रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा के घोषणापत्र के पेज नंबर छह में लिखा है कि स्थानीय रोजगार कानून बना कर राज्य के निजी क्षेत्रों में 75 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित किया जाएगा.
शनिवार 13 मार्च के स्थानीय अखबारों में ये खबर प्रमुखता से छपी कि सरकार ने यह फैसला ले लिया है. राज्य कैबिनेट ने श्रम, रोजगार एवं कौशल प्रशिक्षण विभाग की ओर से तैयार इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. अब इसे चालू विधानसभा सत्र में लाया जाएगा.
खबरों के मुताबिक झारखंड में काम कर रहे उद्योगों, कंपनियों में 30 हजार रुपए सैलरी तक वाले पदों पर ये नियम लागू होगा.
हालांकि, कंपनी अधिनियम की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध औद्योगिक इकाईयों को इससे मुक्त रखा जाएगा. इसके तहत पेट्रोलियम, फार्मास्यूटिकल, कोयला, उर्वरक, सीमेंट की कंपनियों में आरक्षण लागू नहीं होगा. यह भी प्रावधान किया गया है कि अगर कंपनियों को राज्य में प्रशिक्षित युवक-युवती नहीं मिलते हैं तो सरकार के साथ मिलकर तीन साल में ऐसे लोगों को प्रशिक्षित भी करेगी.
ऐसा करने वाला झारखंड देश का सातवां राज्य है. इससे पहले आंध्रप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार में भी यह नियम लागू किया गया है. हरियाणा में 50 हजार रुपए तक की सैलरी वाले पद को इस आरक्षण के दायरे में रखा गया है.
आंध्र प्रदेश के इस नियम को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है, वहां अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है. साथ ही हरियाणा में भी इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई है. वहीं बिहार में नवंबर 2017 में नीतीश कुमार ने निजी कंपनियों को भी आरक्षण के दायरे में लाने का प्रवाधान लागू कर दिया था.
जब स्थानीय परिभाषित ही नहीं, तब आरक्षण का लाभ कैसा
कंसलटेंट फॉर रूरल एरिया डेवल्पमेंट लिंक्ड इकोनॉमी नामक संस्था के मुख्य कार्यकारी और दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स के छात्र रह चुके प्रणय कुमार कहते हैं, ‘जब स्थानीय की परिभाषा ही परिभाषित नहीं है तो इसका इंप्लीमेंटेशन हो ही नहीं सकता.’
वह आगे कहते हैं, ‘हां, कुछ कंपनियां अगर इसे ईमानदारी से लागू करती हैं, तो उन्हें इसका लाभ जरूर मिलेगा. क्योंकि लॉकडाउन में जो स्किल्ड लेबर वापस आए हैं, उनमें बड़ी संख्या में लोग दुबारा बाहर के राज्यों में काम करने गए नहीं है. इन मजदूरों को वहां 8-10 हजार पगार के तौर पर मिलता था. यहां अगर 6000 रुपए की नौकरी भी मिलती है तो वह खुशी-खुशी करेंगे. ऐसे में उन कंपनियों को सस्ता लेबर यहां मिलेगा.’
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स्थानीयता की अलग है परिभाषा
मसला यहीं फंसेगा. क्योंकि अलग-अलग पार्टियों का स्थानीयता को लेकर अलग परिभाषा है. रघुवर दास के कार्यकाल में 1985 के पहले जो आ गए थे, उन्हें स्थानीय माना गया.
इसके अलावा जिनकी स्कूली शिक्षा यहीं हुई है, उन्हें भी इस कैटेगरी में रखा गया है. रघुवर के इस परिभाषा का हेमंत लगातार विरोध करते रहे है लेकिन जेएमएम के अध्यक्ष शीबू सोरेन ने हाल ही में कहा था कि वह स्थानीयता के लिए 1932 के खतियान (डोमिसाइल) को प्रमुख आधार मानेंगे.
यानी 1932 में हुए लैंड सर्वे सेटलमेंट में जिनके पास खतियान (डोमिसाइल) है, वो स्थानीय हैं. इन सब के बीच वास्तविक स्थिति ये है कि अभी तक स्थानीयता की परिभाषा तय ही नहीं है. यही नहीं, पहले की सरकार में तय नियोजन नीति को भी वर्तमान सरकार ने रद्द कर दिया है. ऐसे में जब तक नियोजन नीति नहीं बनती, इस घोषणा का कोई असर नहीं होने जा रहा.
खास बात ये है कि सरकार की तरफ से इसकी अधिकारिक घोषणा नहीं की गई है. यहां तक कि कैबिनेट ब्रीफ में भी पत्रकारों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई और न प्रेस विज्ञप्ति में इसका जिक्र किया गया. लेकिन कैबिनेट के मुहर वाले कागजात (शायद लीक की गई है) में इसका साफ जिक्र है.
स्थानीय नीति, नियोजन नीति लाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास कहते हैं, ‘सरकार ने अभी तक अधिकारिक तौर पर कुछ कहा नहीं है. कैबिनेट से पास होने की सूचना भी नहीं दी गई है. सदन के पटल पर आना बाकी है. मैं इसके बाद ही इसपर कुछ बोलूंगा.’
हेमंत सरकार का पॉलिटिकल स्टंट मात्र है यह घोषणा
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य दीपक प्रकाश ने इसे सरकार का पॉलिटिकल स्टंट बताया. उन्होंने कहा, ‘इस सरकार के कथनी और करनी में मौलिक अंतर है. नियोजन नीति भी नहीं लाई है.जिसके कारण 30-25 हजार नौजवानों के हाथ से रोजी रोटी चली गई.’
दीपक आगे कहते हैं, ‘शिक्षक आज अधर में हैं, उनके घर में चूल्हे नहीं जल रहे हैं. अगर थोड़ी भी नैतिकता बची है तो सरकार पहले नियोजन नीति लाए.’
वहीं राज्य के श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता का कहना है कि यह फैसला राज्य के लाखों युवाओं को लाभ पहुंचाएगा. जल्द ही इसे विधानसभा से भी पारित करा लिया जाएगा. वहीं स्थानीय नीति और नियोजन नीति के सवाल पर उन्होंने फोन काट दिया.
झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष दीपक मारू ने कहा, ‘हम इसकी सराहना करते हैं. लेकिन बिना तैयारी के इस फैसले को लाया गया है.’
उन्होंने कहा, ‘इस नियम को लागू होने में एक दो साल लगेंगे. लेकिन चैंबर इस बात को लेकर चिंतित है कि सरकार के इस आदेश को उनके अधिकारी किस रूप में लेंगे.’
मारू दिप्रिंट से कहते हैं, ‘हमें आशंका है कि अधिकारी इस नियम की बात कह कर कहीं रेड मारने, व्यवसाई को परेशान न करने लगें. वह यह भी कहते हैं, ‘दूसरी बात कि लॉकडाउन के वक्त हमने सरकार से कहा कि जो मजदूर वापस आए हैं, उनका डेटा तैयार किया जाए. हमने जब डेटा मांगा तो उसमें सभी मजदूरों के आगे लेबर, राजमिस्त्री ही लिखा था. जाहिर है डेटा के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई थी. हम भी यही चाहेंगे कि राज्य के स्किल्ड लोगों को यहीं रोजगार मिले.’
वहीं झारखंड स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष फिलीप मैथ्यू ने कहा, ‘सरकार का कहना है कि जो मजदूर स्किल्ड नहीं है उन्हें तीन साल में इंडस्ट्री के साथ मिलकर ट्रेंड करेंगे. लेकिन हमारे पास ऐसी कोई संस्थान ही नहीं हैं जहां ट्रेनिंग दी जाए.’
वह आगे कहते हैं, ‘दूसरी बात कि जो लोग बाहर से हैं, जिन्हें हमने इतने सालों में कई तरह की मशीनें चलाने के लिए तैयार किया है, उनका क्या होगा. यह ‘ग्लोबलाइजेशन’ का जमाना है, सरकार को ‘लोकलाइजेशन’ पर ध्यान नहीं देना चाहिए. अगर हमारे यहां के लोग बाहर जाकर काम कर सकते हैं, तो बाहर के लोगों को भी यहां आने देना चाहिए.’
मैथ्यू ने दिप्रिंट को बताया, ‘आप देख सकते हैं यहां के कंपनियों में पहले से काम कर रहे अधिकतर लोग इसी राज्य से हैं. थोड़े बहुत संख्या में बंगाल और बिहार के लोग हैं. हेमंत का ये फैसला केवल अपनी राजनीति को बनाए रखने के लिए है.’
झारखंड में जनवरी माह तक 8,65,764 लाख युवा रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं. सरकार ने एक और फैसले में आगामी एक साल के लिए बेरोजगारों को प्रति माह 5,000 रुपए भत्ता देने का एलान किया है. इसके लिए राज्य में विभिन्न विभागों द्वारा संचालित कौशल प्रशिक्षण, सरकारी आईटीआई, पॉलिटेक्निक एवं अन्य सरकारी व्यवसायिक पाठ्यक्रम में उतीर्ण होना आवश्यक है.
इधर हर दिन रांची में नौकरी के लिए आंदोलन हो रहे हैं. फिलहाल पारा शिक्षकों ने 15 मार्च से 18 मार्च तक विधानसभा घेराव का एलान किया है. उनका कहना है कि सरकार उनकी नौकरी को स्थाई करे और वेतनमान बढ़ाए. क्योंकि सरकार में आने से पहले हेमंत सोरेन ने इसका वादा किया था. राज्य में ऐसे शिक्षकों की संख्या 65 हजार है.
एक तरफ बेरोजगारी भत्ता, नौकरी में आरक्षण की घोषणा हो रही है तो दूसरी तरफ वेतन बढ़ाने के लिए नई बहाली के लिए युवा आंदोलन करने पर मजबूर हैं.
(संवाददाता झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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