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Friday, 22 November, 2024
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AIR की तिब्बती सेवा का दिसंबर से बंद है प्रसारण, वेबसाइट और यूट्यूब पर भी नहीं है कोई ताज़ा कंटेंट

पूर्व स्टाफ का मानना है कि तिब्बती वर्ल्ड सर्विस को चलाने के लिए योग्य पेशेवर लोगों की कमी है लेकिन एआईआर का कहना है कि ये सब परिचालन में किए जा रहे सुधारों का हिस्सा है.

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नई दिल्ली: सरकारी प्रसारक ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) ने करीब दो महीने से अपनी तिब्बती सेवा का प्रसारण बंद किया हुआ है और दिप्रिंट को पता चला है कि ऐसा प्रशासनिक समस्याओं के चलते हुआ है.

जहां एआईआर के एक अधिकारी ने कहा कि ये कदम परिचालन में किए जा रहे सुधारों का हिस्सा है, वहीं पहले इस सेवा के साथ जुड़े रहे, कुछ संविदा कर्मचारियों का कहना है कि प्रसारक के पास योग्य पेशेवर लोग नहीं थे जिससे कि तिब्बती सेवा के कार्यक्रमों को चलाए रखा जा सकता है.

दिसंबर 2020 के बाद से तिब्बती सेवा पर, कोई ताज़ा सामग्री नहीं रही है, चाहे वो एआईआर की न्यूज़ऑनएयर एप्लिकेशन हो या एआईआर वर्ल्ड सर्विस वेबसाइट और इसका यूट्यूब चैनल हो.

ये घटनाक्रम पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चल रहे गतिरोध के बीच हुआ है जो महीनों से चल रहा है.

एक पूर्व संविदा स्टाफ ने, जो अपनी पहचान नहीं बताना चाहते थे, इसके लिए एआईआर के नियमों को ज़िम्मेदार ठहराया जिनके तहत भाषा सेवाओं के लिए आकस्मिक तौर पर लोगों को काम पर रखा जाता है. नियमों के तहत, ऐसे लोगों को साल में निश्चित दिनों से अधिक के लिए काम पर नहीं रखा जा सकता.

सूत्र ने कहा, ‘ऐसे तिब्बती लोगों की संख्या सीमित है, जो एआईआर के योग्य हैं और जिनके पास भाषाई निपुणता और दूसरी योग्यताएं हैं. इसलिए उन्हें तिब्बती सेवा के कार्यक्रमों के लिए, अनुमति से ज़्यादा दिनों के लिए काम पर रखा जाता था लेकिन उन्हें अतिरिक्त दिनों का पैसा नहीं दिया जाता था’.

‘इसके नतीजे में बहुत से सहकर्मी (तिब्बती और दूसरी भाषा की सेवाओं के कैज़ुअल असाइनीज़), अधिक आकर्षक ऑफर मिलने पर चले गए’.

पिछले साल जून में, गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के एक दिन बाद, एआईआर की मूल एजेंसी प्रसार भारती ने अपने श्रोताओं से कहा कि ‘चीनी भाषा में प्रामाणिक खबरें और कार्यक्रम सुनने के लिए’, वो एआईआर की चीनी वर्ल्ड सर्विस को सुनें जिसने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीनी अतिक्रमण पर समीक्षाएं प्रसारित की थीं.

उसी दिन, प्रसार भारती ने श्रोताओं से ये अनुरोध भी किया था कि ‘तिब्बत से और तिब्बत की सही खबरें’ सुनने के लिए, वो एआईआर की तिब्बती सेवा को सुनें.

उसके बाद, एआईआर को अपनी तिब्बती सेवा पर फिर से फोकस करना था और इसकी सामग्री में बदलाव करके, खबरों और टीकाओं पर ज़्यादा ज़ोर देना था, जिनमें भारत के दृष्टिकोण को उजागर किया जाना था- पहले इनकी जगह संस्कृति और बौद्ध धर्म पर हल्के-फुल्के कार्यक्रम हुआ करते थे.


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‘सुधार का हिस्सा’

दिप्रिंट ने प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी शशि शेखर वेमपति से टेक्स्ट के ज़रिए टिप्पणी के लिए संपर्क किया लेकिन इस खबर के छपने के समय तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.

लेकिन एआईआर सूत्रों ने कहा कि ऐसा कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया गया है और ये ताज़ा बदलाव अन्य चीज़ों के अलावा, केवल सेवाओं के समय और फ्रीक्वेंसी के परिचालन में किए गए सुधार का परिणाम है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हाल ही में हमने अपनी विदेश सेवाओं को, दो वर्ल्ड सर्विस धाराओं और दो पड़ोसी धाराओं में समाहित किया है. न्यूज़ऑनएयर एप के अलावा, अब वो डीडी फ्रीडिश पर भी उपलब्ध हैं’.

अधिकारी ने ज़ोर देकर कहा कि फिलहाल वो परिचालन में समायोजन कर रहे हैं जिससे कि शॉर्टवेव ट्रांसमिटर्स और सेटेलाइट तथा इंटरनेट भी इन स्ट्रीम्स को कैरी कर सकें.

तिब्बती सेवा के बारे में बात करते हुए अधिकारी ने कहा कि वो अब एक स्वचलित सेवा नहीं रहेगी जैसे कि पहले हुआ करती थी. अब वो दो वर्ल्ड सर्विस और पड़ोसी स्ट्रीम्स का हिस्सा होगी.

तिब्बती वर्ल्ड सर्विस

तिब्बती सेवा दिसंबर 1956 में एक समर्पित एआईआर वर्ल्ड सर्विस के तौर पर शुरू की गई थी. शाम 5.45 बजे से 6.45 बजे के बीच होने वाला रोज़ाना प्रसारण, लद्दाख और सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश जैसे उत्तरपूर्वी राज्यों की, सीमावर्त्ती आबादी के लिए था.

पिछले साल लॉकडाउन के दौरान, तिब्बती सेवा का प्रसारण कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था, जैसा कि कुछ दूसरी भाषा सेवाएं भी हुईं थीं लेकिन बाद में उन्हें फिर से चालू कर दिया गया.

ये सेवा कई दशकों से चलाई जा रही थी लेकिन एक्सपर्ट्स ने बताया कि चीन, तिब्बती और चीनी दोनों सेवाओं के रेडियो सिग्नल्स, जाम करता रहता है.

प्रसारण इंजीनियरों ने दिप्रिंट को पहले बताया था कि चीन परंपरागत रूप से किसी भी देश से स्ट्रीमिंग सेवाओं को न चलने देने के लिए जाना जाता रहा है.

वर्ल्ड रेडियो टीवी हैंडबुक के योगदाता और शॉर्टवेव्ज़ विशेषज्ञ जोज़ जेकब्स ने दिप्रिंट को बताया था कि चीन, संगीत और दूसरी आवाज़ों के ज़रिए एआईआर की चीनी और तिब्बती सेवाओं को कैरी करने वाली फ्रीक्वेंसीज़ को जाम करता रहा है.

‘चीन के भीतर तिब्बतियों के सामने सॉफ्ट पावर दिखाने की ज़रूरत’

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के पूर्व सदस्य, जयदेव रानाडे ने दिप्रिंट से कहा कि हालांकि एआईआर के पास इसकी विदेश समाचार सेवाओं के लिए इनफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है, लेकिन चीनी और तिब्बती दोनों सेवाएं, व्यावहारिक रूप से वजूद में नहीं हैं.

रानाडे, जो सेंटर फॉर चाइना अनैलसिस एंड स्ट्रैटजी के प्रमुख हैं, ने कहा, ‘आज के दौर में प्रचार और अवधारणा का प्रबंधन बहुत अहम है, तो ऐसे में और भी ज़रूरी हो जाता है कि हम अपने विचारों को प्रसारित करें और चीन के भीतर रह रहे तिब्बतियों, स्वतंत्र बौद्ध संप्रदाय और चीनी लोगों को अपनी सॉफ्ट पावर भी दिखाएं’.

उन्होंने कहा, ‘हमें इसका अंदाज़ा होना चाहिए कि हमारे श्रोताओं की रूचि किन चीज़ों में है और खबरों तथा मनोरंजन को उसी हिसाब से उनकी ज़रूरतों के अनुरूप ढाला जा सकता है. कार्यक्रमों को तैयार करने और उन्हें चलाने के लिए निजी क्षेत्र से विशेषज्ञों को हायर करना चाहिए’.

रानाडे ने कहा कि अगर भारत, चीन के लिए जगह नहीं छोड़ना चाहता, तो ऐसा करना बहुत ज़रूरी है, चूंकि तिब्बती लोग चीन से नाखुश हैं और वो एक अलग नज़रिए को ज़रूर सुनना चाहेंगे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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