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Friday, 22 November, 2024
होमदेशकोविड में तेजी और लॉकडाउन के डर के बावजूद प्रवासी खेत मजदूर पंजाब क्यों नहीं छोड़ना चाहते हैं

कोविड में तेजी और लॉकडाउन के डर के बावजूद प्रवासी खेत मजदूर पंजाब क्यों नहीं छोड़ना चाहते हैं

2020 के लॉकडाउन और उसके बाद बड़ी संख्या में प्रवासियों के पलायन ने पंजाब को अच्छी-खासी परेशानी में डाल दिया था क्योंकि यह रबी खरीद के सीजन और धान रोपाई के समय से ठीक पहले हुआ था.

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पटियाला: कोविड मामलों में तेज उछाल ने देश के तमाम राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में एक बार फिर लॉकडाउन के आसार पैदा कर दिए हैं. कई जगहों से ऐसी रिपोर्ट मिली हैं कि पिछले साल जैसी स्थिति न आए इसलिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर रवाना होने लगे हैं—अहमदाबाद, गुरुग्राम और पुणे इसके प्रमुख उदाहरण हैं. पिछले साल अचानक हुआ लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों की जिंदगी अधर में लटक गई थी.

हालांकि, कोविड-19 से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से एक पंजाब के कई मजदूरों का कहना है कि उन्होंने अभी तक अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर यहां से चले जाने की कोई योजना नहीं बनाई है.

गेहूं की कटाई और खरीद का काम चल रहा है, और धान की बुवाई भी शुरू होने वाली है. यहां बहुत काम है और, साथ ही एक स्थिर आय का साधन भी है.

दरभंगा, बिहार के एक खेतिहर मजदूर गणेश कुमार ने कहा, ‘चाहे कोविड हो या कुछ और, हमें अपना पेट भरने का इंतजाम तो करना ही होगा. अगले 26 से 45 दिनों तक बहुत काम है खेतों में गेहूं की कटाई चल रही है और मंडियों में बिक्री भी शुरू हो चुकी है. इसके बाद पंजाब के तमाम खेतों में धान की रोपाई का काम शुरू हो जाएगा. वापस जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है.’

पंजाब में रबी खरीद सीजन 2021-22, जो 10 अप्रैल से शुरू हुआ है, के दौरान इस साल 14 अप्रैल तक राज्य से 10.6 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) गेहूं की खरीद हुई है. 2020-21 और 2019-20 में इसी अवधि के आंकड़े क्रमशः शून्य एलएमटी और 0.15 एलएमटी थे. आने वाले दिनों में खरीद में और तेजी के आसार हैं.

धान की बुआई जून में शुरू होती है. देशभर से खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी खेत मजदूरों की पंजाब की खेती में अहम हिस्सेदारी रही है. उनकी भूमिका मुख्य तौर पर खेतों में हाथों से धान रोपने, और राज्य भर में मंडियों में पहुंचाने के लिए कटाई के बाद खाद्यान्नों की सफाई, पैकिंग और लोडिंग आदि में होती है.

पंजाब में अनुमानित तौर पर आठ लाख प्रवासी मजदूत खेती से जुड़े कार्यों मे लगे है और 2,500 से 3,600 रुपये प्रति एकड़ के बीच कमाते हैं.

गणेश ने बताया कि इसके उलट घर में कोई नियमित रोजगार नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हालांकि दर समान ही है, घर पर 300 रुपये प्रतिदिन और यहां 500 रुपये प्रतिदिन. लेकिन यहां हमारे पास नियमित काम है.’

स्थिर आय का साधन होना तो एक प्रमुख कारण है ही, तमाम प्रवासी मजदूर अन्य कारणों से भी इस बार घर जाने के बजाये यहीं रहना चाहते हैं.

इसमें से एक वजह वे पंजाब के आतिथ्य भाव को बताते हैं जो इसे दूसरी जगहों की तुलना में बेहतरीन बनाती है. कुछ लोगों का कहना है कि वह पिछले साल झेले गए कष्ट की यादों से अब तक उबर नहीं पाए हैं, जब वह सब कुछ छोड़कर चले गए थे और फिर उनके सामने रोजगार का संकट आ खड़ा हुआ था.

फिर एक तथ्य यह भी है कि उनके राज्य में टिके रहने के लिए किसान और आढ़ती अपनी तरफ से हरसंभव उपाय कर रहे हैं, जिसमें भोजन से लेकर प्राथमिक चिकित्सा और रहने की व्यवस्था तक सब कुछ शामिल है.


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‘रहने के लिए एक अच्छी जगह’

पिछले साल लॉकडाउन के कारण पंजाब में बड़ा संकट खड़ा हो गया था, क्योंकि यह रबी खरीद का समय था और फिर धान की बुवाई होनी थी, जिसमें लाखों मजदूरों की आवश्यकता होती है.

कोविड-19 प्रकोप के कारण बड़ी संख्या में लोगों के घर लौटने के कारण पिछले साल राज्य में आवश्यक प्रवासी श्रम शक्ति में से केवल 5-7 प्रतिशत ही उपलब्ध थी.

इसके बाद तो यहां उपलब्ध स्थानीय मजदूरों ने इन कामों के लिए ज्यादा मजदूरी की मांग शुरू कर दी. धान की रोपाई के लिए वह 4,500 से 5,500 रुपये प्रति एकड़ की दर से भुगतान चाहते थे, जो कि कोविड संकट से पहले तक 2,500 रुपये से 3,600 रुपये प्रति एकड़ (यह राशि एकड़ के हिसाब से निर्धारित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के बीच बंट जाती है) की दर की तुलना में 25-53 प्रतिशत ज्यादा था.

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद सैकड़ों की संख्या में पंचायतों को यह दर अधिकतम 2,500 से 3,000 रुपये प्रति एकड़ तक सीमित करने के लिए आगे आना पड़ा और उन किसानों पर जुर्माना भी लगाया गया जो अधिक भुगतान कर रहे थे.

इन सबके बीच धान की रोपाई का चक्र भी कुछ आगे बढ़ गया. चूंकि, लॉकडाउन के दूसरे चरण में कृषि संबंधी गतिविधियों की अनुमति थी, इसलिए कुछ किसानों ने मजदूरों को लाने के लिए परिवहन की भी व्यवस्था की.

इस दौरान कुछ लोगों ने धान की रोपाई, जो कि भारत में धान की खेती का ज्यादा प्रचलित तरीका है जिसमें धान के बीजों को नर्सरी में उगाने के बाद उन्हें खेतों में रोपा जाता है, के बजाये सीधे बुवाई करने का तरीका भी अपनाया.

मोतिहारी, बिहार की रहने वाली एक खेत मजदूर रिंकी देवी ने कहा कि वह पिछले साल राज्य में ही रुक गई थी. उसने बताया, ‘गेहूं की फसल के सीजन में हमें 6,000 रुपये प्रति माह तक मिल जाते हैं, जिससे हम पेट पाल सकते हैं और गुजर-बसर कर सकते हैं. इसलिए वापस नहीं जाना चाहते.’

उसका इस साल भी यहां से जाने का कोई इरादा नहीं है. उसने कहा, ‘हम गेहूं की कटाई के बाद भी पंजाब में ही रहेंगे. इसके बाद मक्का और धान का सीजन है, जिसमें हमें काम मिल जाएगा.’

रिंकी देवी अभी पंजाब की राजपुरा मंडी में काम कर रही हैं, जहां वह कटाई के बाद आए गेहूं की साफ-सफाई का काम करती है और बिक्री के लिए बोरियों में पैक करती हैं. उसने बताया, ‘हम कई तरह के काम करते हैं, जैसे कि गेहूं की सफाई, बोरों में गेहूं भरना और उन्हें लोड कराना.’

पिछले साल की तरह इस बार कोई कमी न हो इसके लिए पंजाब के किसानों और आढ़तियों ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रवासी मजदूरों को राज्य में रुके रहने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हों.

राजपुरा के किसान रवि ग्रोवर, जो स्थानीय अनाज मंडी में आढ़ती भी हैं, ने कहा, ‘हमने अपने मजदूरों के लिए इस वर्ष सभी जरूरी प्रबंध किए हैं जैसे रसोई, आवास और अन्य सुविधाएं मुहैया कराना. यह सब ये सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि वे पिछले साल की तरह अपने पैतृक गांवों न लौटें, क्योंकि उन्हें वापस लाने की लागत उन सुविधाओं से कहीं बहुत ज्यादा है जो हम उन्हें दे रहे हैं.’

पटियाला के खेतों में काम कर रहे बिहार के सुपौल निवासी एक खेत मजदूर सर्वेश मुखिया ने इस साल ऐसे तमाम प्रयास किए जाने की पुष्टि की. उसने बताया, ‘पिछले साल के पहले तक धान रोपाई के मौसम हमें किसानों की तरफ से खेत में बनाई गई कच्ची झोपड़ियों में ही रहना होता था. लेकिन पिछले साल से स्थितियां बदल गई हैं. अब हमें खेतों और मंडियों में काम करने के दौरान अपने परिवारों के साथ रहने के लिए कमरे मिलते हैं. हमारे मालिक और पंजाब में हमें रोजगार दिलाने वाले ठेकेदार हमारी अन्य जरूरतों जैसे भोजन, कपड़े और इलाज तक का प्रबंध भी कर रहे हैं.

उसने बताया, ‘उनकी तरफ से हमें मंडियों में एक फर्स्ट-एड किट और हैंड सैनिटाइजर भी मुहैया कराया जा रहा है जो पहले कभी नहीं मिलता था.’

पंजाब में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों का कहना है कि ये राज्य अन्य जगहों की तुलना में काम के लिहाज से सबसे बेहतर है.

बिहार के अररिया निवासी एक खेतिहर मजदूर अरुण कुमार यादव ने बताया, ‘पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जब हम अपने गांवों के लिए रवाना हो गए थे तो हमें पंजाब की सड़कों पर जगह-जगह भोजन उपलब्ध कराया गया था. हमारे लिए सबसे कठिन रास्ता तब शुरू हुआ जब हमने दिल्ली में कदम रखा और उसके बाद आगे की यात्रा की.’

यादव ने बताया, ‘मेरे रिश्तेदार जो ग्रेटर नोएडा में निर्माण श्रमिकों के रूप में काम करते थे, को पिछले साल लॉकडाउन के दौरान अपने गांव लौटने में बहुत ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि पंजाब में हमें मिले सहयोग के विपरीत उनके लिए रास्ते में कही भी भोजन या पानी उपलब्ध नहीं था.’

बहरहाल, तमाम प्रवासी मजदूर इस साल अपने गृह राज्य लौटने से इसलिए कतरा रहे हैं क्योंकि 2020 के कटु अनुभव उन्हें अभी भूले नहीं हैं. वे कहते हैं कि घर लौटने पर काम नहीं मिला और कुछ हफ्तों के बाद लौटने के लिए उन्हें ‘खासी कीमत’ चुकानी पड़ी.

गणेश भी उनमें से एक है. उसने कहा, ‘पिछले साल लॉकडाउन के बाद वापस आना बहुत मुश्किल था. ट्रेनों को बंद कर दिया गया, हमें बस से यात्रा करनी पड़ी, जिसमें टिकटों की कीमत 4,000 रुपये से 5,000 रुपये प्रति व्यक्ति थी.’

पटियाला के घनौर में काम करने वाले एक खेतिहत मजदूर फूलो मुखिया, जो दरभंगा, बिहार के रहने वाले हैं, का अनुभव भी कुछ इसी तरह का रहा था.

उन्होंने कहा, ‘लॉकडाउन के बाद हमें पंजाब लौटने के लिए बस में तीन गुना किराया चुकाना पड़ा. हम अभी तय नहीं कर पाए हैं कि यहीं रहना है या वापस घर जाना है. लेकिन ज्यादा संभावना यही है कि हम यहीं पर रुकेंगे क्योंकि गेंहू की कटाई चलने और फिर धान रोपाई का मौसम शुरू होने के साथ यहां पर हमारे पास रोजगार के मौके हैं.’


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