सुप्रीम कोर्ट ने अनाम चुनावी बांड फिर से बाजार में उतारे जा सकने को हरी झंडी दिखाकर न केवल खुद को बल्कि लोकतंत्र को भी शर्मसार किया है. भले ही यह उदासीनता का नतीजा हो या फिर किसी तरह का दबाव, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. यह किसी संस्था का स्वत: पतन की ओर बढ़ना है. चुनावी बांड का जारी रहना सिर्फ इसलिए सही नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कोई फैसला नहीं लिया है.