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Friday, 22 November, 2024
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केंद्रीय मंत्रालय जाति आधारित कोटा से IIT फैकल्टी को छूट देने के प्रस्ताव के ‘पक्ष में नहीं’ है

पैनल जिसमें IIT डायरेक्टर्स और कुछ अन्य शामिल हैं, अप्रैल 2020 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित किया गया था, जिसे संस्थानों, फैकल्टी नियुक्तियों में, आरक्षण को और अधिक कारगर बनाने के लिए अपनी सिफारिशें देनी थीं.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है, कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और आदिवासी मामलों के मंत्रालय, सरकार द्वारा नियुक्त एक पैनल की इस सिफारिश के पक्ष में नहीं हैं, कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को, फैकल्टी नियुक्तियों में जाति-आधारित आरक्षण से मुक्त रखा जाए.

ये पैनल, जिसमें आईआईटी डायरेक्टर्स और कुछ अन्य शामिल हैं, अप्रैल 2020 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित किया गया था, जिसे संस्थानों, छात्रों के दाख़िलों, और फैकल्टी नियुक्तियों में, आरक्षण को और अधिक कारगर बनाने के लिए अपनी सिफारिशें देनी थीं.

पिछले जून में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में, पैनल ने कहा कि आईआईटीज़ को क़ानून की नज़र में, राष्ट्रीय महत्व के संस्थान माना गया था, और उसने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक कैडर में आरक्षण) अध्यादेश 2019 का भी हवाला दिया, जिसमें उत्कृष्टता के संस्थानों, शोध संस्थानों, और राष्ट्रीय तथा रणनीतिक महत्व के संस्थानों को, संकाय नियुक्तियों में जाति-आधारित आरक्षण देने से छूट दी गई है.

सरकार के सूत्रों के अनुसार, शिक्षा मंत्रालय ने पिछले साल दो मंत्रालयों से, पैनल की रिपोर्ट पर राय मांगी थी, क्योंकि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), तथा अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के आरक्षण के मामले में, वो प्रमुख हितधारक हैं.

सूत्रों ने बताया कि दोनों मंत्रालयों ने अपने जवाब में कहा, कि सरकारी संस्थानों का आरक्षण से दूर हटना, भारत में आरक्षण नीति के मौलिक सिद्धांतों के विरुद्ध होगा.

ज्ञात हुआ है कि शिक्षा मंत्रालय ने सिफारिशों को, अन्य मंत्रालयों की टिप्पणियों के साथ, आईआईटी काउंसिल की स्थाई समिति के पास भेज दिया है. काउंसिल के सूत्रों का कहना है, कि इस मामले में आईआईटी काउंसिल की एक बैठक शीघ्र ही बुलाई जाएगी.

रिपोर्ट की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर, शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, कि इस मामले में अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है. अधिकारी ने आगे कहा, ‘इस मामले को आईआईटी काउंसिल के पास, आगे चर्चा के लिए भेज दिया गया है’.

शिक्षा मंत्रालय की अगुवाई में, आईआईटी काउंसिल संस्थानों के प्रशासनिक और अन्य महत्वपूर्ण मामलात देखती है. इसके अन्य सदस्यों में सांसद और सभी आईआईटीज़ के निदेशक शामिल होते हैं.

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए, ईमेल द्वारा शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता के साथ संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने के समय तक, उधर से कोई जवाब नहीं मिला था. दिप्रिंट ने कॉल, टेक्स्ट और ईमेल के ज़रिए, सामाजिक न्याय और आदिवासी मंत्रालयों के प्रवक्ताओं से भी संपर्क किया, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला.

इसी बीच, आईआईटी काउंसिल के एक सदस्य ने, दिप्रिंट को बताया कि इस मामले पर एक मीटिंग होनी थी, लेकिन हाल ही में उसे कैंसिल कर दिया गया. सदस्य ने कहा कि इस वजह से, काउंसिल को मालूम नहीं है कि कौन से मंत्रालयों ने इस फैसले का विरोध किया है.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के सूत्रों ने बताया, कि आयोग ने उसे मिली एक शिकायत के आधार पर, शिक्षा मंत्रालय से इन सिफारिशों की जांच कराने के लिए कहा है.

दिसंबर 2020 में दिप्रिंट से बात करते हुए, एनसीबीसी अध्यक्ष भगवान लाल साहनी ने कहा था, कि अगर इन सिफारिशों को लागू किया गया, तो ये देश भर में पिछड़े समुदायों के लिए बेहद ‘नुक़ासनदेह’ साबित होगा, और आयोग जल्द ही इस मामले को, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के साथ उठाएगा, जो तकनीकी शिक्षा के लिए शीर्ष इकाई है.


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HRD ने IITs से आरक्षण लागू करने का तक़ाज़ा किया

कमेटी की रिपोर्ट मिलने के दो महीने के बाद, आईआईटीज़ को लिखे एक पत्र में, शिक्षा मंत्रालय (तब मानव संसाधन विकास मंत्रालय) ने संस्थानों से कहा था, कि उन्हें आरक्षण नीति इसी रूप में लागू करनी होगी, चूंकि पैनल की सिफारिशों पर विचार किया जा रहा है.

28 अगस्त 2019 को लिखे गए पत्र में, जो दिप्रिंट के हाथ लगा है, ‘स्पष्ट करने की कोशिश की गई है, कि मंत्रालय ने इस उद्देश्य के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट पर, अभी कोई फैसला नहीं लिया है, और 18.11.2019 को जारी कम्यूनिकेशन को रोकने का भी, कोई आदेश जारी नहीं किया है’.

दो साल पहले तक, आईआईटीज़ को केवल असिस्टेंट प्रोफेसर्स तक के पदों के लिए आरक्षण लागू करना पड़ता था. 2019 में, आरक्षण को सभी पदों पर लागू कर दिया गया. नवंबर 2019 के जिस पत्र का हवाला इस संदेश में दिया गया, उसमें तब के एचआरडी मंत्रालय ने, आईआईटीज़ से नए प्रावधान का पालन करने के लिए लिखा था.

अपनी रिपोर्ट में, छूट की सिफारिश करने वाली कमेटी ने कहा, कि विविधता के मुद्दों को, कोटा की जगह आउटरीच अभियानों, तथा फैकल्टी की लक्षित भर्ती के ज़रिए, हल किया जाना चाहिए.

(कृतिका शर्मा के इनपुट्स के साथ)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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