नई दिल्ली: दर्जन भर से ज्यादा कंपनियों से प्रतिक्रिया मिलने के बाद भारतीय नौसेना ने अपने जंगी जहाजों के लिए सिर्फ नए युटिलिटी हेलीकॉप्टर्स को लीज़ पर लेने का फैसला किया है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
नौसेना अपने 1960 के पुराने हो चुके चेतक को नए युटिलिटी हेलीकॉप्टर्स (एनयूएच) से जल्द बदलना चाहता है लेकिन 111 ऐसे चॉपर्स को रणनीतिक साझेदारी के तहत लेने की प्रक्रिया कई कारणों से फंसी हुई है.
इस कमी को पाटने के लिए नौसेना ने दो साल की अवधि के लिए कुछ हेलिकॉप्टर्स को लीज़ पर लेने का फैसला किया है ताकि चॉपर्स की कमी को जल्द पूरा किया जा सके जिसे कई भूमिकाओं में इस्तेमाल किया जाता है जिसमें खोज और रेस्क्यू, आकस्मिक निकासी और कम तीव्रता वाले समुद्री संचालन शामिल है.
रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के मुताबिक इसी लिए पिछले साल अक्टूबर में नौसेना ने दर्जन भर से ज्यादा कंपनियों जिसमें भारतीय कंपनियां भी शामिल थीं, फीलर्स भेजे थे- ये जानने के लिए कि वो क्या उपलब्ध करा सकते हैं.
कंपनियों में विदेशी ओईएम और भारतीय ऑपरेटर जैसे पवन हंस, एयर सफा और आर्यन एविएशन शामिल हैं, इसके अलावा शीर्ष कॉर्पोरेट घराने हैं जिनके पास अपने हेलिकॉप्टर हैं. नौसेना ने विभिन्न दूतावासों से भी जानकारी मांगी जिसमें यूनाइटिड किंगडम भी शामिल है.
नौसेना ने भारतीय ऑपरेटर्स से 24 चॉपर्स को लीज़ पर लेने की जानकारी मांगी जबकि 12-16 विदेशी ओईएम से भी इस संबंध में विवरण मांगा.
सूत्रों ने कहा कि फर्मों ने जवाब दिया और लीज़ की कीमत प्रति चॉपर 40 लाख से लेकर 3.4 करोड़ रुपए प्रति माह बताई.
यह भी पढ़ें: जातीय चिंताएं अब असम में कोई मुद्दा नहीं रह गया, यही मोदी-शाह की जोड़ी ने राज्य में हासिल किया है
जल्द जारी होगा आरएफआई
इस प्रक्रिया के आलोचकों ने कहा कि नौसेना ने उन सभी लोगों से जानकारी मांगी है, जिनके पास सिर्फ दो हेलीकॉप्टर भी थे और बिना इस बात को ध्यान में रखे हुए इसमें शामिल हो गए कि क्या कंपनियों के पास सेना के लिए विशेष हेलीकॉप्टरों की पेशकश करने के लिए वित्तीय और तकनीकी क्षमता है या नहीं.
हालांकि नौसेना के सूत्रों ने कहा कि ड्रोन के लीज़ की प्रक्रिया आसानी से पूरी हो गई थी, केवल एक कंपनी ही सवालों के घेरे में थी लेकिन सेना को मार्केट में क्या उपलब्ध है इसे जानने की कोशिश करनी चाहिए.
बोली की लागत में बड़े अंतर के बारे में और न्यूनतम बोली वाली कीमत 40 लाख रुपए को भी ध्यान में रखा जाए तो इतनी कीमत कौन देगा. सूत्रों ने कहा कि कई मानदंडों को ध्यान में रखकर कदम उठाए जा रहे हैं, जो अब तक किया गया है वो सिर्फ ये समझने के लिए है कि मार्केट क्या उपबल्ध करा सकता है.
कुछ प्रतिक्रियाओं से गुजरने के बाद अब सेना एक विस्तृत रिक्वेस्ट फॉर इनफार्मेशन (आरएफआई) के साथ आगे आएगी जिसे ओईएम को भेजा जाएगा. ये फैसला लिया गया है कि नौसेना केवल ‘नए हेलिकॉप्टर्स’ को लीज़ पर लेगी और इस प्रक्रिया में रखरखाव और मरम्मत की सुविधा भी शामिल होगी.
‘नए हेलिकॉप्टरों’ से मतलब है कि नौसेना केवल ओईएम से इसे पट्टे पर लेगी, न कि किसी ऐसे भारतीय परिचालक से जिसके हेलीकॉप्टर पहले से ही नागरिक क्षेत्र में उड़ान भर रहे हैं.
सूत्रों ने इस बात को स्वीकार किया कि ड्रोन को लीज़ पर लेने (जिसे 2 महीने में कर लिया गया था) के विपरीत इस प्रक्रिया में समय लग सकता है क्योंकि इसमें कई प्लेयर्स शामिल हैं.
जबकि यूरोपीय फर्म एयरबस, जो हेलीकॉप्टरों के पैंथर ग्रुप के अपने एएस565 एमबीई संस्करण की पेशकश कर रही है, को पट्टे पर देने और 111 एनयूएच की समग्र योजना के लिए अब तक सबसे आगे है. नौसेना के सूत्रों ने कहा कि यह अटकल लगाना अभी बहुत जल्दबाजी होगी कि ये कांट्रेक्ट किसे मिलेगा.
(संघमित्रा मजूमदार द्वारा संपादित)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा और टॉप कांग्रेस नेताओं ने बंगाल में अब तक क्यों नहीं किया प्रचार