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Friday, 22 November, 2024
होमदेशसुप्रीम कोर्ट का दिल्ली दंगों के मामले में UAPA के आरोपित सिम कार्ड विक्रेता की ज़मानत रद्द करने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट का दिल्ली दंगों के मामले में UAPA के आरोपित सिम कार्ड विक्रेता की ज़मानत रद्द करने से इनकार

शीर्ष अदालत ने दिल्ली पुलिस की याचिका को ख़ारिज कर दिया, जिसने दिल्ली हाईकोर्ट के 23 अक्तूबर के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दिल्ली दंगों की साज़िश के एक मामले में, फैज़ान ख़ान को ज़मानत दे दी गई थी.

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को फैज़ान ख़ान को दी गई ज़मानत को रद्द करने से इनकार कर दिया, जो उन आरोपितों में से एक है, जिनके ख़िलाफ इस साल फरवरी में, उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की साज़िश रचने के आरोप में, गैर-क़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, के तहत एफआईआर दर्ज है.

न्यायमूर्तियों अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी, और एमआर शाह की एक खंडपीठ ने, दिल्ली पुलिस की ओर से दायर एक याचिका को ख़ारिज कर दिया, जिसमें ख़ान को ज़मानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के, 23 अक्तूबर के आदेश को चुनौती दी गई थी.

सुप्रीम कोर्ट की इसी बेंच ने पिछले महीने भी, दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था, जिसमें पिंजरा तोड़ एक्टिविस्ट देवांगना कलिता को, उनके खिलाफ दिल्ली दंगों से जुड़े एक और मामले में, ज़मानत दी गई थी.

दिल्ली पुलिस ने जब अदालत में कहा, कि कलिता एक ‘असरदार शख़्सियत’ थीं, और वो केस के ‘सबूतों से छेड़छाड़’ कर सकतीं थीं, तो कोर्ट ने पलटकर पूछा था: ‘वो सबूतों से छेड़छाड़ कैसे कर सकती हैं? वो सबूत के बाद भागने नहीं जा रहीं’.

गवाहों के बयानात के अलावा कुछ नहीं: हाईकोर्ट

उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने कहा था कि ख़ान, सह अभियुक्त आसिफ इक़बाल तन्हा के साथ मिलकर, ‘सक्रिय रूप से अवैध और आतंकी कृत्य की तैयारी के काम में लगा हुआ था, जिसे दूसरे अभियुक्त ने अंजाम दिया था’.

उनका आरोप है कि इस मक़सद के लिए ख़ान ने, सिम कार्ड सप्लाई करके उसे चालू किया था, जिसे धोखे से किसी अब्दुल जब्बार के नाम से रजिस्टर किया गया था, लेकिन जिसे जामिया समन्वय समिति इस्तेमाल कर रही थी, जिसकी अध्यक्ष जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा, और सह-अभियुक्त सफूरा ज़रगर थीं.

दिल्ली पुलिस का दावा है कि तन्हा ख़ान की दुकान पर गया था- जहां ख़ान एयरटेल मोबाइल कनेक्शंस के प्रमोटर्स के तौर पर काम करता था- और उसने एक ‘फर्ज़ी आईडी’ पर एक सिम कार्ड मांगा था, जिसे नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों में इस्तेमाल किया जा सके. तन्हा एक फर्ज़ी सिम कार्ड लेने के लिए दुकान पर गया था, ये दिखाने के लिए दो गवाहों के बयान भी पेश किए गए थे.

गवाह के बयान का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था, ‘उसने (गवाह ने) ये बयान भी दिया था कि मुल्ज़िम फैज़ान ख़ान ने उससे कहा था, कि फर्ज़ी आईडी पर सिमकार्ड लेना ज़रूरी था, चूंकि उसे आसिफ इक़बाल तन्हा को भिजवाना था, जो अपनी क़ौम के लिए लड़ रहा था’.

इसलिए पुलिस का कहना ये था, कि ख़ान ने जानबूझकर सिम को चालू करके, ऐसे कार्यों को अंजाम देने की साज़िश को आगे बढ़ाया था, जिनसे आगे चलकर दंगे हुए. उसे 29 जुलाई को गिरफ्तारकर लिया गया.

लेकिन, हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति सुरेश कुमार केट ने, ये कहते इन निवेदनों को ख़ारिज कर दिया था, कि यूएपीए के तहत ज़मानत के कड़े प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होंगे, क्योंकि पुलिस अपने इन आरोपों के समर्थन में कोई तथ्य नहीं जुटा पाई, कि उसने आतंकवाद से जुड़े अपराध अंजाम दिए थे.

अदालत ने टिप्पणी की थी, ‘यहां पर ये उल्लेख करना ज़रूरी है, कि यूएपीए,1967 के अनुच्छेद 43डी(5) के तहत गंभीर शर्तें/प्रतिबंध मौजूदा केस में लागू नहीं होते, क्योंकि यहां पर रिकॉर्ड पर सामग्री और जांच एजेंसी की अपनी स्टेटस रिपोर्ट, ख़ुलासा नहीं करतीं कि ये अपराध यूएपीए 1967 के तहत अंजाम दिए गए हैं, सिवाय गवाहों के कुछ बयानात के’.


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सिम की बिक्री और दंगों में कोई ‘क़रीबी संबंध’ नहीं

अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई आरोप नहीं था, कि ख़ान ख़ुद ऐसे किसी व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा था, जो सीएए के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित या समन्वित करने के लिए बनाए गए थे.

उसने कहा, ‘इसके अलावा, याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ऐसा आरोप नहीं है, कि वो किसी तरह की टैरर फंडिंग, या किसी सहायक गतिविधि में शामिल था’.

कोर्ट ने आगे ये भी कहा कि सिम कार्ड से जुड़ा लेनदेन, कथित रूप से पिछले साल दिसंबर में हुआ था, जबकि दिल्ली में हिंसा इस साल फरवरी में फैली थी.

कोर्ट ने आगे कहा, ‘इसका उपरोक्त कथित घटनाओं से कोई निकट संबंध नहीं है, और न ही ये आरोप लगाया गया है, कि वो सिम कार्ड विरोध प्रदर्शन आयोजित कराने के बहाने, मंशा, या उद्देश्य से मुहैया कराया गया था.

ये उल्लेख करते हुए कि यूएपीए के अनुच्छेद 43डी (5) के तहत, आतंकी गतिविधियों के मुल्ज़िमों को ज़मानत देने पर प्रतिबंध, इस केस में लागू नहीं होता, हाईकोर्ट ने 25,000 रुपए के निजी मुचलके पर ख़ान को ज़मान दे दी.


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(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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