केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को जब चेन्नई एयरपोर्ट के बाहर व्यस्त जीएसटी रोड पर चहलकदमी के लिए अपनी कार से उतरे और भीड़ का अभिवादन किया, तो कोई सहज ही उनके जॉन लेनन के सपनों भरे इस गीत को गुनगुनाने की कल्पना कर सकता था, ‘यू मे से आई एम ए ड्रीमर/बट आई एम नॉट द ओनली वन/आई होप समडे यू विल ज्वाइन अस…’.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्य रणनीतिकार राहुल गांधी की तरह राजनीति से महज रूमानी रिश्ते के लिए नहीं जाने जाते हैं. तमिलनाडु के सारे राजनीतिक आंकड़े शाह को ज़बानी याद होंगे: 2014 के लोकसभा चुनावों में 5.5 प्रतिशत वोट; 2019 के लोकसभा चुनावों में 3.7 प्रतिशत वोट; और पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान 2016 में 3 प्रतिशत वोट. अमित शाह को इस बात का पूरा एहसास होगा कि 2014 की ‘मोदी लहर’ जब पांच साल बाद सुनामी बनकर पूरे भारत में छा गई थी, तो भी तमिलनाडु में वो कोई हलचल तक नहीं मचा पाई थी. वास्तव में 2019 में राज्य में भाजपा के वोट शेयर में कुछ प्रतिशत की गिरावट ही आई थी और उसे अपने कब्जे वाली कन्याकुमारी की एकमात्र सीट से भी हाथ धोना पड़ा था.
भाजपा को तमिलनाडु में भारी अवरोधों का सामना करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूपी उसका तुरुप का पत्ता द्रविड़ भूमि पर काम नहीं आता है. मुसलमानों और ईसाइयों की अपेक्षाकृत गैर-प्रतिक्रियाशील आबादी (प्रत्येक करीब 6 प्रतिशत) हिंदुत्व की अपील को सीमित करने का काम करती है. भाजपा की वेल यात्रा, एआईएडीएमके सरकार ने जिसकी अनुमति नहीं दी, लोकप्रिय देवता मुरुगन के नाम पर हिंदू भावनाओं को उभारने की एक कोशिश ज़रूर थी, लेकिन यह कोई बड़ी राजनीतिक बहस पैदा नहीं कर पाई. नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में संभावना का द्वार ज़रूर खुलता दिखा, लेकिन हिंदुत्व को बड़े फलक पर पहुंचाने लायक ऊर्जा नहीं जुटा पाया. पाकिस्तान की आलोचना, अनुच्छेद 370 और राष्ट्रवाद के मुद्दे तमिल मतदाताओं को उत्साहित करने में नाकाम रहे. साथ ही, भाजपा की छवि ‘हिंदी के वर्चस्व’ भाव वाली एक उत्तर भारतीय ब्राह्मणवादी पार्टी की है जो कि, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के अनुसार, द्रविड़ दर्शन से बेमेल है.
ऐसे में अमित शाह तमिलनाडु को लेकर बड़ी उम्मीदें कैसे पाल रहे हैं? दिसंबर 2016 में जे. जयललिता के निधन के कुछ सप्ताह बाद भाजपा के एक शीर्ष पदाधिकारी से अनौपचारिक बातचीत के दौरान मैंने सवाल किया था: ‘आप लोग केरल में इतना ज़ोर लगा रहे हैं. क्या अगला नंबर तमिलनाडु का है?’ भाजपा नेता का जवाब था, ‘अभी नहीं… तमिलनाडु अभी तैयार नहीं है’. उसके बाद काफी समय बीत चुका है.
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पासा पलटने का प्रयास
भले ही तमिलनाडु में भाजपा का अब भी पर्याप्त चुनावी आधार नहीं हो, लेकिन पार्टी का प्रभाव काफी बढ़ा है. इसे चेन्नई एयरपोर्ट पर महसूस किया जा सकता था, जहां मुख्यमंत्री ईके पलानीस्वामी और उपमुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम बेसब्री और कृतज्ञ भाव से शाह का इंतजार कर रहे थे. उसके कुछ घंटों के बाद उपमुख्यमंत्री ने शाह की मौजूदगी में ऐलान किया कि 2021 विधानसभा चुनावों के लिए एआईएडीएमके-भाजपा गठबंधन बरकरार रहेगा.
तो, एआईएडीएमके के नेतृत्व पर भाजपा के प्रभाव की क्या वजह है? जब एआईएडीएमके ने भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव लड़ा तो उसके लिए परिणाम बेहद बुरे रहे थे और 39 में से 38 सीटों पर डीएमके की अगुआई वाला विपक्षी गठबंधन जीता था. लेकिन एआईएडीएमके विधानसभा उपचुनाव अकेले अपने दम पर लड़ी और 22 में से 9 सीटें जीतकर उसने खुद को सत्ता में बनाए रखा. इस पृष्ठभूमि में यही लगता है कि अप्रैल-मई के विधानसभा चुनावों में एआईएडीएमके के लिए अकेले जाना बेहतर रहेगा.
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री पलानीस्वामी जयललिता की अनुपस्थिति वाली परिस्थिति में बहुत मजबूर हैं. उलटे मुख्यमंत्री ने एक सक्षम शासन चलाकर बहुतों को चौंकाया है. जयललिता जहां जनता से बहुत दूर रहती थीं, वहीं पलानीस्वामी ने जनता के बीच जाने का प्रयास किया है. डीएमके के दिवंगत नेता एम करुणानिधि की तरह, जो अक्सर ट्रेन से सफर करते थे और पार्टी मुख्यालय में नियमित रूप से जनता से मिलते थे, पलानीस्वामी जनता के करीब दिखने की कोशिश करते हैं. यदि पलानीस्वामी कार से यात्रा कर रहे हों तो बीच में रुककर वह खेतों में काम कर रहे किसानों से मिलते हैं. चेन्नई के लोग आपको बताएंगे कि मुख्यमंत्री का काफिला गुजरने के दौरान उन्हें बमुश्किल कुछेक मिनट का इंतजार करना पड़ता है; जयललिता के ज़माने में उन्हें 20-30 मिनट तक इंतजार करना पड़ता था. पलानीस्वामी की सरकार ने राज्य में सड़कों और फ्लाइओवरों समेत रुकी हुई परियोजनाओं पर ध्यान दिया, और बहुतों को सरकार द्वारा कोविड महामारी के सक्षम प्रबंधन पर भी सुखद आश्चर्य हुआ है. जबकि सालभर पहले तक एआईएडीएमके सरकार अपना आखिरी दिन गिनती नज़र आती थी. लेकिन खुद को प्रभावी बनाने के लिए उसने प्रयास किए और आज डीएमके के लिए मामला इतना आसान नहीं रह गया है.
एआईएडीएमके को भाजपा की ज़रूरत क्यों है
आखिर पलानीस्वामी-पन्नीरसेल्वम की जोड़ी भाजपा के साथ दिखने के लिए क्यों बेकरार है, जबकि भाजपा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित त्रिभाषा फार्मूले और अनिवार्य राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) समेत कई विवादास्पद मुद्दों पर पार्टी डीएमके के निशाने पर है? यदि आप विपक्षी नेताओं से पूछें कि भाजपा एआईएडीएमके के लिए क्यों अपरिहार्य हो गई है, तो वे इसके पीछे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गत चार वर्षों के दौरान तैयार ज़मीन की बात करेंगे. इन एजेंसियों ने राज्य की राजनीति और नौकरशाही के नामचीन लोगों के खिलाफ छापे मारे हैं जिनमें स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, तत्कालीन मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक और एक रेत खनन व्यवसायी शामिल हैं. इन छापों से एआईडीएमके नेतृत्व में घबराहट फैल गई थी. हालांकि, विपक्ष के ये आरोप पुराने ढर्रे पर ही हैं.
एआईडीएमके के लिए अमित शाह को खुश रखने के कई अन्य कारण भी हैं. जैसे, केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ होना हमेशा राज्य सरकार के हित में होता है. दूसरे, अगले विधानसभा चुनावों के लिए डीएमके का पलड़ा भारी दिखता है और जयललिता के बिना एआईडीएमके के लिए स्थिति आसान नहीं होगी. पलानीस्वामी सबको साथ लेकर चलने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे. यदि एआईडीएमके भाजपा से गठबंधन को तोड़ती तो वह तमिल मनीला कांग्रेस, पट्टाली मक्कल काची और देशीय मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम (डीएमडीके) जैसे छोटे दलों के साथ तीसरा मोर्चा खड़ा करने का प्रयास कर सकती थी. पलानीस्वामी यह जोखिम नहीं ले सकते थे. साथ ही डीएमके नेता और स्टालिन के भाई एमके अलागिरी के अपनी नई पार्टी शुरू करने और भाजपा का सहयोगी बनने की भी संभावना है. यदि भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वघोषित प्रशंसक रजनीकांत, जो अपनी पार्टी शुरू करने की योजना से पीछे हट चुके हैं, को अपने साथ कर पाती है तो यह तमिलनाडु में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए सोने पर सुहागे के समान होगा. हालांकि रजनीकांत विगत में सार्वजनिक रूप से जयललिता के खिलाफ जा चुके हैं और डीएमके से भी उनका सौहार्दपूर्ण संबंध है.
तीसरे, भले ही प्रधानमंत्री मोदी का तमिलनाडु में अन्य राज्यों जितना असर नहीं हो, लेकिन द्रविड़ पार्टियों से परे जाने की इच्छा रखने वाले शहरी युवाओं के एक वर्ग में उनकी लोकप्रियता निश्चय ही है. यह वर्ग पुरानी किस्म की राजनीति से ऊब चुका है और तेजी से वैश्वीकरण की ओर बढ़ रही दुनिया में द्रविड़ राष्ट्रवाद की प्रासंगिता पर उसे संदेह होने लगा है. हालांकि यह वर्ग अब भी बहुत छोटा है और 1967 के बाद से राज्य में सरकार बनाने में नाकाम रहे राष्ट्रीय दलों में ज़्यादा उम्मीद नहीं जगाता है.
चौथी बात, ब्राह्मणवाद का विरोध द्रविड़ आंदोलन का एक मूल तत्व रहा है और राज्य की आबादी का 2.5 से 3 प्रतिशत भागीदारी वाले ब्राह्मण भाजपा की तरफ झुक रहे हैं. जयललिता ब्राह्मण थीं और एआईएडीएमके भाजपा के साथ गठबंधन करके ब्राह्मणों को अपने साथ रखने की उम्मीद कर सकती है. भाजपा ने एल मुरुगन के रूप में एक दलित को राज्य में पार्टी की कमान सौंपकर दलितों को लुभाने का भी प्रयास किया है जो राज्य की आबादी में करीब पांचवें हिस्से के बराबर हैं.
पांचवें, जयललिता की अंतरंग मित्र रहीं शशिकला के जनवरी में जेल से बाहर आने की संभावना है. जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके को भारी उथल-पुथल से गुजरना पड़ा था, जब विभिन्न नेताओं और गुटों ने उनकी विरासत का दावा किया था. अंतत: पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम ने शशिकला और उनके भतीजे टीटीवी दिनाकरन से छुटकारा पाने के लिए परस्पर हाथ मिला लिया. उन्हें शशिकला के जेल में रहने का भी लाभ मिला. अब यों तो पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम ने अपने मतभेद भुला दिए हैं लेकिन शशिकला की वापसी से परिस्थितियां बदल सकती हैं. उन्होंने भले ही अपने पांव जमा लिए हों लेकिन शशिकला की वापसी को लेकर वे चिंतित हो रहे होंगे. शशिकला के पास अब भी इतनी ताकत और धन है कि वह एआईएडीएमके में उठापठक करा सकें.
साथ ही, पन्नीरसेल्वम की तरह शशिकला भी प्रभावशाली थेवर समुदाय से हैं, जो गाउंडर समुदाय (मुख्यमंत्री की जाति) के साथ एआईएडीएमके का प्रमुख समर्थक समुदाय है. पलानीस्वामी-पन्नीरसेल्वम पार्टी और सरकार के मौजूदा शक्ति संतुलन को बिगड़ने नहीं देने के लिए शशिकला और उनके भतीजे के साथ शांतिपूर्ण संबंध रखना चाहेंगे. लेकिन शायद शशिकला की कोई और योजना हो. इसीलिए मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के लिए भाजपा के साथ मित्रता इतनी महत्वपूर्ण हो जाती है. आय से अधिक संपत्ति के मामले में शशिकला भले ही जेल से बाहर आ जाएं लेकिन कई अन्य मामलों में अब भी उन पर केंद्रीय एजेंसियों की नज़र है. पलानीस्वामी शशिकला की वापसी पर संभावित राजनीतिक तूफान से बचने के लिए भाजपा पर काफी हद तक निर्भर करेंगे.
पंचवर्षीय योजना
शनिवार की शाम भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शाह ने आह्वान किया कि उनकी कड़ी मेहनत से पांच वर्षों में पार्टी तमिलनाडु में शासन करने में सक्षम हो सकती है.
अभी की स्थिति में तो यही लगता है कि इस चुनाव में पार्टी एआईएडीएमके के लिए किंगमेकर की भूमिका निभाने की उम्मीद कर रही है. पांच साल में खुद शासन करने का पार्टी का लक्ष्य बहुत ही महत्वाकांक्षी है.
लेकिन जिन्होंने अमित शाह को पूर्वोत्तर की राजनीति का स्वरूप बदलते देखा है, वे तमिलनाडु में उन्हें महज एक स्वप्नद्रष्टा के रूप में खारिज नहीं करेंगे.
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(व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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