नई दिल्ली: संक्रमण का खतरा घटाने के लिए देशभर के कोविड-19 टीकाकरण केंद्रों में आधार-आधारित फेसियल रिकग्निशन प्रणाली जल्द ही बायोमेट्रिक फिंगरप्रिंट या आईरिस स्कैन मशीनों की जगह ले सकती है.
नरेंद्र मोदी सरकार आधार डाटा के जरिये चेहरे पहचानने की प्रामाणिकता की पुष्टि के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है.
नेशनल हेल्थ अथॉरिटी के सीईओ आर.एस. शर्मा ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि आधार एजेंसी भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने ‘चेहरा पहचानने का सर्वश्रेष्ठ एल्गोरिदम लागू किया है, जिसे अब हम उपयोग करने जा रहे हैं.’
शर्मा, जो कोविड टीकाकरण प्रशासन के लिए उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा, ‘हमने झारखंड में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है जो टीकाकरण केंद्रों में प्रतिदिन चेहरे पहचाने की प्रणाली के जरिये 1,000 से अधिक लोगों की पहचान की पुष्टि पूरी सफलता के साथ कर रहा है.’
उन्होंने कहा कि इस कदम से टीकाकरण की पूरी प्रक्रिया ‘टचलेस’ हो जाएगी.
उन्होंने आगे कहा, ‘अभी, टीकाकरण केंद्रों पर लाभार्थियों को बायोमेट्रिक पहचान देने के लिए मशीन पर अंगुलियों से छूने की जरूरत पड़ती है. उन्हें आईरिस प्रमाणीकरण के लिए भी उपकरण छूने पड़ते हैं.’
यूआईडीएआई के पूर्व प्रमुख ने आधार बनाने के दौरान इस्तेमाल की जाने प्रौद्योगिकी एकदम बेहतरीन होने की भी सराहना की. उन्होंने कहा, ‘सोचिए कि किसी व्यक्ति ने अपना आधार कार्ड 2011 में बनवाया होगा. और एक दशक के बाद भी यह सॉफ्टवेयर उसके चेहरे को पहचानने में सक्षम है. एक बार जब हम पायलट प्रोजेक्ट के तहत लगभग 50,000 से 60,000 चेहरों को पहचानने की पुष्टि कर लें, तो हम इसे पूरे देश में रोल आउट करेंगे.
को-विन अद्वितीय और सक्षम
भारत में कोविड टीकाकरण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए बनाए गए पोर्टल कोविड वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (को-विन) के बारे में शर्मा ने कहा कि यह प्लेटफार्म लाखों की संख्या में पंजीकरण के प्रबंधन में सक्षम है.
उन्होंने कहा, ‘यह प्रति सेकंड 10,000 यूजर का पंजीकरण स्वीकार कर सकता है. इस प्लेटफार्म पर लाखों की संख्या में पंजीकरण कराए जा सकते हैं.’ साथ ही बताया कि इस प्लेटफार्म पर अब तक पूरी ‘सहूलियत’ के साथ 30 लाख डिजिटल सर्टिफिकेट तैयार किए जा चुके हैं, जब अधिकतम संख्या में टीके लगाए गए.
को-विन को ‘अद्वितीय’ और ‘सक्षम’ बताते हुए उन्होंने कहा, ‘सिस्टम में 1 मार्च से अब तक किसी तकनीकी खामी की सूचना नहीं है और यह स्थानीय भाषाओं में डिजिटल प्रमाणपत्र प्रदान कर रहा है.’
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भारत के डिजिटल सर्टिफिकेट पर
शर्मा ने यह भी कहा कि भारत अपने डिजिटल प्रमाणपत्रों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने में जुटा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन डिजिटल टीकाकरण प्रमाणपत्र के लिए निर्णायक तौर पर मानक तय करने में अब भी काम कर रहा है.
भारत में टीका लगवाने वाले लोगों को साक्ष्य के तौर पर को-विन के माध्यम से डिजिटल प्रमाणपत्र दिए जाते हैं. इस प्रणाली में फास्ट हेल्थकेयर इंटरऑपरेबिलिटी रिसोर्स का उपयोग होता है, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप में स्वास्थ्य संबंधी जानकारी के आदान-प्रदान का एक अंतरराष्ट्रीय मानक है.
शर्मा ने कहा, ‘यह डिजिटल तौर पर सत्यापन योग्य प्रमाणपत्र होता है. सर्टिफिकेट पर क्यूआर कोड एन्क्रिप्ट किया गया है और जांचने पर यह अन्य सारी संबंधित जानकारियों के अलावा यह भी बताएगा कि प्राप्तकर्ता को वैक्सीन खुराक कब दी गई, कहां दी गई और कौन-सी वैक्सीन दी गई.
उन्होंने बताया कि जल्द ही लोगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा के लिए इन प्रमाणपत्रों की जरूरत पड़ सकती है. उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, घरेलू स्तर पर इन प्रमाणपत्रों का उपयोग इमारतों में प्रवेश के लिए भी किया जा सकता है.’
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