सभी विरोध प्रदर्शन सराहनीय हैं, जब तक वो भारत में हो रहे हों. यही वजह है कि भारत के आंदोलनकारी किसानों ने, पाकिस्तान में उन लोगों के लिए उम्मीद जगाई है जो अपने यहां ऐसी किसी भी हरकत की निंदा करते हैं. चाहे वो पश्तून तहफ़ुज मूवमेंट हो, जिसे समान आधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए तीन साल हो गए हैं या हाल ही का पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट हो, जो इमरान खान सरकार को हटाने के लिए विरोध कर रही विपक्षी पार्टियों का एक गठबंधन है.
भारत से ज़्यादा, ये पाकिस्तान है जो आंदोलनकारी किसानों को गंभीरता से लेता है जिसे सबसे अच्छे से नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी सैनिकों को हाई अलर्ट पर रखने से समझा जा सकता है क्योंकि एक सर्जिकल हमला लाज़िमी था. आखिरकार, यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, शायद इतने भोले भी नहीं हैं- नरेंद्र मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन, भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद है.
प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में, पाकिस्तान के अति देशभक्त भारत को तोड़ने का अवसर देखते हैं. ये मत पूछिए कैसे- बस वो देखते हैं. ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ प्रोजेक्ट की ज़बर्दस्त कामयाबी के बाद, अब समय है खालिस्तान की झनकार का. ये अलग बात है कि खालिस्तान के विचार में, पाकिस्तानी पंजाब के भी कई शहर शामिल हैं और उसकी राजधानी लाहौर है. सार ये है कि पाकिस्तान को तोड़ना, खालिस्तान को बनाना है. लेकिन जब आप अपने दुश्मन को तोड़ने को बेताब हों, तो फिर ऐसी बोरिंग डिटेल्स की परवाह कौन करता है. हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे.
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सिख समुदाय एक, पाकिस्तान देखता है दो
और पाकिस्तान का कश्मीर को अपना हिस्सा बनाने का दशकों पुराना संघर्ष, जिसका नतीजा सिर्फ ये हुआ कि भारत ने उसका विशेष दर्जा ही खत्म कर दिया, किसी और की नहीं बस की-बोर्ड योद्धाओं की उम्मीदें जगाता है. तो, डिजिटल बलोच, डिजिटल चाइनीज़ और डिजिटल तुर्कों के बाद, अब हमारे पास हैं डिजिटल सिख. ये योद्धा सुनिश्चित करेंगे कि खालिस्तान एक हकीकत बन जाए, तो क्या हुआ अगर वो सिर्फ ट्विटर पर हो. जब आपको बड़े पैमाने पर खालिस्तान रेफरेंडम के इतिहास में टैग किया जाए, तो शांत रहिए क्योंकि ये नई पीढ़ी की लड़ाई है. और इस लड़ाई में वीना मलिक से बेहतर सिपाही कौन होगा, जो न सिर्फ खालिस्तान की हिमायत करती हैं बल्कि दिन गिन रहीं लगती हैं कि कब ‘अपने नए पड़ोसी का स्वागत’ करें. वीना खालिस्तान में बिग बॉस का अपना खुद का फ्रेंचाइज़ी ले सकती हैं.
हमें बताया गया है कि चूंकि खालिस्तान एक नया मुल्क होगा इसलिए वहां जाने के लिए हमें वीज़ा लेना होगा. हमारी त्रासदी ऐसी है कि ‘खालिस्तान प्रोजेक्ट’ का पैरोकार होने और ये सुनिश्चित करने के बाद भी कि ये एक कल्पना की उपज है, पाकिस्तानी लोग फिर भी एक वीज़ा-फ्री सफर का इंतज़ाम नहीं करेंगे. हमें कहा गया है कि ग़ज़वत-ए-हिंद की तरह, खालिस्तान का बनना भी हदीस में है, जिससे उसका वजूद में आना लाज़िमी हो जाता है. हम इसे ‘ट्रक की बत्ती के पीछे लगना ’ की, एक सच्ची मिसाल कह सकते हैं.
बेहद खुशी के साथ ये योद्धा आपको बताएंगे कि सिख भारत में इतने नाखुश हैं कि उनका टूटकर अलग होना लाज़िमी है, और ये सिर्फ वक्त की बात है. जो बात योद्धा आपको नहीं बताएंगे, वो ये कि जब सिखों समेत, उसके अपने अल्पसंख्यकों की हिफाज़त की बात आती है तो पाकिस्तान भी कोई आदर्श नहीं है. यहां इस कौम को अभी भी, हिंदुओं से अलग करके नहीं देखा जाता और आधिकारिक जनगणना में इन्हें एक साथ कर लिया जाता है. सिखों की ज़िंदगी और उनके कारोबार पर लक्षित हमले हुए हैं जबकि उनकी बेटियों पर अगवा होने और ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाए जाने का खतरा रहता है. लेकिन बात पाकिस्तान में रह रहे सिखों की चिंता की नहीं है बल्कि भारत में रहने वाले सिखों की है. अगर अभी तक किसी ने आपको ये नहीं बताया तो असली देशभक्ति यही है.
हर चीज़ के लिए K डायल कीजिए
खालिस्तान का ये मोह नया नहीं है और जब भी सिख समुदाय खबरों में होता है, ये सामने आ जाता है. विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने करतारपुर कॉरिडोर के खुलने पर कहा था कि पीएम इमरान खान ने एक ‘गुगली’ डाली और इस अभूतपूर्व समारोह में अपनी सरकार की मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए, भारत को दो मंत्रियों को यहां भेजना पड़ा. भारत की तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ये कहते हुए उनके बयान की निंदा की कि उससे सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं. करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के मौके पर पाकिस्तान सरकार की ओर से जारी प्रचार वीडियो से भी विवाद खड़ा हो गया क्योंकि उसमें तीन खालिस्तानी समर्थकों को एक पोस्टर हाथ में लिए दिखाया गया था जिसपर लिखा था ‘खालिस्तान 2020’. पाकिस्तान के लिए सिख ज़्यादा से ज़्यादा बस पोस्टर ब्वॉयज़ थे.
कुछ लोग नया मुल्क बनाना चाहते हैं, कुछ पुरानों को फिर से जोड़ना चाहते हैं. वो सुकून से अलग-अलग नहीं रह सकते, वो साथ रहना चाहते हैं. महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक चाहते हैं कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत फिर से एक सुखी परिवार बन जाएं. न सिर्फ ये बल्कि सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लगता है कि कराची एक दिन फिर से भारत का हिस्सा बन जाएगा. ऐसा लगता है कि यहां कश्मीर या खालिस्तान नहीं बल्कि असली आकर्षण ‘के’ का है.
(लेखक पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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