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Friday, 22 November, 2024
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जगन रेड्डी की आंध्र के लिए 3 राजधानियों के ड्रीम प्रोजेक्ट पर 60 याचिकाओं ने कैसे लगाए हैं ब्रेक

पिछले महीने अरूप कुमार गोस्वामी के हाईकोर्ट चीफ जस्टिस नियुक्त होने के बाद, राजधानी मामले में दलीलें अब नए सिरे से पेश करनी होंगी.

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हैदराबाद: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन रेड्डी की ओर से सूबे की राजधानी को तीन हिस्सों में बांटने का विचार, सामने रखने के एक साल बाद, सीएम के न्यायपालिका के साथ टकराव के चलते वो प्रस्ताव अभी भी क़ानूनी बाधाओं में उलझा हुआ है.

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में 100 के क़रीब याचिकाएं थीं, जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर राज्य में तीन राजधानियां रखने के जगन के विचार को चुनौती दी गई थीं. अब ये संख्या घटाकर 60 कर दी गई हैं.

पिछले महीने अरूप कुमार गोस्वामी के हाईकोर्ट चीफ जस्टिस नियुक्त होने के बाद, कुछ दलीलें अब नए सिरे से पेश करनी होंगी, चूंकि पूर्व चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी के तबादले के बाद मौजूदा बेंच भंग कर दी गई है. याचिकाकर्ताओं के अनुसार इस प्रक्रिया में कम से कम ‘दो महीने’ लग जाएंगे.

जस्टिस माहेश्वरी की अगुवाई में एक तीन-सदस्यीय बेंच, राजधानी के विकेंद्रीकरण और सीआरडीए (राजधानी क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण) निरसन अधिनियमों से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

याचिकाकर्ताओं में से एक पूर्व टीडीपी मंत्री वद्दे सोभनाद्रीश्वरा राव ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर पिछले सीजे होते तो जनवरी के अंत तक अंतिम फैसला आ सकता था. अब नए सीजे को पहले इन सब रिकॉर्ड्स को देखना होगा और ख़ुद को इसकी शब्दावली से परिचित कराना होगा. उसमें आसानी से एक महीना या उससे ऊपर लग जाएगा. ऐसा नहीं है कि पहले पेश की गईं तमाम दलीलें फिर से देनी होंगी, बस कुछ मुख्य दलीलें पेश करनी होंगी’.

उन्होंने आगे कहा कि वकीलों की ओर से, लिखित प्रस्तुतियां पहले ही आ चुकी हैं और पिछली दलीलें दर्ज की जा चुकी हैं.

अतिरिक्त महाधिवक्ता सुधाकर रेड्डी ने कहा, ‘अभी स्पष्ट नहीं है कि इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा- ये जल्दी भी निपट सकती है, या फिर इसमें कुछ महीने भी लग सकते हैं. लेकिन अब हम उम्मीद कर रहे हैं, कि काम उचित और निष्पक्ष ढंग से होगा’.


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सीएम की योजना के ख़िलाफ याचिकाएं

अमरावती के एक किसान समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे उन्नम मुरलीधर राव ने कहा कि राजधानी को तीन हिस्सों में बांटने के जगन के सुझाव के खिलाफ आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं को व्यापक रूप से चार मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है.

पहला बैच वो है जिसमें किसानों को, ‘जीने के अधिकार’ से वंचित रखने को चुनौती दी गई है, ख़ासकर अमरावती इलाक़े में, जिन्होंने लैण्ड पूलिंग स्कीम के तहत, अपनी ज़मीनें एन चंद्रबाबू नायडू सरकार को दीं थीं, इस उम्मीद में कि वहां पर, एक विश्वस्तरीय राजधानी शहर बनेगा जैसा कि पूर्व सीएम ने वादा किया था.

अधिकतर याचिकाएं अमरावती के किसानों के अलग-अलग समूहों की ओर से हैं, जिनमें सीआरडीए एक्ट निरस्त करने को भी चुनौती दी गई है, जिसके तहत किसानों से वादा किया गया था कि उन्हें राजधानी में हितधारक बनाया जाएगा.

याचिकाओं में कहा गया है कि नायडू सरकार ने अमरावती के 29 गांवों के किसानों से 33,000 एकड़ ज़मीन ली थी, हरे-भरे खेतों से भरपूर देहाती इलाक़े में, एक ‘शहर-जैसी’ राजधानी बनाने के लिए.

एक साल से अधिक समय से, अमरावती में 10,000 से अधिक किसान, जगन प्रशासन की कथित ‘नाइंसाफी’ के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.

राव की याचिकाओं में इस पर भी प्रकाश डाला गया है कि भीड़-भाड़ वाला राजधानी शहर विकसित हो जाने के बाद, किस तरह किसानों को उसमें ‘रहने लायक़ पुनर्गठित प्लॉट’ का वादा किया गया था.

राव ने कहा, ‘जगन सरकार का कहना है कि अमरावती अभी भी एक राजधानी है और जिन किसानों ने ज़मीनें दी हैं, उन्हें उसी जगह पर पुनर्गठित प्लॉट दिया जाएगा. लेकिन जब आप किसी जगह से न्यायिक गतिविधि और कार्यकारी गतिविधि को हटा लें, तो बाक़ी बची जगह की बताए गए स्मार्ट शहर से, कैसे तुलना की जा सकती है? और अगर आप ऐसे इलाक़े में किसानों को प्लॉट्स देते हैं तो वो पहले किए गए वादों की भरपाई या मुआवज़ा कैसे हो सकते हैं?

कोर्ट ने, जो अक्टूबर से हर रोज़ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, राजधानी बदलाव से जुड़ी किसी भी गतिविधि पर रोक लगा दी थी और जगन सरकार को आगे बढ़ने से रोक दिया था.

वरिष्ठ विश्लेषक सुरेश अलापति ने कहा कि जगन सरकार के लिए कानूनी दांवपेच से गुज़रना एक बड़ी बाधा होगी, जिससे वो आसानी से पार नहीं हो पाएगी.

अलापति ने कहा, ‘यहां पर किसानों की याचिकाओं में काफी दम है…इस क़दम से उन पर बुरा असर पड़ेगा. जगन सरकार जो कर रही है, उसे ‘विश्वासघात करना’ कहा जाता है, क्योंकि किसानों का पिछली सरकार के साथ, सीआरडीए एक्ट के तहत एक वैधानिक समझौता हुआ था. मुझे लगता है कि अदालत उसे बरक़रार रखेगी’.

विधायी प्रक्रिया पर खींचतान

पिछले साल जनवरी में, वाईएसआरसीपी-बहुमत वाली विधानसभा ने दो बिल पारित किए- पहला, राजधानी क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण (सीआरडीए) अधिनियम 2014, को निरस्त करने के लिए और दूसरा, एपी विकेंद्रीकरण एवं सभी क्षेत्रों का समावेशी विकास बिल 2020. इन बिलों का मक़सद राज्य को तीन राजधानियां देना था- कार्यकारी राजधानी विशाखापट्नम, विधायी राजधानी अमरावती, और न्यायिक राजधानी कुरनूल.

ये बिल, जो विधान परिषद में अटके हुए थे, जहां नायडू की तेलुगू देसम पार्टी की स्थिति ज़्यादा मज़बूत थी, जनवरी और जून के बीच एपी असेम्बली में दो बार पारित किए गए. परिषद के अंदर बिल पारित कराने में, जगन सरकार की नाकामी के कुछ ही दिनों के बाद असेम्बली ने राज्य की विधान परिषद को ख़त्म करने के लिए एक वैधानिक संकल्प पारित कर दिया.

दूसरी श्रेणी की याचिकाओं में कहा गया है कि रद्द किए गए बिलों को पास कराने के लिए सरकार संविधान के तहत निर्धारित प्रक्रिया तथा आंध्र प्रदेश विधान सभा व विधान परिषद में, कार्य संचालन के लिए तय नियम-क़ायदों का पालन करने में नाकाम रही है.

इन्हीं में से एक याचिका के मुताबिक़, जिसका प्रतिनिधित्व एडवोकेट जंध्याला रवि शंकर कर रहे हैं, जब असेम्बली में बिलों को दूसरी बार पारित किया गया, तो उन्हें विशेष नियमों के तहत सदन के पटल पर नहीं रखा गया था. परिषद के नियमों के अनुसार, सरकार ने बिलों को विचारार्थ लेने के लिए कोई प्रस्ताव भी पेश नहीं किया.

परिषद को ख़त्म करने के प्रस्ताव को, ‘संविधान के साथ धोखा’ बताते हुए शंकर ने कहा कि बिलों को परिषद के एजेंडा के तहत सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन न तो उन्हें कभी पेश किया गया और न ही उन पर चर्चा हुई. इसलिए धारा 197 (2)(बी) के तहत निर्धारित शर्त, जिसमें परिषद में पेश किए गए बिलों को अगर एक महीने से अधिक हो जाए, तो उन्हें पास मान लिया जाता है, यहां पर लागू नहीं होती.

याचिकाओं के उसी बैच में, इस बात को भी चुनौती दी गई है कि सरकार ने परिषद अध्यक्ष के दस्तख़त के बिना बिलों को राज्यपाल के पास कैसे भेज दिया- जो कि नियमों के खिलाफ था.

‘न्यायपालिका की राजधानी’ पर सवाल

याचिकाओं के तीसरे बैच में न्यायपालिका की राजधानी को शिफ्ट करने की, राज्य की विधायी क्षमता को चुनौती दी गई है.

शंकर ने कहा, ‘राज्य को अधिकार नहीं है कि वो हाईकोर्ट जैसी किसी न्यायिक इकाई की जगह को बदल दे. संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार इसका फैसला संसद करती है. राज्य ने इस बात को माना था कि उसे इसका अधिकार नहीं था’.

जनता के पैसे का दुरुपयोग

याचिकाओं के चौथे बैच में, ‘मौजूदा नीतियों या क़ानून को पलटकर नई नीतियां घोषित करने की’ राज्य की शक्तियों को भी चुनौती दी गई है और सरकारी आदेश नंबर 97 का हवाला दिया गया है, जिसमें पिछली सरकार ने अमरावती को सूबे की राजधानी घोषित किया था. याचिकाओं में संविधान की धारा 366 (10) का हवाला दिया गया है, जिसमें ‘मौजूदा क़ानूनों’ को एक श्रेणी के तौर पर परिभाषित किया गया है.

याचिकाओं के एक बैच में, एक नई राजधानी बनाने में जनता के पैसे के दुरुपयोग की बात की गई है.

राव के अनुसार, अमरावती में पहले ही 54,300 करोड़ रुपए की क़ीमत का काम चल रहा है और सड़कों, तारों, और बिजली से जुड़ा 70 प्रतिशत काम पूरा किया जा चुका है.

लेकिन, सत्तारूढ़ पार्टी के नेता अमरावती में विकास के किसी भी काम से इनकार करते हैं और कहते हैं कि मौजूदा राजधानी में 30 प्रतिशत काम भी पूरा नहीं हुआ है. वाईएसआरसीपी विधायक श्रीकांत रेड्डी ने दिप्रिंट से कहा, ‘अमरावती में मुश्किल से ही कुछ काम हुआ है और उस इलाक़े में एक राजधानी विकसित करने में एक लाख करोड़ रुपया लगेगा. इस बीच, विशाखापट्नम में पहले ही एक विकसित इन्फ्रास्ट्क्चर मौजूद है और वहां पर राजधानी स्थापित करने की लागत कहीं कम आएगी’.

रेड्डी ने आगे कहा, ‘कोर्ट का जो भी फैसला हो हम उसका सम्मान करेंगे लेकिन हमें ये भी यक़ीन है कि तीन राजधानियों का जगन का विचार 2022 तक ठोस शक्ल लेना शुरू कर देगा’.

न्यायपालिका के साथ लड़ाई

ये सारा घटनाक्रम जगन सरकार और राज्य न्यायपालिका के बीच जारी तकरार के बीच हुआ, जिसमें जगन ने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट के कुछ जज, उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं.

पिछले महीने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व जज, राकेश कुमार की टिप्पणियों ने राज्य में इस दरार को और बढ़ा दिया, जब उन्होंने कहा कि कैसे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ‘सत्ताधारी लोगों के निशाने पर हैं’.

जज ने ये भी कहा कि सीजे के तबादले से तीन राजधानियों के केस में देरी होगी, जिससे जगन को अनुचित लाभ पहुंचेगा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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