट आई है, सबसे ज्यादा गिरावट उन लोगों के मामले में दिखी है जिनकी आय 50 लाख रुपये से अधिक है.
डेटा दर्शाता है कि पिछले वर्ष की तुलना में पांच लाख से ऊपर आय दर्शाने वाले करदाताओं की तरफ से रिटर्न फाइल करने में 5 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है.
हालांकि, कुल टैक्स रिटर्न में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण ऐसे करदाताओं की संख्या 15 प्रतिशत बढ़ना है, जिनकी आय सीमा 5 लाख रुपये तक है.
यह डेटा मुख्य तौर पर वित्तीय वर्ष 2019-20 या आकलन वर्ष 2020-21 के लिए दायर टैक्स रिटर्न से संबंधित है. इसलिए, यह लोगों और उनकी आय पर महामारी के आर्थिक असर को सही मायने में नहीं दर्शाता है, सिवाये इसके कि संभवत: इसमें मार्च 2020 में समाप्त तिमाही में पड़ा असर नज़र आता है, जब महामारी ने भारत में दस्तक दी थी. 25 मार्च 2020 को देशव्यापी लॉकडाउन किया गया था.
इस डेटा के संबंध में प्रतिक्रिया के लिए दिप्रिंट ने 20 अप्रैल को ई-मेल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये आयकर विभाग के प्रवक्ता से संपर्क साधा था लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के समय तक कोई जवाब नहीं आया है.
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बड़ी गिरावट
डेटा दर्शाता है कि 1 करोड़ से अधिक की आय घोषित करने वाले करदाताओं की तरफ से फाइल किए जाने वाले रिटर्न की संख्या में 2020-21 में पिछले साल की तुलना में 23 प्रतिशत की कमी आई है.
इसी तरह, ऐसे करदाताओं की संख्या में करीब 21 प्रतिशत (20.6 प्रतिशत) की गिरावट आई है जिनकी आय 50 लाख से 1 करोड़ रुपये के बीच है. 20 लाख रुपये से 50 लाख रुपये के बीच आय दर्शाने वाले आयकरदाताओं में 8 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है.
आयकर रिटर्न के मामले में 10 लाख रुपये से 20 लाख रुपये वाले आय वर्ग और 5 लाख से 10 लाख रुपये के बीच वाले आय वर्ग में गिरावट क्रमशः 2 प्रतिशत और 5 प्रतिशत रही है.
दूसरी तरफ, 5 लाख रुपये तक की आय घोषित करके टैक्स रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में 15 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है, इससे पता चलता है कि तमाम करदाता फिसलकर निम्न आय वर्ग में आ गए हैं. डेटा बताता है कि यह ट्रेंड मुख्यत: व्यक्तिगत करदाताओं के टैक्स रिटर्न फाइलिंग में नज़र आया है.
अर्थशास्त्रियों और चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) की राय में इसके तमाम कारण हो सकते हैं.
सबसे पहले तो आर्थिक मंदी ने 2019-20 में ही आय और नौकरियों पर प्रतिकूल असर डाला. 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से गिरकर 4 प्रतिशत पर पहुंच गई जो 2018-19 में 6.5 प्रतिशत थी.
दूसरा, हो सकता है कि कुछ करदाताओं ने फरवरी 2019 के अंतरिम बजट में 5 लाख रुपये से कम कर योग्य आय के संदर्भ में घोषित आयकर छूट का लाभ उठाने के लिए अपनी आय 5 लाख रुपये से कम दर्शायी हो. लेकिन ऐसी स्थिति में इसका असर 5 से 10 लाख रुपये की आय सीमा वाली श्रेणी पर पड़ता न कि उच्च आय वर्ग वाली श्रेणियों में.
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‘अच्छा साल नहीं था’
बेंगलुरू स्थित डॉ. बी.आर. आंबेडकर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स यूनिवर्सिटी के कुलपति एन.आर. भानुमूर्ति ने कहा कि टैक्स रिटर्न ‘देश की आर्थिक वृद्धि से जुड़ा एक फंक्शन है.’
उन्होंने कहा, ‘लॉकडाउन की घोषणा मार्च 2020 में की गई थी लेकिन सेवा क्षेत्र इससे बहुत पहले से ही प्रभावित हो चुका था जिससे बड़े पैमाने पर रोजगार गए. चौथी तिमाही की शुरुआत के साथ ही भविष्य में आय को लेकर अनिश्चितता के रूप में इसका आर्थिक असर साफ नज़र आने लगा था. इसकी वजह से ही उच्च आय वर्ग के बीच टैक्स रिटर्न में गिरावट आई होगी.’
भानुमूर्ति ने आगे कहा कि 2020-21 के लिए अर्थव्यवस्था में 8 प्रतिशत की वास्तविक कमी के पूर्वानुमान और करीब 1 कर उछाल के साथ आकलन वर्ष 2021-22 के लिए टैक्स रिटर्न में और तेजी से गिरावट आएगी.
कर उछाल भारत में न्यूनतम सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिए जुटाए जाने वाले राजस्व की संवेदनशीलता को दर्शाता है.
एन.एन. वाडिया एंड कंपनी के साथ बतौर चार्टर्ड एकाउंटेंट जुड़े निखिल वाडिया कहते हैं कि 2019-20 अर्थव्यवस्था के लिहाज से अच्छा साल नहीं था और जब कोविड ने दस्तक दी तो हालात और बिगड़ गए.
उन्होंने कहा, ‘जब कोविड ने भारत में दस्तक दी तो कई कंपनियों ने साल के अंत में दिए जाने वाले अपने बोनस रोक दिए और इससे आय पर प्रतिकूल असर पड़ा. इससे पहले जुलाई 2019 के बजट का भी व्यापारी वर्ग ने कोई खास स्वागत नहीं किया था.’
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