scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमराजनीतिबंगाल में BJP के विस्तार के बावजूद ममता बनर्जी की जीत के पीछे क्या हैं 5 कारण

बंगाल में BJP के विस्तार के बावजूद ममता बनर्जी की जीत के पीछे क्या हैं 5 कारण

मौजूदा रुझानों से पता चलता है कि जिन 292 सीटों पर चुनाव हुआ, तृणमूल कांग्रेस उनमें से 208 सीटों पर आगे चल रही है जबकि बीजेपी 79 सीटों पर आगे है.

Text Size:

कोलकाता: मौजूदा रुझान जो इशारा कर रहे हैं, उनके मुताबिक ऐसा लगता है कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में अपनी सत्ता बचाए रखने में कामयाब हो गई हैं.

सीएनएन-न्यूज़ 18 के अनुसार, ताज़ा रुझानों से पता चलता है कि जिन 292 सीटों पर चुनाव हुआ, तृणमूल कांग्रेस उनमें से 208 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि बीजेपी 79 सीटों पर आगे है.

मतगणना के शुरूआती चरणों में पिछड़ने के बाद, नंदीग्राम से ममता बनर्जी हार गई हैं. ममता के करीबी सहायक रहे शुभेंदु अधिकारी का ये गढ़ माना जाता है.

ये हैं वो पांच कारण जिनकी वजह से बनर्जी एक बार फिर बंगाल की चुनावी दौड़ में सबसे आगे दिखाई दे रही हैं.


यह भी पढ़ें: तीसरी बार बंगाल में सरकार बनाने की ओर बढ़ीं ममता, TMC200+ सीटों पर और BJP को 80 से कम सीटों पर बढ़त


बीजेपी में कोई सीएम पद का चेहरा न होना

बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फिर जाने का, पहला और सबसे अहम कारण है किसी भरोसेमंद स्थानीय सीएम चेहरे का न होना. बंगाल के लोगों के लिए बनर्जी हमेशा से मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर एक ज़्यादा स्वीकार्य चेहरा रही हैं, हालांकि राज्य के ग्रामीण इलाकों में, उनकी पार्टी को कथित रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप झेलना पड़ा.

बीजेपी के प्रचार की अगुवाई मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने की थी. लेकिन स्पष्ट है कि मतदाताओं ने उनके साथ वो जुड़ाव महसूस नहीं किया, जो वो दीदी  के साथ करते हैं.

‘बाहरी’ का तंज़ काम आया

बनर्जी की उप-क्षेत्रीय राजनीति और मोदी-शाह को ‘बाहरी’ बताने का उनका प्रचार काम कर गया. ऐसा प्रतीत होता है कि बंगाली राष्ट्रवाद का उनका आह्वान, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘बाहरी’ लोग बंगाल की समावेशी संस्कृति को नहीं समझते, स्पष्ट रूप से उनके पक्ष में काम कर गया.


यह भी पढ़ें: भाजपा के ‘मेट्रो मैन’ श्रीधरन केरल के पलक्कड़ में 3,000 से अधिक मतों से आगे चल रहे हैं


कल्याणकारी योजनाएं

खासकर महिलाओं के लिए बनर्जी की नकदी योजनाओं– जैसे कन्याश्री और रूपाश्री- ने उन्हें चुनावों में लाभ पहुंचाया है.

कन्याश्री स्कीम में कक्षा 8 में पहुंचने पर कन्या को 25,000 रुपए मिलते हैं. रूपाश्री स्कीम में कन्या के 18 वर्ष का होने पर उसके परिवार को 25,000 रुपए देने का वादा किया जाता है.

चावल और मुफ्त राशन जैसी ज़रूरी चीज़ें उपलब्ध कराने की सामाजिक क्षेत्र की उनकी स्कीम ने भी लगता है उन्हें फायदा पहुंचाया है- हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में ‘कट-मनी’ और जबरन उगाही को लेकर टीएमसी को भारी नाराज़गी का सामना करना पड़ रहा था.

सीपीएम-कांग्रेस वोट बैंक ममता के पक्ष में गया

सीपीएम-कांग्रेस वोट बैंक, जिसने 2019 लोकसभा चुनावों में 18 सीटें और 40 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने में बीजेपी की मदद की थी, इस बार बनर्जी के पक्ष में गया लगता है.

बनर्जी के वोट शेयर में 6 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है- राज्य में 43 प्रतिशत से बढ़कर 49 प्रतिशत- जबकि बीजेपी का वोट शेयर 40 प्रतिशत से घटकर 37 प्रतिशत पर आ गया.

मुसलमान मतदाता जो पहले सीपीएम-कांग्रेस के गठबंधन में विश्वास रखते थे, अब स्पष्ट रूप से बनर्जी के साथ आ गए हैं. इसका बुनियादी कारण ये लगता है कि उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ बड़ी मज़बूती से आक्रामक प्रचार किया था.

ध्रुवीकरण से टीएमसी को फायदा

ध्रुवीकरण की राजनीति से बीजेपी को कुछ फायदा ज़रूर मिला लेकिन उसने तृणमूल के पक्ष में ज़्यादा काम किया.

ध्रुवीकरण से बीजेपी को कुछ हिंदू वोट हासिल करने में सहायता मिली और उसे दक्षिण बंगाल के कुछ इलाकों में मज़बूती मिली लेकिन उसने मुसलमानों को एक साथ बनर्जी के पाले में ला दिया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: केरल में ‘कैप्टन’ पिनराई विजयन के नेतृत्व वाला LDF कैसे दशकों पुराना रिकॉर्ड तोड़ने को तैयार


 

share & View comments