चंडीगढ़: भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन) के प्रमुख और पूर्व सैनिक जोगिंदर सिंह उग्राहन के बारे में अगर कोई एक बात दावे के साथ कही जा सकती है, तो यह कि उन्होंने कभी भेड़चाल का सहारा नहीं लिया.
यह बात पिछले हफ्ते एक बार फिर नजर आई.
दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करने वाले प्रमुख किसान संगठनों में से एक उग्राहन के बीकेयू (उग्राहन) ने 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाने के दौरान उमर खालिद, शरजील इमाम, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा आदि जैसे हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं के पोस्टर लगाकर विवाद खड़ा कर दिया.
उग्राहन ने भी वहां मौजूद भीड़ को संबोधित किया, और सभी सिविल सोसाइटी एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवियों की रिहाई की मांग की जो इस समय जेल में हैं.
इस पर केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों की तरफ से तत्काल प्रतिक्रिया भी आई. रेल मंत्री पीयूष ये दावा करने वालों में शामिल थे कि वामपंथी और ‘माओवादी’ तत्व इस आंदोलन पर हावी हो गए हैं.
उग्रहान पर अपने भी हमलावर हो गए हैं, 31 अन्य किसान संगठन उनसे यह कहते हुए दूरी बना रहे हैं कि उन्होंने आंदोलन को नुकसान पहुंचाया है.
लेकिन किसान संगठन को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. बीकेयू (उग्राहन) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने जो कुछ भी किया वह किसानों के पक्ष में हमारे विरोध का हिस्सा था, लाखों लोग हमारा समर्थन कर रहे हैं. सरकार या कॉरपोरेट स्वामित्व वाले मीडिया की कोई भी तरकीब हमारे (किसान संगठनों के) बीच फूट नहीं डाल सकती है और न ही आंदोलन को पटरी से उतार सकती है.’
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नजरअंदाज करना आसान नहीं
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन दिल्ली पहुंचने से पहले दो माह पंजाब में प्रदर्शन के दौरान उग्राहन ने अपना समानांतर आंदोलन चलाया, 31 अन्य यूनियन उसके आक्रामक और कभी-कभी अतिवादी तरीके वाले आंदोलन के साथ कदमताल मिलाने की कोशिश करती नजर आईं.
28 नवंबर को दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने वाले किसान यूनियन नेताओं में उग्राहन आखिरी थे और तब से ही वह टिकरी सीमा पर अपने हजारों समर्थकों के साथ डेरा जमाए हुए हैं—उनके संगठन ने वहां एक अलग मंच तैयार कर रखा है. अन्य हजारों का समर्थकों का नेतृत्व कर रहे 31 किसान संगठनों ने सिंघू बॉर्डर पर डेरा डाल रखा है.
सिंघू सीमा पर जमे किसान संगठनों में बीकेयू (राजेवाल), बीकेयू (लखोवाल) और अपेक्षाकृत नया बीकेयू (दकौंडा) आदि शामिल हैं, लेकिन वे उग्रहान के इस अलग ही तरह के संगठन के बिना कुछ नहीं कर सकते जिसे न केवल मालवा की कृषि बेल्ट में व्यापक जनसमर्थन हासिल है बल्कि दक्षिण पंजाब के कम से कम 20 जिलों में इस पर आंख मूंदकर भरोसा करने वालों की कोई कमी नहीं है.
अन्य संगठनों का हिस्सा बनने से इनकार किया
इस साल जून में जब पंजाब में तीन केंद्रीय कृषि कानूनों (तब विधेयक ही थे) के खिलाफ विरोध शुरू हुआ तो बीकेयू (उग्राहन) ने किसी भी संयुक्त मंच का हिस्सा बनने या अन्य संगठन के साथ हाथ मिलाने से इनकार कर दिया.
शुरुआत में ही आंदोलन में शामिल होने वाले संगठनों में से एक क्रांतिकारी किसान यूनियन पंजाब के अध्यक्ष डॉ. दर्शन पाल ने कहा, ‘बीकेयू (उग्राहन) ने खुद को स्वतंत्र रखकर और अलग प्रदर्शन का आयोजन करने के साथ-साथ 31 अन्य संगठनों के साथ समन्वय बना रखा है.’
पाल ने कहा, ‘पंजाब में आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने और उसे चलाने के दौरान 31 किसान सगंठनों के संयुक्त मोर्चे की बैठकों में बीकेयू (उग्राहन) के पदाधिकारियों को आमंत्रित किया गया था. वे हमारे कुछ कार्यक्रमों से सहमत थे, कुछ पर असहमति जताई और कुछ अपनी तरफ से जोड़े.’
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कॉरपोरेट समूह और राजनेता निशाने पर
उदाहरण के तौर पर बीकेयू (उग्राहन) ने सितंबर के मध्य में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के आवास के बाहर और पटियाला में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के निवास के बाहर छह दिवसीय धरना शुरू किया. हालांकि, 31 संगठनों का मोर्चा छह दिनों के आंदोलन के पक्ष में नहीं था और चाहता था कि इसे एक दिन तक ही सीमित रखा जाए.
पंजाब में बड़े कॉरपोरेट समूहों के मॉल, पेट्रोल पंप और भंडारण गृहों के बाहर विरोध प्रदर्शन का विचार उग्राहन का था और इसे किसान संगठनों के मोर्चे ने अपनाया था.
भाजपा के वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं के पुतले जलाने को लेकर उग्राहन यूनियन और किसान संगठनों के मोर्चे के बीच मतभेद था, वहीं संयुक्त मोर्चे ने पंजाब भाजपा के नेताओं को घरों के घेराव के उग्राहन के कदम का समर्थन किया.
लक्ष्य एक, रास्ते अलग-अलग
जब 26-27 नवंबर को आंदोलनकारी संयुक्त मोर्चे ने ‘दिल्ली चलो’ का ऐलान किया तो उग्राहन ने अपने पदाधिकारियों की एक बैठक की और तय किया कि उनका संगठन रोहतक के रास्ते दिल्ली की राह पकड़ेगा. जीटी रोड वाला रास्ता नहीं लेगा जिससे 31 संगठनों का मोर्चा आने वाला था.
पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर खनौरी में उग्राहन समर्थकों को रोक दिया गया, क्योंकि अंबाला के पास शंभू बॉर्डर पर किसान मोर्चे के समर्थकों को रोक दिया गया था. तब उग्राहन समर्थकों ने खनौरी में रहने का फैसला किया जबकि संयुक्त मोर्चे के प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले युवाओं ने सभी बाधाएं तोड़कर दिल्ली की ओर बढ़ने का फैसला किया.
एक किसान नेता ने बताया, ‘वह तो जब हमारे सारे बैरीकेड तोड़ देने की सूचना वहां तक पहुंची तब उग्राहन संगठन ने खनौरी सीमा पर बाधाएं तोड़ने और टिकरी सीमा पर पहुंचने का फैसला किया.’
अलग-अलग मंच
संयुक्त किसान मोर्चा के समर्थक सिंघू सीमा पर डेरा डाले हैं जबकि उग्राहन के समर्थक टिकरी सीमा पर जमे बैठे हैं.
डॉ. दर्शन पाल ने कहा, ‘दिल्ली चलो कार्यक्रम के लिए हमने एक संयुक्त किसान मोर्चे का गठन किया. 31 संगठनों के अलावा हमें अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और कई अन्य राष्ट्रीय किसान संगठनों के सदस्यों का समर्थन मिला. उग्राहन इस संयुक्त मोर्चे का हिस्सा नहीं है.’
सिंघू सीमा पर संयुक्त किसान मोर्चा का एक मंच है जो विरोध प्रदर्शन का केंद्र बना हुआ है और यहीं से सभी भाषण और घोषणाएं होती हैं. इस मंच से थोड़ा आगे पंजाब के ही एक अन्य किसान संगठन किसान मजदूर संघर्ष समिति, जिसके सदस्य मुख्यत: भूमिहीन मजदूर हैं, का अपना अलग मंच लगा हुआ है. बीकेयू (उग्राहन) की तरह यह समिति भी 31 संगठनों के संयुक्त मोर्चे का हिस्सा नहीं है.
टिकरी सीमा पर उग्राहन ने कई मंच लगाए हैं जो कई किलोमीटर के दायरे में फैले हैं. उनके संगठन ने इसकी पूरी व्यवस्था बना रखी है कि कौन भीड़ को संबोधित करेगा और किस मुद्दे को मंच पर उठाया जाएगा. पाल ने कहा, ‘कई वक्ता हैं जो दोनों मंच पर भीड़ को संबोधित करते हैं. और कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ हमारे या सिर्फ उनके ही मंच पर नजर आते हैं. साझा एजेंडा किसानों का आंदोलन है और इसमें कोई संदेह नहीं कि वे इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं. लेकिन उनके मंच से बोलने वालों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है.’
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