यहूदी पूजाघरों में बढ़ी सुरक्षा, सरकार से मिली सहायता और छाबड़ हाऊस के दोबारा खुलने से मुंबई में रहने वाले यहूदी एक बार फिर सुरक्षित महसूस करने लगे हैं।
पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा मुंबई पर किए गए 26/11 हमले ने देश की आर्थिक राजधानी पर गहरे घाव छोड़े हैं, साथ ही मुख्य रूप से निशाना बनाए गए यहां के यहूदी समाज को खासी परेशानी उठानी पड़ी है।
कट्टरपंथी छाबड़-लुब्विच आंदोलन में दक्षिण मुंबई में यहूदी केंद्र रहे छाबड़ हाउस में छापों ने पहली बार इस समाज को कमजोर और असुरक्षा का अहसास करवाया। भारत में रहने वाले यहूदी, जो यहां पर किसी भी तरह की विरोधी भावना न होने पर गर्व करते थे, उन्हें अब यहूदी होने के कारण ही निशाना बनाया जा रहा था।
पिछले कुछ वर्षों में, महाराष्ट्र में 5 हजार लोगों का यह छोटा समाज आतंकी हमले के सदमे से अब धीरे-धीरे उबर रहा है। समाज के एक सदस्य का कहना है कि यहूदी पूजाघरों में बढ़ी सुरक्षा, मुंबई पुलिस और राज्य सरकार से मिली मदद, अल्पसंख्यक का दर्जा और छाबड़ हाउस को दोबारा खोलने से मुंबई में रहने वाले यहूदी एक बार फिर सुरक्षित महसूस करने लगे हैं।
इंडियन जुइश फेडरेशन के चेयरमैन जॉनथन सोलोमन कहते हैं कि “इतने वर्षों तक हम यह धारणा बना कर चल रहे थे कि भारत में हमें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है। हिंदू, मुस्लिम व अन्य सभी समाज के लोगों के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं। लेकिन मुंबई हमलों के बाद लगने लगा कि हम ही सबसे आसान निशाना हैं।’
वे आगे कहते हैं कि “कुछ समय के लिए तो समाज के लोग बिल्कुल मौन हो गए थे। लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा नहीं हाते थे, लेकिन सरकार से हमें काफी सहायता मिली। भारत द्वारा इजरायल के साथ सौहार्दपूर्ण राजनीतिक संबंध जारी रखने से भी समाज का आत्मविश्वास काफी बढ़ा है।’
इसी वर्ष पूर्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी इजरायल यात्रा के दौरान 26/11 हमले में बचने वाले मोशे होल्त्जबर्ग से मिले और गले लगाया, जिसकी वजह से यहूदियों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। 11 वर्षीय मोशे तब मात्र 2 वर्ष के थे जब उनके पिता रब्बी गेवरियल होल्त्ज़बर्ग और गर्भवती मां रिवाका की 20 नवंबर 2008 को नरीमन हाउस में हुए अातंकी हमले में हत्या कर दी गई थी।
नरीमन हाउस, 166 लोगों की निर्मम हत्या करने और शहर को तीन दिन तक बंधक बनाने वाले पाकिस्तानी आतंकियों के मुख्य निशानों में से एक था। हमले के दौरान व्यापक रूप से छतिग्रस्त होने वाली इस इमारत को 6 साल बाद 2014 में फिर से शुरू किया गया। मुंबई में एक यहूदी नेता का कहना है कि इस इमारत में छाबड़ हाउस का दोबारा शुरू होना समाज में आशावादी और सकारात्मक संदेश देता है।
सर जैकब ससून सिनेगॉग एंड अलाइ ट्रस्ट के चेयरमैन सोलोमन सोफर कहते हैं कि विदेश से भारत घूमने आने वाले यहूदी ही छाबड़ हाउस में सबसे ज्यादा आते हैं। छाबड़ हाउस के अलावा 10 में से किसी भी पूजाघर में हमला नहीं हुआ, जिसका मतलब है कि यह मुंबई आने वाले विदेशी यहूदियों को डराने के लिए भी किया गया था।
वे आगे कहते हैं कि यहूदियों के एक समूह पर हमला, हम सब पर हमला है और मुंबई पुिलस व सरकार ने शहर में स्थिति अन्य यहूदी इमारतों को सुरक्षित बनाने में काफी सहायता की है। लेकिन, 26/11 हमले के बावजूद यहूदियों और मुस्लिमों में अच्छे संबंध बने हुए हैं, यहां तक कि कई यहूदी पूजाघर मुस्लिम एरिया में ही स्थित हैं।
सोफर कहते हैं कि भारत में यहूदी और मुस्लिम भाईचारे के साथ रहते हैं और आगे भी रहेंगे। ये तो अातंकी संगठन हैं, जो खतरा बने हुए हैं। मैं मुंबई की एक यहूदी स्कूल का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हूं, जहां 98 फीसदी छात्र मुस्लिम समाज से आते हैं और उनके अभिभावक हमसे जुड़कर काफी खुश हैं।
खैर, उस घटना के कुछ निशान अब भी बाकी हैं। यहूदी इमारतें उस तरह से नहीं खुलती हैं, जैसे पहले कभी हुआ करती थीं और किसी भी अजनबी व्यक्ति के प्रति समाज के लोगों में संदेह की भावना बनी रहती है।
दक्षिण मुंबई स्थित शारे रसोन सिनेगॉग के प्रसीडेंट कहते हैं कि हमारे सभी पूजाघरों में अब कड़ी सुरक्षा है। हम किसी भी गैर यहूदी व्यक्ति को अपने पूजाघरों में अंदर आने की अनुमति नहीं देते हैं। वे तभी अंदर आ सकते हैं जब वे समाज के किसी व्यक्ति के साथ आए हों। 26/11 हमलों के पहले कोई भी आ सकता था।