रैणी: उत्तराखंड के रैणी गांव में रविवार को हर दिन की तरह लोगों के लिए सर्दी की शांत सुबह थी लेकिन लगभग दस बजे उन्हें जोरदार आवाज सुनायी दी और ऋषिगंगा में पानी का सैलाब और कीचड़ आते हुए नजर आया.
धरम सिंह नामक पचास वर्षीय एक ग्रामीण ने कहा, ‘हम यह समझ पाते कि क्या हो रहा है, उससे पहले ही ऋषिगंगा के कीचड़ वाले पानी ने सारी चीजें तबाह कर दीं.’
हालांकि इस त्रासदी के कई वीडियो भी वायरल हुए हैं..तकनीक ने इस त्रासदी की जानकारी प्रशासन तक पहुंचाने में बहुत मदद की और समय पर मदद पहुंच पाई.
रैणी गांव के शंकर राणा ने बताया कि सुबह 9.30 बजे अचानक ऊंचे हिमालयी क्षेत्र से सफेद धुएं के साथ नदी मलबे के साथ बहकर आती दिखाई दी. आवाज इतनी डरावनी थी की लोग घरों से बाहर आ गए देखने को कि क्या हुआ है.
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ओर वो कीचड़ के पानी में खो गए
वहीं जिन लोगों विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य में जुटे लोगों को देखा वो चिल्लाने लगे बचो- भागो..लेकिन नदी की आवाज इतनी थी की मजदूर सुन नहीं पाए और कीचड़ वाले पानी में कहीं खो गए.
संदीप बताते हैं कि तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के निर्माण में मजदूर काम कर रहे थे. जैसे ही धौली गांव का जलस्तर बढ़ने लगा, लोगों ने बैराज पर काम करे लोगों को बचाने के लिए फिर चिल्लाना शुरू किया लेकिन नदी की आवाज से मजदूरों को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. देखते ही देखते बैराज और टनल मलबे में दफन हो गया.
रैणी गांव के प्रेम बुटोला ने बताया कि नंदा देवी पर्वत की तलहटी से ग्लेशियर के टूटने से यह पूरी तबाही मची है. ऐसा भयंकर जल प्रलय कभी नहीं देखा था.
इस नजारे ने लोगों को 2013 की केदारनाथ की भयावह बाढ़ की याद दिला दी जिसमें हजारों लोगों की जान चली गयी थी.
रविवार को कई लोगों के इस सैलाब में बह जाने की आशंका है. उनमें नदी के आसपास काम कर रहे लोग भी शामिल हैं.
गांव के तीन बाशिंदे इस त्रासदी के बाद से गायब हैं. उनमें 75 वर्षीय अमृता देवी भी हैं जो ऋषि गंगा पर पुल के समीप अपने खेत में काम करने गयी थीं. अन्य वल्ली रानी के यशपाल हैं जो अपने मवेशी को चराने गये थे और रंजीत सिंह (25) है जो ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना में काम करते थे. नंदा देवी ग्लेशियर के टूटने के बाद यह हिमस्खलन आया.
इस हिमस्खलन से वह परियोजना नष्ट हो गयी जो 2020 में ही शुरू हुई थी. मुख्य सीमा मार्ग पर एक बड़ा पुल भी बह गया.
जुवा ग्वान गांव के प्रदीप राणा ने बताया कि उसी गांव का संजय सिंह भी लापता है जो अपनी बकरियां चराने गया था.
ऋषि गंगा और धौली गंगा के संगम से 20 मीटर की ऊंचाई पर बने कुछ मंदिर भी बह गये.
(भाषा के इनपुट्स के साथ)
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