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Friday, 22 November, 2024
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बीबी जागीर कौर SGPC प्रमुख के तौर पर क्यों लौटीं- 2021, 2022 के चुनावों में अकालियों के लिए होंगी मददगार

करीब 10 वर्ष बाद 2021 में एसजीपीसी के चुनाव होने जा रहे हैं और शिअद को पंथक समूहों की तरफ से कड़ी चुनौती मिल रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही अकालियों को यहां अपनी पकड़ बनाए रखने की भी जरूरत है.

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चंडीगढ़: अकाली दल की वरिष्ठ नेता बीबी जागीर कौर पिछले शुक्रवार को चौथी बार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की अध्यक्ष बनीं, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि आगामी 14 दिसंबर को अपने गठन के 100 साल पूरे करने जा रहे शिरोमणि अकाली दल ने सबसे चुनौतीपूर्ण साल के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है.

एसजीपीसी भी 100 साल पुरानी है, जो शिअद के एक महीने पहले बनाई गई थी, और पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के अधिकांश ऐतिहासिक गुरुद्वारों के कामकाज की देखरेख और नियंत्रण इसी के अधीन है. कौर शिरोमणि अकाली दल का नेतृत्व करने वाले बादल परिवार की एक ऐसी विश्वस्त सहयोगी हैं, जिनकी पार्टी को अगले साल होने वाले एसजीपीसी चुनावों के साथ-साथ 2022 के शुरू में प्रस्तावित पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए भी बेहद जरूरत है.

एसजीपीसी के चुनाव आम तौर पर हर पांच साल में होते हैं, और सिखों द्वारा कमेटी के 170 सदस्यों का चुनाव किया जाता है. ये सदस्य हर साल आम तौर पर नवंबर के अंतिम सप्ताह में होने वाली अपनी वार्षिक आम बैठक में अध्यक्ष का चुनाव करते हैं.

हालांकि, पिछली बार एसजपीसी के चुनाव 2011 में हुए थे, और निर्वाचित सदस्य अभी तक इसमें काबिज रहे हैं, क्योंकि सहजधारी सिखों के मताधिकार को लेकर एक मुकदमा पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में लंबित था.

चूंकि एसजीपीसी के अधिकांश सदस्य एसएडी के प्रति निष्ठा रखते हैं, इसलिए इस बार पड़े 143 वोटों में से 122 कौर के पक्ष में आए. उन्होंने गोबिंद सिंह लोंगोवाल की जगह ली है जो लगातार तीन साल से एसजीपीसी प्रमुख के पद पर आसीन थे.

कौर को पहली बार 2000 में जब एसजीपीसी प्रमुख चुनी गई थीं तो वह इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं. कौर पिछले कई सालों से शिरोमणि अकाली दल की ‘स्त्री’ (महिला) इकाई की प्रमुख हैं.

हालांकि, विवाद पिछले 20 सालों से कौर का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं- वह अपनी बेटी के जबरन गर्भपात और अपहरण के एक मामले में एक आरोपी थीं, जिसकी अप्रैल 2000 में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत भी हो गई थी. और पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने नवंबर 2018 में ही उन्हें इस मामले में बरी किया है.

2021 का एसजीपीसी चुनाव एसएडी के लिए अहम

अक्टूबर में केंद्र ने 2021 में होने वाले एसजीपीसी चुनावों की राह प्रशस्त करते हुए जस्टिस एसएस सरोन (सेवानिवृत्त) को गुरुद्वारा चुनावों के लिए मुख्य आयुक्त के तौर पर नियुक्ति किया था. एसएडी द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान विरोध के मुद्दे पर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से नाता तोड़ने, जो दशकों पुराने सहयोगियों के बीच पहली बार टकराव का संकेत था. के कुछ दिन बाद ही जस्टिज सरोन की नियुक्ति हुई थी.

मतदाता सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया जल्द शुरू होने की संभावना है और चुनाव अगले साल होंगे.

एसएडी के लिए एसजीपीसी चुनाव की राह बहुत आसान नहीं होगी. पार्टी में अक्टूबर 2017 में विघटन हुआ था और इससे टूटकर बने गुट बादल परिवार और मूल पार्टी के अन्य नेताओं को घेरने के लिए सक्रिय रूप से समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं. अलग हुए गुटों में अन्य के अलावा रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा की अकाली दल (टकसाली) और निष्कासित राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा और उनके विधायक बेटे परमवीर सिंह ढींडसा की तरफ से इस साल बनाई गई पार्टी एसएडी (डेमोक्रेटिक) शामिल है.


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नवंबर की शुरुआत में एसएडी (टकसाली) और एसएडी (डेमोक्रेटिक) ने पंथक मोर्चा बनाने के लिए हाथ मिलाया, जिसमें सिखों की सर्वोच्च धार्मिक इकाई अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार भाई रणजीत सिंह, संत समाज के संस्थापक बाबा सरबजोत सिंह बेदी के अलावा पंजाब विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष रवि इंदर सिंह, जो अपने अकाली गुट, एसएडी (1920) के प्रमुख हैं, भी शामिल हैं.

पंथक मोर्चे का एकमात्र उद्देश्य एसजीपीसी को बादल के नेतृत्व वाले एसएडी के वर्चस्व से ‘मुक्त’ करना है और इन चुनावों पर वह पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर रहा है.

एसएडी को एसजीपीसी से ताकत मिलती है

एसजीपीसी चुनावों को एसएडी के लिए 2022 में होने वाले विधानसभा के चुनावों से पहले ‘प्रारंभिक परीक्षा’ माना जा रहा है और इसमें पार्टी की प्रतिष्ठा पूरी तरह दांव पर लगी हुई है.

सिख संस्कृति और परंपरा मामलों के विशेषज्ञ प्रो. सरचंद सिंह कहते हैं, ‘पंजाब की पथंक आबादी के लिए एसजीपीसी पर नियंत्रण रखने वाला अकाली दल ही सच्चा अकाली दल है. और अगर ऐसे में नवगठित पंथक मोर्चा एसएडी को इससे हटाने में कामयाब रहा तो 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए अकाली दल के पंथक वोटबैंक पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन इतिहास बताता है कि एसएडी ने भले ही एसजीपीसी के विभिन्न चुनावों में पंथक मोर्चे की तुलना में कठिन चुनौतियों का सामना किया हो लेकिन फिर भी यहां अपनी पकड़ बनाए रखी है.’

बहरहाल, एसएडी नेताओं के बीच आम धारणा है कि एसजीपीसी पर अपना नियंत्रण दांव पर नहीं लगा सकते क्योंकि ये चुनाव 2022 के विधानसभा चुनावों पर सीधा असर डालने वाले होंगे.

अकाली दल जब भी सत्ता से बाहर रहा है तब एसजीपीसी उसके लिए, कम से कम धार्मिक मामलों में, एक कारगर हथियार साबित हुआ है. एसजीपीसी ने पिछले साल कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ मार्च निकाला था, जब उसने पाकिस्तान के साथ करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन का आयोजन किया और प्रधानमंत्री मोदी को इसे जनता को समर्पित करने के लिए आमंत्रित किया.

पहचान न उजागर करने की शर्त पर पंथक मोर्चे के एक सदस्य ने कहा, ‘आमतौर पर मिलकर काम करने वाले एसजीपीसी और अकाल तख्त सिख समुदाय के बीच में सामंजस्य स्थापित करने में अहम भूमिका निभाते हैं और कोई भी राजनीतिक मामलों में भी उनकी अनदेखी या महत्व को कम करके नहीं आंक सकता है. मुख्यमंत्री किसी भी पार्टी का हो सकता है लेकिन उसे इनके सामने झुकना ही पड़ेगा. इसलिए एसजीपीसी पर एसएडी का नियंत्रण होना वास्तव में उसकी असीमित ताकत को सुनिश्चित करता है.’

जागीर कौर इस पद के लिए उपयुक्त महिला

अकाली दल सूत्रों ने कहा कि नरमपंथी लोंगोवाल एसजीपीसी चुनावों में राज्य में एकजुट हो रही पंथक ताकतों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं होते. पार्टी के कई लोगों का मानना है कि लोंगोवाल के नेतृत्व में एसजीपीसी एक संस्था के रूप में कमजोर हुई है और 10 साल बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में सत्ता गंवा देना अकाली दल के कमजोर पड़ने को भी दर्शाता है.

उदाहरण के तौर पर एसजीपीसी के प्रिंटिंग विभाग से गुरु ग्रंथ साहिब के सरोपा लापता होने हालिया विवाद ने भी एसजीपीसी की छवि को प्रभावित किया है.

बीबी जागीर कौर के बारे में अकाली दल का मानना है कि वह अपने बूते पर चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हैं. वह 2000 में एसजीपीसी प्रमुख के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान नानकशाही कैलेंडर के मुद्दे पर तत्कालीन अकाल तख्त जत्थेदार पूरन सिंह के खिलाफ खड़ी हो गई थीं. पूरन सिंह की तरफ से निर्वासित करने का आदेश जारी करने के बावजूद उन्होंने न केवल अपनी लड़ाई जीती बल्कि उन्हें ही जत्थेदार के पद से हटवाने में सफल रहीं.

एसजीपीसी अध्यक्ष के तौर पर कौर ने सदियों पुरानी वह परंपरा बदलने की असफल कोशिश भी की जो महिलाओं को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में कीर्तन करने की अनुमति नहीं देती.

एक वरिष्ठ अकाली नेता ने कहा, ‘कौर को टकसाली या ज्यादा कट्टर रूढ़िवादी सदस्यों के विपरीत उदार मिशनरी सिख सदस्यों का समर्थन हासिल है. लेकिन अकालियों ने उन्हें स्पष्ट तौर पर बता दिया है कि पूरी कड़ाई के साथ आचार संहिता (राहत मर्यादा) के दायरे में रहकर काम करना होगा और वह सदियों पुरानी परंपराओं के साथ कोई प्रयोग करने की कोशिश न करें.’

उक्त नेता ने आगे कहा, ‘जागीर कौर का आचार-व्यवहार अपना वर्चस्व कायम करने वाला है और जानती है कि इसे कैसे हासिल करना है. वह मजबूत इरादों वाली है, इसलिए बेहद कठिन कामों को भी अंजाम दे सकती है. वह पार्टी के लिए कठिन से कठिन काम कर सकती हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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