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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतगीता, बाइबल, टोरा की तरह क़ुरान भी लोगों को लड़ने की सीख नहीं देता, तो फिर मुसलमानों को निशाना क्यों बनाया जाए

गीता, बाइबल, टोरा की तरह क़ुरान भी लोगों को लड़ने की सीख नहीं देता, तो फिर मुसलमानों को निशाना क्यों बनाया जाए

पैगंबर मोहम्मद पर बनाया गया अपमानजनक कार्टून फ्रांस में सभी सरकारी इमारतों पर लगाया गया. यह अगर पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाना नहीं है तो और क्या है?

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पैगंबर मोहम्मद पर बनाए गए अपमानजनक कार्टून प्रकाशित किए गए, बार-बार प्रकाशित किए गए, उन्हें सरकारी इमारतों पर प्रदर्शित किया गया. पैगंबर मोहम्मद अपने अस्तित्व के 1400 साल बाद भी दुनिया के 1.8 अरब लोगों की भावना, आस्था और जबरदस्त भक्ति के केंद्र बने हुए हैं. और इन 1.8 अरब लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे पैगंबर के अश्लील चित्रण से खुद को अपमानित नहीं महसूस करेंगे क्योंकि यह ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ है. धमकाना भी क्या ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ है? नशा भी क्या ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ है?

शार्ली हेब्दो ने पैगंबर मोहम्मद के कार्टून प्रकिशित किए और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने उसका अनुमोदन किया. इस पर पूरी मुस्लिम दुनिया में विरोध की चिंगारी फूट पड़ी. बाकी दुनिया कह रही है कि ये कार्टून ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के प्रतीक हैं, तमाम मुसलमान इसे ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का विकृत रूप बता रहे हैं और इसे पैगंबर की बेवजह और जानबूझकर तौहीन बता रहे हैं.

क्या पैगंबर मोहम्मद ने चेचेन मूल के 18 वर्षीय अब्दुल्लाख एंज़ोरोव से कहा कि वह 47 वर्षीय शिक्षिका सैमुएल पैटी का सिर कलम कर दे? नहीं. क्या उन्होंने अल कायदा का गठन किया? नहीं. क्या 9/11 को वे वह विमान उड़ा रहे थे? नहीं. क्या आईसी-814 विमान का अपहरण उन्होंने किया था? नहीं. तो फिर उन्हें क्यों अपमानित किया जाए? यह बिल्कुल बेवजह और गैरज़रूरी है. मैं उन मुसलमानों में शामिल हूं जो इन कार्टूनों का और इस तरह की इस्लाम विरोधी चीज़ को प्रसारित करने की मैक्रों की कार्रवाई का साफ विरोध कर रहे हैं.


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इस्लाम के खिलाफ ‘जिहाद’

यह सर्वविदित है कि 11 सितंबर 2001 यानी 9/11 को जब दो विमानों ने अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो टावरों को टक्कर मारी थी तब उन्होंने जमीनी और आर्थिक प्रतिबंधों के खिलाफ पुराने सभ्यतागत युद्धों को भी टककर मारी थी और धार्मिक विचारधारा को लेकर युद्ध की शुरुआत कर दी थी. एक मुसलमान होने के कारण निजी तौर पर मैंने इस पर बहुत शर्मिंदगी महसूस की थी क्योंकि उन हमलावरों ने यह सब इस्लाम के नाम पर किया था. यह और बात है कि ‘इस्लाम की खातिर’ यह कांड करने से पहले उन्होंने बार में जाकर बीयर पी थी.

जिहाद का आधुनिक रूप सामने था. हालांकि आतंकवाद आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आइआरए), कु क्लक्स क्लान (केकेके), तमिल ईलम टाइगर्स (एलटीटीई) जैसे संगठनों के कारण बहुत पहले शुरू हो चुका था लेकिन ‘इस्लामी आतंकवाद’ ने लोगों को जितना उद्वेलित किया उतना किसी ने नहीं किया था.

पिछले 19 साल से दुनिया की सुई इस्लाम पर अटकी हुई है और वह प्रचलित धारणा के मुताबिक, इस बहस में उलझी हुई है कि इस्लामी मतों के कारण फैला आतंकवाद दुनिया के लिए खतरा बन चुका है. लेकिन इन 19 सालों में मेरे जैसे कई मुसलमान यह मानने से इनकार करते रहे हैं कि ये कथित ‘इस्लामी’ आतंकवादी हरकतें एक समुदाय के तौर पर या हम जिस मजहब का पालन करते हैं उसके तौर पर हमारी करतूतें हैं. इसलिए हम इनके लिए न तो खुद को जिम्मेदार मानते हैं और न क्षमाप्रार्थी मानते हैं. कोई पागल आदमी कुरान की जो भी व्याख्या करता है उसके कारण की जाने वाली करतूतों के लिए न तो पूरा मुस्लिम समुदाय जिम्मेदार है और न वह मजहब जिम्मेदार है जिसका पालन हम करते हैं. अगर कोई सनकी आशिक ‘मोहब्बत की खातिर’ कत्ल कर देता है तब आप यह नहीं कहते कि मोहब्बत ‘संकट’ में है, हालांकि लोग इसकी खातिर सदियों से हत्या करते रहे हैं.


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लेकिन मैक्रों कुछ और सोचते हैं

आज फ्रांस इस्लामी आतंकवाद पर बहस का अगुआ और केंद्र बन गया है, भला हो इसके राष्ट्रपति का जिन्होंने सैमुएल पैटी की अन्त्येष्टि पर यह बयान दिया कि इस्लाम ‘पूरी दुनिया में संकट में है’. एंज़ोरोव ने पैटी की हत्या इसलिए की कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद पर ‘शार्ली हेब्दो’ में छपे वे अपमानजनक कार्टून अपने छात्रों को दिखाए थे जिनके चलते 2015 में फ्रांस में आतंकवादी हमले हुए थे.

मैक्रों ने कहा कि फ्रांस स्वाधीनता के अपने मूल्यों की मजबूती के लिए कार्टून बनाना जारी रखेगा. और इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए उन अपमानजनक कार्टूनों को फ्रांस की सरकारी इमारतों पर प्रदर्शित किया गया. अगर यह एक पूरे समुदाय को धमकाना और जानबूझकर उकसाना नहीं है तो मुझे नहीं मालूम क्या है.

मैक्रों की क्षुद्र कार्रवाई के कारण दुनिया भर में मुसलमानों ने विरोध शुरू कर दिया, जो उदारवादी देश द्वारा एक धर्म की तौहीन पर उतर आने से बुरी तरह नाराज थे. पैटी की हत्या से इस्लाम और मुस्लिम समुदाय का कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन जब कोई भी मुसलमान यह कहता है तब इस्लाम को एक बर्बर रेगिस्तानी कौम बताने वाले इस्लाम विरोधी लोग पवित्र कुरान की आयतों का हवाला देने लगते हैं. इन लोगों को इस तथ्य से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन आयतों का अपना एक संदर्भ है. उन्हें इस सबसे कोई मतलब नहीं है.


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संदर्भ से काट कर

क़ुरान की कई आयतों में से एक खास आयत है जिसे इस्लाम को एक हिंसक धर्म बताने के लिए उदधृत किया जाता है. इसके दूसरे सूरे (अध्याय) की 191वीं आयात में अल्लाह कहते हैं—

‘और जहां कहीं उनसे सामना हो, उनका कत्ल कर दो और उनको वहां से निकाल दो जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला है. इसलिए की फितना (उत्पीड़न) कत्ल से बढ़कर बुरा है. लेकिन मस्जिद अल-हरम (काबा) के पास तुम उनसे मत लड़ो, जब तक कि वे तुमसे वहां न लड़ें. अगर वे लड़ें तो उनका कत्ल कर दो, ऐसे काफिरों की यही सज़ा है.’

कोई भी यह समझने को तैयार नहीं है, बताए जाने पर भी नहीं कि यह आयत तब आई थी जब कुरेश कबीले ने हज पर गए मुसलमानों पर हमला किया और उनका कत्ल किया था जबकि उन्होंने पैगंबर से यह करार किया था कि वे हज यात्रियों पर हमला नहीं करेंगे.

क़ुरान 23 सालों में टुकड़ों-टुकड़ों में पैगंबर मोहम्मद पर अवतरित हुआ था. इसलिए इसकी आयतें तत्कालीन हालात के मुताबिक हैं. हर सूरा बताता है कि वह किस जगह पर पैगंबर मोहम्मद पर अवतरित हुआ था. क़ुरान एक रेखा में नहीं संकलित किया गया है. किसी हालात का जिक्र शुरू के किसी सूरे में मिल सकता है, तो उसका जिक्र बहुत आगे के किसी सूरे में भी मिल सकता है, क्योंकि पवित्र क़ुरान कहानियों का ग्रंथ नहीं है. यह उपदेशों और नैतिक शिष्टाचारों का ग्रंथ है.

कोई भी आगे की आयतों को उदधृत नहीं करता क्योंकि तब उसका इस्लाम विरोध काफूर हो जाएगा. दूसरे सूरे की आयत 193 में अल्लाह कहते हैं— ‘और उनसे तब तक लड़ते रहे जब तक कोई और जुल्म न हो और धर्म ईश्वर के लिए हो, लेकिन अगर वे संघर्ष करते हैं, तो अपराधियों के अलावा किसी भी आक्रामकता की अनुमति नहीं है.’

इसमें और गीता में कृष्ण अर्जुन को जो उपदेश देते है उसमें क्या फर्क है? कृष्ण धर्म की यह परिभाषा देते हैं— ‘अथ चैत्वमिमं धर्म्यमं संग्राममं न करिष्यसि। ततः स्वधर्म कीर्ति च हित्वा पापमवाप्स्यसि’। (हे अर्जुन, अगर तुम धर्म के लिए नहीं युद्ध करोगे तो अपनी कीर्ति, अपने गौरव को खो दोगे). हिंदुओं को इसका संदर्भ निश्चित ही मालूम होगा.


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गीता से बाइबल और टोरा तक

बाइबल का ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ भी आस्तिकों से कहता है, युद्ध करो! ‘ड्यूतरोनोमि-20’ : 1-4 कहता है— ‘जब तुम अपने शत्रुओं से युद्ध करने जाओ और घोड़ों, रथों और अपनी सेना से बड़ी सेना को देखो तो घबराओ मत क्योंकि तुम्हारे ईश्वर, तुम्हारे लॉर्ड तुम्हारे साथ हैं, जिन्होंने तुम्हें मिस्र की जमीन से पैदा किया. और जब तुम युद्धस्थल के करीब पहुंचोगे तब पुरोहित आगे आएंगे और लोगों से कहेंगे— ‘सुन लो ओ इजरायल, आज तुम अपने शत्रुओं से मुकाबला करने जा रहे हो, अपने दिल को कमजोर मत होने दो. डरो मत, घबराओ मत, न ही उनकी दहशत में आओ, क्योंकि तुम्हारे ईश्वर, तुम्हारे लॉर्ड वे हैं जो शत्रुओं के खिलाफ तुम्हारे साथ युद्ध करेंगे, तुम्हें विजय दिलाएंगे.’

यह टोरा के इन पदों से किस तरह भिन्न है, जिनमें नरसंहार और लूटपाट का जिक्र है. इसके पद संख्या 31:1-10 में कहा गया है—

‘लॉर्ड ने मोजेज़ से कहा— ‘इजरायलियों, मिडियनों से बदला लो तभी तुम अपनों के साथ हो सकोगे.’ मोजेज़ ने लोगों से कहा— ‘युद्ध के लिए अपने बीच से लोगों को चुनो और उन्हें मिडियनों पर टूट पड़ने दो ताकि वे उनसे लॉर्ड की तरफ से बदला लें. तुम हरेक इजरायली कबीले से एक-एक हज़ार लोगों को चुनो…’ ‘इजरायलियों ने मिडियन औरतों-बच्चों को कैद कर लिया, उनके जानवरों, मवेशियों, दौलत को लूट का माल बनाकर हड़प लिया. उनके शहरों और तंबुओं को जला डाला.‘

इन धर्मों के सच्चे अनुयायी उन सबका निश्चित ही विरोध करेंगे, जो भी इन उपदेशों को संदर्भ से काट कर उनके धर्मों को हिंसक बताने की कोशिश करेगा.

लेकिन केवल मुसलमानों को चुन कर उनकी आस्थाओं को निशाना बनाया जाता है. हम अपने मजहब को लेकर क्षमाप्रार्थी होने से इनकार करते हैं. और इस्लाम विरोधी भावना को और फैलाने वाले इन अपमानजनक कार्टूनों का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करेंगे. स्वाधीनता के प्रतीक कहे जाने वाले निंदनीय कार्टूनों को जायज ठहराने के लिए आतंकवादी हमलों को बहाना नहीं बनाया जा सकता.

(लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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2 टिप्पणी

  1. तुलना करना बुरा नहीं है लेकिन तथ्यों के साथ न्याय जरूरी है वो आपके लेख में नहीं दिखता है आप दिखा रहे हैं कि किसी भी विचार को उस वक़्त के सन्दर्भ परिस्थितियों को ध्यान में रखकर पड़ा जाना चाहिए यह बात पूरी तरह सही है एक कबिलाई समाज के दोर के दुआरा लिखे विचार आज के 21 बी सदी में कहाँ तक उचित है. आपने भागवत गीता के श्लोक की बात की और धर्म की रक्षा स्थापना के संबंध में.. भारतीय परिप्रेक्ष्य में धर्म धार्मिक विश्वास से कहीं व्यापक है जेसे की राज धर्म, पुत्र धर्म, पिता धर्म,.. अर्थात धर्म जो धारण करने योग्य है कृष्ण अर्जुन को किसी और धर्म उपासकों को मारने के लिए नहीं कह रहे हैं इसलिए इस सन्दर्भ को कृपा करके संकीर्ण सोच में प्रयोग न करें.

  2. अर्थ- अगर तू यह धर्ममय युद्ध नहीं करेगा, तो अपने धर्म और कीर्ति का त्याग करके पापको प्राप्त होगा

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